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॥श्री॥ ॥ छत्रीश बोल संग्रह ॥
masatarसमस्त साधुजी, साधवीजी, श्रावक अने श्राविकाने अवश्य उपयोगी जाणीपोताने खर्चे घणीज रीते संशोधन
करावी मफ़त (बक्षीस ) आपवा सारु तैयार करी छपात्री प्रसिद्ध करनार,
अगरचंद नेरुदान शेठीया.. मु.विकानेर. प्रथमावृधि-प्रत १०००
किम्मत सदुपयोग ( अमूल्प.)
HGR०००००००००००००००००
THISRO THIRSITERTISTER
संवत १९१२ -सने १९१६
RECE00०००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००कod
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श्री जैन विद्याविजय प्रीटींग प्रेसमां शा. चुनीलाल अमथामाइए छाप्यु-अमदावाद.
श्री हंसराज बच्छराज नाहटा सरदारशहर निवासी
द्वारा जैन विश्व भारती, लाडनू
को सप्रेम भेट -
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प्रस्तावना. या छत्रीश बोलना थोकडानुं पुस्तक विकानेर (राजपुताना) निवासी श्रेष्ठी अगरचंदजी भेरुदानजी तरफथी सर्वे सत्पात्रने सज्जनने भेट आपवा माटे छपाची प्रगट करवामां आव्यु छे.
धर्मज्ञाननो फेलावो करयो ए महापुण्यन काम छे. श्रमणभगवंत श्रीमहावीरमधुए कहां छे के-"पढमनाणं तवो दया." ज्ञाननो प्रसार करी अज्ञानरुपी अंधकारनो नाश करवो ए काम मायावी जगतना जीवो माटें अति जरूरतुं छे. अधर्म अने धर्मनो भेद ज्ञानथी मालम पढे छे.
धर्म ए अमूल्य चीज छे, तेनुं खरं वरुप समजवं मुश्कल छे. मनुष्यना शुष्क जीवनमा धर्म ए एक शीतळ चैतन्य छे. आत्मानी अनेक निराशाओमां धर्मज आशानो संचार करे छे. मृत्यु पछी पण जीवनने अव
वन आपनार वस्तु धर्मज छ, धर्मनुं बळ अप्रत्यक्ष छे पण तेयी तेनो अस्वीकार करीशकायज नहि. जगता / जे प्रजा बनी छे ते सर्वे धर्मना जोसथीज बनी छे. हालमा धर्मनो अर्थ संकुचितहतिथी करवामां आवे छे ते ठीक नथी. वादविवादयी धर्मनु शान्तिप्रचारक मूळ स्वरूप नष्ट करी तेने विरोधवर्धक रूप आप_ योग्य नयी एना यथोचित उपयोगथी मनुष्य- कल्याणज थाय छे. जे हानि याय छ तेतीधर्मांधताथी याय छ, धर्मथी यती नथी. माटे वादविवाद के विरोधवर्धक के धौधता प्रदर्शक खंडनमंडन जेवू लखाण प्रगट करवानुं पसंद नहि करतां छत्रीश बोलना थोकडा जेषु राने मिय थइ पडे तेवूआ पुस्तक शेठश्री मोमुफे प्रगट करवान योग्य घायु जणाय छे.
जुदा जुदा सूत्रमा के स्थळमा जुदा जुदा नोलनु छुटुं छुटुं ज्ञान मळी शके खलं पण ते शोधवामा पुष्कळ वखत जाय अने तेम छतां पण जोइए तेटली विगत एकठी यइ शके नहि तेथी आ प्रमाणे छत्रीश बोलनो संग्रहल
||
सागर रामस्या
Bare
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8| एक स्थळे एकगे करी प्रगट करवानुं काम उचितज ययु छे. आजना जीवन कलह (strugal of existencs) | ना समयमा वर्षा सूत्रो पांचवा जनसमूहने निरांत होती नयी तेमने आ एक ठेकाणे ३६ बोलनो थयेलो संग्रह बहु उपयोगी थशे.
आ छत्रीश बोकमा घणी उपयोगी बाबतो समाववामां आवी छे. द्रव्ये ने भावे, स्वार्थे ने परमार्थे, धर्मने व्यवहारे पधी रीते आ पोलोना अभ्यासयी लाम थाय तेवु छ, माटे जे जे भाइयोने आ पुस्तक प्राप्त थाय तेणे नो सारो उपयोग करवो एटली विनंती छे.
धर्मना फरमान प्रमाणे सर्वे प्रकारनी जतना राखी आ पुस्तक वाचवानुं छे.
ज्ञाननो प्रसार करवो ए महा पुण्य काम छ एम काइ जैन सूत्रोण कहे छे एम नयी. श्रीमद्भगवदमीतामां पण कड्छे के " नहि ज्ञानेन सदृशं, पवित्रमिह वियते."
अज्ञान एन अंधकार-एज माया के अविधा छे तेनो नाश करी आवी वातो समजावनारी पुस्तको उपयोगी शामाटे न गणाय ?
आमांनी केटलीक वातो समजवी अथवा अनुभववी मुश्केल छे. जेमके आत्मा एक छे. "धर्मस्य सत्वं निहितं गुहायाम्" तथापि जो एवी वातो समजाय ने वर्तनमा मूकाय वो वेलासर बेडो पार-भव छेदन यइ जाय. मनुष्यनी परीक्षा श्रुत, शील, गुण ने कर्मवडे थाय छे अने आ ३६ वोलना संग्रहमायी ए चारे वातो मात याय तेम छे.
दयाधर्मनी वृद्धिने माटे आवां पुस्तको उपयोगी छे. अर्थात् हिंसाए जगवने केटलू बधु नुकशान कर्य
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-
छे ते जणावधानी जकर नयी. शान्ति अने अहिंसाने प्रसारनारां ने द्रढ करनारा पुस्तकोने उपदेशनी आ जगतने बहु जरूर छे. कां छे के
त्यजेद्धमै दयाहीन, वियाहीनं गुरुं त्यजेत् । त्यजेत्क्रोधमुखी भार्या, निस्नेहान्बांधवांस्त्यजेत् ।। (दया विनानो धर्म, ज्ञान विनानो गुरु, क्रोधमुखी भार्या अने स्नेह विनाना वांधवो तजवा.)
था पुस्तक सौने उपयोगी याओ एवी महेच्छासहित आवां पुस्तको विना मूल्ये बहेंचवानी इच्छा घराबनार शेठश्रीनो आभार मानी प्रस्तावना पूर्ण करवामां आवे छे. .
रा. रा. पोपटलाल केवळचंद् चाहे शास्त्र विरुद्ध कंइ न छपाइ जाय ते जोवानी बनती काळजी राखी बने तेटली सहायता आपी छे, ए मारे अहिं खास जणाचवू जोइए.
सी. शेवजी अगरचंदजी नेरुदानजी विकानवासी तरफथी ली. वासामाइ छगनलाल शाह जैन जुकसेलर ठे. कीकामठनी पोळ-अमदावाद.
॥स्वकुलप्रकाश॥ धर्मचंदजी तत्पुत्र प्रतापचंद अगरचंद मेरुदान हजारीमल चिरंजीव जेठमल पानमल लहरचंद उदेकरण जुगराज मैनपाल शेठीया श्रीकल्याणमस्तु ।। पुस्तक मिळणेका ठिकाणा-प्रेयसंग्रहकीके पास.
अगरचंदजी नरोदानजी शेठीया. मरोठीयोंकी गवाड-चीकानेर-राजपुताना (मारवाद). कलकचा-१०८ पुराणाचीणावजार (बदायमार).
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श्री वैराग्य शतक जाषान्तर कथा साधे. (यावृत्ति चोथी . )
yasai घणा विस्तारयी वार्तारूपे अर्थ अनेनार्थ लखवामां भाव्यो हे. प्रसंगे प्रसंगे वैराग्य उपर अतिमुक्तकुमारनी, अढारनात्रानी, वृद्धावस्थाना दुःख उपर घनासार्थवाहनी विगेरे मोटी मोटी ११ कथाओवी हे तेथी आ पुस्तक वैराग्यदशाने जागृत करनारा स्त्री पुरुषोने घेणुंज उपयोगी थइ पढयुं हे. मा पुतकनी हुँक मुदतयां चोथी आवृत्ति यह छे तेज तेना उपयोगीपणानी विशेष खात्री छे. आ पुस्तकनी किंमत एक रुपीओ चार आना राखी छे, जोइए तेमणे नीचेना 'शीरनामेथी मंगावना. टपालखर्च वी. पी. साये त्रण' अना. जैन सूत्रो.
विपाकसूत्र भाषान्तर-प्रथम स्कंध - दुःखविपाक जिसमें कर्मोंकें फळ दिखानेवाले दक्ष अध्ययनोंका समावेश है. 01110
उपाशकदशांग सूत्र- खंड २ जो भाषान्तर, जिसमें धर्मकी उपासना करनेवाला दश श्रावकोका इतिहा दिया गया है.
उपाशकंदशांग सूत्र- खंड ३ जो भाषान्तर. जिसमें श्री निश्यावलिका कल्पवडंसिय, पुष्कीआ, पुष्पचूला और विन्दिदशा नामक उपदेशी जैनशास्त्रका सार लिखा गया है.
01310
01210
शा. बालाजार बगनलाल. ठे. कीकाभटनी पोळ. -अमदावाद.
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॥अनुक्रमणिका ॥
बोल.
बोल. प्रथम बोल. दूजो बोल. तीजो बोल. चोथो बोल. पांचमो बोल. उठो बोल. सातमो बोल. श्राठमो बोल. नवमो बोल.
१००
दशमो बोल.
ग्यारमो बोल. बारमो बोल. तेरमो बोल. चवदह बोल. पनरे बोल. सोले बोल. मतरह बोल. अढारे बोल.
१०७
११७
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पत्र
बोल. जंगणीसमो बोल. वीसमो बोल. एकवीसमो बोल. बाश्समो बोल. तेवीसमो बोल. चोवीसमो बोल. पचीसमो बोल. बवीसमो बोल. सतावीसमो बोल.
पत्र. ११७ १२० ११२ १२४ १२७ १ १३३ १३७ १४०
बोल. अठावीसमो बोल.
गणतीसमो बोल. त्रीसमो बोल. एकत्रीसमो बोल. बतीसमो बोल. तेतीसमो बोल. चोतीसमो बोल. पेंतीसमो बोल. तीसमो बोल.
१४१ १४४ १४ए १५१ १५ए
.१६१
१६३ १६० १६॥
PRORAMA
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॥अथ शुधि शुधि पत्रकं ॥ (पंक्ति पोलीने कहे जे.) पत्र. शुक. अशक. पंक्ति. पत्र. शुक. अशुध. ६ सिकामें सिघाने
१५ संसारसजै संसारख्लै शुए ६ अघोपरो श्राघोपरो १७ १३ ग्रहहीरी गृहस्थरी १३ ६ थणेखणीक अन्नेषणीक १ १५ संख्या ऊपजै संख्याता ऊपजै १ ७ केवलीरूप्पा केवली प्ररूप्या १७ १६ ऊणियन्याहारणं कुणियथाहारणं १७
समकित शंका समकितपर शंका १५ १७ विनय करत विनय करतां १ ए सेवे करें में सेवा करें । १० तीजोगाथापतिरे थाणंदगाथापति | ए बिना न जोवें बिन जोवें १५ १० बकुखब्राह्मणरे बहुल ब्राह्मणरे २ ए राग वह राग स्नेह १७ १० घूजा सरीषा धजा सरीखा १० दीनूंही दोमुंही २५ १ए नही देवें देवे ११ तीर्थकरदवे तीर्थकरदेव ५। २० प्रमुखरय प्रमुखरा
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२० एही कथा एहवी कथा ७ ३१ कुरणीवयमें तरुणवयमें २० एही कथा एहवी कथा ए ३१ नगवंतरो नगवंतरी १० जीव कया जीव कीया ए ३१ षोयया पोयया २५ व्यववहारीयो व्यवहारीयो १४ ३१ जीपावेनही जीपावें २५ मनमांहीपशुप्न सुन्नमांदिवसुन्न १६ ३२ संख थोमा 5ष थोमा १६ असुन्नमांदिसुन अशुग्नमांहि अ- ३२ काक समान ___ कांकरा समान २६
शुन १ ३४ परीसहन परीसह २७ निमित्तनावे निमित्तानाखें ७ ३६ अदिनाणा अदिनादाणा २७ मार्गने मार्गमें
३६ समकित सबर समकित संबर २३ | २० महापमिवाथे महापमिवाये १३ ३७ सासदान सास्वादन शश नरकावसो नरकावासो १७ ३७ यासथा घासता ३० सर्व
१० | ३७ मिथ्यात्वनुं मिथ्यात्वीनुं १३
सर्प
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________________
************************O***O***@*
३७ समकित नही समकित पार्मेनही १८
३८ बेवा
बेगते
३० ध्याय
३५ शुद्ध
३
अनुग्रहपाशु
३ अनुभावशुद्ध ३५ तिवारे चित्त वायरो ३० वध्योतरी
४० दानांयांतराय
४० बाजाठांतराय ४० कदाग्रही
धाय
शुद्धे
२१
दानयंतराय arviतराय
कदाग्रद
6
अनुपेपणाशुद्धे 9 खासणाशु तिएकरी सचित्त वायरो १०
वधोतरी
२१
५
U
४० करतु
४० उलटथी
४१ वीटसीगे
४१ नम्बरीयापीडे
४१ मैपारा
४१ ऊपर्ने
४१ कलपाणी
४२ पर्कारो
४२ नावासुं
४३ घ्यारापणा
४३ प मिलेहरा ४० निर्बंध
२०
करतुत
उलटा
१
विटिजसीतो बमबरी पाछें ३
मैरा
ऊपजें वेलपाणी
कारो ย नावसुं
१६
यारोपणा
पमिवेदणारी २६ निर्बंथगुरु
२१
6
१४
३
********************************
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________________
जूवो
४ वदाय ४ पंचेंजिपपणो ४ अविरतेरी Uए अनित्रं ५१ नमा ५२ परसंसार ५२ थाघोदेखे ५४ अणपारसीया ५४ धर्म मीलें २५ तीन मकार ५५ घट जाचं ५५ मुम्पावें
वाय
। ५५ जूगे पंचेंजियपणो १३ । ५६ सो अविरतरी १७ १६३६ अनिबंत १३ | २६ शए सो नचावें ११ ५६ श्ए सो परसंसा ३ ५६ २४०० आधो देखें ५ ए जीवसंदरे अणफरसीया १० ए सुप्रदर्शन धर्मी मीले १५ ५७ पालें ग्यानी तीन प्रकार ७ एए पामिविया घट जावें घट जाव १७ । ६०अाज मुंठवावें १० । ६० पाणीसूक्ष्म
सातसो ३४६ ए सो ए सो ४०० २० जीवप्रदेशसंदरे १२ सुनदर्शन १७ पालं ते ग्यानीए पाकुचिया १३
थान प्राणसूक्ष्म
OMXX
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________________
जीवते करेसुं
रोहिमें
पमावेसु पुरषरा
पेने
६० कीमीना का श्रम सूक्ष्म १३ | 30 जीवने
करसुं *ll ६० —हरी सूदा हरिसूक्ष्म १४ | २ रूमें || ६० गलोय प्रमुख- लयण सूक्ष्म जीवो- २ पमावसुं | नाईमा सूक्ष्म के घर १४ शपष ६५ वेश्ने
२ सेवे ६५ षिण पिण
२ शोके ७० वृहीतरी बधोतरी ४ २ नाषाए ७० अांखो नथी यांत्रोथी २४ 1 जूतकारी ७१ करणने करणनें थाया जए आदामें ७१ थासथा यासता पए करतें श्तोर्थ ७४ वाजित्रत्र वाजित्र ११ । जए बोलाता
१४ ।
शोक नापारा
थाटामें करलें श्त्यथै १५ बोलना
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० किसीकीनी
१० घरना
० सवनका
ए त्याग
ए त्याग [३] सोचें
४ जुलसना सुनी
९ पायकारी
[६] आत्मकल्प
०६ पूजन ५६ खामायिक
किसिकी
धरना
सेवनका
त्यागे
त्यागें
सोवें
हुलसना
सानी
पापकारी
३
आत्मतुल्य
पूंजनी
6
१४
२३
२५
२.५
१०
२५
२१
(9 पकना पकाना
[ए नश्वर
१०१ १६ बोल
१०३ प्रवार्थक
१०५ प्रणार्थ
१०५ प्रष्मका
१०६ नामजाम
१०१ गटाऊं
१०
११२ संवेख
कालसामायिक १९ ११२ वना
३
१०५ रहस्य
१०६ वढवारो
पढना पढाना विनीश्वर
१४ बाल
प्रिव्राजक
प्रश्नार्थ
प्रश्नका
रहस्य
वेदवी रोटी
तामजाम
लगाऊं
संपेख
विना
२४
२१
吧
१४
१४
१
२१
१३
११
२२
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________________
१३२ वेला ११३ निंद है
११० तृष्णा
१२० वृक्षा
१२३ य्यान
१२४ तृणकास
१२६ ब्रह्म
१२७ संग
१२७ दीष्ट १२७ बाचमीका
१२७ नव
१२८ उम
चेला निंदादे
वृश्ना
तृना
ग्यान
तृणफास
प्रश्न
संग्या
জী
वामीका
नव पदवी
उन
२३
५
६
१५
२४
१८
१३
२.
१
१५
२०
१
१शु कृष्णागर
१३२ २५ धनुषरी
१३२ २० धनुष
१३४ कृण
१३० आजीव
१३५ घ्याजीव
१३५ पीकी
१३ पगणि
१३५ वादनि १३५ विराधक ११२ १३५ पांचमो १ वृत्ति
१३ संवरी पहिलो
कृश्नागर १५ धनुषरी
१० धनुषरी
कृभ
१५
४
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१५
४
जीव
जंजीव
पीकी
पगरखी
२०
पानदि विराधक ११३ पांचमो वृत्तावृत्ति २ टयसंवरी पहिला २२
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१२
१५
१५
•£61% 4899**€£93% •C693+
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________________
।
प्रश्न मकमीके निकाले गुरुके पुरे सुननेका वनमें सर्पको खा पीके कर्मसें चमोंकी विनय प्रश्नरूपी
है| १४० ११११ मो शश।।११ मो १ | १४ए पम * १४० साथेजावे ११४ साथेजावे शश ७ | १४ए पकमीके * १४० ११ सशंदिया १२ सशदिया ७ १४ए निकाजे १४श्युता
धुता
२ १४ए गुरुके मुंह १५२ उसीतना नसीतना ५.१५० सुगनेका
१४२ नहि गणो नहीमिंगो १३ १५० वमें * १४३ वीरमधु
खीरमधु७ | १५० सर्वको 8 १४४ हाजतगमें हाजतराके १ | १५० खापाके
१४५ २ सो कोम १सो काम १४ १५० कर्मसें होय १४५ एखाप १ लाख १४ | १५० वमीकी १४६ चाबमा धूप चांबमामाथेबांध ५ १५१ वीनी १४६ गहरा गेहला ५ । १५३ प्राप्मरूपी
g * * * * *
* * * *
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१५४ पुत्र नदीजे पुंठ न दीजे १६ / १५७ प्रमव्याकरण प्रश्नव्याकरण १५५ गुरुने वंदणा गुरुकु वंदणा दे- १५ए प्रम प्रश्न
देने वांदे ऐके २६/१६२ सरस २ गुरुकुं सरस २ थाप खावें। | १५६ प समाधिपूचे पहिले सातासमा
निरसर गुरुकुंदेवे ॥ वांदे वि पूजे पने वांदे १० | १६५ चैद सुदि चैत सुदि १५६ ३२ गुरूकुं नन्ना राखी १६५ वदि वीज वदि एकम
___ १० | १६५ तारो रे तारो टुटे | १५६ यावंत सारहित १५ १६५ मृत्यु रालो है मृत्युटालीहै *|| १७ मातापितानी धीर्यवान १ | १६५ सूवी सूती सेवा
| १६६ चेचून वेबून १५७ गुरुनी सेवा यशवान् १ | १६६ पारा पाटा १५७ तेजवंत संतोषवंत ५ | १६६ गरी स्नान गेटी स्नान
वांदे.
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________________
१५० सन्या
छेदना
समुद्धात १७० चाचक
| १६६ मोरी स्वान मोटी स्नान
१६६ खारो खाटो | १६७ सरोटो सरोतो
१६७ गकमी ताकमी | १६७ करवारा गंगरा | १६७ मंमलै मंमलैवे १६० पारी १६ए रकलाठी कलाही -१७० कर्मबेदना कर्मबेदना १७० बेदता बंधका बेदता बंधका १७० बेदता वेदका बेदत्ता वेदका
संग्या बेदना समुद्घात त्राजक १७ नेदें १२ नेदे जामखी सगे वरते उघामे मील नमि टगी
१७० दे १७० जामग्री १७१ सवी वरते १७१ नघामे दील १७२ नमि दूगी
पाटी
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१११५ मृगापुत्र
मेघकुमार
१२५ टाढारे आंगुले व यांगुले
१२५ चामर
१२७ मागर १३० दोयसें बप्पन १३४ धर्मास्ति
१३४ धर्मास्ति
१३४ प्राकाशास्तिं
9 घोपरे
१ 9 खेताइजाइकंते खेताकते एएए अनववत्तिए अशळवत्तिए १४ | १३० अध्ययनकी साख ११मे उत्तराध्ययन
चरम
सागर में सोसागर दोयसें ब धर्मास्तिकायके प्रदेश १५ धर्मास्तिकाय के
११
११४ बलम
प्रदेश १७११४ प्रवालम
व्याकाशास्तिलोकाकाशके प्रदेश घोयरे
११
सूक्की ६ अध्ययन
दशमा कालीकमे १ बालमर्ण वतनागिर
तथा शस्त्रादिकसें घात करो मरे प्रचायमर्ण प्रमादके
श संकल्पविकल्प करी मरे
१५.
१० ११४ तोलमर्ण अंतोसलम
२
१
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All १५३ बालुबुद्धि बीजबुधि ए७१ विवगारिहे वि-विवेगारिहेअकल्प|| १६० समकितसहित संस्कारयुक्त १५ गयरोत्याग कनीय वस्तुसे त्याग || १०० १५ बोल सिघां प्रत्येकबुद्धसिका ते | रे करे . २५ के २ नहीहै करकंराजादि ११ ए पारिणामिक प्रयोग
स्वयंबुछ सिधा ते १२४ तृणकास तृणफास कपिलादिक ११
यशुधि शुध.पत्रमां.
शुरु १ शुरू
१ अशुभ
अशुद्ध
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________________
*«»«»899*€£7/93++£63*XOXX
॥ अथ छत्तीसबोलसंग्रह लिख्यते ॥
१ प्रथम बोल.
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एगेया कहतां एक यात्मा सुबुद्धिरूप बे. एगेणाया कदेतां एक अनात्मा जमरूप बे: १ एगेदमे कदेतां एक दंग जिणे करी कर्मबंध बे. १ एगेादमे कहेतां एक पदं कर्मबंध नहि.
एगेखए कदेतां एक आकाश. एलोए कहतां एक लोक बसव्यमय१ एगेलोए कदेतां एक केवल व्याकाश है.
accis is mo
**************************
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________________
१ एगेपुण्ये कहेतां एक पुण्य सुखहेतु. १ एगेपावें कहेतां एक पाप छुःखहेतु. १ एगेषम्मे कहेतां एक धर्म वस्तु खनाव. १ एगेषधम्मे कहेतां एक अधर्म वधर्मसें निन्न. १ एगेयासवे कहेतां एक श्राश्रव जिणसें कर्मबंध होय. १ एगेसंवरे कहेतां एक संवर कर्मोका बंधकु रोकै. १ एगावेयणा कहेतां एक वेदना कर्मोका नोगवणा.
एगानिझरा कहेतां कर्मोका दय.
एगे जीवे कहेतां एकजीव चैतन्य गुणधारी. १ एगे थजीवे कहेतां एक अजीव जमरूप. १ एगे नाणे कहेतां एक शान. १ एगे दंसणे कहेतां एक दर्शन. १ एगेचरित कहेतां एक चारित्र क्रियारूप.
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१ एगेपएसे कहेतां एक प्रदेश. १ एगेप्पमाणे कहेतां एक प्रमाण. १ एगेधे कहेतां एक बंध. १ एगमोके कहेतां एक मोद निवृत्ति. १ एगेसिके कहेतां एक सिक. १ एगेसमए कहेतां एक समय कालजेद. १ एगेसद्दे कहतां एक शब्द. १ एगेरुवे कहेतां एक रूप. १ एगेगंधे कहेतां एक गंध. १ एगरसे कहेतां एक रस. १ एगेफासे कहेतां एक फर्श. १ एगेवट्टे कहेतां एक वर्त्त गोल. १ एगेतंसे कहेतां एक लंवा.
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१ एंगेचउरसे कहेता एक चोखुणा. १ एगेपरिमंमले कहेतां एक खा आकार.
१ एगेमणे कहेतां एक मन. . . १ एगेवए कहेतां एक वचन. १ एगेकाए कहेतां एक काया.
१ धर्म और कर्म किस प्रकारसे होय सो कहते है, धर्म तो यात्मनावें शुरू जला पयोगें होवे जर कर्म अशुध उपयोगें तथा शुनाशुन्न नावें होता है, जैसी करणी याने प्रक्रिया तैसा कर्म हुवै जेर धर्म तो अक्रियारूप है, जैसा शुछ उपयोगकी वृद्धि होवे वैसा
| धर्म पिण वृद्धिवान होता है.
연 생생
Romar
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अथ दूजो वाल. २
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२ सर्व व्य दोय प्रकारे जाणवा. जीवद्रव्य १, जीवद्रव्य २ वळी संसारीजीव दोय प्रकारे जाणत्रा. सूषम १, बादर २. २ सर्व जीव दोय प्रकारें. त्रस १, थावर 2. २ सर्व जीव दोय प्रकारें पर्याप्ता १, व्यपर्याप्ता २.
२
सर्व जीव दोय प्रकारें. जवसिद्धिया १, अनवसिडिया २. २ सर्व जीव दोय प्रकारें. एक तो सिद्ध १, दूजो संसारी 2, २ सर्व जीव दोय प्रकारें. शरीरसहित १, शरीररहित २. २ सर्व जीव दोय प्रकारें. इंडीसहित १, इंजीरहित २. २ सर्व जीव दोय प्रकारें. वेदसहित १, वेदरहित 2. २. सर्व जीव दोय प्रकारें. कपायसहित १, कपायरहित 2. २ सर्व जीव दोय प्रकारें. कायासहित १, कायारहित २.
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सर्व जीव दोय प्रकारें. सजोगी जोगसहित १, अजोगी जोगरहित २. २ सर्व जीव दोय प्रकारें. सलेशी खेश्याससहित १, खेश्यारहित २. ५ सर्व जीव दोय प्रकारें. याहारिक १, धनाहारिक १. १ सर्व जीव दोय प्रकारें. नासक बोलनेवाला १, बनासक नहि बोलनेवाला २. २ सर्व जीव दोय प्रकारें. सागार यागारसहित १, धनागार यागाररहित २, २ सर्व जीव दोय प्रकारे संसारसमावन्नगा संसारमें रहणेवाले १, असंसारसमाव
नगा संसारमें नहि रहेनेवाला २. २ सर्व जोव दोय प्रकारें. सकर्मी कर्मसहित १, अकर्मी कर्मरहित २. २ कर्म दोय प्रकाररा. थानागकर्म कर्मरस १, प्रदेशकर्म कर्मदल २. १ जीव दोय प्रकाररी वेदना नोगवे. अन्युपगमकी १,उपक्रमकी२. २ सर्व जीवनें उन्माद दोय प्रकाररो जदादिक १, मोहनन्माद २. ५ प्रतिमा दोय प्रकारर). नप्रतिमा १, महानप्रतिमा ५.. २ वली प्रतिमारा दोय नेद, षुड्डीयामोयप्रतिमा १, महल्लियामायप्रतिमा २.
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२ वली प्रतिमारा दोय भेद. जवमझप्रतिमा १ वज्रमशप्रतिमा २
२ वी प्रतिमारा दोय नेट. बुडागसर्वतोन १, महासर्व तीज २. २ दोष प्रवरा जीव दुःख भोगवे. सरीरीदुःख १, मानसीक दुःख २. सरीरीक ० सरीने विषे १६ रोग वेदना याय ऊपजै १, मानसीक० मनमें चिन्ता सोच फिकर सदा रदै २.
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२ दो प्रकार गति करें तिका कदै बै ऋजुगति जीव सरीर बोमकरि १ समयमांदि परवें जापतिका ऋजुगति १ वक्रगति जीको जीव परनव जातो लो पमें ३ समय रस्में लागै पढें जका गति वांवी हुवै तिहां जाय तिा वक्रगति २ २ दोय प्रकार श्रेणि वांधे तिका कदै बँ. समोदिया क० बंदूकनी गोलीनी परें प्रदेश एकता न कले ९, समोदिया क० जीव ६ महिना पहिली प्रदेशांरी श्रेणी बांधे २७ २ सर्व जीव दोय प्रकार खाऊखो वांचे. नोपक्रमी क० व्याकुखो बांधें जितरा पूरो जोगवें पिए उपक्रम नदि लागे. १ सोपक्रमी क० याऊखो घणो बांधीयो हुवे तेहनें उपक्रम लागीने थोमा कालमांदि पूरो करै २.
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! २ दोष प्रभारी ऊपोदरी. अन्यऊणोदरी १, नारळणोदरी २. . * २ व्यजलोदरीरा दोय नेद. उपगरणकणोदरी क० वस्त्र पात्र को निरदोष
गवें १, नात पाणी जणोदरी नात पाणी डोनोगवें २. नावकणोदरी तिका अप्पकोहे अप्पसद्दे अप्पऊंगे अप्पकलहे. ४
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॥ अथ तीजो बोल लिख्यते ॥ सर्व नीव तीन प्रकारें. स्त्रीवेद १, पुरुषवेद २, नपुंसकवेद ३. ३ सर्व जीव तीन प्रकारें. संजती १, असंयती २, संजतासंयती ३. ३ सर्व जीव तीन प्रकारें. विरती १, अविरती २, विरताविरती ३. ३ सर्व जीव तीन प्रकारें. पच्चकाणी १. अपच्चरकाणी २, पच्चकाणापच्चकाणी३, . सर्व जीव तीन प्रकारें संवरी १, असंवरी २, संवरासंवरी ३. ३ तीनदिष्टि. समदृष्टि १, मिथ्यादृष्टि २, समामिथ्यादृष्टि ३. ३ सर्व जीव तीन प्रकारें. सूक्ष्म १, बादर २, नोसूम नोचादर ३. सूक्ष्म तेर
मांही नरीया बे, मारीया मरें नही १ बाहादर ते लोकरा एक देशमांहि रहे बे मा
रीया मरें २, नोसूदा नोबाहादर ते वाटें वहता जीव. ३ सर्व जीव तीन प्रकारें. त्रस १, थावर २, नोत्रस नोथावर ३. त्रस ते
थावर ते हाखें नही २, नोत्रस नोथावर ते सिद्ध जाणवा ३.
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३ सर्व जीव तीन प्रकारें पर्याप्ता व्यार पर्याय पूरा करें १, अपर्याप्ता पर्याय टाकरीयें म २, नोपर्याप्ता नोटापर्याप्ता जीव वार्डे वदता ३.
३ सर्व जीव तीन प्रकारें नवसिद्धिया ते मोद जायें १, छानवसिद्धिया ते कदी पण मोद नदी जो २, नोवसिद्धिया नोयनवसिद्धिया सिद्धारां जीव ३.
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३ सर्व जीव तीन प्रकारें. सिद्धराजीव १, संसारीजीव २, वाटवदताजीव ३. ३ तीन प्रकारें केवलीयें लोक बनाव्यो, उंचोलोक १, नीचोलोक २, तिरबोलोक ३. ३ तीन प्रकारी दिशि. उंची दिशि १, नीची दिशि २, तिरबीदिशि ३. ३ नवनपतिनी परषदा तीन प्रकारें. तुंबा ते मां दुली परषदा १ वार बुलावी खावें १, तुमया ते विचली परषदा वगर बोलावी ठावें २, मीढरा ते बाहिरली परषदा बोarat बालावी पण या ३.
३ व्यंतरांरी परिषदा तीन प्रकारें, ईसा १, तुमीया २, मीढरा ३.
