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(१०६ ) व संजम सुणवि करे, अगनिभूइ आवेय तो॥ नाम लेई आभास करे, ते पण प्रतिबोधेय तो ॥ २० ॥ इण अनुक्रम गणहररयण, थाप्या वीर इग्यार तो॥तो उपदेसे भुवनगुरु, संयमसुं व्रत वार तो॥ विहुं उपवासें पारणो ए, आपण विहरंततो ॥ गोयमसंयमजग सयल, जयजयकार करंततो ॥ २१ ॥ ॥ वस्तु ।। इंद्रभूइ इंद्रभूइ चढियो बहुमान, हुंकारो करि कंपतो, समवसरण पहुतो तुरंततो॥ जे जे संसा सामि सवे, चरमनाह फेडे फुरंततो ॥ बोधवीज सज्जायमनें, गोयम भवहि विरत्त ॥ दिरकलेई सिरकासही, गणहरपयसंपत्त ॥ २२ ॥ भासउ ॥ आज हुओ सुविहाण, आज पचेलिमां पुण्य भरो ॥ दीठा गोयमसामि, जो नियनयणे अमियझरो ॥ समवसरण मझार, जे जे संसा ऊपजे ए ॥ ते ते पर उपगार, कारण पूछे मुनिपवरो ॥ २३ ॥ जिहां २ दीजें दीख, तीहां र केवल ऊपजे ए ॥ आप कनें अणहंत, गोयम दीजें दान इम || गुरु ऊपर गुरु भक्ति, सामी गोयम ऊपनिय ॥ अणचल केवल नाग, रागज राखे रंग भरे ॥२४॥ जो अष्टापद सेल, वंदै चढ चउवीस जिण ॥ आतम लब्धि बसेण, चरम सरीरी सोयज मुनि ॥ इय देसणा निसुणेह, गोयम गणधर संचरिय, तापस पनरसएण जोमुनिदीठो आवतो ए ॥ २५ ॥ तपसोसियनिय अंग, अम्हां सगति न ऊपजे ए॥ किम चढसे दृढकाय, गज जिम दीसे गाजतो ए॥ गिरुओ ए अभिमान, तापस जो मन चिंतवे ए॥तो मुनि चढियो वेग आलंबवि दिनकर किरण ॥ २६ ॥ कंचन मणि निप्पन्न, दंडकलसध्वज वडसहिय ॥ पेखवी परमाणंद, जिणहरभरतेसरमहिय ॥ निय
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