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(७३) वरच्छरसाबहुआहि, सुरवररइगुणपंडिअआहि ॥ ३० ॥ भासुरयं । वंससद्दतंतिताल मेलिए तिउरकराभिरामसदृमीसएकएअ, सुइसमाणणेअसुद्ध सजगीअपायजालघंटिआहिं ॥ वलयमेहलाकलावनेउराभिराम सद्दमीसए कएअ देवनट्टिआहि ॥ हावभावविष्भमप्पगारएहि नचिऊण अंगहारएहिं बंदिआय जस्स ते सुविकमाकमा ।। तयं तिलोयसबसत्तसंतिकारयं पसंतसवपावदोसमेसहं नमामि संतिमुत्तमं जिणं ॥ ३१ ॥ नारायओ ॥ छत्तचामरपडागजूब जवमंडिआ झयवरमगरतुरयसिरिवच्छसुलंछणा ॥ दीवसमुद्द मंदिरदिसागयसोहिआ, सत्थिअवसहसीहसिरिवच्छसुलंछणा ॥३२॥ ललिअयं ॥ सहावलट्ठा समप्पइहा, अदोसदुद्दा गुणेहि जिहा ।। पसायसिहा तवेण पुट्ठा, सिरीहिं इट्टा रिसीहिं जुट्टा ॥ ३३ ।। वा णवासिआ ॥ ते तवेण धुअसबपावया, सबलोअहिअ मूलपावया ।। संथुआ अजिअ संति पावया, हुंतु मे सिबसुहाणदायया ॥ ३४ ॥ अपरांतिया ॥ एवं तवबलविउलं, थुझं मए अजिअ संति जिण जुयलं ॥ ववगयकम्मरयमलं, गई गयं सासयां विमलां ॥ ३५ ॥ गाहा ॥ तं बहुगुणप्पसायं मुरकसुहेण परमेण अविसायं ॥ नासेउ मे विसायं, कुणउ अ परिसाविअ पसायं ॥३६॥ गाहा ॥ तं मोएउ अनंदि, पावेउअ नंदिसेणमभिनंदि ॥ परिसाविअ सुहनंदि, मम य दिसउ संजमेनंदि ।। ३७ ॥ गाहा । परिका चाउम्मासिय, संवच्छरिए राइए अ दिअहेअ ( अवस्स भणिअबो)। सोअबो सहिं, उवसग्ग निवारणो एसो ॥ ३८ ॥ जो पढइ जो अनिसुणइ, उभओ कालंपिअजिअसंतिथुरं ॥ न हु हुँति तस्स रोगा, पुवुप्पन्ना विनासंति ॥ ३९ ॥ जइ इच्छह परम पयं, अहवाकित्ति सुवित्थडां
। एवं तवला, हुतु मे सिाहिब मूलप
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