३ तीन प्रकाररी वनस्पति. प्रत्येक १, सूक्ष्म २, साधारण ३.
३ वनस्पति जीव तोन प्रकाररा. संख्याता १, असंख्याता २, अनंता ३.
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३ तीन प्रकारना अजीवना संस्थान. बट १, तंस २, चोरंस ३. ३ श्रावकरा मनोर्थः किंवारें हूँ यारंन परिग्रह गेमशं १, किंवारें है श्रावकराव्रत नि
रतिचार पालशुं २, किंवारें हैं अपबिम संवेषणा करी समाधिमरणयाराधशुं ३, १ए ३ तीन मनोर्थ साधुना. प्रथम मनार्थ साधु म मनमांहि चिंतवे किंवारें हूँ थोमो त.
था घणो सूत्र नएं एकलविहारीपणुं पविजुं १, बीजें मनार्थः श्म चिंतवे किंवारे हुं बारान्षुिरी पमिमा बादरुं २,त्रीजे मनोर्थः पादोपगमन संथारो करूं एहवी चिं.
तवणा करें, एहवो ध्यान धरूं ३. ३ तीन समकितरी सरदहणा, अरिहंत सिद्धामें देव करी जाणै १, साधुनें गुरु करी
जाणे २, दमा दयामयी धर्म करी जाणे ३. ३ तीन समकितरा दृष्टांत. किंनर देवतारा गीत राग धरीनं चित्त राखें तिम गुरुनो
उपदेश सांजवें सांजलवारें विषे एकाग्रचित्त राखें १, बीजें नुखेंरो जीव धनरीथनिलाष करें तिम समकित पालवाने विषं अनिलाषा करें ,तीजें रोगीने उपधि करी समाधि जपजावें तिम आचार्यरी सेवा पर्युपासना करी चित्त प्रफल्ब करीसमाधि
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उपजावें ३.
तीन प्रकार सम कितनी रक्षा. पहिलें बोलें नाइ बाश्यांनें मिथ्यावीनें छानमतीने यापरो धर्म दिखा तेहनें उत्तर देनें निषेघें तो समकितरी रिष्या हुवें १, बीजें बोलें उत्तर नही देवायें तो बाध्य रदै पिए मिलती नही मारे तो समकित हुवें २, ती जें बोल्यो नही रहे तो वो पूरो जावें तो समकितरी रिष्या हुवें ३. २३ ३ तीन प्रकारें जीव अल्प अधुरो यानखो बायें जाणबूज त्रसजीवनी हिंसा करें १ दू जें जांणबूज जूठ बोलें २, तीजें जाणबूज साधु चारित्रयनें सुनो ध्यानाकर्मी खणी छान्न पाणी देवें ३.
३ तीन बोले जीव मोटो व्याजखो बांधे. त्रस जीवरी हिंसा न करें १, जूठो वचन नही बोले २, साधु चारित्रयने सुकतो अन्न पाणी देवें ३. ए तीन बोल सेवें तिके जीव मोटो पाखो बाधे.
३ तीन प्रकारें जीव पशुन दीर्घ आखो पामे त्रसजीवरी हिंसा करें १, जुगे बोलें २, साधुचारित्रयनुं सुतो व्याधाकर्मी ने क्षणीक छान्न पाणी वस्त्र पात्र देवें
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हीलें निंदे बेसीने देवें ३, ए तीन बोले जीव अशुन्न दीर्घ मोटो थालखो पामें ध-||
णा रोग मुख दारिख अशाता घणो पामे... ३ तीन प्रकारे जीव शुन्न दीर्घ आयुपो पाम.जीवनी हिंसा न करें १, जूठ नही बोट
२, साधु चारित्रीयनुं सुमतो निरदोष एपणीक मननें गमतो प्रीतिकारीयो अन्न पाणी वन पात्र सतकारने देवें, बादरसन्मान देवें, साधुनी सेवा करें घणे १ प्रकारे ए तीन* वोल सेवें तिकें जीव शुन्न दीर्घ श्राजखो घणी सासतीसाता सुखरो मोटो धानखो
पामें ३. ३ तीन प्रकाररी नली गतिः मनुष्यगति १, देवतारी गति २, सिष्गति ३. २७ ३ तीन जुमीगतिः नरकगति १, तिर्यचगति , अशुन्न मनुष्यगति ३. ३ तीन लेश्या चुंमी. कृष्ण १, नील २, कापोतलेश्या ३. ३ तीन लेश्या नली. तेजुलेश्या १, पद्मलेश्या २, शुक्ललेश्या ३. ३ तीन उसीगण. माता पितासु बेटा बेटी जसीगण न थावे. तिके बेटा तथा बेटी मा.
तापितानुं शतपाक सहस्रपाक तलें करीने हाथसें मर्दन करें तिको मर्दन हामने ||*
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सुखकारी होवें, त्वचाने सुखकारी होवें, रोमने सुखकारी होवें, सो मर्दन करें. पी. जनो सीतल सुगंधीए तीन पाणीसुं स्नान करावें, चोसत तरकारी बत्तीस पकवान * हाथें जीमावें, पीने कांधे लेने फिरे तो पिण नगवंतें कह्यो के मातापितासं करण न । यावें. परं केवलीरूप्या धर्मनें प्रवती तिवारें जसरावण थावें १, बीजे बोलें गुरुसें कू शिष्य जसरावण न था. अदार पिण जिकां गुरां पासें शिष्यो हुवै, जिकांरो विनय * करें घणी सेवा नक्ति करें उपगार मेटें नही. धर्मरे प्रनावें गुरांरे प्रनावें मरी देवता * हुवे घणी रिकि पामें. एक प्रस्तावें तेहीज गुरु विहार करता अटवी नजाममाहिलूयाथका देवता धावीने वसतीमांहि मेले, पजे रोग कोढ आय ऊपनाथका सुःखी है बे, धापदा जोगवें बे, ते देवता आवीने रोगजपसमावें, सुखसाता करें तो पिण गुरु तथा गुरुणीसुं जसरावण नही थावें. तिवारें गुरुरी तथा गुरुणीरीधर्म जपरसुं था- * सता ऊतरी जाणीने ते देवता हेतजुगत करीने केवली प्ररूपीया धर्ममें प्रवती.ति. वारे ते देवता गुरुशुं तथा गुरुणीशुं उसरावण थावें २, तीजे बाले वाणोतर शेरशुं * उसरावण नही थावें. शेठने यापदा पमी हुवेवाणोतरी पुण्याश् वधी बे, शेठरी पु
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एयार हीणी में, तिवारे वाणोतर शेम्सुं पागे उपगार करें, तोपिण जसरावण नही
यावे, केवलीप्ररूपीया धर्ममें प्रवत्ता तिवारे सरावण थावे शेम्सुं वाणोतर ३. ३२ ई तीन गारव. इडिगारख कहेतां रिहिरो गारव पाना पुस्तक सिष्य साषा नंमोपगरण
जेहनो अहंकार करे ते शढिगारव १, बीजो रसगारख आहार सरस मिलै तेहनी अनिमान करें एहवा सरस आहार थमनें मिले ने बीजानें मिलें नही ते संखिं. * २, तीनो सातागाख ते सुखसातारो गख ते थन्निमान करें थमने सुखशाता ने सी दूंजा केहनें नही ते सातागारव ३.
___३३ . ३ तीन शब्य. मायाशल्य १, नियाणाशल्य १, मिथ्यांतदर्शणशल्य ३.. तीन विधिना ते ग्यान अकालने विर्षे नणे, ग्यानरो विनय न करें, ग्यानवंतनी यासातना करें, ग्यान नणतां गुणता बालस मोमें धमला लेवें जिणरें पासें झां- * नं नणीयो हुवे तेहनो उपगार मेटें तिणारा अवगुणवाद वोलें ते नाणविराधना १, बीजी दर्शन विराधना. समकित शंका कंषा आवें, समकितीसु ष करें, मिथ्यात्वींनी परसंसा करें; साधुसुं शेष करें, तेहनी निंदा करें, ते दर्शणविराधक सिके नही ते देर्श
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नविराधना ५, तीजी चारित्रविराधना ते चारित्रविराधना उत्तरगुणर्नु दोष लगावें
सरीररी सुश्रूषा करें ते चारित्रविराधना ३. ३ तीन धाराधना. ग्यानयाराधना १, दर्शणयाराधना , चारित्रयाराधना ३. ३६ ३ तीन प्रकारे तिर्यंच पुरुष. जलचर १, थलचर २, खेचर ३. ३ तीन प्रकारनी तिर्यंचणी. जलचरणी १, थलचरणी २, खेचरणी ३. ३ तीन प्रकाररा मनुष पुरुप. कर्मन्नौमी १, अकर्मनौमी २, अंतरछीपक ३. ३ तीन प्रकाररी मनुषरीस्त्री. कर्मन्नोमनी १, अकर्मन्नोमनी, अंतरहीपनी ३. ३ कर्मनौममें तीन कर्म. असि शस्त्रसें १, मसी लिखकर १, कसी खेतीकर ३. ३ तीन पद तीर्थकरदेव गणधरोने यापें. हेय ते गंवा योग्य १, झेय ते जाणवायोग्य * ____, उपादेय ते यादवा योग्य ३. एतीन पदने अनुसारे गणधरदेव ११ भंग रचें.४५ ३ तीन पद थिवर नगवंतानें तीर्थंकरजी कहै. अप्पन्नेवा, उपजता है १,विगमेवा, वि
सता है , धुवेवा, थिरपणे ३. थिवरनगवंत वार उपांग रचै. ३ तीन अह. पक्ष १, महापद्म २, तिगबिजह ३.
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३ तीन सूद. केशरीडह १, पुंमरीकडह १, महापुंमरीक दह ३. ए ६ दद बकुल गिरि पर्वत उपर जाणवा.
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३ तीन देवी हिरि १, श्री २, धिति ३.
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३ तीन देवी. कित्ति १, बुद्धि २, लबी ३. ए ६ देवी इहांरी जाणवी. मोट) रिद्धिरी धया वे एक पब्योपमरो पाखो जवनपत्यांरी देवी बे असंख्याता देवता सेवे करें दें. वां ने विषे बयां देव्यारां जवन बे तिके नवन ध्याधे कोसरा चवमा, कोसरा लांबा, देशऊरों कोसरा वली जंचा, घाग निर्मला, घटारीया मठारीया तीन २ वारणा बे चवर्देसयचालीस एक भवनरा थांना बे रत्नारा थांना बे. ४ ३ तीन प्रकारें चाचणी नदी देवें. ध्वनीतने नही देवें १, रसलोलुपीनें नदी देवें १, कीयो क्रोध खमावें नदी तेहनें वांचना नही देवें ३.
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३ तीन प्रकारे वाचना देवें. पंमितने देवें १, सरल चित्तरा घणीने देवें १, गुरुगुरुणीरा बिडा न जोवें तेनें वाचणी देवें ३.
३ तीन प्रकारें देवता मनुष्यलोकमां घ्यावे. पूर्वदे देवता यावे १, तपखीरी महिमा क
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खा देवता यावें २, तीर्थंकरजीरा पांचकल्याणकमांदि देवता या ३.
2,
३ तीने प्रकारें देवता घ्यावें. तीर्थकरजीरे जन्म उपरें यावें १, तीर्थकरजीरी दिदारें. मपरें यावें २, तीर्थकरजीरे निर्वाण मदोहव उपरें घ्यावें ३.
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३ तीन प्रकारे देवता यावें नदी. पठेंगे रागस्तद बूटो वें १, उठेंगे रागस्नेद लागो दें बत्तीसब बत्तीस पदरनें खाकोरे नाटक पये २, मनुष्यलोकरी दुर्गेघ वासना कल रही बेति कारणं देवता मनुष्यलोकमां नहीं खावें ३. ३ तीन प्रकारें देवता यावतो जाणीजें. देवता यावें तिवारें यांख टमकारें नही मनवंबित कार्य पूवें १, बीजें फूलारी माला कुमलावें नदी घ्यावतारी बांद पमे नही १, तीजें धरती सुं च्यारांगुली पग उंचा रहै ति कारण देवता याया जांणीजें. १३ ३ तीन प्रकारें देवता सोचें. मातापितानें चोथो याश्रव सेवता देखीनें सोचें १, खाया गर्जरा दुःख देखीने सोचें २, मलमुत्रमदि ऊपजणो पमसी तिण कारणें सोचें. ५४ ३ देवता देवलोकका तीन बोलरी वांबा करें. १ यार्यदोत्र १, मनुषजन्मरी २, सुकुलमें उपजवारी ३.
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३ तीन बोलें देवतानें ६ महिना पहिली ध्यानखारी खबर पमें रत्नारामबा माणवक थंकांखा देखें १, बीजें फूलांरी माला काँखी देखें २, तीजें तेजोलेश्या फांखी देख ५६ ३ तीन प्रकार देवतारा विमान वटविमाण ते वृत गोल सगलांरे चिहुंही दिसें कोट जावा सर्व वाटला विमानरे एक २ बारणो १, बीजे त्र्यंस विमानरे तीन बारणा जाणवा २, चरंस विमापरे च्चार बारणा वेदिका चिह्न दिसे जाणवी ३.. ३ तीन प्रकारे देवता सोचे घणो विनय वैयावच्च कीया नहीं हुवे तिवारे सोचें १ घण दिक्षा नदी पाली हुवे तो सोर्चे २, घणा सूत्र नदी यवगाह्या हुव तो सोचें. प ३ तीन प्रकारे देवता नदी सोचे. घणी वेयावच करी हुवे तो नदी सोचे १, घणी दिका पाली हुवे तो नही सोचै २, घणा सूत्र अवगाह्या हुवे तो नदी सोचै ३. ३ तीन प्रकाररा थिवर. वयथिवर साठ वरसरी व्यवस्था ते वयथिवर १, सूत्रथिवर ते गांग समवायांग सूत्रना अर्थ खेवें ते सूत्रथिवर २, प्रवृज्याथिवर तेवीस वरस दिकालीघांने हुवा दोय ते प्रवृज्याथिवर ३.
३ तीन करण. मनकरण ९, वचनकरण २, कायाकरण ३.
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३ तीनदंम. मनदंग १, वचनदंग , कायदंम ३. ३ तीनगुप्ति. मनगुप्ति १, वचनगुप्ति २, कायगुप्ति ३. ३ तीनकरण. सारंन कहेतां पाप मनमें चिंतवें १, समारंजकरण कहेतां वचन कहीने
पाप करावें २, आरंजकरण कहेतां कायरो हणवो पोतानें हाथे करीने करें ३. ६४ ३ तीनकरण. करण १, करावण २, अनुमोदना ३.
तीनमिथ्यात. कुगुरु १, कुदेव २, कुधर्म ३. ३ तीनसमकित. सुगुरु १, सुदेव २, सुधर्म ३. ३ तीनरत्न. ग्यानरत्न १, दर्शणरत्न २, चारित्ररत्न ३. ३ तीनपरिग्रह. कर्मपरिग्रह ते आठ कर्म १, सरीरपरिग्रह ते सरीरनी ममता करे १, नं___ मनपगरण परिग्रह नमजपगरपरी ममता करे ३. ३ तीनपरिग्रह. सचित्त परिग्रह सिष्य साखारो १, अचित्तपरिग्रह नमनपगरणरो
मिश्रपरिग्रह शिष्य सापा सचित्त नंमजपगरण ते अचित्त दीनही ममता मूर्ग करे.७० ३ तीनपुरुष. जघन्य १, मध्यमपुरुष २, उत्कृष्टपुरुष ३.
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३ जघन्यपुरुष तीन प्रकारना. दारुगा ते दासना काम करे १, नृतका ते नामो खेश्ने
कर्म कार्य करावे २, नायल्लया नागदे बाघदे काम करावे ३. ३ मध्यमपुरुष तीन प्रकारना. उग्रकुलना १, नोगकुलना १, राजन्यकुलना ३. ७३ ३ उत्कृष्टपुरुष तीन प्रकारना. कामपुरुष ते चक्रवर्ती १, नागपुरुष ते वासुदेव , धर्मी
पुरुष ते तीर्थकरदवे ३. ३ तीन प्रकाररी क्रिया. सैते समकित १, वैते विरत २, कैते क्रिया ३.. ३ तीन प्रकारे विद्या वधे. घोते घोषसुं १, पूते पूगंसुं २, चिश्ते चिंतारेसुं३. ७६ ३ तीन सामायक. श्रावकरी सूत्र सामायक ते निर्मलो ग्यान नणे १, समकित सामा
यक ते निर्मलो समकित शंका कंखारहित पाले २, देशविरत सामायक ते विरत पञ्चकाण निर्मला चोखा अतिचाररहित पाखेते तीजी समाधि जाणवी ३. ७७ ३ तीन जागरका. बुधजागरका ते तीर्थकरजीनी१, बुधजागरका ते सामानीक सा
धुनी, सदषुजागरका ते श्रावकनी ३. ३ तीन प्रकाररा पुद्गल पनगसा ते जीव पुद्गल ग्रहै ग्रहणो कपमो थाहार पाणी शरीर
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घर इत्यादिक आदि देने वीजाही पुद्गलजीवरे प्रजोजन जोगमे आहे ते पुद्गल प-10 जगसा कहीजै १, वीससा ते वादल जाणवा २, मिसा ते जीव पूर्वे ग्रहणा कपमा शरीर इत्यादिक पुद्गल ग्रही २ ने मेव्या ते पुद्गल मिसा कहीजै ३.
ए ___३ तीन प्रकारे सिधारी संचलना जाणवी धु १, वे १, उत्पात ३. धु ते सिद्ध चले न--
ही १, वे ते सिघारी वय पलटे नही २, उत्पात ते जिण समय ग्यानरो उपयोग||* हुवै तिण समयं दर्शरो उपयोग नही, जिण समय दर्शरो उपयोग हुसैं तिण समय
ग्यानरों उपयोग नही ३. ई तीन अरिहंत. अवधिग्यानी अरिहंत १, मनपर्वग्यानी अरिहंत १, केवलज्ञानी
अरिहंत ३. ३. तीन जिन. अवधिग्यानी जिन १, मनपर्यवग्यानी जिन १, केवलग्यांनी जिन ३.०५ || ई तीन केवली. अवधिग्यानीकेवली. अवधि ते मर्यादाए निर्मलो देखे १, मनपर्यवग्या- ||
नी ते निर्मला सन्नीपंचेजिना मनना नाव जाणे , केवलग्यानी केवल सर्व लोक ||* श्रलोकनी नाच जाणे ३.
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३ तीन इंद्र ग्यानेंद्र ते केवलग्यानी १, दर्शपेंद्र ते दायक समकिती २, चारित्रँद ते यथाख्यात चारित्री ३.
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३ तीन इंड. व्यसुरकुमारना इंद्र चमरेंद्र बलेंद्र १, मनुषलोकना इंद्र चक्रवर्त्ती २, सर्व देवताना इंद्र शक्रेंद्र ३.
३ तीन प्रकारे देशथकी थोमीसी धरती धूजै. मोटा पर्वत पादाम पमे थोमीसी धरती धूज़ै 3, बीजे जवनपति वाणव्यंतर देवता बेहुं गूंज करे तिवारे थोमीसी धरती घूजै तीजें नवनपति वाणव्यंतर बेहु नेला थश्ने तीर्थंकरांने वंदना करणने जावेतिवारे, तिवारे देश की धरती घूजै ३.
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तीन प्रकारे सर्वकी धरती घूजे. घणो दधिरो पाणी देग्लो उबलै तेहथकी सर्वथा घर जै१, ज्योतिषी विमानिक भेला हुयने गुफ करे तिवारे सर्वथकी धरती धूज़ै २, तीजै, ज्योतिषी विमानिक बेहुं नेला हुयने तीर्थकरांने वंदना करण जाय तिवारे सर्वथकी धरती धूजै ३.
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३ तीन जोग. मनजोग १, वचनजोग २, कायजोग ३. सर्व बांध दिसांरो पुद्गल वस्तु
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खेवै ते जोग. ३ तीन प्रजोग. मनप्रजाग १, वचनप्रजोग ३, कायप्रजोग ३. सर्व ब्वाई दिसांना पु
इल प्रवावे ते. ३ तीन लखण मिथ्यात्वीना जाणवा. जणायरियए नगवंतरे नाष्याथकी ऊणो परूपे १, अरियए नगवंतरे नाण्याथी थधिको परूपे १, वरियए नगवंतरे नाष्याथी विप
रीत परूपे श्सी परूपणा करे तेहथी अनंत संसार सजै ३.. ३ तीन प्रकाररा मिथ्यात. लौकिकमिथ्यात ते लोकनी क्रिया करे संसारना कार्य विवाह
सगाश् देव पितर गोगो खेतरपाल मानै पूजे ते लोकिकमिथ्यात १, संसयमिथ्यात ते . देव गुरु धर्मना गुण न जाणे २, कुप्रावनिक मिथ्यात ते अन्यमति जोगी संन्या
सी तापसनी प्रशंसा करे परिचय करे ३. *|| ३ तीन पख. धर्मपख ते साधु साधवी १, अधर्मपख ते चतुर्विध संघ दालीने बीजा सर्व
जीव अधर्मपखमांहि जाणवा २, मिश्रपख श्रावक श्राविका जाणवा ३. II. ३ तीन ज्योतिषीरी परखदा. तुंबा १, तुमिया १, पेचा ३.
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३ तीन विमानकरी परिषदा. समीया ते मांदिली परिषदा बोचावी या३ १, चंमा ते
विचली विनाबालावी आवे , जाया ते बाहिरखी बोलावी विनाबालावी श्राव३.ए। ३ नगवंतरी तीन परिषदा. जाणीया ते समजावा समर्थ १, धजाणीया ते पिणसममा- *
वा समर्थ १, ज्वेहा ते समजावा समर्थ नही ३. ३ तीन प्रकारनी एपणा. गवेषणा ते निरदोष अन्न पाणी देखीने विकाणे नाजनदा
तारना नाव जाणीने गवेषे १, प्रहणएषण अन्न पाणी सर्व वस्तु घणे कालरी थोके काखरी जीवरहित जीवसहित देखाने पजे निरदोष जाणीने खेवे १, परिनोग एषणा नोगवतोयको अजयणा करे नही सरावे नही विसरावे नही प्रकाशकारी ना.
जनमांहि दोषण टालीने नोगवे ३. ३ तीन प्रकारे नाव विनसग्ग बाठ कर्म गंमे १,चनर्गति संमार गमे २, च्यार कपाय गंमे ३.
ug ३ तीन प्रकारे साधुने पात्रा. तुंबरो १, कारो, माटीरो ३. ३ साधु तीन बोल सेवे तेहने माथे प्रायबित थाने. साधुरी चोरी करे १, प्रहरी चोरी
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करे २, दथवाश करे ३.
३ तीन बंध. कसिणबंध १, छाक सिणबंध २, छानेक अव्यबंध ३.
३ तीन बंघ. सचितबंध. हाथी घोमा दोपद चोपद जेदना समूह ते सचित्त ९, व्यचित्त बंध सोनो रूपो घर हाट हवेली तेहनो समूह ते व्यचित्तबंध २, मिश्रबंत्र ते प्रदूणा गांगतो चित्त मनुष्य तथा दाथी घोमा सचित्त इत्यादिक सचित्त व्यचित्तरो नेल ते मिश्रबंध ३.
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३ तीन पूर्वी पूर्वानुपूर्वी ते पहिलेसे लेश्ने अनुक्रमे गणे ते पूर्वानुपूर्वी १, पठानुपूर्वी ते बेदमा लेश्ने पहिले तां२ गणे ते पचानुपूर्वी २, नानुपूर्वी ते पहिले बेदमे दो लीने विचला सर्व नानुपूर्वी जावा ३.
३ तीन पूर्वी तीन प्रदेशी संघथी लेश्ने अनंतप्रदेशीखंघ तां गिणे ते धानुपूर्वी कहीजें १ यानानुपूर्वी ते प्रदेश खंघ २, व्यवत्तवर ते परमाणु ३.
३ तीन वेदना. सीतवेदना १, उसनवेदना २, मिश्रवेदना ३.
३ तीन प्रकारे जीव ऊपजैं. नारकी तेरेंदमक देवतारा तीन दंमक विकलेंडीरा गर्नज
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तिर्यच एवं १० रुकें तीन प्रकारें जीव ऊपजें कयसंचया एके समयमें संख्या ऊप
१. कयसंचया ते एके समयमें संख्याता उपजें २, वसवए ते एकें समयमें एकदीन ऊपजैं ३. गर्भज मनुष्यमांदि २ प्रकारें ऊपजें. क्यसंचया १ व्यवत्तसन्धया २ च्या रथावर प्रसन्नी मनुष्यमांदि पकयसंचया जीव उपजें. वनस्पतिमांदि एकें समयमांदि नंता ऊपजें.
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३ तीन योनि शीतयोनि १, उसनयोनि २, मिश्रयोनि ३. नारकी देवतारी शीत जसन योनि, गर्भज मनुष्य तिर्यचरी मिश्रयोनि च्यार थावर तीन विकलेंडी व्यसनीमनुष्य तिर्यचरी तीन प्रकाररी योनि.
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३ तीन प्रकाररी योनि सचित्त १, व्यचित्त २, मिश्र ३. नारकी देवतारी चित्तयोनि बाकी सर्व मकै तीन योनि सचित्त व्यचित्त मिश्रयोनि.
१०g
३ तीन प्रकाररी योनि नारकी देवता पांच थावरांरी संघुमायोनि तिका ढांकी १, तीन विकी सनी मनुप तिर्यचनी वियमायोनि २, गर्भज मनुष्य तिर्येचरी तीन योनि संबुमा ते ढांकी वियम ते उधामी, संबुमवियम ते कांश्क ढांकी, कांश्क बघा
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मी ते मिश्रयोनि.
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* तीन प्रकाररी योनि. उत्तमपुरुष मातानी कब्रुर्वे सरीखी १, चक्रवर्त्तिरी श्रीदेवीरी शं खरें या सरीखी योनि, तिणमें जीव उपजें पिए दर जाय ५, बीजां सघलांरी माता योनि वांसरी पताका सरीखी योनि ३.
३ तीन काल. छातीतकाल १, वर्त्तमानकाल २, आगामिकाल ३.
१० ए
३ ३
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तीन काल. शून्यकाल १, पशून्यकाल २, मिश्रकाल २.
तीन प्रकार दिख्या. एदलोकरें प्रतिबंधसुं नीकलें १, परलोकरे प्रतिबंधसुं नीकलें २, दोहांदी लोकरें प्रतिबंध नीकलें ३.
३ तीन प्रकाररी दिष्या पूर्वले प्रतिबंधसुं नीकलें १, मार्गरे प्रतिबंधसुं नीकलें २, पूर्वलें सजनादिकरें तथा मार्गरे बेहुं प्रतिबंधसुं नीकले ३.
३ तीन प्रकाररी दिष्या तुयावश्या १, पुयावश्या २, बुश्यावश्या ३.
३ तीन प्रकाररी दिष्या. उवायपवडा १, व्यषायपवका २ संघायपवका ३,
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॥ अथ चोथा बोल लिख्यते ॥
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४ च्या अंतक्रिया. अल्पकर्म अल्पवेदना व्यल्पनिद्वारा संयमबहुले संवरबहुले यादीसर नरतेसरजी जांणवा १, च्यार त्र्यंतक्रिया. कर्म घणा वेदना घणी निकरा घणी संयम अल्पसंवर अल्प गजसुखमालजी जांणवा २, व्यार अंतक्रिया कर्म घणा वेदना घणी निरा घणी संयम पिण घणो संवर पिण घणो सनत्कुमारचक्रवर्त्तिरी परे ३, च्यार यंतक्रिया अल्प कर्म छाल्प वेदना अल्प निजारा अल्प संयम अल्प संवर मरुदेवी माता परें जांणवा ४. ४ च्या कुंन. मधुरो घमो मधुरो ढांकणो १ मधुरो घमो नें विषरो ढांकणो २, विषरो घमो ने मधुरो ढांकणो ३, विषरो घमो ने विषरो ढांकणो ४. ए कुंननें दृष्टांते व्यार पुरुष जाति बे ते कड़े बे. एक पुरुष मनमें निर्मला ने मुखथकी मीठो मधुरो ना १, एक पुरुष दियें निपाप निर्मला नें मुखें कमवो कठोर नाखें २, एक पुष दियें कठोर मुखथकी मीठो मधुरो नाखें ३, एक पुरुष दिये पिण कमवो कठोर
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मुखथकी पिण कम्वो कोर नाखें ४. ४ च्यार जातिना फूल. एक फूल रूप संपन्न ने पिण गंध संपन्ने नही, रोहीमारो फूल.
१, एक फूल गंध संपन्ने में पिण रूप संपन्ने नही, पोहणीरो फूल २, एक फूल गंध संपन्ने पिण में रूप संपन्ने पिण जे चंपो मोगरो गुलाबरो फूल ३, एक फूल गंध सं. पन्ने पिण नही, रुप संपन्ने पिण नहि, आकमा धतुरारा फूल ५ ण दृष्टांते च्यार पुरुष जाणवा. एक पुरुष रुप संपन्ने जे पिण सील संपन्न नथी ब्रह्मदत्त चक्रवर्तिवत्, एक पुरुष सील संपन्ने बे पण रूप संपन्ने नही हरिकेशी अणगारवत्, एक पुरुष, रूप संपन्ने पिण ने सील संपन्ने पिण ने श्रादीश्वर जरतेश्वरवत्, एक सील संपन्ने पिण नही रूप संपन्ने पिण नही कालक शूरीक कसाश्वत्.. ४ च्यार विश्रामना दृष्टांत. नारखाही घणो बोज खांघे लीयो में एक कांधेयीले वीजें
खांघे लेवे तिवारें थोमोसो विश्राम पामें १, बीजे विश्रामें नागकुमार तथा जदकुमार रे देहरे उतारे ते बीजो विश्राम २, तीजे विश्रामें लोहमी तथा वमीनीतरे काजें ||* जतारे ते तीजो विश्राम ३, चोथें विश्रामें घरे पाय उतारे ते ४.
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४ नारवाहीनो दृष्टांत श्रावक उपरें जाणवो. कायरो भारंन समारंन तेनार जाणवो || । श्रने नाखाही समान श्रावक ते पहिले विश्राम समकितसहित बारे व्रत अंगीकार *
करे तिवारे मिथ्यात अविरतरूपीयो दशगुणो नार जतरे अने ग्यार माहे सेंरोनार रदै १, बीजो विश्राम संवर सामायिक करे तिवारे सर्व आरंनथकी निवरतें ते बीजो विश्राम १, तीजो विश्राम श्रावक महिनामाही पोसा करें सर्वश्रारंजयकी निवरतें ते तीजो विश्राम ३, चोथे विश्रामें सर्व पाप बालो निंदी निशब्यथश्ने नात पा
णीरा पच्चखाण करीनं जावजीव संथारो करें ते चोथो विश्राम ४. ४ व्यार गति. नरकगति १, तिर्यंचगति २, मनुपगति ३, देवगति ४. ४ च्यार प्रकारे धर्म. खंती १, मुत्ती, अजवे ३, महवे ४.. ४ च्यार दर्शण. चतुदर्शण १, अचकुदर्शण २, अवधिदर्शण ३, केवलदर्शण ४. १३ *
च्यार शूरवीर पुरुष. दमाशूरा अरिहंतजी १, तपःशूराः श्रणगारजी १, दानशूरा वै
श्रमणदेवता ३, संग्रामशूरा वासुदेवजी ४. ॥ॐ| ४ च्यार प्रकारे नारकीरो बाजखो बांधे. महा थारंन्निया ए घर हाट हवेलीरा थारंन्न
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करे तीव्र परिणामें राति दिवस हर्षसहित आरंनाहि प्रवः १, महापमिगहियाए 'बतो परिग्रह मिलियो ने तिणरी ममता मूर्ग घणी ने अने धनतेरी वांग करे परा
यो धन सुखसादवी देखीने चिंतवें ए माहरे हुवे तो नली एहवी अनतेरी वांग करे | . १, ऊणिय आहारेणं, मांसरो मदरो थाहार करे ३, पंचिंदियवहेणं, जांणबूमने नि• रायपराध पंचेंजियजीवरो वध करे ४. ४ च्यार प्रकारे तिर्यचरो आयुषो बांधे. माश्लयाए, कपटा केलवे मुंढेसुं मीगे बोलें
हृदयमांदी कपट केलवे १, निवामाश्रयाए, मित्रसुं घणी मित्राश् करीने मित्रनें वैचें मुंह मीगे पूंठे अवगुणवाद बोले २, अलीयवयणे केलवणी करीने झूठ बोले कूम तोले कूममाणे खोटो तोल खोटो माप खेवणरा जुदा ने देवणरा जुदा ४. ए च्यार ! बोले जीव तिर्यंचमांहि जाय उपजै. ४ च्यार प्रकारे जीव मनुषरो आयुषो बांधे. पगश्नदियाए खन्ना जोल नष्कि हुवे ।
कुलाइ नही १, पगविनीयाए खनाहीज विनीत हुवे २, साएकोसियाए अनुक.. पा घणी हुवे ३, अमरयाए मबरनावरहित हुवे ४. ए च्यार बोख सेवें जिको मनु- ।
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यमांदी ऊपजैं.
१५
४ च्यार प्रकारें देवतारो यानखो बांधे. सरागसंजमे रागसहित संयम पाले वस्त्र पात्र नं जपगरण शिष्य शाखा उपरें राग घरें १, संयमासंयमे क्युंदिक संयम क्युंदिक संयम विरत ते संयम विरत ते संयम तिको श्रावकनो धर्म २, टाकाम निद्वारा सदाइ भूख तिरपा सदे रीसरें वस सदें ३. बालतपस्वी अग्यान तपस्या करे ए प्यार बोल सेवें तिकेँ देवतारी गतिमांदी जाय उपजैं.
१८
४ च्या विकथा राज्यविकथा १, देशविकथा २, स्त्रीविकथा ३, नातविकथा ४. ११५ ४ जगवंतरी वारे परिषदाना चतुर्विधसंघ. साघ १, साघवी २, श्रावक ३, श्राविका४. २० ४ च्यार जातिना देवता. नवनपति १, वाणव्यंतर १, ज्योतिषी ३, विमानीक ४. २१ ४ च्यार जातिरी देवी. जवनपतिरी देवी १, वाएव्यंतररी देवी २, ज्योतीषीरी देवी ३, विमानकरी देवी ४.
१२
४ च्यार कर्मबंधरा प्रकार. प्रकृतिबंध ते कर्मना स्वभाव १ स्थितिबंध ते जेटली स्थिति ना कर्म बांधे लोहीज काल कर्मबंध जोगवे २, नुनागबंध ते रस शुभ शुन
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नोगववो ३, प्रदेशबंधते दलनिकाचितबंध असंख्याते प्रदेशें करी विना जोगव्यांन लूटें,२३ ४ च्यार कषाय. क्रोध १, मान २, माया ३, लोन ४.
२४ ४ च्यार थाहार. असण १, पाणि १, खादिम ३, सादिम ४,
२५ | ४ च्यार पुरुष ऊगीने जग्या धादिश्वर नरतजीवत् १, ऊगीने बाथम्या ब्रह्मदत्तचक्र• वर्तिवत् १, थायमीने जग्या हरकेशी अणगारवत् ३, थाथमीने थाथम्या कालक
शूर कसाश्वत् ५. ४ च्यार प्रकाररी बुद्धि. उपत्तीया उत्पातरी बुद्धि ते आपणहीथी ऊपजें १, विणीया
ते विनय करंत बुधि ऊपजे २, कम्मिया ते काम करतां सुबुधि ऊपजै ३, परिणामिया ते वय परिणमतां बुधि ऊपजे ४. ४ च्यार जातिना क्रियाणा. गिणीमंच गणिय सोपारी प्रमुख १, घरिमंच धीयें तोड्यो
विकें १, मेकंच गजें मिणी वेचे कपमादिक ३, परिनिङच पारिष्यायें वेचें जूहारा- दिक जाणवा . ४ च्यार-मेरुपर्वतउपरे वन. नसालवन १, नंदनवन २, सोमनसवन३, पंगवनध.शए *
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५ महावीरस्वामीजीरा च्यार पारणा. पहिलो विजयब्राह्मणरे घरे पारणो १, बीजो सामें
गाथापतिरें घरे पारणो २, तीजो गाथापतिरे घरे पारणो ३, चोथो बकुलब्राह्मणरें घरे पारणो ५. ए च्यार राजग्रही चोमासेमांहि पारणा जाणवा. ४ च्यार श्रावक. माता पिता समान श्रावक १, मंत्री समान श्रावक २, बंधव समान
श्रावक ३, सोक समान श्रावक ४. ४ च्यार जातिरा वली श्रावक. श्रादर्श सरीखा श्रावक १, धूजा सरीखा श्रावक १, ख
यररा खुंटा सरिखा श्रावक ३, लोहरें कांटे सरीखा श्रावक ५... ५ च्यार जातिरा याचार्य. चोल मजीठ सरीखा आचार्य आप पोते वैराग रंग राता
अवराने पिण वैरागरूप रंग चढावें १, पखाला सरीखा थाचार्य श्राप वैराग रंग करी राताबे अवरांनुं वैराग रंग चढायै नही १, चूने सरीखा थाचार्य श्राप वैराग करीने ढीला बे अवरांने वैराग रंग चढावें ३, खमी सरीखा श्राचार्य श्रापही वैराग रंगे बू
खा अवरांने पिण वैराग रंग चढावणर्ने बूखा. ४ च्यार वस्तु अमोलक जाणवी. सात धातुमांही तो लोह अमोलक १, पथरमांही जु
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हार अमोलक २, वस्त्ररे मांही दौमयुगल कपासरो नोपनो वस्र अमोलक ३, काष्टमांही बावनोचंदन अमोलक ४.
- ३५ ४ च्यार करंमीया. राजारे करमी समान तीर्थकरदेव १, शेठरें करमीये समान गणधर 2
देव १, वेश्यारें करंमीये समान अन्यदर्शणी ३, चंमालरें करंमीये समान मोरामसी __करणवाला ४.
४ च्यार चंमाल. पशूमांही गधो चमाल १, पंखीमांदी काग चंमाल , साधुमांही को- धीचमाल ३, लोकिकमें नंगी चमाल ४. ___४ च्यार कषाय घणी किण २ में. नारकीमांहि तो क्रोध घणो १, मनुषमांही मान घ
यो , तिर्यंचमांही माया घणी ३, देवतामांही लोन घणो ४. ५ च्यार अजीर्ण. तपस्यारो अजीर्ण क्रोध १, नणीयरो अजीर्ण अहंकार १, कायरो
अजीर्ण विकथा ३, लोकमें अन्नरो अजीर्ण वमन ४. ४ च्यार विरख. सालरोरुख अने सालरो परिवार आदिनाथ नरतचक्रवर्तिवत् १,सात, रोरुख एरंमरो परिवार गर्गाचार्य शिष्यवत् २, एरंगरो रुखसालरो परिवार अंगारमर्दन ।
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शिष्य श्राचार्यवत् ३, एरंगरो रुख एरंग परिवार कालकशूरकसाई परिखावत् ४. ३ए । ५ च्यार मेह. एक मेह गाजें पिण वरसे नही १, एक मेह वरसें पिण गाजें नही ५, एक मेद गाजें पिण वरसें पिण ३, एक मेद नही गाजें नही वरसें .. . श्ण दृष्टांते च्यार पुरुष. एकेक पुरुष पोमा पिण दान देवे नही १, एकेक दान देवें पिणु पोमा नदी २, एकेक पुरुष दान पिण देवे पोमावे पिण ३, एकक पुरुष नही दान देवें नही पोमा ५.
४१ * ४ च्यार मेह, एकेक मेह कालें वरसे पिण अकाले वरसे नही १, एकेक मेद थकाले *
वरसे कालें वरसे नही २, एकेक मेह काही वरसे थकालेंदी वरसे ३, एकेक मेह* कालें वरसे नही अकाले पिण वरसे नही ४. . .
४२ ४ श्ण दृष्टांते च्यारपुरुपते किसा. एकक पुरुप चाहीजतोदान देवेपिण अणचाहीजतो नही देवे १, एकेक पुरुष याचाहीजतो देवे पिण चाहीजतो नही देवें २, एकेक पुरुष चाहीजतो पिण देवं याचाहीजतो पिण देवे ३, एकक पुरुष नहीचाहीजतो देवें नही घणचाहीजतो नहीं देवें ५.
४३
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४ च्यार मेह. क्षेत्रे वरसे अक्षत्रे नही वरसें १, प्रोत्रं वरसे क्षेत्रे नही वरसें १, क्षेत्रे |
पिण वरसे अदोत्रे पिण वरसे ३, क्षेत्रे वरसें नही अदो पिण वरसे नही ४. ५४ ५ श्ण दृष्टांते च्यार पुरुष जाणवा. एकेक पुरुष सुपात्रने दान देवें पिण कुपात्रने नही ।
देवें १, एकेक पुरुष कुपात्रने देवें पिण सुपात्रने नही देवें १, एकेक पुरुष सुपात्रने पिण देवें कुपात्रने पिण देवें ३, एकेक पुरुष नही सुपात्रने देवें नही कुपात्रने देवे.४५ ४ च्यार जातिरा मेह. पुष्करावर्तमेह. एकवार वर्षे तिको दशहजार वर्ष तां नीपजें पहिले आरे वरततां एह मेद वरसें १, परजन्यमेह. एकवार वरस्यां थकां हजारवरस तांश नीपले वीजे पारे वरततां वरसें , कामनामामेह. एकवार वुगंथकां दस वरस तांश नीपजें तीजे चोथे थारे वरतां वरसें ३, नौमनामामद. वार २ वरसें तो नीपजें । पांचमे बारे वरसें ४.
४६ ४ मेह ऊपर दृष्टांत. संजतीराजा गईनलीऋषीश्वररी वांणी एकवार सांजलीने राज्य
पद गेमीने दीदा लीधी १, प्रदेशीराजा केशीकुमाररी वाणी एकवार सांजलीने समकितसहित वारे व्रत अंगीकार करी समज्या ,श्रेणिक महाराजा अनाथी ऋषीश्व-*
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ररी एकवार वाणी सांजलीने समकित अंगिकार करें ३, हिवें पांचमे बारेरा जीव सुणे सानो तिरां तिरां दृढता परिणाम रहै अने सुणे सांजलें नही तिवारे धीग परिणाम पमितां वार लागें नही चोथा नौममेह समान जाणवा.
४७ ४ च्याराहार परिग्ववाना नांगा. एक जायगा फासुक तसथावर जीव करीने रहित जाणे खोक या जावें देखें में १, एक फासुक जायगा दूरथकीदखें में परलोक थावें जावें नही २, एक जायगा फासुक तस थावर जीवरहित परं लोक यावें जावें में दूरथकी नही देखें ३, एक जायगा फासुक तस थावर जीवरहित लोक नही थावें नही जावें दूरथकी देखें पिण नही ५. तीन जायगाए थाहार परिवववो नही चोथी जायगाये परिग्ववों.
४० ४ च्यार जातिरां रूंख. एक रुख नंचो ने फल नीचा डाख खर्जूरा बीजोरांरा १. एक फल जंचा ने रुख नीचा नालेररा , एक फल पिण नंचा ने रुख पिणजंचा ताम प्रमुखरा ३, एक फल पिण नीचा रुख पिण नीचा रींगणी प्रमुखररा ४. ए ४ श्ण दृष्टांते च्यार पुरुष. एकेक पुरुष जातीरा जंचा पण करणारा नीचा ब्रह्मदत्तच
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क्रवर्त्तिवत् १, एकेक पुरुष करणीरा उंचा परं जातीरा नीचा दरकेशी अणगारवत् २, एकेक पुरुष जातिए पिए उंचा ने करणीए पिए ऊंचा यादीश्वरचक्रवर्त्तिवत् ३, एकेक पुरुष जातिएं पि नीचा कुलकरणीए पिए नीचा कालकर कसाश्वत् ४. ५० ४ नगवंत व्यार प्रकाररी कथा कहें. जखेवणी ते प्रष्न न्यारा करें तेनुं स्वमतना जापरमतना जाण दोनुं मतना विशेष नाव जाणी ने कहें, तिणसुं निर्मल जाणपणो पेलाने घ्यावें १, विखेवणी कथा. समकित मिष्ट वचने थापे छाने मिथ्यात नथापें विशेषे सम कितने थापें परपाखंमीना मत थापें एही कथा कहें २, निर्वैगणी कथा पांची विशेषथकी वश्यनाव वर्ते कामजोगथकी विरक्तनाव हुर्वे संसारथकी उगाव पामें एही कथा कहें ३, संवेगणी कथा. वैरागभाव पमार्फे जीव कया कर्म कर्म की मुकावाना नाव तप संजमना फल कहें एही वैरागी कथा ४. ५१ ४ च्यार बल. एकेक २ नुं तपस्यारो वल दें ध्याहाररो बल नदी १, एकेक १ नुं याहाररो बल में पिण तपस्यारो बल नदी २, एकेक २ नुं यहांररो पिण बल बें तपपि बल वें ३, एकेक श्नुं यदाररो बल पिए नही तपस्यारो पिए बल नही ४. ५३
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५ च्यार गोला. रत्नरे गोखा सरीखा निग्रंथ स्नातक १, वज्ररे गोला सरीखा गणघरदेव
१, सोनारा गोला समान धाग उपयोगयुक्त साधु ३, रुपेरा गोला समान सामा
न्य साधु ४. . ५ च्यार गोला. मांखणरो गोलो तावमे नांखी यांही गले तिम कोश्ने वचन कथन कहेंसु धर्म गेमी देवें १, जतु ते लाख तेहनो गोलो तावमे मेलीयें तो परघखें नही अभिरे पसवामे मेलीयें तो परघलें तिम कोश्क पुरुष वचन कथन कहेंसुं धर्म गमे नही पिण गाल राख बोहत देणेसुं धर्म गेमी देवें २, दारु ते काउरो गोलो तावमे मेखीय सुं परघलें नही अमिरे पसवामे मेलीयें सुं परघखें नही परं अमिमें घाब्यां थका बखें तिम वचनरो गालरो परिसह दीयां धर्म नही गमेपरं मारवा कूटवारे परि सहथकी धर्म गेम देखें ३, माटीरो गोलो तावमे मेव्यां पिण पाको हुवें श्रमिमें पसवामे मेब्या पिण विशेष पाको अभिमें घाख्या तो विशेषतर पाको तिम केश्क पुरुषमें मारवा कूटवारा परिसद देवें पिण धर्मथकीचूकें नही धर्मने विषे दृढ परिणाम राखें अरणक कामदेवनी परे ४.
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४ च्यार बुद्धि तीर्थकरजीरी बुद्धि समुद्र सरीखी १, गणघरांरी बुद्धि सरवर सरीखी २,
या उत्तमसाधुरी बुद्धि कूवें सरीखी ३, सामान्य साधुरी बुद्धि पसली सरीखी. एए ४ च्यार घ्याचार्य. शिष्यने सूत्र जणावें पिण व्यर्थ नही जणावें १, एक घ्याचार्य अर्थ aणावें पण सूत्र नदी नणावें २, एक सूत्र पिण नावें पर्थ पिण नणावें ३, एक सूत्र पि नही जणावें पर्थ पिए नही जणावें.
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४ च्यार याचार्य. एक घ्याचार्य विहार करें ाने परिषदाने समजावें नदी १, एक विहार करें परिषदा समजावें २, एक विहार न करें परिषदा समजावें ३, एक विहार न करें परिषदा पिए नही समजावें ४.
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४ व्यार पुरुष. एकेक पुरुषने धर्म वल्लन में पिए धर्म उपरे दृढता नदी १, एकेकने धर्म ऊपरे दृढता पि धर्मवल्लन नदी २, एकेकने धर्म ऊपरे दृढता ठें धर्मवल्लन पि बें ३, एकेकने धर्म ऊपरे दृढता पिए नदी धर्मवल्लन पिण नदी ४.
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४ च्यार पुरुष. एक पुरुष गुण करें पण अभिमान अहंकार न करें १, एक अभिमान अहंकार करें पि पराया गुण न करें १, एक अभिमान अहंकार करें छपने पराया
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गुण पिण करें ३, एक थन्निमान थदंकार न करें पराया गुण पिण न करें४. एए ४ च्यार पुरुष. एक पुरुष बालें साचो पिण संयम दया करीने रहित १, एक संयमवंत में परं फूल बोलें , एक बोलें साचो बने संयमवंत में ३, एक संयमवंत पिण नही
साचो पिसाबा समयत ब२, एक सयमवत पिण नह। ४ च्यार वस्त्र. एक वस्त्र सहेजें जल निर्मलो पाणीसु धोषां पिण उज्जल निर्मलो हुवें १, एक वस्त्र पहिली मेलो हुवें पजे पाणीसुं धोयां उज्जलो हुवें २, एक पहिला वस्त्र मेलो पत्रे घोयांसुं पिण मेलो ३, एक वस्त्र पहिली पिण मेलो पत्रे पिण मेलो हुवें ४. ४ च्यार पुरुष. एक पुरुष बाहिर फूटरा नाया घोया पिण माही मेला गुण करीने ही__णा १, एक पुरुष वाहिर मेला कुरूप पिण मांही निर्मला २, एक पुरुष बाहिर मेला
मांही पिण मेला ३, एक पुरुष बाहिर पिण निर्मला माही पिण निर्मला ४. ६ ४ च्यार फल. एक रुख सूझा परं फल वांका १ एकरा फल सूछा अने रुख वांका १,
एकरा फल पिण सूका रुख पिण सूघा ३, एकरा फलही वांका संखही पिण वांका.६३
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४ श्ण दृष्टांते च्यार पुरुष, एक पुरुष दीसता तो सरख सूघा दीसे पण मनमांही कुटील १, एक पुरुष शरीरे करीने वांको कूबमो भने मांही नाव निर्मला २, एक पु.* रुष शरीरे सूघा मनमांही पिण सरख सूघा ३, एक पुरुषु शरीरे पिण वांका कूबमा
मनमांही पिण कुटील कूमा ४. ४ च्यार फल. एक थांबरो फल अखे सेवतां १ हाथे या बारे वरसांताश् सेवें ते
पामें १, एक से घणो श्रने फल शल्प मोखरो ते तामरो फल २, एक सेवीजें थोमो ने फल घणा देवें ते वेलरा फल ३, एक सेवेही थोमो ने फल पिण थोमा काले ते थाक घतुराना फल ४.
६५ ४ श्ण दृष्टांते च्यार पुरुष. एक पुरुष नगवंतरो मार्ग से घणो तथा गुरांरी सेवा पिण
घणी तेथी मुक्तिरूप फल पामें केहनी परे गौतमखामीनी परे १, को एक मार्ग सेवें घणो थने फल थोमो केढ्नी परे कूलवालक साधुनी परे १, एक पुरुष सेवें जिनमार्ग थोमो ने फल घणो ते अर्जुनमाली परदेशीराजानी परे ३, एक पुरुष नदंत जगवंतरो मार्ग सेवें थोमो थोमीही फल पामें ४.
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%3
४ च्यार प्रकाररा पुत्र. एक पुत्र पिताथकी अधिको ते थादिश्वरजीनी परें ते पिता न
खा नानिराजा कुलगुरु हुवा तेह धादिश्वरजी तीर्थकर हवो ते धादिश्वरजी. पिताथकी अधिका हुवा १, एक पुरुष पिता तो अधिका धने पुत्र हीणा तेजरतेश्वरजी चक्रवर्ति हुवा तेहना पुत्र श्रादित्ययशाराजा ते नरतेश्वरजीसुं हीना राजरिष्शुं १, एक पुत्र पिता बने पुत्र दोमुंही वरावर ते धादित्ययशाने पाटे महायशा पुत्रनी परे * ते पितापुत्र राजरिन्सुिं वरावर जाणवा ३, एक पुत्र कुलने विषे अंगार समान ते
कुंमरीकनी परे जाणवो ४. ४ ण दृष्टांते च्यार प्रकाररा शिष्य. एक गुरुथकी शिष्य अधिका सिंहगिरीने वेरस्वा
मीनी परे १, एक गुरुथकी शिष्य हीणा ते नपवाहु अने थूलनडनी परे जाणवा २, एक गुरु शिष्य बराबर प्रनवस्वामी सिधनवनी पेर ३. एक शिष्य गुरुने कलंक लगावें कूलवालक जदारी मारणहारनी परे जाणवो ४.
६७ ४ च्यार ज्यातिरा घुण. एक लकममें उपरती त्वचा थोमीसी खावें १, एक घुणलकम
उपरलीगल खावें १, एक घुण काट खावें ३, एक घुण काष्टमाहिली गिरीसार
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मीजी खावें ४. ५ च्यार जातिनी गोचरी. एक गोचरी काष्टरी त्वचा समान सवादरहित थाहार ग्रहण
करें तिको खावणो निरस अने तपस्या सार कर्म घणा तामें १, एक गोचरी गलसमान तेलेपरहित आहार नोगवे ते तपस्या काष्ट समान जाणवी अने थाहार तेज वमै समान जाणवो २ एक काष्ट समान गोचरी ते धार विगय खावे ते तप ब्वमै समान जाणवो ३, एक सीर समान गोचरी ते पांच विगय खावें नोगवे ते तप पतलें *
अवमै समान जाणवो ४... ४ च्यार प्रकारनो विषय. देवता देवी से जोग जोगवें १, एक देवता तिर्यचणीसुं ष्यणीसुं नाग नोगवें , एक तिर्यंच मनुष्य देवीसु नोग नोग- ३, एक मनुष ति:
यैच मनुष्यणी तिर्यंचणीसु नोग नोग- ४. ४ च्यार प्रकारें क्रोध नपजे. एक श्रात्मा नपरे क्रोध ऊपनें १, एक परमात्मा उपर
क्रोध ऊपजें , एक आत्मा परमात्मा बहु नपरे क्रोध ऊपजें ३, एक विना कार्य मन परिणामनाहकसुं क्रोध ऊपर्जे ४.
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४ प्यार प्रकारे क्रोध ऊपजें. खेत्र निमित्ते क्रोध ऊपजें १, वस्त्र निमित्तें क्रोध कंप २, शरीर निमित्ते क्रोध ऊपजें ३, उपगरणरे निमित्ते क्रोध ऊपजें ४.
७३
४ च्यार प्रकाररो क्रोध. याजोग क्रोध क्रोधरा फल जाणीने क्रोध करें १, अनाजोग क्रोध क्रोधरा फल न जाणें छाने क्रोध करें २, उपसम क्रोध ते, उदय विना उदय वाणीने क्रोध करें ३, अणुपसमक्रोध क्रोध उदयभाव व्यायाँको क्रोध करें ४. १४ ४ च्यार भाषा जिनकल्पी साधु बोलें. याचनारे वासते भाषा बोलें १, पूब्वारे पर्थे नापा बोलें २, याग्या पर्थे बोलें ३, यागले पूर्वीयेसुं बोलें ४. ४ च्या पमिमा समाधिपमिमा समताभाव राखे १, उपधानपमिमा तपस्या करें २, वि
७.५
१६
कपमा शरीर त्याग करें ३, विसग्गपमिमा काजस्सग्ग करें ४.
४ च्यार जातिरा घ्याचार्य. एक घ्याचार्य वियावच्च करें नहीं करावें पिए नहीं १, एक करावे पण करें नदी १, एक करें नहीं करावें पिए नदी ३, एक करें पिण करावें पिणे ४.
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४ च्यार जातिरा दस्ती. नंदजातिरो दस्ती कल्याणकारी तिको किसें गुणे करी जाणी
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जे धीर्यवंत संग्राममें नाजें नदी उतावलो चालें अगामी शरीर उँचो पामी शरीर निम्न निम्नतर सर्व अंग उपांग शोभतो जाणवो कांश्क यांख्यां पीली मधु समानजावलांब धरती लागतो सर्दऋतुने विषे मर्चे मद चढ़ें दंतुले करीने परजीवने द इस गुणे प्रजातिनो दाथी जाणीजें १, मंदजातिरो दाथी किसें लक्षणे करी जाणीजें धीर्यवंत चालें उतावलो पीली यांख्यां पुत्र अगामी जामो पुंठसें पतलो नख केस चांबी नामी वसंतऋतुने विषे मचें मद चढे सुंदसुं संग्राम करे परजीवने द इसे गुणे करीने मंददाथीनी जाति जाणवी २, मृगजाति हाथी पतला नख केस चांबी पि बहुत पातली बिदकण घणो संग्रामसुं नागे देमवंतऋतुने विषे मचें मद चढें सर्व शरीरसुं परजीवने दणें इसे लक्षणे मृगजाति हाथी जाणवो ३, संकीर्णदाथीरी जाति थोमो २ इणां ती नांदी दाथीयांरी जातिरा गुण लीयां रहें सर्व काने विषे मर्चे मद चढें सर्व शरीर करीने परजीवने दर्णे इसे गुणे करी संकी हाथी जाति जाणवो ४.
४ श्ण दृष्टांते च्यार जातिरा मनुष्य. एक प्रजातिरा पुरुष दीसता, शोजनीक दीसें
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मन पिण कल्याणकारी धीर्यवंत १, एक मंदजाति पुरुष कार्य करणें दीख घणी मनमें मेरे घणो पापसुं पिण मरें लोकिकसें पिण मरें १, एक मृगजाति पुरुष मनमें मेरे पापसु पिण मरें लोकिकसुं पिण३, एक संकीर्णजाति. पुरुष तीना पुरुषांरो थामो गुण लीयां रहें ४.
ए ५ च्यार दिस. पूर्व १, पश्चिम १, दक्षिण ३, उत्तर ४. ४ च्यार कोण. ईशानकूण १, वायवकूण २, अमिकूण ३, नैऋतकूण ४. १ ४ च्यार पुरुष. एक पराया गुण करें आपरो अपमान करें १, एक थापरो अपमान
करें पराया गुण करें २, एक पराया गुण न करें श्रापरो अपमान करें ३, एक परा. या गुण पिण न करें वापरा अपमान पिण न करें ४.
ज्श ४ च्यार जातिरा रोग. दीसतो जुष्ट पर वेदना नथी मेद जातिरो रोग १, एक दीसतो
तो जुष्ट नही परं वेदना घणी कंठमाखादिकरो रोग १, एक दीसतोही जुए वेदना पिण घणी पेटरी सूल माथेरीसूल ३, एक दीसतो ही अष्ट नही वेदना पिण थोमी सून्य नरम रोग ४.
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४ च्या व्यवहारीयां एक व्यादर सन्मान घणो देवें परं दाम देवें नही १, एक व्यव वहीरीयो दाम देवें पर आंदर सन्मान नहीं देवें २, एक व्यवहारीयो यादर सन्मान, पि देवें दाम पण देवें ३, एक व्यवहारीयो यादर सन्मान पिए नहीं देवें जलये ah ahiघूम करें दाम पिए नहीं देवें ४.
८४
४ च्यार प्रकाररों धर्म दान १, शीलं २, तप ३, नावं ४.
४ च्यार प्रकाररी दिक्षा. एकतों सिंदपणे व्रत घ्यादरें सिंदपरे व्रत पाखें योदीश्वरजी भरतेश्वरजीरी परे १, एक सिंदपणे व्रत लेवें पर स्यालपणे व्रत बांमें कुंमीकनी परे. २, एक स्या जपणे व्रत लेवें पर सिंहनी परे पालें अंगारमर्दन यात्रार्यना शिष्यनी परे ३, एक स्पानी परें व्रतं लेवें स्थालनी परेहीज व्रत पार्ले कालकाचार्यना कु शिष्यनी परे जावा ४ः '
८५,
८६
४ च्यार जाति पुरुष. बे ने बें तिके श्रावक १, बें ने नदी, तिका वैश्या २ नहि ने बे तिके साधुजी ३, नदीं ने नदी तिके 'पांपरा' करणारा दरिखी नरी ४. ४ च्या जातिरा पुरुष गुनमांदी शुभ तिके व्यवहारीया १, मनमांदी शुन तिके' स'
GS
3.+93e\€****8693
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चः |
वदागर.१ अशुञ्जमाही शुघ्न तिका व्यवहारीयारी बेटी ३, अशुनमांहि शुन्न तिके पापकरणहारा दरिखी नरा ५.. ५ च्यार प्रकाररा स्नेह. सुंठकमेतृणां तुटक तुटतां ताल लागें नही तिम सनेह तुटतां + ताल लागें नही १, विदलको वांसरी बुहामरी चटारकांश्क तुटतां ताल लागें तिम' सनेह तुटतां पिण काश्क ताल लागें १, चम्मको चांममानी चटा तुटतां विशेष ताल लागें ३, कमलको कांबलारी चटा टुटना विशेप १ ताल-खागे तिम सनेह पिण टुटना विशेष २ ताल लागें तोमाया सुःखसुं तुटे ४.
जए ४ च्यार जातिरा पुरुष एक अापसे गुण देखें परं पारका जंगुण नही देखें १, एक पारंकाहीज जंगुण देखें धने वापरा जंगुण नही दखें, एक पारका जंगुण मिण देखें आपरा पिण, जंगुण देखें ३, एक आपरा जंगुण पिण नही देखें पारका जंगुण पिण नही देखें ४.
ए. ४ च्यार जातिरा पुरुष. एक श्रापरो पाप नदीरे अने बागखे कने को नदीरावें न
ही १, एक भागखे कने जदीरावें अने याप पाप कोश्जदीरे नही २, एक आप
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रोही पाप नदीरे धने वागले कने पाप नदीरावें ३, एक आपरोही पाप उदीरे
नही अने वागला कने पिण पाप नदीरावें नही ४. ४ च्यार जातिरा पुरुष. एक थापरो पाप निर्धारे अने. पागला कने पाप निरावें ॥
नही प्रत्येकबुधियांनी परे १ एक पागला कने पाप निऊरावें परं आपणा निझरे । नही बनव्यनी परे २, एक थापराह पिण पाप निर्धारे अने पागला कने पिण निर्जरा तिके सामान्यसाधुजी ३, एक यापही आपणो पाप निमरे नही अनेरां
नो पाप पिण नऊरावें नही तिके मिथ्यामति जाणवा ४. ४ च्यार सुखसघा. पहिलो सुखसिधा मुरादेवीमाता १, बीजी सुखसधा आदीश्वरजी
जरतेश्वरजी २, तीजी सुखसधा सनत्कुमार चक्रवर्ति ३, चोथी सुखसधा गजसुकु-* मालजी ५. ४ च्यार केवलज्ञानीरा नाम. उपन्नणाण देसणधरे १, पर्दा , जिन ३, केवली.ए। ४ च्यार प्रकारे देवतारी गतिरो आयो जांणीजे. उदार चित्त १, सुखरकंठ १, धर्मरो
रागी ३, देवगुरांरो रागी,
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४ च्यार प्रकारे तिर्यंच गतिरो यायो जाणीजें, नलं घणो १, असंतोषी १, मायावी
३, मूर्खरी सेवा करें नूख बालस्य घणो ४. ४ च्यार प्रकारे मनुष्यरी गतिरो बायो जाणीजें वनीत १ निर्लोनी,दयाधर्म नपरे हि तनाव राखें ३, परनेसु मन सुहामणो लागे ४.
ए ४ च्यार प्रकारसं नारकीरी गतिरो यायो जाणीजें. क्रोधी १, पंमिताईरहित १, कपाई
३, कलकली तृत४. ५ च्यार तरेसुं नवनपतिमें जावें. क्रोध करें १, क्रोधीसं प्रतिबंध करें १, निमित्तानावे ३,
श्लोकरे अर्थ तपस्या करे ४. ४ च्यार बोल सेवणवालो थानोगीयां देवतामें जावें अहंकार करें १, अवगुणवाद वो
खें १,मोरामसी करें ३, हस्त कर्म करें ४. ४ च्यार बोल सेवणवालो नाटकीयां देवतामें जावें. अमार्गरी देशना देवें १, मार्गने
नेद पामें १, वारंवार नियाणो करें ३ अणतृपतिसुं नाग नोग- ४. १०१ ___४ च्यार बोलरो सेवणवाखो कलिमपीचूहमा देवतामें जावें. तीर्थकरजीरा अवगुणवाद
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१०१
बोलें १, केवलीपरूपित धर्मरो अवगुणवाद बोलें १, धर्माचार्यना श्रवगुणवाद बोलें
३, चतुर्विध संघना अवगुणवाद बोलें .. ४ च्यार प्रकारे देवता मनुष्यलोकमां थावें नही. देवता संबंधी कामनोगमें तलालीन में १, अनेरा राग सनेह बूटा में अने नाटक पमें में जघन्य दस दिन मशिम न महिना उत्कृष्टा दशहजार वरस तांश काल नाटकमें जायें जितरें पिजला सज्जना-. * कारो, थानखो पूरण हुवे ते नणी नही थावें १, च्यारसें तथा पांचसें जोजन खगें उगैप ऊबो ते नणी नही थावें ३, च्यारसें जोजन गंध पहिले बीजें थारें था श्री जाणवो मनुष्य थोमा मलमूत्र थोमो ते जणी च्यारसे जोजन गंध ऊब बा. की च्यार थारें वर्त्तता-जरत ऐरावतने,विषे मनुष्य घणा मलमूत्र पिण घण ते नः
णी पांचवें जोजन लगे जुर्गध ऊबले ते नणी देवता नही. यावें ४. . १०३ ५ च्यार प्रकारे देवता, मनुष्यलोकमां श्रावें. श्राचार्य उपाध्याय थापरा उपगारीनुं वंदना नमस्कार रितिदिखानवाने यावें १, तपस्यारी महिमा करणने यावें.१,. तिबैंकरजीरे पाच कल्याणक महिमाने श्रावें ३, सज्जनादिकने सनेह रागे बंध्यो मि
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+91863364
त्रने सन्दे बंध्यो तथा वचने यो यावें ४.
४ च्या प्रकारे लोक उद्यान हुवें. चोस इंडलोकमें नेला हुवें तीर्थंकरजीरे जन्म महिमा यावें तिवारे तिरबे लाक में उद्योत हुवें १, दीक्षा नणी घ्यावे तिवारे तर लोक त हुवें २, तीर्थंकरजीरे केवल महिमा जणी घ्यावें तिवारे तिरबे लोकमें उद्यान हुवे ३, तीर्थकरजीरे निर्वाण मदिमा जणी घ्यावे तिवारे तिरळे लोकमे द्योत हुवे ४.
४ च्यार प्रकारे धर्म नदी पामे श्राकारी धर्म नदी पामे १, क्रोधी धर्म नदी पामे २, रोगी धर्म नही पामे ३, प्रमाद। धर्म नदी पामे ४.
४ च्यार वेलाये साधु साधवी सिद्धांत नहीं गुणे. सूर्य ऊगती वेलाये १ सूर्य आश्रमती बलाये २, मध्यान्द वेलाये ३, छाईरात्री वेलाये ४.
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१०५
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१०६
४ च्या प्रकारे सिद्धांत जाणतां गुणतां वेयावञ्च करतां विघातकारी हुवे १, पहिले इंड मदोहव १, बीजे नाग महोबव २, तीजो भूतमहोसव ३, चोयो जदमहो व १०० ४ च्यार महापुनम च्यार महापरिवाथे साधु साधवी सिद्धांत जणे गुणे नहीं. ध्यासो
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ज ऊतरती पुनम काति वदि परिवा १, काति खुदी पुन्नम मिगशर वदि पमिवा २, चैत्रसुदि पुन्नम वैशाखवदि परिवा ३, साम सुदि पुन्नम श्रावण वदि परिवा. ११० ४ च्यार पैतालीसलाख जोजनरा ते कदे बे. जमुनामा विमान पहिले देवलोके १, सीतनामा नरकावसो पहिली नरके २, मनुष्यदोत्र ३, सिद्ध शिला ४.
१११
४ च्यार लखा लाख जोजन प्रमाणे. पहिलोदिने लाख योजनरो यप्पदिढाण नरकावास सातमी नरके १ लाख योजनरो पालक विमान पहिले देवलोके १ लाख योजनरो जंबुद्दीप तिरछा लोकमे ३ लाख योजनरो सर्वार्थसिद्ध विमान उई लोकमे जाणवो ४.
११२
'
४ च्यार प्रकारे लोकरो मध्यविचाल कहे बे. उंचे लोकरो मध्य पांचमे देवलोक विचे १, नीचे लोक मध्य चोथी नरकने विचे बे १, तिरबे लोकरो मध्य मेरुपर्वतना रुचकप्रदेशाष्टक ३, सर्व लोकनो मध्य पहेली नारकी तांइ ४. ४ च्यार प्रकारना फल संसारमे कहीजे. एक फलमांदी कवलोकोमल छाने बाहिर क रोते नालेरादिक १, एक फल बाहिर कवलो कोमल ने मांदी करमो ते बोरा
११३
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दिक , एक फल मांही कवलो कोमल थने बाहिर पिण कवलो कोमल जायफल|||
बादादिक ३, एक फल मांही पिण करमो बाहिर पिण करमो पूगफलादिक११४ ४ से दृष्टांते व्यार जातिरा पुरुष जाणवा. एकेक पुरुप जपरसु वचन कगर वोले परं
मनमाही प्रणाम घणा नरम जाणवा १, एकेक नपरे मीग वोला याचारवंत गुण-|| वंत दीसें परं मनमांही प्रणाम घणा कठिन , एकेक पुरुष नपर पिण मीग बोला | श्राचारवंत अने मनमांदी पिण घणा गुणवंत ३, एकेक पुरुष नपरही कठोर मन मांही पिण कगेर कठिण जाणवा ४.
११५ ४ च्यार जातिरा विप. विबरो विप थाधे नरत प्रमाणे ने १, देमकेंरो विष श्राखे नरत
प्रमाणे बे२, सापरो विष जंबुदीप प्रमाणे ३मनुपरो विप पढाहीप प्रमाणे.११६ ४ च्यार बोलें नारकीजीव मनुष्यलोकमां प्राय शके नही. परमाधर्मीयारी मार करीने
याय शके नही १, दश जातीरी खेत्र वेदना करीने श्राय शके नही१, आशातावे
दनी घणी तहसुं घाय०३, आज़खो घणोसुनोगवणो तेहसुं याय०४. ११७ ४ च्यार प्रकारे नारकीमाही अंधारो बे. नारकीरो अंधारो १, नारकीरे जीवारो अंधारो
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११॥
१, नस्कावासारो अंधारो ३, अशुन पुद्गलारो धंधारो ४. ___४ च्यार प्रकारे चानणो मनुष्यलोको चंडमारो चानणों १, सूर्यरो चानणो २, अमिरो
चॉनणो ३, मणिरत्नरो चानणो ४.. ५ च्यार प्रकारे देवलोकमें चांनणो. देवलोकरी ज़मीनो चानणो १, देवतारो चानणो १
विमानरो चानणो ३, थानरणरो चानणो ४. ४ च्यार जाणपणारा प्रमाण. आगम प्रमाण सिघांतथकी जाणे, जिम नरक देवतारा*
नाव धर्मास्तिकायादिक जाणे १, अनुमान प्रमाण अनुमान करीने बुधिथकी.जा.. ___ धूवे करीने श्रमि, वादले करी वर्षा, श्यादिक अनुमान करीने जाणे २, उपमा प्रमा
ण उपमाथकी वस्तुने जाणें जिम गाय सरिखो रोग में ३, ए उपमा प्रमाण ३,* प्रत्यक्ष प्रमाण ते नजरे दिठी वस्तु ४. . . ४ च्यार उपमा. उती वस्तुने अबती उपमा १, धनती वस्तुने बती जपमा २, धन
ती वस्तुने धनती उपमा ३, ती वस्तुने ती उपमा ५. ४ च्यार प्रकारे जीवांने कर्मारो संयोग. उन्य संयोग ते जिके अन्यांसुं जोव कर्म बांधे
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तिकेहीज डव्यासुनोगवें १, खेत्र संयोग ते जिके खेत्रसुं जीव कर्म बांधे तिकेहिज खेत्रसुनोगवें १, काखसयोंग ते जिंके काले जीव्र कर्म बांचे तिकेहीज कालेनोग
३, नावसयोंग ते 'जि प्रणामे जीव कर्म बांधे तिकेहीज प्रणामसु कर्म नोगः १२३ ४ च्यार प्रकाररी निर्जरा. महा वेदना थल्पनिङरा सातमी नरकेरा नेरश्याने जाणव। १, अल्प वेदनां महा निरा सामान्य साधुजी जाणवां १, महा वेदनां महा निऔर पमिमांधारी साधुजी जाणवा ३, थल्प वेदनी चल्य निरा पांच थनुत्तरवि मानरा देवता जाणवा ४.
१२४ ४ सामायिकरा च्यार अंनुयोग दखाजा. उपकर्म १, निक्षेप १, अनुगम ३, नय.१५५ ५ च्यार प्रकारे मति जग्गहं १, ईहा २, अवाय ३, धरिणां ५. ४ च्यार प्रकारे अवधिग्यान ऊपजें १, नगवते कह्यो श्सा परीसंह जीते तो, अंबंधि
ग्यान ऊंपजे १,बारे कुलारी गोचरीनिस्पृहपणे करें तोचवधिग्यान ऊपजें १, च्यार विकथा वरजें तो अवधि ३, पागंलीराजे धर्मजागरिका करें तो चंवधि०४.. १२ ४ व्यार प्रकारे अवधिम्यान नही ऊंपले नंगवंत' कहा तिकै परीसंह नही जीते तो
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अवधिग्यान नही ऊपजे १, बाराकुला। गोचरी निस्पृहपणे न करे तो अवधिग्यान नही ऊपजे २, च्यार विकथा नही वरनं तिणने अवधिग्यान नही जपर्जे ३, धर्म: *
जागरिका रात्रे नही करें तो अवधिग्यान नही ऊपर्जे ४... . १२ ५ च्यार प्रकारे अवधिग्यान ऊपनो पिण परो जावे. कुंथुवारी श्रेण्या देखीने जाय १, Ins
धन देखीने जाय ५, मनुष्यलोक बाहिरला सर्व देखीने जाय ३, इं इंशाणारे पगे
लागतो देखीने जायः ४. ४ च्यार निोपा पहिलो नाम निदेपो ते नाम घरे १, थापना निदेपो ते मूर्त करीने
थापें १, अन्यनिदेपो ते जाएपणो नदी तथा जीवरहित शरीर पड्यो ने ते व्य- * निदोपो ३, नाव निदोपो ते जाणपणासहित उपयोगसहित ते नावनिक्षेपो ४. १३० 8 ४ च्यार प्रकाररा सूत्र. नामसूत्र १, थापनासूत्र , व्यसूत्र ३, नावसूत्र ४. १३१ * ४ च्यार बोल जीपतां घणा दोहीला ने. व्रतमांही शीलव्रत पालवो दोहिलो १, था कर्मामांही मोहनी कर्म. जीपतां दोहिलो १, पांचे इंडियामांदी सेंख्यि जीपतां दो हिलो ३, तीनुं योगांमांही मनरो योग जीपतां दोहिलो. ४.
१३५
34:1
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४ च्यार बोल पावणा दोहिला. पांच झानमाही केवखग्यान पामवो दोहितो.१॥
खेश्या मांही शुक्लेश्या पामवी दोहिली २ च्यार ध्यानमांही धर्मध्यान शुक्रध्या
न पामवां दोहिला.३, नरयावनमांही शील पामीने पालतां दोहिखो ४. १३३ ४ च्यार बोल करवा महा दोदिला उर्खन. कुरणीवयमें शील पालवो १, बता जोग
गंमीने दिदा खेवण दोहिखी१, मोटा पुरुषांनुं दमा करणी दोहिली३, कृपणने दान देवणो दोहिलो ४...
. १३४ ४ च्यार ठिकाणे कषायरो वासो . क्रोधरो वासो खलाटमांही १, मानरो वासो गरदन ||*
मांदी २, मायारो वासो हीयामांही ३, लोनरो वासो सर्व अंगमांही ४. १३५!* ४ च्यार वात अकलदारीकी. जागतां तो चोर नासे १, दमा करतां कलह नासे २,
उद्यम करतां दरिख नासे ३, जगवंतरो वाणी सुणतां पाप नासे ४. १३६ १ च्यार वस्तु साधु गंमे. टोलो गंमे १, शरीर गंमे १, उपगरण गमे ३, जात पाणी
गंमे ४. ४ च्यार प्रकारे प्रतिबंध. व्यथकी प्रतिबंध शिष्य शाखा वसपात्र प्रतिबंध १, खेत्र
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थकी प्रतिबंध थानक प्राम.नगरनो प्रतिबंध २, कालयकी प्रतिबंध समयावलि मूहू
दिकनो प्रतिबंध ३. नावथकी कषायरो तथा रागशेषरो प्रतिबंध ४.. १० ४ च्यार प्रकाररा प्रतिबंध. धुम्या पंखीनो प्रतिबंध १, खोयया हस्तिनो प्रतिबंध , .-
घाया थानकरो प्रतिबंध ३, पघाया नमनपगरणनो प्रतिबंध ४. .. १३ए ५ च्यार प्रकाररा जीव ते कहे . एक सुख दुःख जाणे अने वेदें ते.च्यार गतिरा जी-. व जाणवा १, एक जाणे पिण वेदें नही ते सिक १, एक वेदें पिण जाणे नही ते.||*
श्रसन्नी ३, एक जाणे पिण नही वेदें पिण नही ते अजीव जुन्य. १४०, ४ च्यार प्रकाररा पुरुष. श्राप परिसह जी पिण अागलेने जीपावें नही १, एक श्रागला परिसह जीपावें परं श्राप परिसह जीपे नही १, एक थापही परिसह जीपे अने.अनेराने पिण जीपावें नही ३, एक श्रापही.परिसह नही जीपे अनेराने पिण परिसह नही जीपावें ४. पहिले नागे श्रादीश्वरजी भरतेश्वरजी १, बीजे नागे जिन.||
कल्पी २, तीजे नागे कुमरीक ३, चोये नागे कालकसूरिक कसाई ४.. १४१ ४ एकेक पुरुषरा.एहवा खरूप. एक थापरे कर्मरो अंत कीयो ने आगरे कर्मरो
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पिणं अंत करें तिके श्रादीश्वरजी नरतेश्वरजी १, एक थापरे कमरों अंत करें परं || अनेराने कर्मरो अंत नहीं करें तिके पमिमाघारी २, एक धागलेरे कर्मनो अंत करें | भने थापरो कर्मरो अंत न करें तिको पमिवार सम्यग्दृष्टि ३, एक आपरे कर्मरो अंत विण न थावे धने पेला रे कर्मरो पिण अंत न थावे तिके पांचमे थाराना साधु जाणवा ४.
.. १४२ ५ च्यार प्रकाररा आचार्य. एक माहिला परिसह सहे थने बाहिरखा परिसह सहे ते |
देशथकी थाराधक ने सर्वथकी पिण थाराधक, एक महिला परिसंह जीपे थने बाहिरला परिसह जीपे नही ते देशथकी विराधक थने सर्वथकी थाराषक १, एक बाहिरला परिसह जीपे थने मांहिला परिसद जीपे नही ते देशथकी धाराधक बने
सर्वथकी विराधक ३, एक माहीला परिसह जीपे नही अने बाहिरला परिसद पिण __जीपे नदी ते देशयकी पिण विराधक अने सर्वथकी पिण विराधक जाणवा ४.१४३ ५ च्यार चपल थानक. चपल चप बसें १, गति चपख ते चपलासुंचा, नाषा *
चंपल ते चपलासुं बोलें ३, नाव चपल ते एक सूत्र नणवो मांमे एक सूत्र नणतो
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गमे ते नाव चपल.
१४४ ४ च्यार वस्तु थोमी, एक रत्नरा थागर थोमा १, एक सत्पुरुष थोमा १, एक कर्पूर
वासित संख थोमा ३, एक सूत्र धर्मऊपदेशकवाला थोमा ४. ४ च्यार प्रकाररा काल. चरकाल १, निमित्तकाल , मरणकाल ३, अघासमय० १४६ ५ च्यार प्रकाररा पुरुष थोमा. परनुःखीये जुःखी थोमा १, परउपगारी जन थोमा १, गुणग्राहीजन थोमा ३, निर्धनसुं नेह राखेसुं थोमा ४.
१४७ ४ च्यार दिशे पुरुष. पूर्वदिशि नोगी घणा १, पश्चिमदिशि सोगी घणा २, उत्तरदिशि * ___ योगी घणा ३, दक्षिणदिशि रोगी घणा ४.
१४० ४ च्यार प्रकाररा काम. देवतारे शृंगारकाम १, मनुष्यारे करुणा काम २, तिर्यचरे : गंग काम ३, नारकीरे बिहामणा काम ४.
१४ए ४ च्यार जातिना थाहार. नारकीमें खीरां समान थाहार १, नोजर समान थाहार २, ३
शीत समान थाहार ३, पालें समान थाहार ४. ४ च्यार-प्रकाररा तिर्यंचरा थाहार. काक समान धाहार १, बाख समान थाहार २,
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मास समान याहार ३, चांमालरे मांस समान थाहार ४.
१२१ ४ देवतारे च्यार प्रकाररो याहार. जलोवर्ण १, नलोगंध, नखारस३, नलोफर्श. १५५ ५ च्यार प्रकारे दुःख ऊपजे. मनुष्यसुं १, तिर्यंचसु २, देवतासु ३, वात्मासु ४. १५३ ४ च्यार प्रकारे सुःख देवें. हास्यरे कारणे दुःख देवें १, क्षेषरे कारणे सुख देवे , थाहारके कारणे फुःख देवें ३, पुत्रादिकरे लेहरे कारणे दुःख देवें४.
१५४ ४ च्यार प्रकारे देवता जःख देवें. हास्यरे कारणे देवता शुःख देवें १, षरे कारणे देवता
सुःख देवें १, परीष्यारे कारणे देवता मुख देवे ३, नयरे कारणे देवता १०४.१५ च्यार प्रकारे मनुष्य तिर्यचने यापोद्याप थकी हुःख उपजें. पहिले बाले मनने विषे वचो असाताथकी पुःख ऊपजें १, बीजे बोले ऊंचो नीचो खाममांही पग पमीयां थकी मुःख ऊपजें २, तीजे बोले घणे काले नात पाणी मिल्यांथकी शुःख ऊपजें
३, चोथे बोले फोमो फुणगल आपरे हाथ पगसुं तोमें तो पुःख पर्ने . १५६ ४ च्यार प्रकारे श्रादहरनी श्वा ऊपजें. पहिले बोले कोगे ऊणो रहे ते जणी थाहा
स्नी श्वा ऊपजें १, बीजे बोले कुधा लाग्यां थाहारनी श्छा ऊपजें , तीजे बोले
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वात प्राहाररी सुणता प्रादारनी इछा ऊपजें ३, चोथे बोले वारंवार वात घ्याहारी सुतां हारनी शहा ऊपजे ४.
४ च्या प्रकारे जीवने जय ऊपजें. घणो कायर हुवे तो जय ऊपजें १, मोहरे उदयसुंजय ऊपजें 2, जयरी वात सुणतां थकां जय, उपजें ३, चाथे वार २ वात सुतां जय ऊपजें ४.
१५७
१५
४ च्यार प्रकारे मैथुनरी शहा ऊपजें. लोही मांसरो जमाव हुवे तिने मैथुनरी श्वा' ऊपजें १, मोदनी कर्म घणो हुवे तेहने मैथुनरी शहा ऊपजें २, मैथुनरी वात सुणतां मैथुनरी हा ऊपजें ३, राग रंग सुणतां मैथुनरी शबा ऊपजें ४. १५ ४ च्यार प्रकारे परिग्रह संज्ञा ऊपजें. घणे धनने मेलवं धनरे प्रसंगे संज्ञा ऊपजें १, परिदना मोहे करीने संज्ञा ऊपजें २, परिग्रहरी वात सुणतां संज्ञा ऊपजें ३, वार २ परिग्रही वात सुतां संज्ञा ऊपजें ४.
४ च्यार जातिरा गला. धरतीरो गलणो र्यासुमति १, मनरो गलणो शुभध्यान २, वचन गलणो निरवद्यभाषा ३, संसाररो गलणो काठो कपको ४.
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४ च्यार जातिरा वाचार्य. आप नणे अने अनेराने नणावें १; एक श्राप नणे अने
राने नही नणावें १, थाप नही नणे अनेराने जणावें ३, एक थापही नही जणे ||* अनेराने पिण नणावें नही ४.
१६२ च्यार प्रकाररा साधु एक आपरो नरणपोपण करें अनेरारो भरणपोषण नही करें तिको जिनकल्पी साधु १, एक आपरो नरणपोपण नही करें 'पने अनेरारो नरण पोपण करें तिके परनपगारी साधु , एक श्रापरो भरणपोषण पिण करें अने - नेरानो पिण जरएपोपण करें तिके सामानिक साधु ३, एक वापरो पिण जरणपोपण नही करें अनेरारो पिण नरणपोपण न करें तिक दरिडी साधु ४. १६३ च्यार प्रकारनी मुखशद्या. जंची नीची जायगा सूतां पुःख ऊपजें तिकाव्य जुःख शद्या, नाव सुखशद्या संयमने विपे दोपण लगावे नगवंतरी वाणीरे नपरे संका| कंखा घाणे, मनरा उंचा नीचा प्रणाम राखें ए पहिली सुःखशद्या १, वीजी पुःख. वापरा लाधा नपरे संतोप न करें पराई याशा वांग करें १, तीजी मनुष्य देवतारे नोगनी वांग करें ३, चोथी नावण धोवण मेलर्नु परीसहन नही सही शके४. १६४
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४ च्यार जनने दिक्षा न देवें. रोगीने दिक्षा न देवें १, विगयने विषे लोपी घणो
हुवें तेने दिक्षा न देवें २, क्रोधीने दिक्षा न देवें ३, मायावीने दिक्षा न देवें. १६५ ४ च्या पबेवमी व्यार्याने राखणी कल्पे. एकतो दोष हाथ प्रमाणे तिका थानकमें नढे १, दो हाथ प्रमाणे बाहिर भूमि जातां मांहिलैंकानी बिसोमो राखें २, एक तीन दाथ प्रमाणे गोचरी जाती जढें ३, एक च्यार हाथ प्रमाणे साधुरे समवसरणे जाती नंदें ४.
१६६
४ च्यार लक्षणे करीने देवता यायो जाणीजें. ध्यावतो यांख टमकारें नदी १, बांद मे
नदी २, फूल माला कमलावें नदी ३, धरतीसुं च्यार अंगुल पग उंचा रहे. १६७ ४ च्यार प्रकाररा वाजंत्र तंतवाजिंत्र तिको तातथी वाजें १, वितंतवार्जित्र तिको तांत विना वाजें २, घणवाजिंत्र कांकसीया प्रमुख ३, जूखिरवाजिंत्र ढोल प्रमुख ४. १६७ ४ च्यार प्रकाररी कथा: स्त्रीकथा १, नक्तकथा २, देशकथा ३, राज्यकथा ४. ४ स्त्रीविकथा च्यार प्रकारे. खीजातिनी कथा कहें १, खीरे रूपरी कथा कहें २, स्त्रीरे ग्रहणारी कथा कहें ३, खीरे वखारी कथा कहें ४.
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४ देशविकथा च्यार प्रकाररी. देशना नाना प्रकाररा नोजननी कथा कहें १, देशना विकल्प विचार सोनो रूपो धननी कथा कहें १, देश बंदका ते देशनी रीतगीत ना.
दनो करणो तेहनी कथा कहें ३, देशना पहेवेशनी कथा कहें ४. १७१ ४ नत्तकथा च्यार प्रकाररी. जत्तस्सजवायका नोजन नपजावारी विधि कहें १, भत्तस्स निवायका नोजन पचावारी विधि कहें २, जत्तस्स धारनका नातरे वारंनकी कथा ||
कहें ३, नत्तस्स परिनोगावा जोजन जीमवारी विधिनी कथा कहें ४. १७२ |* ४ राज्यनी विकथा च्यार प्रकाररी. राजारे नगरमाही पेसवानी रीतनी कथा कहें १ रा
जारे नगरमांहीथी नीकलवानी रीतनी कथा कहें २, रथ हाथी घोमा सिणगारखानी रीतनी कथा कहें ३, राजाना कोगर नंमारनी कथा कहें ४:
१७३ ४ च्यार धर्म. दानके प्रनावसे धन्नो र शालीन असंख्य लक्ष्मीका नोग्य जोगव दे. वलोकमें प्राप्त होवें यावत् सिधिपद पामेगें एसे जाण सुपात्रकुं दान देवें १, शील-12 का पन्नावसें सुदर्शनशेठकु शुलीका सिंहासण हुवा र कलावतीका कव्या हाथ नया उत्पन्न हुवा एसे जाणकर शुरु शील पालण , तपके प्रत्नावसे धन्नो साधु
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हृढप्रहारी हरिकेशी मुनि र ढंढणषी प्रमुख कर्म दय करीरी मोदपद पाया एसें जाएा कर तपस्या करणी ३, जावनाके प्रभावसे प्रसन्न चंदराजर्षि इलायची कुमार कपिलमुनि खंदकमुनिका शिष्य जरतचक्रवर्त्ति तरं मरुदेवीमाता प्रमुख मोदा पदवी पामी एसा जाकर शुद्ध मन भावना जावी ४.
४ बंधतत्त्वना च्यार जेद. कर्मनो स्वनाव ते प्रकृतिबंध १, कर्मनो कालमान ते स्थितबुध २ कर्मनो रस बांधवो ते धेनुनागबंध ३, कर्मना संचय दलरूप तेदनो बांधवो तें प्रदेशबंध ४.
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॥ हवे पांचमो बोल लिख्यते ॥ ५ अन्य पांच. धर्मास्तिकाय तिको चलण लदाण १, अधर्मास्तिकाय तिको थिर स्व
नाव , आकाश ते विकाश लदण ३, जीव तिको चेतना लदण ४, पुद्गलास्तिकायव्य तिको पल्टवारूप ए पांच ऽव्य यस्तिकाय अन्य जाणवा ५. १ पांच प्रकारे शरीर. उदारिक शरीर समजावें पमिजावें विखरजावें तिको उदारिकशरीर १, वैक्रियशरीर नाना विधि क्रियाकारी, आहारिकशरीर लब्धिरूपं ३, तेजस- || 0 |
शरीर तेजरूप ४, कार्मणशरीर कर्मरूप ५. ५ पांच ज्ञान. सर्व वस्तुरो जाणपणो ते ग्यान. मतिग्यान १, श्रुतम्यान १, अवधि
झान ३, मनपर्यवग्यान ४, केवलग्यान ५. ५ पांच अणुव्रत. थूला पाणावायाळ वेरमणं १, थूला मुसावायाळ वेरमणं २,
थूलाचं अदिन्नाणात वेरमणं ३, थूलामिहुणा वेरमणं४, थूलापरिग्गहा वेरमणं.
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५ पांच सुमति. सुमति १ नापासुमति २, एषणासुमति ३, आयाणनम्मत्तनिवेख____णा सुमति ४, उच्चारमाश्रवणखेलजलसंघाणपरिगवणिया सुमति ५. ५ ५ पांच श्राचार. ज्ञान आचार १, दर्शण याचार , चारित्र आचार ३, तप याचार
४, वीर्य याचार ५. ५ पांच गति. नरकगति १, तिर्यंचगति १, देवगति ३, मनुष्यगति ४, सिधगति ५.७ ५ पांच प्रमादे जीव मुके, पाठ मदनो करयो १, विषयरो सेवणो, कषाय मोहनीये
मुफवो ३, नंदारो करवो ४, विकथा च्याररो करखो ५. ५ पांच मिथ्यात आश्रव. मिथ्यात थाश्रव १, प्रमाद याश्रव २, कषाय थाश्रव ३, थ
विरति थाश्रव , अशुजयोग याश्रव ५. ५ पांच संवर. समकितसवर १, विरतिसंवर १, अप्रमादसंवर ३, अकषायसंवर ४, शुज
योगसंवर ५. ५ पांच वर्ण. कालो १, नीलो २, पीलो ३, लाल Y, घवलो ५. ५ पांच रस. तीखो १, कमवो २, कसायलो ३, खाटो ४, मीगे .
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ए पांच इंडिय. श्रोत्र १, चक्कु १, घाण ३. रस ४, स्पर्श ए.
१३
५ पांच क्रिया. काश्या १, अधिकरणीया २, पावसिया ३, परितावणीया ४, पाणावाश्या क्रिया ए.
१४
ए पांच क्रिया. प्रारंनिया १, पारिग्गदिया २, मायावत्तियां ३, अपञ्चरकाणीया ४, मि. ध्यादंसणवंत्तिया ९.
१५
५ पांच समकित सासदानसमकित १, उपशमसमकित २, खयपशमसमकित २, वेदंकसमकित ४, दायिकसमकित .
१६
५ पांच समकितरा लक्षण. सम १, संवेग २, निर्वेद ३, छानुकंपा ४, यासथा ९. १७ ९ पांच समकितरा यतिचार. समकित उपरे शंका यारों १, छानेरा धर्मरी वांबा करें २, फलते संदेह आणें ३, परदर्शिणीरा धर्मरी वांला करें ४, परदर्शणीसुं संस्तव प रिचय करें.
१८
९ पांच समं कितरा दूषण. पहिलां मिथ्यात्वीने बोलावें १, वारंवार सामूहो जोवें २, मिध्यात्वनुं पोचावण जावें ३, विना प्रयोजन थानके जावें ४, विना प्रयोजन वारंवार
७
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१५.
. थानके जावें ५. ५ पांच समकितरा चूषण, धर्मने विषे चतुराश् राखें १, जिनशासननें दीपावें १, नला 'साधुरी सेवा करें ३, धर्मथकी मिगतांने थिर करें ४, साधु साधर्मारी वेयावच्च करें.३० ५ पांचना अवगुणवाद बोलतांथकां जीव उर्खनबोधपणो पामे कदे निर्मल समकित
मे नही च्यार गतिमांश रुट पिण पांचमी गति पामें नही. पहिले अरिहंतनाथवगुणवाद बोलें १, बीजे अरिहंत प्ररूपित धर्मना अवगुणवाद बोलें १, तीजे श्राचा- र्य उपाध्यायरा अवगुणवाद बोलें ३, चोथे चतुर्विध संघरा श्रवर्णवाद बोलें ४, पां. चमे मोटा देवतारा अवगुणवाद करें अने परपूठे सर्वनी निंदा चावत करें ए पांच 'बोल सेवतां जीव धर्म नही पामें ए. ५ णा पांचानाहीज गुण ग्राम करें तो सुलानबोधि हुवें. ५. पांच शरीरने विष नीव नीकलवाना दरवाजा जाणवा पगांथी जीव नीकलें तो नर
के जाय १, पांमीथकी नीकलें तो तिर्यंचगतिमां जाय २, नानिकानीमुं जीव नीकलें तो मनुष्यमांही जाय ३, मस्तक मुखमांही नीकलें तो देवतामें जाय ४, सर्वांग
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को ते जीव मुक्ति जाय ए. का ५ पांच प्रकारे देवा. नव्य व्यदेव ते श्ण नवमांही देवतारो बाऊखो बांध्यो बेधने
श्ण नवरो थाऊखो जोगवे जे ते नव्य ऽन्यदेव कहीजें १ बीजे नरदेव ते चक्रवचि , तीजे धर्मदेव ते साधु ३, देवाधिदेव ते तीर्थकर ५, पांचमे नावदेव ते देवतारे
जवमांहीबेवाते देवता ए. । ५ पांच नरकावासा सातमी नारकीरा जाणवा. पहिलो काल १, बीजो महाकाल , तीजो रोरुव ३, चोथो महारोस्व ४, पांचमो अपाण ए.
२५॥ ५ पांच प्रकाररो ज्योतिषीदेवतारो नद्योत. पहिले चंमारो १,, बीजो सूर्यरो १, तीजो|
ग्रहो ३, चोथो नदात्ररो , पांचमो तारारो ५. ए पांचंही चर मनुष्य लोकमें बा-|| हिरला तिरगलोकमां स्थिर जाणवा.. ५ सम्यग्दृष्टि नगवंतरे समोसरणे थावें तिवारे पांच थनिगम साचवें. पहिले सचित्त ।
अन्य दूरे मेहले १, बीजे अचित्तव्य पासे राखें १, तीजे खीलण विगर एकपटा कपमानी मुखे जयणा करें ३, हाथ दोनु जोमे ५, एक दृष्टि सन्मुखो जोवे ५. २७
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५ पांच वाना घलगा मेहलने तीन प्रकारी सेवा करें मनरी वचनरी कायारी. बत्र १ |
चामर, मुकुट ३, पान ४, फूलारी माला ५, ए पांच दूरा मेहलने जगवंतने वांदना||*
५ पांच जणारी साधुजी भागन्या लेवें. पहिली इंपनी भाग्या लेवें दिसा मात्रोपविववाने काजें १, बीजी राजानी धाग्या लेवें नगरमें पेवणरी विरीयां २, तीजे स-|| धातररी धाग्या लेवे थानकरी ३, चोथी सामान्य गृहस्थनी धाग्या लेवें सर्व वस्तु
नी ४, पांचमी साधर्मीनी धाग्या लेवें उपगरणादिकरी ५. ५ पांच प्रकाररी ध्याय. थंकध्याय ते खोलेमांही बेसाणे १, ममणध्याय ते ग्रहणा पट
कुल वस्त्र पहिरावें १, मधनध्याय ते स्नानादिक करावें ३, खीरध्याय ते चूंघावें ५,
किलामणध्याय ते खेखणा लेले खिला रमा ५. १. . ५ पांच थावरकायस नाम. पहिलो इंदीथावरकाय १, बीजों बनीथावरकाय-२, तीजो
सप्पीथावरकाय ३, चोथो सोमीयावरकाय , पांचमो पीयावची थावरकाय, २. ३१ | .. ५ पांच प्रकाररा व्यवहार जाणवा. यागम व्यवहार १, सूत्र व्यवहार २, धाग्या व्यवः ||
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हार ३, धारणा व्यवहार , जीत व्यवहार ५. ५ पांच प्रकारे जागे. पहिले सुखे जागें १, अखे जागें १, तीजे सुंपनो दीर्गसें जागे ___३, चोथो निडाने दये जागें ४, पांचमे कुधा वेदनी लाग्यां जागें ए. , ३३ ५ पांच प्रकाररा पमिकमणा. पांपरो निंदवो ते पमिकमणो. पहिलो मिथ्यातरो पर्मिक मणो १, अविरतरो पमिकमणो १, कषायरो पमिकमणो ३, प्रमादरो पमिकमणो ,
अशुजयोगरो पमिकमणो . . ५ पांच प्रकाररा पचखाण. सर्दहणाशुरू १, विनयशुरू ३, धनुग्रहणाशुरू ३, धनुनी-||
वशुरू,नावशुरू ५... ५ पांच प्रकारे अचित्त वायरो ऊपजें तिण करी सचित्त वायरो दणीजें. पहिले दवके 2
सुं पग मेहलें तिवारे श्रचित्त वायरो उमें तिवारे श्रचित्त वायरो दणीजें १, बीजे लोहाररी धमणसुं श्रचित्त वायरो उठे तिणसुं सचित्त वायरो दणीजे १, तीजोमुंह। मारीबाफसुं अचित्त वायरो उठे तिवारे सचित्त वायरो हणीजे ३, चोथो झुगमो नि. चोक्तां अचित्त वायरो उठे तिवारे सचित्त वायरो हणीजे ४, पांचमो पंखेसुं श्रचित्त
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५ पांच प्रकारे देवतारी सना. जववायसना ऊपजणरी १, अलंकारसना ग्रहणागांग पदिखानी २, निषेकसभा अनिषेक राज्यनो करें ३, विवसायसज्जा पुस्तक वांचवा - नी ४, सुधर्मासना तिहां दरवार करें जों माणवक स्तंभ बें तवें भगवंतरी दाढां रहे तिण कारणें चोथो ध्याश्रव न सेवें ५.
४१
९ पांच अंतराय दानांअंतराय दान देवें नदी १, लानाअंतराय व्यनावे खान पाम सकें नदी १, जोग अंतराय जोगवी सकें नही ३, उपजोग अंतराय जोग उदय ध्याय सके नदी ४, वीर्य अंतराय द्रव्यनावे वीर्य पामें नही ५.
४२
परे १,
५ पांच प्रकारे मिथ्यात. निग्रह मिथ्यात ग्रह्यो कदाग्रही नहीं बोमें लोद वाणीयानी निग्रही मिथ्यात दरजी केरो ग्रदियो मिथ्यात सेवें २, अनिनिवेशक मिध्यात व्यापतो पोते पाको मिथ्यात्वी छाने पनेराने देतयुक्ते करीने मिथ्यातमांदिपा - ४३ लें जिनमार्गथकी मिगावें ३, नानोग मिथ्यात्व विना उपयोग मिथ्यात्व सेर्वे ४, संसय मिथ्यात्व संदेह घणो रहें ५.
५ पांच प्रकाररा मिथ्यात्व. लोकिक मिथ्यात्व गोगो खेतरपाल श्लोकरे नामने छा
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माने पुजे. संसारना सर्वकार्य करें तिको लोकिक मिथ्यात्व ?, लोकोत्तर मिथ्यात्वं ते देवगुरुना गुण नही अने देवगुरु करीने जाणे हिंसा तमांहि धर्म जाणे सर्दहे तिको लोकोत्तर मिथ्यात्व २, कुप्रावचनीक मिथ्यात्व ते योगी सन्यासी इत्यादिकं कु. तीर्थीरो मार्ग से तिको कुमावचनीकमिथ्यात्व ३, जणायरिय मिथ्यात्वे नगवंतरी प्र-2
रूपणासुं जो प्ररूपें ४, अतिरिक्तमिथ्यात्व नगवंतरी प्ररूपणासुंयधिको प्रख्.४४ ५ पांच प्रकाररो मिथ्यात्व. विपरीत मिथ्यात्व जगवंतरो मार्ग विपरीत हीणो कहें १, थ क्रियमिथ्यात्व तिको क्रिया कर तुठ माने नही सर्व वस्तुनी नास्ति मानें २, अनाण मिथ्यात्व ते सर्व नाव उलटथी जाणे ३, अविनयमिथ्यात्व गुणवंतरा गुण नही करें
४, असातना मिथ्यात्व ग्यान दर्शन चारित्ररी थासातना करें ५. ४५ ५ पांच जणा वांदवा योग्य नही. बापरे गंदे चालें तिणने १, संयमने विषे दोष ले
गावें तिणने १, गृहस्थसुं परिचय करें तिणने ३, संयमनें पसवामे मेहल दीयो, ति
णने ४, मागेयाचार सेवे तिणने ५, एपांचेही वंदवा नमस्कार करवायोग्य नही. ५ पांच कारणे उमरी पहिले विहार करें. नयरे कारणे करें १, सुनद काल में
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तो०१, राजरो मोकलो नय हुवें तो०३ पाणी वाया नगरी वीटसीगे पहिलीसुंदी ||| विहार करें , अनार्य पुरुष परीसह देवतो देखीने पहिली विहार करें ५, Us ५ पांच प्रकारे उमरीया पीने विहार करें तो नगवंतरी थाझा अतिक्रमे नही. पहि॥
लो ग्यान नणवाने अर्थ १, बीजो दर्शनने यर्थ २, तीजो चारित्रने अर्थे ३, चोथे थाचार्यनी वेयावच्चने अर्थ ४, पांचमें श्राचार्य कालकीधो जाणीने समुदायरी सारसंजाल करणने वासते विहार करें ५.।
UG|| ५ पांच प्रकारे जीवना परिणाम. मैंपारा पुतला सरीखा परिणाम हुवे ते मरीने नरकगतिमें ऊपजें १, वीजे काले धोवण सरीखा परिणाम हुवें ते मरीने तिर्यचगतिमें ज-|| पर्जे १, तीजे कल पाणीसहित सरीखा परिणाम हुवे ते मरीने मनुष्य हुवें ३, चोथे | चोवाणी सरीखा परिणाम हुवे ते मरीने देवलोकमें ऊपजें ५, पांचमे निर्मल पाणीरा
धारा सरीखा परिणाम हुवे ते मरीने मुक्तिमें जाय ५. ५ पांच इंडीरा नाम. अनमनी कान १, चरचरी अांख २, खेचरी नाक ३, गोचरी जी
न, ४ अगोचरी काया ५.
ए
५०
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५ पांच इंडीरा अर्थ. सोतेंडी कान गीत गान राग सुणवाने सावधान १, चकुशी
यांख नला २ रूप देखवाने वासते सावधान १, घाणेंडी नाक ते नसा गंध सुं. घवाने विषे सावधान ३, रसेंखी जीन ते नला रस नोगवारे विषे अने बोलवाने विषे सावधान ४, स्पर्शखी काया ते खरखरा सुंदाला जोग नागवाने सावधान.५१ ५ पांच इंधीना श्राकार. बाहिरला अनेक प्रकाररा जाणवा अने अंतरंग माहिला ए पांच में. सोतडीनो आकार कमल फूलरो १, चरंजीरो थाकार चंडमारो २, घाणइंडीरो थाकार अति मुक्तक वनस्पतिरा फूल सरीखो ३, रसश्वीरो थाकार |
बुरपलारो ४, स्पर्शडीरो अाकार नाना प्रकाररो ५. ५ पांच इंजीनी अवगाहना. श्रोतश्वीनी अवगाहना थांगुलीने असंख्यातमें नाग 8
१, घाणेडी रसेंडी स्पर्शद्री श्णां तीनानी श्रवगाहना नव यांगुलीरी जाणवी.५३ ५ पांच इंदीनी विषय जाणवी. श्रोतदीनी विषय बारें जोजन प्रसरें १, चक्कुश्दीनी वि..
षय लाख जोजन तांश् पसरे , घाणसी रसखी स्पर्शडी श्णां तीनांरी विषय * नव २ जोजन तांश पसरे ५४.
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५ पांच जातिरा रजोहरण. ऊनरो रजोहरण १, नंट जननो रजोहरण, मुंजरोर
जोहरण ३, तृणांरो रजोदरण ४, वल्कलरो रजोहरण ५. ५ पांच प्रकाररा वस्त्र. पहिलो नरो वस्त्र १, पाटरो वस्त्र १, कपासरो वस्त्र ३, सिणरो
वस्र , धर्कफूलरो वस्त्र ५. ५ पांच श–प्रा नाम. शक्रं १, वज्रपाणी,सतक्रतु ३, मघवान,४ पाकशाशन.५७ ५ पांच वोलरे सेवणवालासु थाहार पाणी गेमतां नगवंतरी आग्या अतिक्रमे नही.||
अकार्य करें आलोवें नही १, पायनित लेवें नही२, प्रायजित लेश्ने घरीने राखें ३, प्रायजित पूरो क्हें नही ४, गुरांथीकी उपरांगे वहें ५. पांच कारणे एकलो साधु एकली साधवी नेला रहें तो नगवंतरी याज्ञा यतिक्रमे नही. मुर्नदकाल पमीयांसुं मार्गमांहि बटवी पेले नगर जावतां एक दोय रातिरा नेला रहें तो नगवंतरी धाग्या अतिक्रमे नही १, नगरमाही थानक नही मीलें तो नेला रहें नगवंतरी धाग्या अतिक्रमे नदी १, विहार करतां सूर्य बाथम गयो हुवें तो नागजदकुमाररे देहरामाही रहें तो नगवंतरी वाग्या. अतिक्रमे नही ३, साधु
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साघवी विहार करतां चोरे हेरो कीयो हुवें नंगजपगरण खोसी लेवें जिण कारणे. नेला रहे तो नगवंतरी धाग्या अतिक्रमे नही ४, धनार्यपुरुष परिसह देवें तो सील राखवाने कारणे नेला रहे तो नगवंतरी धाग्या अतिक्रमे नही ५. ५ ५ पांच कारणे साधु साधवीरी मार संभाल करें तो नगवंतरी धाग्या अतिक्रमे नही..*
अत्यंत हर्ष करी संयमथकी मन बाहिर प्रवावे तेहनी सारसंन्नाल करीने थिर करे १, अत्यंत रोगे करीने पिमीत में तेहनी सारसंजाल करीने धीर करें २, वाश करीने * परवस में तो सारसंन्नाल करीने थिर करें ३, चोथे जदरा परवशपणामांही पमी डे तेहनी सारसंन्नाल करें ४, मोहरे वसे पुत्र संयम लीधो हुवें पुत्रादिकनी तथा पुत्र,
मातारी सारसंनाल करें तो नगवंतरी धाग्या अतिक्रमे नही ५. ५ पांच कारणसुं साधु साधवींसुं संघटो करें तो नगवंतरी धाग्या अतिक्रमे नही. पहि-
ले पंखी.हाथी पांखमें तथा सुंढमां घाली खेर जावतां कालने राखें तो जगवंतरी, धाग्या अतिक्रमे नही १, बीजे खाममें पमतां गिरताने राखें तो नग० २,तीजे ना.. वासु ऊतरतां पाणीमें बतां कालाने राखें तो नग० ३, चोथे नवल यांवती, हुवें।
K
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तो कालीन राखे तो नग.४, पांचमे संथारो कीधो हुवें चकरी यायने पमतीथकी। ने कालें तो नगवंतरी भाग्या अतिक्रमे नही ५. ५ पांच कारणे टोलो समुदाय गे. प्रायबितीया जाणीने टोखो समुदायने गेमें १, बी
जे जदारे वस तथा वाशे वस टोलो समुदाय गेमें १, तीजे श्रवनीतने सूत्र नावें नही तिणसें टोलो समुदायने गेमें ३, मोहरे वस मन गम रहे नही तिण कारणे| टोलो समुदायने गौ ४, अनेरा टोला समुदायमें साधुजन सीदावें जिणाने सा
हाय देवा जाय तिके कारणे टोलो समुदाय गेमें ५.. ५ पांच श्राचार्यना अतिशय. पहिले थानकमाही यावीने हाथ पग पुंजे १, थानकमांही मूत्र स्थंमिल करें १, तीजे वियावच्च श्वा हुवें तो न.करें ३, चोथे थानकमां
ही एकांतध्यान ध्यावें बेसें ४, पांचमे थानक बाहिर एकांत बेसें ध्यान ध्यावें ५. ६३ ५ पांच प्रकाररा प्रायति. गुरुमास ते तीस दिनारो प्रायडित देवें १, लघुमास ते सत्तावीस दिनारो प्रायचित देवें १, गुरुवोमास ते तीस दिनारो महीनो गणीने च्यार मासरो प्रायजित देवें ३, लघु चोमास ते सत्तावीस दिनारो महीनो गणीने व्यार
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मासरो प्रायजित देवें ४. थारोपणा ते फरीने पांच महावत नचरावें ५. . . ६४ ५ पांच प्रकाररी थारोपणा. परविया.ते घणा प्रायजित माथे धाया में १, बीजी 7. विया ते घणा मांदिलो पहिलो प्रायजित वहें ते विया २, तीजी कसिणा जेटला प्रायजित गुरु देवें तेटला सर्व संपूर्ण अखंमित बहें ३, चोयी थकसिणा ते गुरुदेवें प्रायजित दीपो ने तीको सर्व खंमित करीने प्रायजित पूरो पा ४, पांचमी हमाहमा *
ते तुरतरो दंम तुरतही पायनित ५. . ५ पांच प्रकाररा विणीमग. रांक दीन दयामणा वचन कहीने से ते विणीमग. पहि- *
खो यतिथीविणीमग ते जीमणवेलाये थावें १, बीजो कृपणविणीमग ते धन खावें , खरचं नही ५, माहणविणीमग ब्राह्मण ३, श्वानविणीमग ते निदारी कुतरारी परेज
ना टीवें ४, पांचमो समणविणीमग ते साधुना गुपरहित जाणवा ५. ६६ * ' ५ पांच प्रकाररा समस. पहिलो समण साधुरा गुण होण,१, बीजो समण ते शाक्या
दिक योगी, समणतापस ३, समणसन्यासी ४, समणगोशालकमति ५. ६७ १ . ५ पांच पमिलेहरारी वेदका जाणवी. पहिली गोमारे नपरे हाय राखीने पमिलेहण न
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करें १, बीजी गोमांरे नीचे हाथ राखीने परिखेदण न करें २, तीजे गोमारे पावती
दाथ राखीने पहिलेदण न करें ३, चोथे गोमारे -विचे दाथ राखीने पहिलेदण न करें ४, पांचमी एक हाथ गोमारे विचाले ने एक हाथ गोमां उपरे इसकी तरे पदिणा करें ..
६०
५ पांच जातिरा मह एक मह पाणीरे सामुदो वालें १, बीजो मह पाणीरे उपराठो चालें २, तीसरो मह पाणीरे पावती चालें ३, चोथो मत मध्य विचाले चालें ४, पांचमो मह सर्व पाणीमें चालें ए.
५ ण दृष्टांते साधु पांच प्रकारे गोचरी करें. पहिली सामुही गोचरी करें १, बीजी था नकी पूठी गोचरी करें २, तीजी बेदमै २ गोचरी करें ३, चोथी मध्य विचालरी गोचरी करें ४, पांचमी अनुक्रमे सघलांदी घरांरी गोचरी करें ए.
go
५ पांच प्रकारण मूर्ख. पहिलो यापही बात करें छाने ध्यापदी इसे ते मूर्ख १, बीजो मार्गमांदी खावतो चालें ते मूर्ख २, तीजो कियो उपगार गिरों नदी ते मूर्ख ३, चोथो गई वस्तु शोच करें ते ४, पांचमो दोय जणा वात करतां तीजो जावे ते ९.७१
·
प
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५ पांच गुणरा धणीने नणवो थावें. विनीत हुवे ते नणे १, उद्यमवंत नणे, निर्मल
बुधिरो धणी नणे ३, उपयोगवंत नरें , आजीविका हुवे तो नणे १. ७२५ ५ पांच प्रकार गुरुने अने नएनेवालाने नेला चाहीजे. थानक सखरो हुवें तिवारे न
नं १, पुस्तक हुवें तो नणे २, अवसर देखीने नणे नणावें ३, गुरु चेलामांही राग हुवें तो लणे नणावें ४, साहाध हुवे तो नणे नणावें ५, ए पांच बोल. हुवें तिवारे १
नणणो थावें. ५ पांच प्रकारे स्त्री पुरुष विना सेव्याही गर्न घरें. पहिले लुमीतरे वस्त्र श्राघो करीने
वीर्यसु खरकी धरती जपरां बसें पुरुष बेगे हुवे तथा घरती आसन वस्त्र नपरे तीन पोहरतांश बसें नही बने बेसें तो गर्जनी उत्पत्ति स्त्री बेठी हुवे जठे पुरुष एक घमी तांश बसें नही अने बेसें तो शीलनु दोष लागें १, बीजे वीर्य खरमीया वस्त्र पहिरे है तो विना सेव्यांही गर्न घरे २, तीजे बापरे पासे वीर्य पुद्गल में तीके निज हाथसें घाले तो गर्न घरे ३, चोथे घनेरी स्त्री पासे योनीमें वीर्य पुद्गल घलावें तो गर्न घरें * ४, पांचमे पाणीमें वीर्य पुद्गल हुवे तिण पाणीK पखाल करें तो गर्न घरे ५. ७५
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K*****93+C9K**+€€9***699
५ पांच प्रकारे स्त्री पुरुषने सेवतां गर्भ न घरें. पहिले वय बोटी वें वरस १२ तथा १३ में बें तो नामिनी गर्न न घेरे १, बीजे वय प्रतिक्रांत गई ५५ वरस उपरे यान्यां
उ
तो गर्न न घरें २, तीजे जन्म वांऊणी दें तो गर्भ न घरें ३, चोथे रोगणी दें ते गर्न न घरें ४, पांचमे मन वगर सेवतां गर्न न घरें ९. ५ पांच कारणे स्त्री पुरुषनुं सेवताथकी गर्ज नही घरें. कदेही ऋतु खावें नही तो गर्न न धेरें १, बीजे कदेदी ऋतु समयरी प्तधाइ जावें नही तो गर्भ नदी घरें २, तीजे योनी वायरा करी जरी दें ते जणी गर्न न घरे ३, चोथे योनी विपस गइ में ते णी गर्भ न धेरै पांचमे पुरुषरे अंगसुं जोग जोगवतां वीर्य बाहिर नखावें ते जणी गर्न न घरें ए.
७६
९ पांच प्रकारे स्त्री पुरुष सेवना करती थकी पिण गर्ज नही घेरें, पहिले सदा पुरुष सेवे पण दर्षवान की वेश्यानी परे १, बीजे अगनि जोरावर में तिणसें योनी में वीर्यना पुल गया के विद्वंस जाय ते जणी गर्ज नही धेरे ते श्रीदेवीरी परे २, तीजे घ पी चिनी देह. बें ते जणी गर्न नदी घरें २, चोथे देवता तथा मनुष्यकुरषकरीने
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कूख बांध मेहली में ते नणी गर्न नही घरे ४, पांचमे पुत्र पुत्री होयवारो उदय
नाव नही तिका गर्न नही घरे ५. . __ ५ निरावलिकारा पांच वर्ग. पहिलो निरयावलिका १, बीजो कप्पिया १, तीजो कप्पव
मंसिया , चोयो पुष्पचूलिया ४, पांचमो वह्निदशा ५..
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• SC/¥3 +€€>9• •€€+36° *€**9389***£63***869*•
7 t
॥ अथ बढो बोल लिख्यते ॥
६ षटव्य. पहिलो, धर्मास्तिकाय १, बीजो अधर्मास्तिकाय २, तीजो खाकाशास्तिकाय ३, चोथो, काल ४, जीवास्तिकाय ए, पुद्गलास्तिकाय ६.
3
ब प्रकार अवधिग्यान. पहिले जिको व्यवधिग्यान जिके गाम नगरमें ऊपजें जिश्ज देखें पिण उण गामेसुं निकलीयां नदी देखें फेर उपहीज गाम यावें तिवारे देखे १, बीजे जिवे अवधिग्यान ऊपजे तिहां देखे छाने जिहां जावे तिदां पिण देखे २, तीजो व्यवधिग्यान ऊपजतो घांगुलीने असंख्यातमे नाग ऊपजे तिवारे पने देखतां २ संख्याता द्वीप समुद्र देखे ३, चोथो दीणो पके कांखो देखे पहिली संख्याता द्वीप समुद्ध देखे पुढे दीणो २ परुतां १ यांगुलीने असंख्यातमे ना देखे ४, पांच प्राखो लोक देखे पळे पाटो पमे पढे सर्व छापदीग होय जावे बो अवधिग्यान ऊपजीयां पळे पाटगे पमे नही लोक तो आखो देखे टाने लो कमां एक व्याकाशनो प्रदेश देखे तो पिए पालो न पमे लोकमांदी अवधिग्यानसुं
६
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असंख्याता श्राकाश प्रदेश दीग तिण प्रमाणे अलोकमाही असंख्यात गुणा थ
लोक थाकाशना खंभवा देखे तिको परम अवधिग्यान कहीजे तिणसे पीने केवल . : ग्यान ऊपजे परं पागे पमे नही ६. ६ अजयणासे पमिलेहणा करतां दिशिना जीव हणीजे. पूर्वथी १, दक्षिणथी १,
पश्चिमथी ३, उत्तरथी ४, जंची दिशिथी ५, नीचदिशिंथी ६. . ६ प्रकारे जयणासु पमिलेदणा करतां बकाय जीवनी आराधना करे. एहीज पूर्वादि
दिशि जाणवी. ६ प्रकारे साधुजी थाहार खेवे. पहिले कुधा वदनीने कारणे थाहार लेवे १, बीजे
वेयावच्चने कारणे थाहार लेवे , तीजे या सोफवारे वासते आहार लेवे ३, चाये | संयम निखाहने अर्थ थाहार लेवे ४, पांचमे पोतारा प्राण मुलता हुवे तो थाहार *
लेवे ५, बढे पागली रात्रीरी धर्मजागरणा नही हुवे तिके कारणे थाहार लेवे ६. ५ ६ कारणे थाहार गेमे. पहिले रोग भावीने ऊपनो हुवे तो याहार गमे १, बीजे
उपसर्ग ऊपने थाहार गमे २, तीजे ब्रह्मचर्यथी परिणाम मीगता जाणीने आहार
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गेमे ३, चोथे प्राणी जीवरी दया वास्ते श्राहार गेमे, पांचमे, तपस्यारे वास्तथा
हार गेमे ५, जावजीव अनशण करे ते नणी थाहार गेमे ६. . ६ काय. पृथिवीकाय १, अप्पकाय , तेऊकाय ३, वाऊकाय ४, वनस्पतिक्राय ५,
त्रसकाय ६. ६ न पृथिवीरा नाम. सन्ना १, सुधा, वायुया ३, मणशीला ४, शर्करा ५, खरपुढवी. ६ उपर्याय. थाहारपर्याप्ति १, शरीरपर्याप्ति २, इंडियपर्याप्ति ३, श्वासोश्वासपर्याप्ति ४,
नाषापर्याप्ति , मनपर्याप्ति ६.. ६ ब बेश्या. कृष्णलेश्या १, नीललेश्या २, कापोतलेश्या ३, तेजोलेश्या ४, पनवेश्या
५, शुक्रबेश्या ६. ६ संघण. वज्रऋषजनाराचसंघयण १, ऋषननाराचसंघयणं १, नाराचसंघयण ३,थ
नाराचसंघयण-४, कीखिकासंघयण ए, सेवासंघयणं ६. ६ जनावरा नाम. जदयनाव १, उपशमन्नाव २, दायक ३, क्षयोपशमं ४, प्रणामिक
५, सनिपातिक ६,
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६ जीव चोवीसांदमकां च प्रकारे श्रानुखो कर्म बांधे. पहिलो जातिनाम १, बीजो गति
नाम २, तीजो स्थितिनाम ३, चोथो अनुनागनाम ,पाचमो लंगाहणानाम ए, ब
को प्रदेशनाम ६. ६ न बोल साधुने अहेतकारी हुवें मुक्तिनो घात करें. पहिलो प्रवृज्यानो मद करें ,
बीजो सूत्रनो मद करें २, तपस्यारो मद करें ३, शिष्य शाखा पुस्तकरे लानरो मद . करें , घणी परषदा पूजारो मद करें ५, श्रादरसन्मान सत्काररो मद करें ६. १४ ६ उ प्रकारना मनुष्य. कर्मचूमि १, थकर्मचूमि १, उपनयंतरहीप, एहीज तीन संम हिम, एहीज तीन गर्नज ६.
... १५ ६ ब प्रकाररा जंबुछीपमे खेत्र. हेमवय १, एरण्यवय २, हरिखास ३, रम्यगवास ४, देव
कुरु ५, उत्तरकुरु ६. ६ ब खेत्रामें मनुष्य ऊपजे. जंबुद्धीप १, पूर्वधातकी २, पश्चिमघातको ३, पूर्वपुष्करा ____४, पश्चिम पुष्करा ५, आंतरहिप ६. ६ . राजाये मलिनाथजी पासे दीदा ग्रही. प्रतिवुघराजा शागदेशनो १, रूपीराजा
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थए
कुणालदशनो २, चंडगयराजा अंगदेशनो ३, संखराजा काशीदेशरो ४, अदीनशश्रुराजा कुंजरदेशनो ५, जितशत्रुराजा पंचालदेशनो ६..
१० ६ मत. प्रथम जैनमें देव अरिहंत निय १, बौधमतमें देवबुध गुरु पावमी १, शि.
वमतमें देवरुप गुरुयोगी ३, देवमतमें देवधर्मगुरुवैरागी, न्यायमतमें देवजगत्कर्ता
गुरु सन्यासी, मीमांसकमतमे देव बलख दरखेस गुरु ६.. ६ रिषिवंत मनुष्य. तीर्थकर १, केवली २, चक्रवर्ति ३, वासुदेव ५, बलदेव ५, ना
विक यात्माना घणी साधु अतिशयवंत ६. ६ बोल करवानी शक्ति नही. जीवनो अजीव करणारी सगति नही १, यजीवरो
जीव करणरी सगति नही १, परमाणुन पुद्गल बेदी नेदी शके नही ३, एकण समयमां दोय नाषा बोल शके नही ५, थापरा कीघा कर्म थापही जोगवे पर चीसरो
वदाय शके नही ५, लोकरी चीज ते अलोकमांही जाय शंके नही ६. १ ६ उ बोल पामवां उर्खन. मनुष्यपणो पामवो दोहिलो १, थार्यकुल पामत्रो दोहितो
१,पंचेंडिपपणे पामवो दोहिलो ३, सिहांत सुणवो दोहिलो ४, सो थावणी
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दोहिली र, तपस्या संजम उपरे बल वीर्य फोखणो दोहिलो ६.. ६ विकाणे क्रिया लागे. मिथ्यात्वीने चोवीस क्रिया लागें विहींटेली १, समदृष्टि-*
में तेवीस क्रिया लागे २ क्रियाटली मिथ्यात्वरी शरियावदी १, श्रावकने बावीस कि- * या लागें तीनटली दोय तो पूर्वलीहीज तीजी अविरतेरी ३, प्रमादवंत साधुने २१ ।। क्रिया लागें । टली तीन तो जवेहीज चोयी प्राणातीपातकी टली ४ अप्रमादवंत साधुने क्रिया लागें बीजी सर्वहीटली एक मायावत्तिया बीजी संपराश्या ५, 'वीत
राग संयमवंतने १ क्रिया लागें बीजी सर्वटली एक रियावहिया लागे ६. २३ .६ ब समकितरा धागार. राजारे कहिणसुं असंयतीने माने तो समकितने दोषण लागे
नही १, सङनादिकरे कदणसुं माने २, हठ करके मना तो मानें ३, देवता मनावे तो मानें ४, मातापितारे कहणसुं माने ५,काल र्निद पमीयोहुवें वृत्ति आजीविका निमित्ते माने ६.
. २५ “६ उ समकितरी जतना. पहिले अन्य तीर्थरा गुणग्राम न करें १, बीजे अन्य तीर्थने
वांदे पुजें नही १, तीजे अन्य तीर्थशं विना बोलाये बोलें नही ३, चोथे वारंवार
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लापसंलाप करें नदी ४, पांचमे अन्यतीर्थने धर्म निमित्ते यन्न पाणी न देवें ५, तीर्थ धर्मनी बुद्धिशुं वस्त्र पात्र न देवें ६.
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६ ब. समकितरी नावना. पहिलो धर्मनो कारण समकित १, बीजो धर्मनो उपार्जवो ते समकित २, तीसरो धर्मना दूधरो जाजन ते समकित ३, चोथे धर्मनगरनो दरवाजो, समकित ४, धर्मरूप मंदिररो ध्याधार ते समकित ९, बढ़ें देशविरती सर्वविरती रूप विरतीनो व्यागर ते समकित ६.
६ ब समकितरी स्थापना. जीवादिक नव पदार्थ चिंतवें १, कर्मश्री जीवरी उत्पत्ति ने विनाश २, शुभ अशुभकर्मनो कर्त्ता ३, व्यापना कीघा कर्म ते यापही नोक्ता ४, विना जोगवीया नही बटे ए, कर्मथी मुकाय ने मोद जावें ६.
श
६ ब कषाय. सकषायी १, कोदकषायी २, मानकषायी ३, मायाकषायी ४, लोनकषायी कषायी ६.
श्
६ ब. संस्थान छाजीवरा. परिमंगल १, वट्ट २, त्रस ३, चोरस ४, ध्यायतन ए, ध्यनितंत्र ६.
३०
९
¥€€93••£33++*€€3**+66*97********
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६ उपक्रम. नामजपक्रम १, स्थापनाउपक्रम २, अन्यउपक्रम ३, खेत्रउपक्रम ४, __कालजपक्रम , नाव उपक्रम ६. ६ उथल्पाबहुल. सर्वशुं थोमा जीव १, पुद्गल अनंतगुणा २, काल अनंतगुणो ३, |
सर्व उव्य विषे साहिया ४, पाठकमरा पर्यावा अनंतगुणा ५, केवलगुणरा पर्यवा |
अनंतगुणा ६. ६ उ प्रकाररा श्ण संसारमें कुछ जीव. तेन १, वायु २, बेरेंसी ३, तेरिंधी , चोरिं
डी ५, तिर्यंचपंक्षी ६. ६ उ ऋतु. पावसऋतु थासाम श्रावण १, वर्षाऋतु नाव थासोजरो १, शरदऋतु
कार्तिक मृगसररो ३, हेमंतऋतु पोष ने माघरो ४, वसंतऋतु फागुण चैत्ररो ५, ग्री
मऋतु वैशाख जेठरो ६. ६ अवग्रह मतिरा बन्नेद. खिप्पसमोग्गहिए ते शीघ जतावलो अहें १, बहु समोग्गहिए ते घणा सूत्रनो ग्रहण करें १, बहुविहिग्गहिए ते घणे नदे संबछ ग्रहें ३, धु. वोग्गहिए ते निश्चलपणे ग्रहें , अणिस्सियोग्गहेते अनिश्रायमतिसुं ग्रहें ५, थ.
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संदिरोग्गहिए ते संदेहरी रीत विगर ग्रहण करें ६. ६ महीज विचारवाना सचेतनाना एहीजनेद जाणवा. ६ एहीज निश्चय करवाना बनेद जाणवा. ६ धारणाना बनेद ते कहें में. खिप्पसमोग्गहिए शीघपणे धारें १, बहविवे करीने घा
रे १, पुराणी वस्तुने घारे ३, सुधर वस्तुने धारे ४, थनिश्रायसुधारें ए, संदेहरहितपणेसु घारे ६.
३० ६ उपखिमंथ ते विपरीत फल पामें. कुचेष्टा कुतुहल करे ते संयमरो पखिमय १, श्वलिक कुछ कहें ते संयमनो पलिमथ ,थाघो पागे दिष्टि देखें तेासुमतिरोपखिमंथ ३, तणतणाट गोचरीने विषे करें तो एषणासुमतिनो पलिमंथ, श्वारो निरोध न करें तो निझेनीपणानो पलिमथ ५, तप करीने नियाणो करें तो मोखनो पखिमंथ ६.
ए ६ प्रकारे करणवाखाने कहणवाखाने सरिखो प्रायबित थावें. प्राणातिपात सेवें नही
थने सेवणवालो कहें तेहने १, मृषावाद बोलें नही थने बोखवावाखो कहें तेहनें ।
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चंदत्तादान लेवें नही थने लेवंणहार कहें तेहने ३, मैथुन सेवें नही अंने सवेणहार कहें तेंहने ४, दास नही थने दास सरीखा वचन कहें तेहने २, नपुंसक नदी ने नपुंसक सरीखा वचन कहें तेहने ६.
४० ६ ब प्रकारे साधु कुठ नहीं बोलें. शून न बोलें १, किणकाहि गुण न करें १, किंणही खिष्टता न करें ३, कठोर वचन न कहें ४, गृहस्थी सरिखा वचन न कहें ५, कलंक न देखें ६..
४१ ६ प्रकारे समकित गमें आने मिथ्यात्व आदर. अरिहंतांरा अवगुणवाद बोलें तिवारे
समकितने गंमीने मिथ्यात पामें १, अरिहंत प्ररूपीया धर्मना अवगुणवाद बोलें तो समकित गंमीने मिथ्यातं पामें , यांचार्य उपाध्यायना अवगुणवाद बोलें तिवारे समकितं गंमीने मिथ्यात पामें ३, चतुर्विध संघना अंवगुणंवाद बोलें ते समंकित गंमीने मिथ्यात पामें ४, जदरे वशंथी समकित गंमीने मिथ्यात पामें ५, मोहरेव
शं उन्मादपणी पामें समकितं गमीने मिथ्यात पामें ६. ६ प्रकारे वाद करें. धागलानुं पागे वोलवाने वाद करें १, थागवारी वात सुणीने
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पी. वाद करें १, तीजे बागलाने मनगमता वचन बोलीने वाद करें ३, श्रागंलाने वैरीपणे करीने वाद करावें , आगलारे मांही पेप्तीने वाद करें ५, बागलेसु नेलो थश्ने चरचा करें ६.
प्रकार प्रमाद. मंदप्रमाद १, कषायप्रमाद १, निंदाप्रमाद ३, विकथाप्रमाद ४,जूवोप्रमाद , अजयणा प्रमादे करीने पमिलेहणा करें अने जयणासुं न करें ते प्रेमांद पमिलेहणा प्रमाद जाणवो ६.
४४ ६ उ प्रकारे पमिलेहण करतां जीव जन्म मरण वधारे. १ जतावली घणी करें १, अण
पमिखेह्या नपरेबेसें २,पमिलेह्या थपपमिलेह्यानेगा करें३, वारंवार फाटकने जोवें नही ४, पमिलेदणा करोने वस्त्र चीवर विषेर राखें ५, वेदिकारहित पमिलेहणा करें. ४
प्रकारे पमिलेदणा करतो जीव जन्म मरण टाखें घटावें. पमिलेहणा करतो शरीर वस्त्र नमावें नही १, पमिलेह्या अणपमिलेह्या नेला न करें १, उंची गतसें लगावें नही ३, नीचो धरतीसुलगावे नही तिरगे नीतसुं वस्त्र लगावें नही मर्यादासहित पमिलेदणा करें ३, प्रकारनी कुपमिलेरणा कही ते न करें ४, नव अखोमा नव
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पखोमा करें ५, प्राणी जीवने देखें दयारे निमित्ते पमिलेहणा करें ६. ६ उ प्रकारे इंखोनी रति घरति. श्रोत्रंडी सुणवाने अर्थ रागष करें १, चक्कुशी दे
खवाने विषे राग द्वेष करें ५, नाणेघी नाक वासनारे अर्थे राग क्षे करें ३, रसेंडी रस नोगववारे अर्थ राग शेष करें ४, स्पर्शजी स्पर्शने अर्थ राग शेष करें २, नोपीते मनने अर्थ राग ष करें ६.
y ६ प्रथम नरकगतिमेसें पाकर मनुष्य हुधा होप तिसके बहुलता लक्षण सो लि.*
कालो कुरूप १, क्वेशी होय १, रोगी होय ३, अति नयवान होय , अंगमेंसें .
गैध भावें ५, क्रोधी होय ६. ६ तिर्यंचगतिसे थाकर मनुष्य हुया होय तितके लक्षण. लोनी होय १,कपटी होय
२, जूठा होय.३, अति नूखा होय ४, मूर्ख होय २, मूर्खसें प्रीति होय ६. ए * ६ मनुष्यगतिमेसें श्राकर मनुष्य हुश्रा होय तिसके लक्षण. सरल होय १, सुनागी,
होय ,मीगबोलनेवाला होय ३,दाता होय, चतुर होय ५, चतुरसें प्रीति होय ६. ५० ६ देवगतिसें धाकर मनुष्य हुधा होय तिसके लक्षण. सत्यवादी दृढधर्मी होय १, दे.
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वगुरुका नक्त होय ५, धनवान होय ३, रूपवान होय ४, पंमित हाय ५, पंमितसें |
प्रीति होप ६. ६ कायारी थाहिंसारा कारण. जीतव्य १, पर संसार १, मान ३, पूजा ४, जन्म
मरण मुकाणु ५, सुःखमीटण अर्थ ६. ६ बोल नटणेरा नकारो करणैरा लक्षण. यांख्या मीच खे १, बाघो देखें १, उंचो
देखे वा नीची इष्टि घालें ३, जमोन कुतरणे लग जाय ४, सरेशु वात करण खग जाय , मुन पकाखें ६ काल विलंब करें ॥ गाथा ॥ निलमे अघालोयणं उंची
परंमुहवयणं । मोनकालविलंबो नाकारे विहो होश्॥१॥ ६ थारा श्रवसर्पिणीकालका. सुखमासुखम १, सुखमा १, सुखमाखमा ३, उपमा
सुखम ४, जखम , मुखमाखम ६. ६ उ बारा उत्सर्पिणीकालरा. अखमाउखम १, सुखम २, उखमासुखम ३, सुखमाउखम , सुखम ए, सुखमासुखम ६.
५५ ६ पापरा बोख. ए६ नव्य जीव हणे जितरो एक सरोवर सोष्यमें पाप १, १०१स
५४
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रोवर सोध्यारो पाप इतरो. एक दावानल में पाप ५, १०० दावानखरो पाप स्तरो एक कुवाणिज्यमें पापं. (साजी साबु लोह गुली) ३, १४४: कुवाणिज्य कियारो स्तरों |
एक कूझो बाल दियारो पाप ४, १५१ कूमा बालदियांरो स्तरो एक पारकी स्त्री से , व्यारो पाप , एएएए पारकी स्त्री नोगवे इतरो एक रात्रिलोजनमें पाप ६. ५६ ६ उ कारणसें बकायारी हिंसा करें. जिवणके अर्थे १, प्रशंसा थर्थे २. मान अर्थ ३, *
पूजा श्रर्थ ४, जन्म तथा मरणं बुझाने के अर्थ ५, अःख मिटाने के थर्थे ६. ५७ | ६ लेश्याका प्रणाम ब. कृष्णलेश्या हिंसाकरणकी श्वा होय १, नीललेश्यासें चोरीकी * . हा होय. १, कापोतलेश्यासें मैथुनकी श्छा होय ३, तेजुलेश्यासें तपस्या करणेकी
खां होय ; पद्मलेश्यासें दान देणेकी श्वा होय ५, शुकलेश्यासें मोदकी ६. एं
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॥ श्रथ सातमो बोल लिख्यते ।
3 सात जय. श्लोक नय. ते जातिसु जातिने नय ऊपजें. मनुष्यसुं मनुष्य मरें, देवतासु देवता में, तीर्थचथी तिर्यंच मेंरें, नारकीथी नारकी में, श्राप थापरी जाति: शुं में ते इहलोकन्नय १, परखोकन्य. परजातिसुं जय जपले. देवांसुं मनुष्यने नय उपजें अथवा तिर्यचसुं मनुष्यंने जय जपजें अथवा परलोकना मुख सुणीने तय
ऊपजे ते परलोकनय २, आदान जय ते परिग्रहथी जय ऊपजें ते धन राखवा नि. मित्ते चोरादिकनो नय ऊपजे ते आदानन्जय ३, अकस्मात् जय. अजाणं गोली
तोपनो शब्द सुणीन जय ऊपजें ते अकस्मात् नय ४, बाजीविकानय ए, मरणन __ य ते बाज़खानो जय '६, अपजसनय ते अजस अकीतिरो.नय ७. ७ सात प्रकारे नारकी. जनुष्यजव गमीने नीचो जाय ते नारकी तिणरा सात नाम.
धम्मा १, वंसा १, शैक्षा ३, रिठा, अंजणा ए, मघा ६, मघवई .... || ७ नारकीना सात गोत्र. रत्नपना १, सकरपना १, वायुमंना ३, पङ्कमन्ना, धुमप्रना
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४
५, तमनना ६, तमतमप्रना ७. ७ सात महावीरजीना कल्याणक. चवण ते दशमा देवलोकसं चन्या १, संहरण ते दे. __वानंदानी कूखसुं हरिणगमेषी देवें संहरण कीधी १, ऊपजवो ते त्रिसलानी कूखें ह-*
रिणगमेषीये संक्रमाव्या ३, जन्म थयो ४, दिदाकल्याणक ५, केवलज्ञानकल्याणक
६, निर्वाणकल्याणक ७. ७ सात समुद्धात. वेदनी १, कषाय १, मरणांत ३, वैक्रिय ४, तेजस ५, श्राहारिक ६, *
केवली. ७ सात विनय. ज्ञानविनय १, दर्शनविनय २, चारित्रविनय ३, मनविनय ४, वचनविः।
नय ५, कायविनय ६, लोकोपचार विनय ७. • ७ सात नय जाणणहारना मनरा विचाररूप नय. पहिलो नैगमनय हजारां गमे अर्थ * ___ एक पदार्थरा माने ते किसी तरें, श्रात्मा.ते पिण सामायक, समकित ते पिण सामा
यक, सुमति ते पिण सामायक, श्त्यादिक अनेक थर्थे करने मानें सामायकने; ते * नैगमनय १, बीजो ऋजुसूत्रनय २, तीजो संग्रहनय ३, चोथो व्यवहारनय ४, पांचमो *
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शब्दनय ५, बढो समनिरूढनय ६, सातमो एवंनूतनय 9.
७ सात याचार्य निन्दा महावीरजीना जाणवा. पहिलो तो जमाखी ते घणा समय खार्गे तिवारे कार्य निपजे पिण कार्य मांड्यो करखो ते कर्यो नदी कढ़ीजें इसी मति हु ते पहिलो निन्दा १, बीजो तिष्यगुप्त सज व प्रदेश बे हलो एकप्रदेशी जीव मानें पण असंख्यातप्रदेशी जीव नदी मानें ते बीजो निन्दव २, तोजो व्यापारमति ते तीन राशि मानें जीवराशि १, छाजीवराशि २, नोजीव नोटप्रजीवराशि ३ ते तोजो निन्दव ३, यासमंत मनमांहि संभ्रम रहें ते कुण जाणें कोइ साधु कोइ देवता ते चोथो निन्दव ४, पांचमो गांगव दोय क्रिया मानें एक समय दोय क्रिया करें इसी मती ते पांचमो निन्दा ए, बढो गुढिल ते जीव कर्मीरो बंध माने बंध नही मानें पण पारमीया कर्मरो बंघ मानें ते बढो निन्दा ६, सातमो निन्दव माहिल खि २ प्रतें जीव नवा २ मानें सायत १ मांदी नवो जीव मानें ए सातमो 9. 9 सातेदी कुशिष्य. जमाली १, मगुनामा २, छावंती ३, त्रिराशी ४, गांगिल ५, गुहील ६, माहिल 9.
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७ सात प्रकारे सुख. पहिलो सुख जिनधर्मधारी १, बीजे सुख जातिनो नारी ३, तीजे - सुख रोग नही मीलें ३, चोथे सुख धर्म मीलें ४, पांचमे सुखवासो शुज गम ५,
सुख निर्मल परिणाम ६, सर्वथकी रहें सुख पुण्य वमो नहीं. व्यापे सुःख ७. १० ७ सात प्रकारे बद्मस्थ जाणीजे. पहिले प्राणातिपात लागे १, बीजे मृषावाद लागू ५,
तीजे अदत्तादान लागें ३, चोथे शब्द रूप गंध रस स्पर्श घाखादें ४, पांचमें पूजा सत्कार वांजे ५, ब असावध प्ररूपें परं सावध लागें ६, सातमे जिसो प्ररूपें तिसो
पालें नही जादावायी तादा कारिया न नव७. . . . . . १९ * ७ सात प्रकारे साधुजीनी नाषा. थोमो बोलें १, मीगे मधुरो बोलें २, विचारीने बोलें ____३, कार्य पमीयों बोलें ४, निरवद्य वाणी बोलें ५, मायारहित बोलें ६, सूत्र सिघांतरे
अनुसारे बोलें . . ७ सात प्रकार सूत्र सुणवारा. अणबोल्यो सुणे १, हुंकारो देवे २, खें ३, विशेष
वांने ४, पूजें ए, प्रमाण करें ६, निश्चल करीने धारे ... ७ सर्व जीव सात प्रकारे. एकेंडी १, बेरिकी २, तेरिंडी ३, चौरिखी ४, पंचेंजी ५, स..
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दिया ६, थणि दिया ७. ७ दंम सात प्रकारना. हकार १, मकार १, धिकार ३, वचने करी नि. ५, रोकी रा
खें, काराग्रहमांही राखें ६, कान नाक कापे ७. सात प्रकारे धनने नय. राजानो नय १, चोरनो जय १, कुटुंबरो जय ३, अमिनो नय ४, पाणीरो जय ५, नासण नागमरो जय ६, विनाशरो जय ७.
१६ सात पदवी. याचार्यरी पदवी १, नपाध्यायरी पदवी, थिवीररी पदवी ३, धर्मथकी मिगताने थिर करें ते थिवर तेहना तीन मकार जाणना ३, प्रवीरी पदवी ते धर्मने विष प्रवीव सर्व संघामामांही वमो जाणवो ४, गणीरीपदवी ते संघामानो नायक
५, गणधरपदवी ते बारा अंग रचें ६, गणावलेद ७. . ७ सांत प्रकाररी गोचरी. दीरगोचरी अचित्त दोषरहित निर्मल धन पाणी सूक्तो लेवें
१, अमृतगोचरी ते विना जाची विना मागीय अचित्त वस्तु यावें १, मधुकरगोचरीजमरानी परे श्रापरी श्रात्माने तृप्ति करें पराये जीवने पीमा जपजावें नही ३, रु. जगोचरी बीदावीने खेवें, अजगरगोचरी ते एक घर नपर पामें ए गलगोचरी ते
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थोमो २ ३ ६, गहागोचरी एकगेहि लेवें परं पूरलो विचार नही देखें ७. १० ७ सात कथा. स्त्रोकथा १, नत्तकथा २, देशकथा ३, राजकथा ४, ग्यानन्नेदरी कथा
५, समंकितरी कथा ६, चारित्र नेदरी कथा . ७ साते प्रकारे सोपक्रमी बाजखो घ2. घणो आनखो बांध्यो में पिण घंट जांचें. धास- |
को खायने मरें १, तरवार कटारी फांसीसुं मरें १, मंत्रने जागे आगलो. मुंव गवे तथा मांकिनी साकिनीरे मंत्रथकी मरें ३, आहाररे अजीर्णसु मरें ४, शूलादिक वेदना ऊपजें मरें ५, शर्प विल इत्यादिक स्पर्श लागें मेरे ६, आपणां श्वासोश्वास रो
कीने मरें. ७ सात उख. पहिलो जुःख घर आंगण काम १, बीजे पुःख पामोसी. चाम १, तीने
सुःख घर यांगण कूषो ३, चोथे शुःख बेटो जूवो ५, पांचमे मुःख माथे रिण घणों ५, बढो मुख कुमारी धिय बेटीतणो ६, सातमो गुःख पंमिततणो नही संग, इण पर वरते संसारनो रंग ... ७ सात कुव्यसन. पहिलो जूगे १, बीजो चोरी १, तीजो मांस ३, चोथी सुरा ४, पांच
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मो वेश्यारो ५, बो अहेमारी ६, सातमो पारकी सोरो . सात प्रकारे उघामो सुखम काल जाणीजें. चाहीजतो नही वरसें १, धणचाहीजतो वरसें १, असाधुरी महिमा पूजा हुवे ३, साधुरी महिमा पूजा न हुवें ४, मोटां जिकाणे मिथ्यात्व घणो बल घणो तथा माचीतने गुरु गुरुणीने गेरु तथा शिष्य शिष्यणी मानें नही ५, ब मनरो फुःख मनरी चिंता फिकर मिटे नही ६, ववनरो . ख असुहामणा दुःखकारी वचन घणा सुणोजें , इसे लदणे पांचमो उखम समय जाणोजें .
१३ ७ सात प्रकारे नघामो सुखपकाल जाणवो. चाहीजनो वरसें १, अाचाहीजतो नही
वसं १, साधु पूजीजें ३, असाधु नही पूजीजें ४, मोटे ठिकाणे समकित पात्र मावीतांसु तथा गुरु गुरुणीसुं गेलं तथा शिष्य शिष्यणी उपरावा नहो चाखें विनय करें
५, मनरो सुख ते मनने विषे घणी सुखशाता देवें ६, सुहामणो वचन बोलें. ४ 3 को समष्टि जीव राग षकररहित दया धर्म करके सहित एक नपवास करके __ श्रष्ट पोदरको पोसो करें तीणरे का फल होवें? ७ सोअम्ब ७७ कराम ७७ लाख
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७ हजार सो ७ पल्याम. शाजेरो नारकीनो श्राजखो तु] देवतानो सुन श्रानखो बांधे १, पोसेसहित पोरसी करें तो ३६ करोम १ लाख हजार पल्योपम माजेरो नारकीनो बाजखो तुटे १, को बाधा महुरतको संवर करें | तो ४६ करोम शए लाख ६१ हजार श्ए सो पल्यापम शाजेरो नरकनो वानखो। तुटें ३, को एक सामाश्क करें ए२ करोम एए लाख २५ हजार श्ए सो २५ प-|| ब्योपम माजेरो नरकनो बालखो तुटे ४, कोश् घमी २ ना पञ्चलाण करें तो १ क-|| रोम ५३ हजार २४०० पल्योपम शाजरो नरकनो याजखो तुटे ५, कोश् एक नवकारमंत्रको ध्यान करें तो ए लाख ६३ हजार १६३ पल्योपम शाजेरो नारकीनो आउखो तुटे ६, को एक थानपूर्वी गुणे तो जघन्य ६० सागरोपम शाजेरो नल-9
हो पांचसो सागरोपम शाजेरो नारकीनो बाजखो तोमे देवतानो शुन्न थालखो बांधे || ७ प्रसस्तकाय विनयका सात नेद. जयणांसुं जनो रहें १, जेयणासुं चालें १, जेयणा ||
सुं बसें ३, जेयणासुं सोवें ५, जेयांसुं उलंघे ५, जयणांसुं वार २ नखंघे ६, सघतो शरीर जयणासुं प्रवावे .
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सर्वार्थसिविमानके चंडवा के १५३ मोतीयांके सात घेरा. तिण मध्ये एक विचमें मोती ६५ मणको १, उसकै चाफेर ४ मोती ३२३२ मणका १, नसके चोफेर मोती १६१६ मणका ३, जसके चोफेर १६ मोती मणका ४, जसके चोफेर ३२ मोती ४४ मणका ए, उसके चोफेर ६४ मोती श१ मणका ६, उसके चोफेर १२
मोतीश मणका ७, एवं सर्व मिली १५३ मोती ३२ मणका थया . १६ ७ सात खर. खर्ज १, ऋषन १, गंधार ३, मशिम ४, पंचम ५, पैश्वत ६, निषाद. २७ ७ सात बनव्य. पालकबाह्मण ५०० साधु घाणीमें पिब्या ते १, पालक कृष्णजी पुत्र
घोमे निमित्त श्रीनेमिनाथजीके दर्शाकुं गया ते १, कालकसूरकसाश्३, कपिलादा. सी४, संगमदेवता श्रीमहावीरजीकुं नपसर्ग दीया ते ५, कंगालमर्दनाचार्य ६ रन
सारनट्ट उदार्शराजानो मारणहार ७. ७ धनमें सातोकासीर. १ पृथ्वी, २ अमि, ३ पाणी, ४ देवता, ५ कुटुंब, ६ चोर, ७
राजा.
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2013
॥अथ थाउमो बोल लिख्यते ॥ यावं मद, जातिमंद १, कुलमद २, बरामद ३, रूपमद , तपमद ५, वानमंद ६
सूत्रमदं ७, ईश्वर (उकुराई) मद . ७ श्राप पृथिवी. सात तो नरकपृथिवी, थाउमी ईसीपनारापृथिवी. . 0 श्राप कर्म. ज्ञानावरणी १, दर्शनावरणी २, मोहनीकर्म ३,- वेदनीकर्म ४, नामकर्म *
५, गोत्रकर्म ६, श्रायुकर्म , अंतरायकर्म ७. ७ श्रांठ स्पर्श. जंष्ण, शीतल , बूखो ३, चीकणो ४, खरदरो ५, सुहालो ६, हं..
खंवो, नारी. ॥ श्री ग्यान. मतिग्यान १, श्रुतिग्यान १, अवधिग्यान ३, मनःपर्यवग्यान , केवल न ग्यान ५, मतिथग्यान ६, श्रुतिथग्यान ७, विनंगयग्यान U. . 2: ७ श्रावं थात्मा. अन्यथात्मा १, कषाययात्मा २, जोगात्मा ३, उपयोगात्मा ", :,
ग्यानधात्मा ५, दर्शनधात्मा ६, चारित्रधात्मा ७, वीर्यात्मा ७. .
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पाठ याचार्यनी संपदा. याचारसंपदा १, शरीरसंपदा २, सूत्रसंपदा ३, वयणसंपदा ४, वाचनासंपदा ९, मतिसंपदा ६, संग्रहसंपदा ७, पारिणामिकसंपदा ८. पाठ मंगलीक. श्रीवत्स १, महयुग्म २, दर्पण ३, शृंगार ४, पूर्णकलश ५, साबीयो ६, नंदावर्त्त ७, नासण प.
केवली समुद्रात किसे कारणे करें वेदनी कर्म कर्म तो घणो ने खाखो कर्म थोः मोपण वेदनी ने श्राखा कर्मने बेहुना पुद्गलदल सारीखा करवा जणी समु दात करें शरीरमांदी जीवप्रदेश काढीने लोकमांदी विषे रहें ते केवली समुद्धात करतां समय लागे ते कहें बें. पहिले समय माकार करें ते सातमी नरकरे नीचले लोकाकाशप्रदेशसुं लेश्ने सिद्ध शिला तां एक सारखो दंमरो व्याकार करें १, बीजे समय कमाम करें दोनुं दिसे कपाट करें २, तीजे समय मथाणो करें फेरणाने याकारे चिहुंदी दिसे जीवप्रदेश पुगलकर्म वर्गणारा विपे रहें ३, चोथे समय सर्व लोकांकाश प्रदेश पूरे ४, पांचमे समय लोकाकाश प्रमाण जीव संदरे ९, बढ़ें समय मथाणो संहरे ६, सातमे समय किमाम संदरे 9, ध्याउमे समय दंग संहरे', पहि
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लो समय थाठमो समय उदारिक जोगसुं प्रवत्तै शक्षा मो समय उदारिक मिश्र जोगसुं प्रवः शगए मो समय कार्मण जोगसुं प्रवर्ते पांच समयमांही थाहार वें
थने तीने समय थाहार नही लेवें ते तीन समय कार्मणजोगना जाणवा. . ए 0 श्राउ प्रकारना दर्शन. चकुदर्शन १. थचकुदर्शन २, अवधिदर्शन ३, केवलदर्शन।
मिथ्यातदर्शन ए, समामिथ्यातदर्शन ६, सुप्रदर्शन , समकितदर्शन ७. १० . थाउ बोल सीखामण. दान, दया पालं ते दानेसरी १, धर्मरो श्राचार पाडे ग्यानी* १, पापसें मेरे ते पमित ३, पांच इंडी दमे ते शूरवीर ४, कुखदण गेमें ते चतुर ५, सत्यवचन बोलें ते सिंह ६, परनपगार करें ते धनेसरी, निर्धनसुं नेह करें ते
अखंमित ७. G दयाधर्मने थाउ नपमा. पहिले बीहताने सरणानो थाधार तिम नव्यजीवनें दया
नो थाधार १, बीजे चउपदने खुंटार्नु थाधार तिम नव्यजीवने दयानो थाधार २, || तीजे पंखीने श्राकाशनो श्राधार तिम जव्यजीवने दयानो थाधार ३, चोथे तरसीया ने पाणीनो थाधार तिम भव्यजीवने दयानो थाधार.४, पांचमे खाने खन्नरो था-||
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घार तिम नव्यजीवने दयानो वाधार ए, बळे रोगीने उपधीनो थाघार तिम नव्य जीवने दयानो श्राधार ६, सातमे चूल्याने साथरो थाधार तिम जव्यजीवने दयानो
थाधार थाम्मे मुवताने पाटीयानो अाधार तिम नव्यजीवने दयानो थाधार. १५ ७ या प्रकारी लोकरी स्थिति. याकाश प्रतिष्ठित वायु १, वान प्रतिष्ठित उदही,
नदही प्रतिष्ठित पृथिवी, पृथिवी प्रतिष्ठित त्रस थावर प्राणिनः ४, धजीव जीव प्रतिछित ५, जीव कर्म प्रतिष्ठित ६, अजीव जीव संग्रहीत , जीवकर्म संग्रहीत. १३ ७ बाट प्रकारना जीव. पुढवी काश्या १, बालकाश्या १, तेजकाश्या , वाजकारया ४, वणस्सश्काश्या ५, त्रसकाश्या ६, सकाश्या ७, अकाश्या ७. १४
आठ प्रकारना जीव. मनुष्य १, मनुषिणी २, तिर्यंच ३, तिर्यंचणी ४, देवता ए, देवांगना ६, नेरश्या ७, सिक ७. ७ श्राव बोलरे सेवणहारने पारंचिया प्रायबित यावे. कुलमें नेद पामें १, गणमें जेद
पा १, हिंसा जीवांनी चिंतवें ३, बिड गवेषी ४, ज्योतिष निमित्त नावं ५, दिदि पाकुचिया ६, पमायपाचिया ७, अनमन्न पामिविया ७.
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। श्राठे बोले जीव धर्म नही पामें. घणो इसे तिको धर्म नही पाम १, सीनोखी ___दमें नही तिको धर्म नही पामें २, मर्ममोसो बोलें तिको धर्म नही पामें ३, श्रावक-
रावत पच्चकाण निर्मला पालें नही तिको जीव धर्म नही पामें , साधुरा । व्रत पचकाण निर्मला पालें नही तिको जीव धर्म नही पामें ५, रसरो लालची हुवें तिको जीव धर्म नही पामें ६, क्रोधी हुवे तिको जीव धर्म नही पामें, जूग.बोलो १ हुवें,तिको जीव धर्म नही पामें U.
१७ एकटो साधु तथा साधवी रहें तेहना श्राप अवगुण जापना. पहिले क्रोधी हुवें ते एकलो रहें १, बीजे अहंकारी हुवे ते एकलो रहें., तीजे कपटी हुवे ते एकलो* रहें ३, चोथे लोनी हुवे ते एकलो रहें ४, पांचमे पापमें रक्त हुवे ते एकलो रहें ५, बळे कतुहली हुवे ते एकलो रहें ६, सातमे धूर्त हुवे ते एकलो रहें , आग्में मारे * श्राचारनो धणी हुवे ते एकलो रहें .
- १० ७ आठ गुणारो धणी हुवे तिको साधु एकलो रहें. पहिले संयमने विषे दृढ रहें ते ||
पकलो रहें १, बीजे घणा सूत्ररो जाण हुवे तिको एकलो रहें १, जघन्य तो दश ,
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पूर्व नणीयो हुवें उत्कृष्टा चत्रदे पूर्व नणीयो हुर्वे तिको एकलो रहें तीजे म्यानरों विनय करें तिको रहें ३, चोये च्यार ग्यानरो धणी हुवे तिको एकलो रहें ४, पांचमें बलवंत हुवे तिको एकलो रहें ५, बळें कलेशरहित हुँवं ते तिको एकलो रहें ६, सा
तमें संतोपी हुवे तिको एकलो रहें , पाठमे धैर्यवंत हुवे तिको एकलो रहें U. ए ७ थान ग्यानाचाररा नेद. अवसर देखीने नणे १, विनयसहित नणे १, नणावण: वालाने घणो सन्मान देवें ३, नणावणवालानेगोपवे नहि, नणीया पडे तप वहें ५, सूत्र नणे ६, अर्थ नणे ७, सूत्र तथा दोन्ही विनयसहित नणें . .. १० यात दर्शनाचाररा नेद. जिनवाणी नपरे शङ्का नही थाणे १, अनेरा धर्मरी वांग न करें १, फलपते संदेह नही थाणे ३, अनेरारो मत देखीने मुरमावे नही ४, गुपवंतरा गुण दीपावें ५, धर्मथकी मिगताने थिर करें ६, मर्व जीवने हितकारी हुवें
७, सिद्धांतरी नक्तिकें प्रनावना करें . ७ चारित्र आचारना थानेद. पांच तो सुमति अने तीन गुप्ति, ७ थाव मूक्ष्म ते कहें में. स्नेहसूक्ष्म १, फूलसूक्ष्म २, पाणीसूक्ष्म ३, कीमीना का सूक्षा
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४, फूलणसूक्ष्म ५, बीजसूक्ष्म ६, धूंहरीसूक्ष्म , गलोश प्रमुखना झा सूक्ष्म ७. ७ आठ वनस्पति उपजाववानी खाण में. अग्गबीया १, मूलबीया १, खंघबीया ३, पो.
खीया ५, बीयरुहा ५, संमूछिया ६, तणलया , बस्सकाश्या ७. २४ थाठ त्रसजीव उपजणरी खाण. श्रमया झाथकी उपजे ते पंखी १, कोथलीसुं नपर्जे ते हाथीया प्रमुख २, जराज़या ते जरसुं जपले ते गन प्रमुख ३, रसजा ते रससुं उपजे ते चलित रसना जीव ४, संखेदजा ते परसेवासुं नीपजें जूं मांकुण प्रमुख ५, संमूर्डिमा ते समूर्बिम थापुणथी सरद गरमीमुं उपजें ६, नशिया घरती फोमीने उपजें ते पतंगादिक ७ उववाश्या ते नारकीना जीव कुन्नीमें उपजें देवता शय्याने विष उपजें . था प्रकारे पाप करें ते अर्थदममें जाणवा ते कहें . श्रात्मा यर्थे पाप करें १, न्याति गोतीरे यर्थे पाप करें १, घर हाटने अर्थे पाप करें ३, कुटुंब परिखारने यर्थे पाप करें ४, मंत्रादिक साधवारे अर्थे पाप करें ५, नूतने अर्थे पाप करें ६, जदारे अर्थे पाप करें , नागरी पूजा अर्थ पाप करें .
१६
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७ श्राव अनंता. धनव्यधनंता १, सिध्यनंता १, वनस्पतिरा जीव अनंता ३, नव ||3||
जीव अनंता ४, पमिवार जीव अनंता परिश्रमण संसारमाही करें अने थनादि मि.. थ्यात्वी पिण संसारें नव जीव घणा में ४, कालव्य अनंतो में ए, पुद्गलव्य था
नंता में ६, केवलझानरा पर्यायवा अनंता में , केवलदर्शनना पर्यावा अनंता.२७ ७ याठ धंधा जाणवा. जन्मघ १, जराधध,रात्रियंध ३, दिनयंध ४, क्रोधश्चंघ५, मानधंध ६. मायाधंध, सोनबंध '.
श ७ श्रावगरे विषे उद्यमरो करवो ते नलो में. बागला पापकर्म खपावाने अर्थ उद्यम
करें १, नवा पापकर्म नही उपार्जे एहवो उद्यम करें १, भागलो सूत्र नणीयो तेहने चिताखारो नद्यम करें ३, नवा सूत्र नणाववाने अर्थ उद्यम करें ५, नवा शिष्य साखा करवाने अर्थे नद्यम करें ५, बडे बागला शिष्य साखा जणावाने अर्थ जद्यम करें ६, चतुर्विध संघनो कलह मेटवाने अर्थे उद्यम करें , तप संयमने विषे
वीर्य फोरवाने अर्थ उद्यम करें . ॥*|| G चोरंजीना आरंन कीयां श्राव प्रकाररो पाप लागें. फरसेंजिरा मुश्खनो संयोग मेली
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यो १, फरसेंडीरा सुखनो वियोग मेलीया २, रसेंडीरा सुखरो वियोग पामीयो ३, रसें-|| जीना मुखरो संयोग मेलीयो ६, चकुशीना सुखनो वियोग मेलीयो , चक्कुइंजी ना मुश्खनो संयोग मेलीयो . 0 'आठ बोल जाणवा योग जे. पहिले नही जाणे नही आदरे नही पालें ते लोकि- ||●|
कमिथ्यात १, बीजे जाणे नही श्रादरे नही पाले में तिके जोगी सन्यासी, तीजे. जाणे नही आदरे में परं पालें नही तिको नन्नावधारी ३, चोथे जाणे नही भादरे * में पाले में'तिको धापण उत्कृष्टपणो मार्ने अगीतार्थ पुरुष ४, पाचमे जाणे ||
आदरे नही पालें पिण नही तिके अविरते समकिती ५, न जाणे में आदरे नही ||* पाले बे तिके श्रेणिक प्रमुख ६, सातमे जाणे 'यादरे में पालें नही तिके पास-|| गदिक ७, बाग्मे जाणे में आदरे में पाले तिके नगवंतनी आग्या पाले बे ते साधु | साधवी जाणवा ७. - क्रोध जेसो जहेर नही १, मान जैसो वैरी नही २, माया जैसो जय नही ३, लोन
जैसो सुख नही ४, संतोष जैसो सुख नही ५, पञ्चरकाण जैसो हेतु नही ६, दया,
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जैसो अमृत नही ७, साच जैसो सरणो नही ७. ७ थान बोल. ज्ञानरो उद्यम १, ज्ञानरो चोलणा पचोलणा-२, संवर करी थावता ||
करमाने रोकें ६, तपस्या करी जुना कर्माने खपाकें ४, निरधना नपरी नेह राखे , नया दीक्षितने ज्ञान सीखावें ६, मारगीनाश्में क्वेश पब्यो थको मिटावें ७, घरमा बालारोगी तपसीरी वेयावच करें . बाम कारा. दृष्टांत. ज्ञानावरणीकर्म तेलीकाबलदके पायनो दृष्टांत १, दर्शनावरणीकर्म. राजारा पोलीयारो दृष्टांत १, वेदनीकर्म, सहतलिपटी तरवारकी धाराको दृष्टांत ३, मोहनीकर्म. मत्तवाला-गहलारो दृष्टांत ४, बाऊखाकर्मः खोमामें पगरों दृष्टांत ५, नामकर्म. चीतरारो दृष्टांत ६, गोत्रकर्म कुंनारका नामाको दृष्टांतः , अंतरायकर्मी
राजारा नंमारोको दृष्टांत . || 6 बाठ गहिवा. स्त्री पासे सें तद गहिलो १, वालकने खेखावतो गहिलो, बाल
कसुमित्रा ते.गहिलो ३, नांग दारु पीवे ते गहिलो ४, सिरपाव पहिस्ते गहि लोर, भारिसामांहि मुख जोवतां गहिलो ६, विवाहमांहि बुगार गालियां गावे ते
४'
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गहिली, होलीमाही पुरुष गहिलो.
आठ मित्र. जन्मका माता पिता १, घरमें मित्र धन तथा स्त्री र, देह मित्र अन्न || ३, आत्माका मित्र कर्म ४, रोगिका मित्र उषध ४, संग्राममें मित्र गुजा६, परदेशमें 2 मित्र विद्या , अंतकालको मित्र जीवरो श्री जगवान जिनेश्वरदेवरो धर्म . ३६ * ७ थान बोल जीतणा उर्खन. आठ कर्मामांही मोहनी कर्म जीतणो उर्खन १, पांच
इंडीमांही रसेंबी जीतणी उर्खन्न १, तीन जोगामांही मनको योग जीतणो जुर्खन* ३, पांच व्रतमांही चोथो व्रत जीतणो उर्वन ४, बकायमांही वाऊकायरी दया पालणी जीतणो मुर्खन ५, तरुणावस्थामें सिल पालणो जीतको पुर्खन ६,उती समर्थाश् क्षमा करणी जीतणो शुलन , बती जोगवाई पांच इंजीका खाद गेमणा
खन U. पाठ बोल श्रावकरा. थोमा बोलें १, काम पड्यां बोलें १, मीठा बोलें ३, चतुरा || सुं बोलें, मर्मकारी नाषा न बोलें ५, अहंकाररहित बोलें ६, सूत्रके न्याय बोलें ., सर्व जीवने शाताकारी बोलें .
||
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७ थान बोल प्रस्तावीक. पापसु मरे सो पमित १, दया पालें सो दानेश्वरी, कुलंजण
गेमें सो चतुर ३, धर्म करे सो ग्यानी, खिदमे सो सूरा, परउपकार करे सो पूरा ६, सत्य वचन बोलें सो सिंह , निर्धनसुं नेह करें सो धनवंत ७. ए श्राब महा पापी. श्रापघाती महापापी १. विश्वासघाती महा पापी, गुणखोपीमहा पापी३, गुरूसोही महा पापी, कुमीसाखी महा पापी ५, खोटी सलाह देवें ते महा० ६, लार २ पच्चकाण नांगे ते महा०७, हिंसामें धर्म था ते महा०७. ४० बोल आठ सिखामणका. नगवंतरो जाप जपीजें १, दया पालीजें १, सत्य वचन बोलीजें ३, सील पालीजें ४, मंतोष राखीजें ५, दमा कीजें ६, परने दगो न दीजें ., गुरुके अंकुसमें रहीजें .
४१
SMARANA
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॥अथ नवमो बोल लिख्यते ॥
ए नब तत्त्व. जीवतत्त्व १, अजीवतत्त्व १, पुण्यनत्व ३, पापतत्त्व ४, पाश्रवतत्त्व ५, सं___ वरतत्त्व ६, निर्जरातत्त्व , वंधतत्त्व , मोदतत्त्व ए. ए नव पुन्यन्नेद. अन्नपुन्ने १, पाणपुन्ने ५, लेणपुन्ने ३, सयणपुन्ने ४, वडपुन्ने २, मन्नपु-||
ने ६, वचनपुन्ने ७, कायपुन्ने ७, नमस्कारपुन्ने ए. ए नव ब्रह्मचर्यनी वामी. स्त्री पशु पिंगसहित थानकन नोगवे, जो जोगवे तो मुंसा बिलाश्को दृष्टांत १, स्त्री कथा करें नही, करें तो नींबुको दृष्टांत २,स्त्रीके श्रासणपर बेसें नही, जो बसें तो पेठने थाटा काचरीको दृष्टांत ३, स्त्रीना अंगोपांग निरखे नही, जो निरखें तो सूर्यको दृष्टांत , स्त्री पुरुष विषयादि करता होय तिसके जीत | टाटीने आंतरे नही रहें, जो रहें तो मोर गाजरो दृष्टांत २, पूर्वला कामलोग चितारे नही, जो चितारे तो बुढीयाकी गको दृष्टांत ६, रस प्रणीत थाहार करें नही, जो करें तो सन्निपात रोगकुं दूध मिसरीको दृष्टांत 9, मर्यादाथी अधिको थाहार कर
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नही, जो करें तो बोदिकोथलीनो दृष्टांत , शरीरकी विजूषा करें नही, जो करें रांक हाथे रत्नरो दृष्टांत ए. ए नव निधान. नैसर्प निधान १, पंमक निधान २, पिंगल निधान ३, महापद्म निधान
, सर्वरत्न निधान ५, कालनिधान ६, महाकाल निघान ७, शंख निधान , माएवक निधान ए. एक निधान नव जोजन चोमो, वार जोजनरो लांबो, बाठ जोजनरो, चंचो वेश्ने आकारे, निधानमांही सर्वही वस्तु पामीजें.
४ ए नव नियाणा. राजगृहीनगरीने विपे श्री महावीरस्वामी समवप्ता, श्रेणिकमहाराजा
वंदना करणने भोटे मंमाणे जाईन श्री वीतरागने वांद्या; तिवारे साधु साधवीये श्रेणिकमहाराजने दीग, देखीने नियाणाकीया; चेलणाराणीनेपिण दीठी,देखीने साधु साघवीये नियाणा कीया, तिवारे महावीरस्वामीये साधु साधवीने बोलावीने नव नियाणा प्ररूप्या. नियाणा करणवालाने कछुवा कर्मरा फल लागे तेढ़ना नाम. पहिले पुरुपने देखीने पुरुप नियाणो करें १, बीजे स्त्री पुरुपनो नियाणो करें १, तीजे पुरुष स्त्रीनो नियाणो करें ३, चोये स्त्री स्त्रीनो नियाण करें , च्यार
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नियाणावालो केवली प्ररूपित धर्मरो एक अक्षर षि सुवो पायें नही पांचमो देवतानो नियाणो करे देवता यापरी देवी जोगवें पारकी देवी जोगवें वैकिय करीने जोगवे इसो नियाणो करे ते जीव जन्मांतरे केवली प्ररूपित धर्म सांजले पण सरददे नही ए पांच नियाणावालो यागे जन्मांतरे दुर्लनबोधि दोवें अनंतो काल संसार मांहि रुले ए, बठे देवनवरे विषे व्यापणी वैक्रिय देवी जोगवे पिण पारकी नदी जोगवुं श्सो नियाणो करे ते केवली प्ररूपित धर्म जन्मांतरे सांनले पिण नेरा धर्म रुचि होवें जिन धर्मरी रुचि होवें नहीं ६, सातमें देवताना नवने विषे देवी जोगवुं पण पारको तथा वैक्रिय नही जोगवुं इसे निपाणे वालो जन्मांतरे धर्म सांजलें सर्ददे ए दर्शण श्रावक होवें पि पञ्चकाण उदय घ्यावे नही, मो श्रावकरो नियाणो करे तिको श्रावकरा व्रत पाले पञ्चकाण करे ते चोला पाले पिए संयम उदय घ्यावें नही छ, नवमे माधुपणारो नियाणो करे ते जाणे हुं दलिडी तु कुखने विषे उपजुं जिम संजमनी अंतराय नही पमे इसो नियाणा वालो संयम निर्मलो पाले पिए जणही नवे मोद न जावें. नियाणो तो
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परनवनी श्राशा वांग वालो करे तिणे पापकारी फल जोगवे. इसा फल नियाणारा
सुणीने साधु साधवी बालोर नंदीने निशख्य थया ए. ए नव वासुदेव श्ण चोवीसी मांहि थया तेहना नाम. त्रिपृष्ट १, हिपृष्ट १, स्वयंच ३, ||*
पुरुषोत्तम ४, पुरुषसेन ५, पुंमरीक ६, दत्त , नारायण , श्रीकन ए. ए नव प्रतिवासुदेव. अश्वग्रीव १, तारक २, मेरक ३, मधुकेंठन, निसंन ५, बलन
६, प्रह्लाद , रावण , जरा संघ ए. ए नव बलदेव नाम. अचल बलदेव १, विजय बलदेव , न बलदेव ३, सुजषक-13
खदेव ४, सुनंद बलदेव ५, थानंद बलदेव ६, नंदन बलदेव ७, पन बलदेव , ||
राम बलदेव ए. ए श्रावती चोवीसीने विषे नव वासुदेव नाम. नंदसेन १, नंदमित्र १, दीर्घवाहु ३, महा
बाहु ४, थानाबल ५, महाबल ६, बलन , विपृष्ट , त्रिपृष्ट ए. ए नव बलदेव नाम. जय १, विजय १, ना ३, सुमन ४, सुदर्शण ५, पाणंद ६, नंदन , राम , संकर्षण ए.
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ए नव प्रतिवासुदेव नाम. वालक १, लोहजंग २, वज्रजंग ३, केशरी ४, अपराजित ५,
प्रह्लाद ६, नीमसेन ७, महानीमसेन , सुग्रीव ए. ए नक बलदेव पितारा नाम एहीज वासुदेव पिता नाम जाणवा. प्रजापति राजा, विजय राजा २, नवराजा ३, अमिसिंह राजा , सेवंत राजा ५, महासेन राजा ६, नंदसेन राजा ७, दसरथ राजा , वसुदेव राजा ए. ए नव वासुदेवरी मातारा नाम. पोमावती १, मृगावती २, पोहावती ३, सिंहाराणी ४, * ____ कुंतीराणी ५, लक्ष्मीराणी ६, सेषवती राणी , केकेश राणी, देवकी राणी ए. १३ ए नक बलदेवरी मातारा नाम. नवा १, सुनञ्जा २, सुप्रना ३, सुदर्शणा , विजयो
५, विजयंता ६, जयंता , अपराजिता , कौशल्या बीजो नाम रोहिणी ए. १४ . ए नव लोकांतिक देवता तिकेलोकरे अंते रहै तथा संसाररो अंते कीवो एक नवरे *
श्रांतरे मोदामे जासी ते लोकांतिक देवता पांचमें देवलोकमें कृष्णराजीने विष रिष्ट रत्नमयी ए विमान जाणवा ते सागरने वानखे लोकांतिक देवता जाणवा. १५ * ए नक क्रिया काश्याकत क्रिया १, श्तरीएगण क्रिया , अनिकंठ क्रिया ३, अण- .
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किंत क्रिया ४, बऊ क्रिया ए, महावऊ क्रिया ६, सावजा क्रिया 9, महासावडा· क्रिया, अप्पसावक क्रिया ए.
१६
ए नव रस नाम वीर रम १, शृंगार रस २, छाउत रस ३, रुद्र रस ४, विघ्नत्स रस ९, नयानक रस ६, दास्य रस १, करुणा रस प, शांति रस ए.
१७
नवे जीवे तीर्थकरगोत्र वांध्यो महावीरजीने वारे. श्रेणिकराजा घणा जीवांने धर्मरो सादाज्य देने तीर्थकरगोत्र बांध्यो १, सुपार्श्वजी महावीरजीनो काको १, उदाइराजा ३, पोटल अनगार ४, दुधजग श्रावक ए, संखश्रावक ६, सत्यकीजी 9, रेवतीश्राविका, सुलसा श्राविका तीर्थकरगोत्र वांध्यो ए.
ए
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१७
एए नव पापना शास्त्र. उत्पातशास्त्र १, निमित्तशास्त्र २, मंत्रशास्त्र ३, मानंगशास्त्र ४, वैद्यकशास्त्र १, कलाशास्त्र ६, व्यानरण शास्त्र ते घर दाट हवेलीना मुहूर्त्तनो देवो 9, अग्यानशास्त्र, मिथ्यात प्रावचनशास्त्र ए.
吧
[u] नव कोटी पशु आहार साधु नही लेवें. हर्णे नदी दुणावें नही हाताने अनुमोदे नदी, दणवो ते सचित्तरो चित्त अभि विना करें ते हणवो कढ़ीजें ३, पर्चे न
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ही पचावें नही पचताने अनुमोदे नही, धमिरा थाम्नसुं पचाववो ते पचन कहीजें ६, मोल पाणी वस्तु लेवें नही लेवरावे नही लेतांने अनुमोदें नही ए नव कोटी
शुरु थाहार लेवें ए. ए नव प्रकारे मनपर्यवग्यानरो ऊपजवो. मनुष्यने १, गर्नजने २, कर्मचूमीने ३, संख्या
ता वर्ष श्राऊखावंतने , पर्याप्ताने २, सम्यग्दृष्टिने ६, संजतीने , अप्रमादीने , ऋधिवंतने ए. ए नव विधिपरिग्रह. धन १, धान्य २, रूपो ३, सोनो ४, खेत्र ५, वास्तु ते ढांकी जमीन ___६, उपद , चापद , कुविधातु ए. ए नव प्रकारनो ऊदारिक संबंधीयो ब्रह्मचर्य. मनसु सेवें नही १, सेवावे नही १, सेव- । नाने अनुमोदे नही ३, वचनसु सेवें नही ५, सेवावें नही ५, सेवताने अनुमोदे नही |
६, कायासुं से नही , सेवा नह। , सेवताने अनुमोदे नह। ए. ए नव प्रकारे वैक्रिय संबंधियो ब्रह्मचर्य. नवे नेद उदारिकशरीरनी परे जाणवा. २५ ए नव प्रत्यनीक. श्राचार्यनो प्रत्यनीक १, उपाध्यायनो प्रत्यनीक , थिवीरनो प्रत्य
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नीक ३, कुलनो प्रत्यनीक ४, गणनो प्रत्यनीक ५, संघनो प्रत्यनीक.६, ग्यानरो प्रत्यनीक , दर्शणरो प्रत्यनीक ७, चारित्रनो प्रत्यनीक ए. ए नव प्रकारे रोग ऊपजें. घणो खावें तो रोग ऊपजें १, अजीर्ण ऊपरे खावें तो त
था घणो बैठें तो रोग ऊपजें १, घणो सूर्वे तो रोग ऊपजें ३, घणो जागें तो रोग ऊपजें ४, घणी वमीनीति बाधा रोके तो रोग ऊपजें , गेटीनीतिनी घणी बाधा रोके तो रोग ऊपजें ६, घणो चालें तो रोग ऊपजें , अणगमते यासणे बेसें तो
रोग ऊपजें , वार २ विषय सेवें तो रोग ऊपजें ए. ए नव पदवी मोटी जाणवी. तीर्थकररी १, चक्रवर्तीरी १, वासुदेवरी ३, बलदेवरी ४, के
वलीरी, साधुरी ६, श्रावकरी, सम्यकदृष्टिरीज, मंमलीक जोरावर राजारीए.२७ एनव नारद नाम. नीम १, याऊखो ७४ लाख वर्षरो ७० धनुषरी अवगाहना १, म
हानीम नारदरो हाऊखो ७२ लाख वर्ष ७० घनुपरी अवगाहना १, रूडनारद ६० लाख वर्ष याजखो अवगाहना ६० घनुपरी ३, महारूपनारद थाऊखो ३० लाख वर्ष अवगाहना ५० धनुष ४, कालनारद घाऊखो १० लाख वर्ष अवगाहना ४५
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धनुष ५; महाकालनारद थाऊखो ६५ हजार वर्ष अवगाहना २४. धनुषरी ६, चतु-20 मुखनारद थाऊखो ३२ हजार वर्ष अवगाहना ४० धनुषरी , नयरमुखनारद थार! ऊखो १२ हजार वर्ष अवगाहना १६ धनुष , जनतमुखनारद याऊखो १००० व र्षनो अवगाहना ज.धनुषरीए. ए बोल. १ कालरोजाण, २ बलरो जाण, ३ खेदरो जाण, ४ जातरा मातरासे. जाण||*
(संजमरूपी जातरारे वास्ते थाहार परमाण जाणे), ५ अवसररो जाण, ६ विनयरो || जाण, ७ स्वमतरो जाण, परमतरो जाण, एथन्निमतरोजाण. ए बोल. १ मेरुपर्वतसुं मोटो अजयदान,श्स्वयंचूरमणसमुज्सुं मोटो सत्यवचन, ३मीसरी ||
सुं मीगे धर्म, ४ चंडमासु निर्मली तपस्या, ए पवनसु वत्तो मन, ६ अमिसुं मोटी | मोहनी, ७ तखारसुं तीखो कमवो वचन, ७ धनसुं मोटो संतोष, ए देवलोकहुँ मोटो
मोद. ए वोल, रजपुतने क्रोध घणो १ दात्रीने मान घj , गणिकाने दणिक माया घणी__३, ब्राह्मणने लोन घणो ४, मित्रने राग तथा हेतु घणो ५, शोक्यने क्षेष घणो ६, ||
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जुवारीने शोक घणो ७, चोरनी माताने चिंता घणी, कायरने नय घणो ए. ३१ ए मोदातत्त्वना नव नेद. मुत्तिपद बतो. ते सत्पद प्ररूपणा १, सिना जीव अनंता में ते फव्य प्रमाण ३, खोकने असंख्यातमें नागें एक सिक तथा सर्वसिक ते दे
प्रमाण ३, फुसणा अधिकी घणां सिध्याश्री यादि नही अनंता ५, सिक मुक्ति हंति संसारमाही नावे ते जणी यांतरो नथी ६, सर्व. जीवने अनंतमे जागे सिक ते नाग 9, झान दर्शन दायकानावे . जीव पारिणामिकनावें ते नाव ', अल्पबहुत्व नपुंसकसिक थोमा १ ते नपुंसक हुती स्त्रीसिक असंख्यात गुणा अ‘धिका १, स्त्रीसिम्सुं पुरुषसिक असंख्यात गुणे अधिका ३, ए.
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॥ अथ दशमो बोल लिख्यते ॥
* १० दश जीवरा परिणाम. गति परिणाम १, ख्यि परिणाम २, कषाय परिणाम ३, |
वेश्या परिणाम ४, जोग परिणाम ५, जपयोग परिणाम ६, ग्यान परिणाम , द. |
शण परिणाम , चारित्र परिणाम ए, वेद परिणाम १०. * १० दश श्रजीवरा परिणाम. गतिपरिणाम १, बंधणपरिणाम २, संस्थानपरिणाम ३, वर्ण
परिणाम ४, गंध परिणाम ५, रस परिणाम ६, स्पर्श परिणाम , गुरु लघु परि
णाम , शब्द परिणाम ए, नेद परिणाम १०. १० दश बोल नारकीने विषे माग हुवें. मागे शब्द १, मागे रूप १, मागे गंध ३,
मागे रस ४, मागे स्पर्श ५, माठी गति ६, माठी बुधि , माठी उगणकर्म , है
मागे बल ए, मागे वीर्य १०. * १० एहीज दश बोल देवताने नला हुवे.
दश संज्ञा. आहारसंज्ञा १, नयसंझा २, मैथुनसंज्ञा ३, परिग्रहसंज्ञा ४, क्रोषसंज्ञा
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ए, मानसंझा ६, मायासंझा , लोनसंझा घसंझाए,लोकसंझा १०. ५ दश बाल उद्मस्थ न जाणे अने केवली जाणे तथा च्यार झानरो धणी पिण न जाणे न देखें अने केवली तो जाणे पिण देखें पिण. धर्मास्तिकाय १, अधर्मास्तिकाय , अाकाशास्तिकाय ३, अशरीरी जीव ४, परमाणपुल ,वानकाय ६, गंधरा पुद्गल , शब्दरा पुद्रल, जव्य में किंवा अनव्य में श्सो न जाणे ए, केवली थास्ये किंवा न थास्ये एहवो पिण न जाणे १०. दश समाधि. श्रुतेंघिय समाधि १, चक्कुख्यि समाधि २, घाणेडिय समाधि ३, र. सेंख्यि समाधि, स्पर्शख्यि समाधि ५, ा समाधि ६, नापासमाधि ७, एष
णा समाधि, थायाममत्ता निखवणा समाधि ए, जच्चारपासवणखेलजलपरिठवणीया समाधि १०.
ए दशहि असमाधि जाणवी. १० दश जातरी नारकीखेत्रमें वेदना. अनंतीनुख १, अनंतीतृषा २, अनंतीसीत ३, अनं
तीगरमीभ, अनंतोरोग ५, अनंतोसोग ६, अनंतोनय , अनंतोदाघ, अनंतीखा
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न ए, अनंतो परखशपणो १०. १० दश चित्त समाधि. जिनधर्म करवानी रुची ऊपजें १, जातिस्मरणज्ञानसुं रुचि ऊ
पजें २, मोटो सुपनो देखें तणही नवे मोद जावें तिणसुं रुचि ऊपजें ३, देवदर्शण देखें , अवधिग्यान ऊपजें ५, अवधिदर्शन ऊपजें ६, मनपर्यवग्यान ऊपजें ,
केवलग्यान ऊपजें , केवलदर्शन ऊपजें ए, केवल मरणे मरे ते चित्तसमाधि. १० १० दश प्रकारना दान. श्रनुकंपा दान ते दूबला अःखीयाने दान देवें १, संग्रह दान ते
नेलो करीने दान देवे २, जय दान ते मरो मारीयो दान देवे ३, करुणा दान ते सोगरो दान देवे , खङा दान ते लाजरो मारीयो दान देवे ५, गाख दान ते ब||* हंकाररो मारीयो चारण नाटने दान देवे ६, धर्म दान ते साधु सुपात्रने दान देवे , || अधर्म दान ते दान दीपांसुं अधर्म उपजे , काही दान ते किहां १ रहीने दान |
देवे ए, कथक दान ते हाती पोली लेवे अने देवे १०. १० दश प्रकाररो मिथ्यात. जीवरो अजीव जाणे ते मिथ्यात १, श्रजीवरो जीव जाणे ते |*
मिथ्यात १, धर्मरो अधर्म जाणे ते मिथ्यात ३, अधर्मरो धर्म जाणे ते मिथ्यात ४,
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साधुने असाधु जाणे ते मिथ्यात ५, असाधुने साधु जाणे ते मिथ्यात ६, सूत्रने जत्सूत्र जाणे ते मिथ्यात ७, जत्सूत्रने सूत्र जाणे ते मिथ्यात ७, मार्गने उन्मार्ग
जाणे ते मिथ्यात ए, जन्मार्गने मार्ग जाणे ते मिथ्यात १०. | १० दश नदात्र वहतां सूत्र नणे तो ग्यानरी वृकीतरी होवे. मृगशिर नदात्र १, पार्षा
नदात्र, पुष्य नक्षत्र ३, पूर्वानास्पद नदात्र , पूर्वाषाढा नत्र ५, पूर्वाफाल्गुनी
नदात्र ६, मूल नदात्र ७, अश्लेषा नक्षत्र , हस्त नदात्र ए, चित्रा नदात्र, १३ १० दश सुपना. शूलपाणिजखरे मंदिर मांहि तेरमी चोमासी कीधी एक रात्री मांहि
धमीरी निडा श्रावी तिण मध्ये १० सुपना दीग ते कहे . पहिले सुपने पिशाच तथा नूत तथा रादास जोरावर जीवतो दोगे तेहनी चोटी पकमी नीचो नांखीयो तेहनो फल जगन्नाथस्वामी मोहरूपीयो कर्म मूलसे जपामीयो १, बीजे सुपने श्वेतं पांख कोयल दीग तेहनो फल श्री जगन्नाथस्वामी शुक्क ध्यानरा चार पाया अंगी-* कार करीने विचरीया २, तीजे सुपने चित्र विचित्र पांखरी कोयल दीठी तेहनो फल श्री जगन्नाथस्वामी स्वसमय परसमयना नाव प्ररूपसी. स्वसमय जिनमत, परसमय
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पाखंम्मत ३, चोथे सुपने श्वेत गोकुल गायोरी टोली दीनी तेढ्नो फल श्री जगन्नाथस्वामी माधु साधवी श्रावक श्राविका चतुर्विध संघ तीर्थ प्रवर्तावसी ४, पांचमे सुपने दो माला दीगी तेहनो फल नाना रत्न श्रावकरो धर्म मोटा रत्न साधुरो धर्मप्ररूपसी ५,ठे सुपने पद्मसरोवर कमलरे फूले करी गयो दीगो तेहनो फल जीवाजीवादिकना सर्व पदार्थरो नाव प्ररूपसी ६, सातमे सुपने लवण समुफ आपरी भुजाये || करी तिरीन दीगे तेहनो फल संसार समुज्ने तिरसी , आठमे सुपने | दिनकर सूर्य सहस्त्र किरण देदीप्यमान जगतो दीगे. तेदनो फल निर्व्याघात | विषे आंतरो पमें नही, निरावर्ण ते पाहाम पर्वत कूट चूलका थामा थावें || नही, कसिण ते पूरो देखें, पम्पुिन्ने ते संपूर्ण देखें पिण उगे नही देखें, लोकालोक प्रकाशक केवलग्यान केवलदर्शन उपजसी, नवमें सुपने मनुष्यलोक थापरें अांखो नथी वीटीयो दीगे तेहरो फल जगन्नाथस्वामीरो यश तीनलोकमें व्या पसीए, दशमे सुपने मेगिरे पर्वतरी चूलिका नपर सिंहासन ते उपरे पोतें विराजीया तेहनो फल श्री जगन्नाथस्वामी हादशांगी सूत्र थाख्यातसी प्ररूपसी श्रापरो||*
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जसकीर्त्ति यापरें काने सुसी १०.
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१० दश बोल अनंते काले हुंमानामा व्यवसर्पिणीने विषे हुवा तेदना नाम तीर्थकरने च्यार मावीत हुवें नही छाने च्यार मावीत हुवा १, केवलीनी वाणी निष्फली जावें नदी ने महावीरजीने केवलग्यान ऊपनो प्रथम देशना दीधी तिका खाली गई तिर्येच देवता मिलीया पि कोई विरती व्याखमी लेवावालो मिलीयो नदी तिवारे केवलीनी वाणी निष्फल गई २, केवलीने परिसद हुवें नदी छाने गोशालेँ भगवंत महावीरने तेजोलेश्या मेहली तिणसें भगवंत महावीरने व महीना तां लोदी गण रह्यो ३, चंडमा सूर्य एक मंगले विमाने बेसी जगवेत, महावीरने वंदना करणने तसुं इंड वंदना करणने जावें नहीं पने ए गया ते बेरो जाणवो ४, चमrs सुधर्म सामुदो कोपीने नही जावें छाने ए चमरेंद्र गयो ए, स्त्री तीर्थ प्रवर्त्तावे नदी ने मल्ल कुमरी तीर्थ प्रवर्त्तायो जगणीशमा तीर्थकर जाणवा ६, वासुदेव संखे संखे मिलें नदी ने कृष्णवासुदेव द्रौपदीने लेण गया तिवारे कपिल वासुदेवने संखे संखे मिलीया 9, एकण समय १०० उत्कृष्ट रंगादणाना धणी सिद्ध नही थावें ।
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भने अबके १० सिह थया , जुगलीयो मरीने नरके नही जावें बने इण चो-10 वीसीमें गयो ए अमेरो ए, संयती बेग असंयतीनी पूजा नही थावें अने नगवंत ||*
बेग थकां गोसालानी पूजा थए अमेरो थयो १०. १० चोथा धारामध्ये दश बोलनी श्रासथा. तीर्थकरनी भासता १, गणधररी पासता ,
चवदे पूर्वधारीरी थासता ३, केवली प्ररूपित धर्मनी यासता , अवधिग्यानीरी था. सता ५, अवधिदर्शणरी घासता ६, मनपर्यवग्यानरी धासता , केवलग्यानरी था
सता , केवलदर्शणरी घासता ए, मोद जावणरी आसता १०. १६ १० चोथे थारे दश बोल नसा. जलो शब्द १, नलो रूप २, नलो गंध ३, निलो रस
, जलो स्पर्श ५, नली बुधि ६, जली गति , नलो उठाणकर्म , बलवीर्य ए,
पुरुषाकार पराक्रम १०. १० दश पञ्चकाण. अणागए ते आगामी कालनो पञ्चकाण करें, अश्कते काल वरत्यां
पञ्चकाण २, कोमिसहियं कोटिसहित पचलाण करें ३, नियंवचेव ते निश्चे करी तप करें ४, सागारं ते यागारसहित तप करें ५, धणागारं श्रागाररहित तप करें ६, H-||
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म्माणकर्म कवल तप करें , निरखसेसं ते सरख तप करें , संकेतिकं ते गंठसी मुढसीनो तप करें ए, थका पच्चकाण ते पोरसी थर्ड पोरसी तप करें १०. १० दश प्रकारे दोषण लगावे. दर्प ते कंदर्प विपयनो लीयो दोषण लगावे १, पम्माय ते प्रमादनो मारीयो दोषण लगावे १, अपाजोए ते विना उपयोग दोषण लगाव ३, थानरोए ते रोगरे कारण दोषण लगावे ४,यावर ते यापदा पमीया दोष लगावे. संकिए ते संकारो घालीयो दोषण लगावे ६, पदोसा ते औषरो मारीयो दोषण लगा-- वे ७, सहसागारं ते अकस्मात जोगे दोषण लगावे , नय ते जयरो घाब्यो दोषण| लगावे एवीमसा ते शिष्य शाखा राखणने दोप लगावे १०.
ए दश प्रकारे बालोवतो थको दोषण लगावे. याकंपिता गुरुने कंपावे तथा पोते का पतो कांपतो बालोवे १, अनुमानीता जनमान बांधीने बालोवे २. जं दिवंते दीगे| २, बालोवे ३, बन्नं ते गने ३ वालोवे ४, सहाजखं ते उतावलो श्वासोवे ए, सुहम ते नाहना दोष आलोवे ६, बाहरं ते मोटो दोषणं बालोवे ७, बहुजणं ते घणाकने बालोवे . अवत्तते प्रायजितारा अजाण कने बालोवे ए, तस्स वीते
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थाप सरीखो प्रायनितीयो हुई जिण कने बालोवे १०. दश गुणारो धणी होवे जिको बालोवे. जाति संपन्ने, जाति संपन्ने जातिवंत हो तिको बालोवे १, कुल संपन्ने कुलवंत हो तिको बालोवे , विषय संपन्ने विनय-|| वंत होवे तिको बालोवे ३, नाण संपन्नं ग्यानवंत होवे तिको बालोवे ४, दंसण || संपन्ने दर्शण सम्यक्त्ववंत होवे तिको आलोवे ५, चारित्त संपन्ने चारित्रवंत तिको बालोवे ६, खंती दिमावंत होवे तिको बालोवे , दंतो कीयांको दमणहार होवे तिको बालावे , अमायी मायारहित होवे तिको आलोवे ए, अपडाणुतावी थालोया पने पिबतावे नही १०. दश प्रकाररो प्रायनित थालोवणारिहे. दूषण सेवीया ते गुरा बागे श्रावीने कर तनै पश्चातापहीज दूषण उतरे १, पमिकमणारिद दूषण लागो होवे तेहनो मिडामि उकर्म देवे १, तनयारिहे दूपण सेवे तेहतुं गुरु कने बालोवे अने मिडामि कम पिण देवे ३, विवगारिहे विगयरो त्याग करे ४, विजसग्गारिहे कायोत्सर्गा करे ५, दायरिहे कोक दिनरी दिदा बेदे ६, मूलायरिहे पंच महाव्रत मूलथी उचरे ,
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तवायरिहे तपस्या करे , श्रणवळपारिदे तपस्या करीने फेर पंच महावत उचरे ए, पारचारिहे गृहस्थलिंग करी मामले बाहिर नीकलीने तपस्या करी फेर दिदा लेश्न ||*
मामले बसे १०. १० स दशक. सनाम १, बाहादरनाम २, पर्यातनाम ३, प्रत्येकनाम , थिरनाम २ ||
शुजनाम ६, सोनाग्यनाम , सुश्वरनाम , आदीयनाम ए, जसोकीर्तिनाम. २५ | १० थावर दशक. सूमनाम १, थावरनाम २, अपर्याप्तनाम ३, साधारणनाम ४, अथिर
नाम , उन्नगअसुननाम ६, दोनागनाम , सुःखरनाम , धनादीयनाम एंथ
यशोकीर्ति नाम १०. | १० दश महावीरजीना श्रावक. आनंद १, कामदेव १, चुल्लणीपिया ६, ,सुरादेव ४, चुल
शतक ५, कुंभकोलीयो ६, सकमालपुत्र ७, महाशतक ७, नंदिनीपिया , सालहिपिया १०.
श्य १० दश ठिकाणे दश वाना पाजें. क्रोध घणो दोय स्त्रीना जरिने गृह मध्ये १, मान ||*
घणो रजपूतरे २, माया घणी नेखधारीने ३, कपट घणो वेश्याने ४, लोन घणो बा
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ह्मणने ५, शोच घणो जुवारीने ६, सोग घणो चोररी मातारे , साच घणो सम्यग दृष्टिने निमा घणी धर्मथानके ए, संतोष घणो साधुने १०.
१६ १० दश प्रकारे मुंम. श्रोत्रंडिय मुंम १, चकुरिंद्रीय मुंम २, घाणेंद्रि मुंम ३, रसद्री मुंभ
४, स्पर्शद्री मुंम ५, क्रोष मुंम ६, मान मुंम , माया सुंम , लोन मुंए,शिर *
मुंम १०. * १० दश बल. श्रोत्रंद्रियबल १, चक्कुरिंद्रीयबल २, घाणेंद्रियबल ३, रसेंद्रिवल , स्पर्शदी *
बल ५, नाण बल ६, दर्शण बल ७, चारित्र बल , तप बल ए, वीर्य बल १०. १० दश चीज प्रधान. अनुत्तर नाणे १, अनुत्तर दंसणे २, अनुत्तर चारित्ते ३, अनुत्तर
तवे , अनुत्तर वीरीये ५, अनुत्तर अगुरुलहुए ६, अनुत्तरा खंतीए ७, अनुत्तरा दं.
त्तीए , अनुत्तरे सच्चे ए, अनुत्तरे सुहुमे १०. * १० दश प्रकारे बुद्धि वषे. दीर्घ वानखो निर्मल बुद्धीयो तेहनी बुद्धि वधे १, वीनीत ||
पुरुषरी बुधि बर्षे १, उद्यमवंतरी बुधि व ३, इंडियनो-इंख्यिरा मानना दमण-* हाररी बुधि वर्षे ४, सूत्र उपरा अंतरंग राग हुवे तेहनी बुद्धि वर्षे ५, सखरा कार्य:
३०
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मांहि सावधान थावे तेहनी बुद्धि वधे ६, शंकारहित हुवे तेहनी बुद्धि वधे, गुरुनी प्रशंसा करे तेहनी बुद्धि वधे , बालनावथी मुकावे तेहनी बुधि वर्षे ए, धर्मने
उपरे दिढ रहे तेहनी बुद्धि वधे ए. १० दश सुख. घरमे ऋद्धि १, देह नीरोग १, दीर्घ आजखो ३, काम घणो ४, नोगसुख ||
५, अल्प तृसना ६, संतोष घणो , अनुत्तर विमानना सुख , साधुना सुख ए,
सिद्धना सुख १०. १० कल्पवृदा दश वाना युगलीयांने देवें. या नूमीया रत्नना घर देवें १, अमि देदी
प्यमान देवें १, स्त्री पुरुषरा थानरण सर्व रत्नना जमीत देवें ३, एकसो घाउ जातिना पकान चोशन जातिरी तरकारी मनोगम एहवा नोजन. देवें ४, सर्व रत्नना जमीया नाजन देवें ५, बहु मोला वस्त्र देवें ६, शरीरना बलवीर्थ कान्ति ज्योति वर्षे एहवो मद देवें ७, च्यार जातिरा वाजिंत्र देवें; तंतवाजिवत्र ते तांतसें वाजें,वीणा प्रमुख वितंत वाजिन ते विना तांत वाजें, ढोल मार्दल प्रमुख घणवायंत्र ते कांसीया ताल प्रमुख, जुपिरवायंत्र ते पोलावट वाजें पपा शारंगी वांसली प्रमुख , सुगंध ||१
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फूल देवें ए, देदीप्यमान दीवारी ज्योति देवें १०. दश कारणे दिदा लेवें. आपरे गंदे दिदा लेवें १, रीसने वसे दिदा लेवें २, बुढापे दिदा लेखें ३, रोग ऊपने दिदा लेवें अनाथीरी परे ४, जातिस्मरणग्यान ऊपने | दिदा लेवें मृगापुत्रनी परे ५, तृष्णा वाद्यो नीकलें कपिल रिषीनी परे ६, गुरुजपदेशथी नीकलें श्रादीश्वरजीना एक बेटानी परे ७, देवता कहें थारो थानखो थो- को तिवारे दिदा लेवें , मोहरा घाखीयो दिदा लेवें तृगुपुरोहितनीपरे ए, कोश || माने नही तिवारे दिदा लेवें पोटीला तथा तेतलीपुत्र प्रधाननी परे १०. ३४ दश प्रकाररी रुचि. निसर्गा रुचि पहिला मिथ्यात्वी में पिण कोमल परिणामी में स. रख खनाविक में शुन्न नावना नावतां जातिस्मरणग्यान ऊपजें प. श्राफ सम्यक्त पामें तिका निसर्गरुचि १, उपदेश रुचि प्रथम जाणपणो नही पडे गुरुने उपदेशरे सुणवें करी जाणे ते उपदेशरुचि , धाग्यारुचि गुरुनी भाग्या आराधतां सग क्षेष पातला पमें सहिमें सम्यक्त पामें ३, सूत्ररुचि सूत्र अर्थ नणतां सम्यक्त पामें ४, बीजरुचि एक पदसुं अनेक पद धावें जिम पाणीरो बिंड तेलमांहे पमीयो |||
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नाना रंग दिसें तिम एक पदसु अनेक पद आवें तें बीजरूचि ५, अनिगमरुचि - ग्यारे श्रंग बार उपांगनो विचार करें ६, विस्ताररुचि एक पदना अनेक विस्तार करें सर्व पदार्थनी सातना करीने विस्तार करतो सम्यक्त पामें , संक्षेपरुचि मिथ्यातीनही अने जिनवचन पिण विशेष जाणे नही ते संदेपरुचि, क्रियारुचि नवमी किया करतुत करतां सम्यक्त पामें ए, धर्मरुचि पट व्यना नाव जाणतो जिनवचन
सर्दहतो संम्यक्त पार्मे ते धर्मरुचि १०.. १० दश विधि समाचारी. श्रावसही स्थानकसे नीकलतां कहें १, निसहिया थानकमांही
पेठतां कहें १, यापुखणा ते एकवारही पूबने कार्य करें ३,' पम्पुिखणा वारंवार पू. जीने कार्य करें ४, बंदना आगन्या लेश्ने कार्य करें ५, श्वाकारी ते गुरुनी श्वाये कार्य करें ६, मिथ्याकारी तेन वधु कार्य कीधे मिलामि कम देवें७, तहकारी ते गुरुवचन सुणीने तहत्ति करें , श्रापाणं ते गुरुनी सेवा पूजा करें ए, नवसंपयां
ते गुरुने समीप रहें १० १० दश प्रकाररा स्थविर. ग्रामथिवर १, नगरथिवर २, देशथिवर ३, कुलथिवर ५, घर
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थिवर ५, गणथिवर ६, संघथिवर ७, वयथिवर U, सूत्रथिवर ए, प्रवृज्याथिवर. ३७ १० दश धर्म. ग्रामधर्म १, नगरधर्म २, देशधर्म ३, थासंकीयधर्म ४, पाखमधर्म ५, कुखधमें ६, गणधर्म , ग्यानधर्म , दसणधर्म ए, चारित्रधर्म १०.
३० * १० दश जणांसं वाद नही कीजें. राजासें १, धनवंतसें ३, बलवंतसें ३, पदपूराने धणी
सें , क्रोधीसें ५, नीचसे ६, तपस्वीसें, कूकाबोलासें, मातापितासें, गुरुसुरुणीसें. इए १० दश प्रकाररा शस्त्र. अमिरो शस्त्र १, पाणीरो शस्त्र १, बूणरो शस्त्र ३, खटारो शस्त्र
४, चीगटरो शस्त्र ५, खाररो शस्त्र ६, मनरो शस्त्र , वचनरो शस्त्र , कायारो शस्त्र ए, अविरतिरो शस्त्र १०,
४० १० दश प्रकाररा जीव. एकेडी पढम समय १, अपढम समय २, बेखि पढम समय ३,
थपढम समय ४, तेरिंजी पढम समय ५, अपढम समय ६, चौरिंखी पढम समय,
थपढम समय , पंचेंडि पढम समय ए, अपढम समय १० १० दश कारणे मोद जावें. त्रसकायसें मोद १, मनुष्यरी गतिसें मोद २, सन्नीपंचेंडीसें
मोदा ३, यथाख्यात संयम दायक सम्यक्तसें मोद ४, नव्यसिध्यिसें मोदए, ब
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नाहारिकसं मोक ६, केवलग्यानसें; मोद ७, केवलदर्शसुंमोद , कायकसम्यक्तसें| मोदए, केवल मरणसें मोक्ष १०. दश प्रकारे धागे जवने विष सातावेदनीय शुज कर्म बांधे. सम्यक्त शुद्ध मन पालें ते साता शुन्न कर्म बांधे १, मन वचन कायाना जोग रुंधे तो सातावेदनीय शुजकर्म बांधे १, इंघिय नोडिय दमें तो सातावेदनीय शुनकर्म बांधे ३, क्षमा करें तो सातावदनीय शुनकर्म बांधे ४, धर्मध्यान शुक्लध्यान ध्यावें तो सातावेदनीय शुनकर्म बां घे ५, वेयावच्च करें तो सातावेदनीय शुन्नकर्म बांध ६, वेरागन्नाव थाणे तो सातावेदनीय शुनकर्म बांधे , दान शील तप नावना नावें तो सातावदनीय शुजकर्म बांघे ७, सिद्धांत सांजले तो सातावेदनीय शुनकर्म बांधे ए, समजाव प्रवत्ते तो साता|| वेदनीय शुनकर्म बांधे १०.
४३ दश प्रकारे कल्याणकारी कर्म बांधे. तपस्या करीने नियाणो न करे तो कल्याणरो कारण हुवे तामसीतापसनी परे १, समकित सहित करणी करे तो कल्याणरो का. रण हुवे श्रेणिकराजानी परें १, योग तीने थिर राखे तो कल्याणरो कारण हुवे रह
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नेमि राजीमतीरी परे ३, क्षमा करतां कल्याणरो कारण हुवे गजसुकुमालनी परें ४, || पंचेंडिक्श करे तो कल्याणरो कारण हुवे धना धणगारनी परें ५, पोतानो गंदो || रोके तो कल्याणरो कारण हुवे सेलक राजर्षिनी परे ६, मायारहित संयम पाखे तो कल्याणरो कारण हुवें गौतमस्वामीनी परें, कोश् षी धर्मसुं परिणाम मिगावे परं मिगे नही तो कल्याणरो कारण हुवे. केहनी परे अरणकं श्रावकनी परें , सूत्ररी प्रजावना करे तो कल्याणरो कारण हुवे केशीकुमाररी परें ए, ब्रत पञ्चखाण चोखो पालें तो कल्याणरो कारण हुवे. केहनी परें वरनागनतुवानी परें १०. .. ४४ दश बोल पामणा दोहिला बे. मनुष्यरो जन्म पामणोलन १, थार्य क्षेत्र पाम-|
णों झेन २, पंचेंखियपणो पामणो उर्लन ३, उत्तम कुल पामणो पुर्खन ४, पं. ... चेखिय निर्मली पामणी मुर्खन ५, नीरोग शरीर पामणो उर्लन ६, सतगुरुनी जो-|
गंवार पामणी उर्खन , सिद्धांतनो सुणवो पामणोर्खन , सरधापरतीति पावणी
मुर्खन ए, तप संयम उपरें बल वीर्यनो फोखो पामणो ऽर्खन १०... एं १. पुन्यवंत प्राणी होवे तिको दश बोल पामे. घणो परिग्रह होवे तिहां उपजे १, घणा
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मित्र होवे तिहां उपजे , सासु ससरा साजन घणा होवे तिहां उपजे ३, उंचगोत्र | होवे तिहां उपजे ४, गोरो वर्ण होवे तिहां उपजे ५, नीरोग शरीर होवे तिहां जपजे ६, निर्मल बुद्धि होवे तिहां उपजे ७, विनीत होवे तिहां उपजे , बलवंत |* होवे ए, यशवंत होवे १०.
४६ || १० दश प्रकाररी थापूर्वी. नामाणपूर्वी १, स्थापनाणपूर्वी २, व्याणपूर्वी ३, क्षेत्रानुपूर्वी
४, कालानुपूर्वी ५, नवापूर्वी ६, उकित्तणापूर्वी ७, पाणापूर्वी ७, संगणा
पूर्वी ए, समवायाणपूर्वी १०.. || १० साधुनी सेवा कीघां दश बोलरी प्राप्ति होते. सूत्र सांजले १, ग्यान यावे , विनय
यावें ३, पचखाण थावें ४, संयम थावें ५, नवा कर्म थावता रोके ६, तपस्या करे
9, बोदा कर्म पूर्वे बांध्या ते करे , पापक्रियारहित हुए, सिद्धिगति पामे १०.५g १० गोतमस्वामी पूजीयो हे नगवान तुमे कह्यो लवणसमुप तिरतां सोहिलो परं संसार
समुफ तिरतां दोहिलो ते किसे कारण, हे गोतम सांजल लवणसमुज्में पाणी घणो संसाररूप समुद्रमें मोहरूप पाणी घणोते जणी तीर सके नही १, लवण समुंद्रमें
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पाणीरा कझोला घणा बे, संसाररूप समुद्रमें नेहरूपीया कलोल घणा १, लवण समुमें वायरो घणो संसार समुष्में मिथ्यातरूप वायरो घणो ने ते जणी तिर सकें नही ३, लवण समुघमें कादो घणो ने संसार समुद्रमें रागषरूपीयो कादो % घण , लवण समुद्रमें किरामा घणा ने संसार समुद्रमें पाखंझ मतरूप किरामा धणाने ते नणी तिर सके नही ५, लवण समुद्रमें मोटा पर्वत ने संसार समुद्रमें श्राप कर्मरूपीया मोटा पर्वत बे ६, लवण समुद्रमें नान्हा..मोटा कलशा ने संसार समुद्रमें अगरह पापथानक तथा १९७ कर्म प्रकृतिरूपीया कलशा ने ते नणी तिर सकें नही ७, लवण समुद्रमें म क नक ग्राह मगर घणा बेतिम संसार समुद्रमें ईंटेंब पंखिार रूपीया मन कर घणा ते नणी तिर सके नही , लवण समुद्रमें सीप संख संघोटीया घणा में तिम संसार समुघमें कुगुरु कुदेव कुशास्त्ररूपीया सीप संख संघोटीया घणा ते जणी तीर शर्के नही ए, लवणसमुज्में उघ प्रवाह नारी में तिम संसार समुडमें कर्म कषायनो कदाग्रह नारी ३ ते नणी तिर शकें नही १०. तिण कारणे लवणसमुद्र तिरतां दोहिलो कदाचित देवतारे साहाय्य करी तथा रत्ना
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रे चानणे करी तिरे तिम संसार समुद्र पिए सद्गुरु सहाबें करीने तथा सिद्धांतरी वाणी सुनें करीने तथा ग्यान दर्शण चारित्ररूपीये चांनणे करीने तिरे दें. १० दश प्रकाररी लोकरी स्थिति वें. जीव ऊपजें तथा खपें एदीज खोकरी मर्याद १, सदा काल जीच पापकर्म बांधे ते लोकमें बांधे ते लोकनी मर्याद २, जीव सदा कामोदने बसें व ते लोकनी मर्याद ३, तीनेदी का जीवशे यजीव नदी हुवें ते लोकरी मर्याद, त्रस जीवरो थावर नदी हुवें छपने थावर जीव त्रस जीव न हुवें ते खोकरी मर्याद ए, लोकनो लोक नही हुवें छाने अलोकनो लोक न हुर्वे ६, लोकमें लोक नदी पावें ने लोकमें लोक नदी घ्यावे ते लोकनी मर्यादा 9, जिदां लोक तिहां जीवने लोकनी मर्याद प, जीवलोकने विषे गति गति करें ते लोकनी मर्याद, जीवनो छाने पुद्गलनो परिणाम लोकनेते जाय ने बूखो पमें लोकमें जाय न शर्के ते लोकनी मर्याद १०.
५०
१० दश प्रकारना शब्द वें. कंकण ते घंटानो १, टंकण ते कालररो २, बृखो ते किमामनो ३, निन्न ते बचबचीया दहीनो ४, जर ते खोखरा ढोलरो ए, दीर्घ खांबो ते
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गाजवानो ६, रहसे नान्हो शब्द ते वीणारो , अरुसे ते शंखनो शब्द , कोमल
ते सूक्ष्म कंठसें गायें ए, खंखिणे ते घूघरांरो ऊंमकार घोमानो हणहणाटो १०. ५१ १० दंश प्रकारे क्रोध ऊपजे. मनोगम वस्तु लेवणी में ते नणी क्रोध ऊपजें १, थम
नोगमवस्तु ले लीधी ते नणी क्रोध ऊपजें , थमनोगम वस्तु सेवती विरियां को * घ ऊपजे ३, मनोगम अमनोगम माहरी ले लीवी ते नणी क्रोध ऊपजे ४, मनो: गम वस्तु हिवणां लेवें में ते नणी क्रोध जपजें , अमनोगम वस्तु, दिवा लेवें में ते नणी क्रोध ऊपजें ६, मनोगम अमनोगम वस्तु दिवणां ले बे ते नणी को घ ऊपजें , मनोगम वस्तु चोरसी ते नणी क्रोध ऊपजें , श्रमनोगम वस्तु चो
रसी ते नणी क्रोध ए, मनोगम श्रमनोगम वस्तु चोरसी ते जणी क्रोध० १०. ५५ १० दशं प्रकारे मान ऊपजें. जातिमान १, कुलरो मान १, बल मान ३, रूपरो मान
४, तपरों मान ५, लानरो मान ६, सूत्ररो मान ७, ठकुरा मान , देवता पासे
श्रावें तेदनों मान ए, लक्ष्मीरो मान १०.. १० दश कारणे कलेश ऊपजें. थानकरे निमित्ते कलेश ऊपजें १, उपगरणरे निमित्ते
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कलेश ऊपजें १, शरीर निमित्ने कलेश ऊपजें ३, नात पाणी निमतें कलेश ऊपजे ४, ग्यानरे अर्थे कलेश ऊपजें , दर्शणरे अर्थे कलेश ऊपजें ६, चारित्रने अर्थ कलेश ऊपजें ७, मननो कलेश उपजें , वचननो कलेश ऊपजें ए, का. यानो कलेश ऊपजें १०.
ए४ दश बोल संयमने धातकारी हुवं. नदगमानवग्घाए १, जप्पायणनवग्घाए १, एषमानवग्घाए ३, पश्चिारणनवग्घाए , परिहरणनवग्घाए ५, पाणनवग्घाए ६, द. र्शणजवग्याए ७. चारित्तनवग्याए , अप्रचित्तजवग्घाए ए, संरदानवग्घाए. एए दश गुणे करीने श्रावक जाणीजें. नवतत्त्व पदार्थ निर्मला जाणे. १, धर्म करतां दे वतारो साहाथ नही वांजे ५, धर्मसुं देवदाणव कोमार्नुकोमी चलावें तो चाखें नही ३, नगवंतना वचन ऊपर शङ्कत कंखा नही आणे ४, नगवंतना वचन पहीज अर्य एहीज परमार्थ पहीज श्रात्मानो सङान, शेष संसारना कार्य सर्व अनर्थ जाणे ५, हामने हामानी मज्जा जीवने जीवना प्रदेश ते धर्ममें रंगा में ६, मास १ मध्ये ब पोषधोपवास करें , जिम फिटकर रत्न निर्मलो तिम ज्यारो हीयो निर्मलो तथा
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घरना वारणा उघामा में साधु साधवीरी सदाही दानरी नावना नावें , श्रावक जीवप्रतीतिकारीये घरमांही न जावें राजाना अंतेवरमांही न जा अने जावे तो श्रप्रतीति ऊपजें ए, श्रावकजी श्रमणनिर्ग्रथने अन्न पाणी वस्रपात्र पीठ फलंग स
द्या संस्तारक उपधनेषध सूफतो निर्दोष प्रतिलालतां विचरं १०. १० पंचेंजिय जीवनो वध करें तो दश प्रकारनो पाप लागे. स्पर्शख्यिना सुखनो वि.
योग कीयो १, सुःखनो संयोग मेलीयो १, रसेंजीयना मुखनो वियोग कीयो ३, हु. खनो संयोग मेलीयो ४, वाणेजीयना सुखनो वियोग कीयो ५, सुःखनो संयोग मेलीयो ६, चक्कुखियना सुखनों वियोग कीयो , जुःखनो संयोग मेलीयो', श्रो. तेंजियना सुखनो वियोग कीयो ए, सुःखनो संयोग मेलीयो १०.
७ १० दश बोलें एकांत उखम काल जाणीजे. थकालें वरसें १, कालें नही वरमें तथा
थोको वरसें १, असाधुरी पूजा हुवें ३, साधुरीपूजा नही हुवें ४,मोटेठिकाणे मिथ्यात * हुवें ५, वमारो विनय न करें ६, अणगमता शब्द , रूप, गंध ए, रसस्पर्श. ५० * १० दश बोलें सुखमकाल जाणीजें. कालें वरसे थका नही वरसें १, साधुरी पूजा हुवें
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२, अंसाधुरी पूजा नही हुर्वे ३, मोटे ठिकाणे सम्यक्त घणी हुवें ४, वारो विनय || घणों करें ५, मनगमतो शब्दं ६, मनंगमतो रूप ७, मनगमती गंध , मनगमतो|| रस ए, मनगमतो फरसं १०. दश.विध यति धर्म. खंती दमा १, मंबंव मान त्याग १, अङव सरखंता कपटाका त्याग, मुत्ती निर्लोन लोनका त्याग ४, तव तपस्या करे ,.संजमे संयम पाखे ६, सचं सत्य बोले , सोयं उन्नय सोच्य ७, अकिंचण द्रव्यका त्याग ए, बजंच ब्रह्मचर्य पाले १०. देश कल्प. चेले कल्प १, नदेशिक कल्प १, सिफातर कल्प ३, राजपिंक कल्प ४, कृतकर्म कंल्प ५, चर्तुर्याम कल्प ६, जेष्ट कल्प ७, मासकल्प , पमिकमाकल्प | ए, पोसणा कल्प १०. दशं बोल बदमस्थ जीणे न देखे. धर्मास्तिकाय १, अधर्मास्तिकायु १,थाकासास्तिकाय ३, शब्द ४, गंध ५, वायरो ६, अशरीरी जीव ७, परमाणु पुद्रलं , ए कर्मदाय करसी के नहिए, ए मोद जासि के नही १०.
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* १० दश प्राण. श्रोतेंडि प्राण १, चक्कु इंडी प्राण , घ्राणेंद्विप्राण ३, रसेंद्विप्राण ,||
फर्सेखि प्राण ५, मनबस प्राण ६, वचनबल प्राण , कायबल प्राण , श्वासोश्वास प्राण ए, बालखो प्राण १०. . दश वेयावच्चे. थायरिय वेयावचे १, उवमाय वेयावच्चे १, थिवर वेयावचे ३, तवसी वेयावचे ४, गिलाण वेयावच्चे ५, नव दिदीत वेयावच ६, गण वेयावच्च , संघवेयावच ए, साधर्मिनी वेयावच्च १०. दश गुरु नक्ति. गुरु थाया जन्नो थाये १, वासण श्रामंत्रे , यासण बिगय देवे ३, कीर्ति गुणग्राम करे ४, हाथ जोमके खमा रहे ५, सत्कार दे ६, सन्मान दे 9, थावतांकुंखेण जाय U, रहियारी सेवा करे ए, जाय तो पोचावण जाय.१०. ६५ दश बोल करि जंबूछीप वरणव्यो. खमा कहिता जंबूहीपना १५० खंक वा नर्त सारिखा १, जोजन २ प्रमाण खमवा कीजे तो जंबूछीपना अए. कोमि ५६ लाख एy हजार १५० जोजन ॥ गाउ १।। धनुष काफेरा खम्वा होय २ वासा जंबुद्धीपमें | ७ तथा १० ३ पचय जंबुडीपमें २६ए पर्बत सासवता ने ५ कूट जंबुझीपमें ४६७||
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तथा ११५ कूट बे ए, तिर्थ जंबुद्धीपमें १०२ ते ६, सेढीए जंबुद्धीपमें १३६ श्रेणी बे विजय जंबुद्दीपमें ३४ बेप, वह जंबुद्दीपमें १६ उद सासता वेए, सलिला जंबुद्दीमें १४ लाख ९६ हजार नदी बे १०.
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१० दश बोल प्रस्ताविक. एक बालके अग्रभाग मांहि आकास्तिकायकी असंख्याती श्रेणि १, एकेक श्रेणि मांदि असंख्याती प्रतर १, एकेक प्रतर मांहि असंख्याता गोला ३, एकेक गोलामांदी असंख्याता शरीर ४, एकेक शरीर मांहि अनंता जीव ९, एकेक जीवमांहि संख्याता प्रदेश ६, एकेक प्रदेश मांदि अनंती कर्म वर्गणा ७, एकेक कर्म वर्गणा में अनंता परमाणु छ, एकेक परमाणु मांहि अनंती वर्ण गंध रस फरसनी पर्याय ए, एकेक पुल पर्यायमें खनंती २ केवलज्ञानकी पर्याय १०. १० दस बोल साधुकी संगतथी पामे. सवणे १, नाणे २, विन्नाणे ३, पच्चरकाणे ४, संयमे ५, पाहय ६, तवे चेव, बोंदाणे, किरियां ए, सिद्धि १०. १० दश बोल करी नव्यजीवसुं शोच करणो पमें. साधु व्याया प्रप्न करें नही १, वखावाणी सुर्णे नदी २, सामायक परिक्रमणो नही करें तो ३, आहार पाणी असु
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तो होय जाय तो ४, पढवैरी जोगवा हुवें पढ़ें नही तो ए, साधर्मीकी खबर नही लेवें तो ६, धर्मजागरण नदी करें तो 9, साधुकी विनय जक्ति नही करें तो, सायाकी सारसंभाल नही करें तो ए, साधु विहार करी जाय तो १०. १० दश वोल अनंता. नाम अनंते १, थापना छनंती २, व्यनंती ३, गणित - नंती ४, प्रदेश नंता ए, एक अनंता ६, दोय अनंता 9, देशविस्तार अनंता छ, सर्व विस्तार अनंता, सासते अनंता १०.
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१० दश पन्ना. चोसरण पश्न्नो १, गाथा ६२ यातुर पचरकाण पईन्नो २, गाथा ८० महापच्चरका पईन्नो ३, गाथा १३४ जत्तपत्रकाण पईन्नो ४, गाथा १५० तंडुलवेयाली पईनो ९, गाथा ४०० गणिविका पईन्नो ६, गाथा ६०० देव स्तवन पन्नो 9, गाथा २०० चंद विजय पश्नो गाथा १७६ कहावें गाथा प, संथार पईनो ए, गाथा १२१ मरण नित्ति पईनो १० गाथा ६६५.
१
१० दश बोल जंबुस्वामी पबे जरतदक्षेत्र में विछेद गया. मनपर्यवग्यान १, परमा अवधि १, पुलाक नियंगे ३, याहारकलब्धि ४, उपसमश्रेणि ९, दपकश्रेणी ६, जिनकल्पी9,
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परिहारविशुद्धि, सुखमसंपराय ए, यथावातचारित्र १०. || १० दश बोल पावणा उर्खन. मनुष्य अवतार १, आर्यदेश १, उत्तमकुल ३, पांचद्रिय ||
संपूर्ण ४, निरोगीकाया ५, दीर्घाऊखो ६, साधुसाधवीकी जोगवा, धर्मका
सुणेणा , धर्मकी का ए, उद्यमका कर्ण १०. १० दशौकी संगति वरजवी. पासाकी १, जसनाकी २, कुसीलियाकी ३, संसताकी ४,
आपलंदाकी ५, नीनवकी ६, कदाग्रहीकी , अन्य मारगीकी , अनीतियाकी ए, 8 वमनगाकी १०.
७४ १० दश बोल मोदगतिरा. सिबनगवंतजीरो लीजे नाम १, मानलीए साधुजीरो व्या
ख्यान २, घरीए शुन्नध्यान ३, दिजीये शुकनावथी दान ४, पहेरिए सियल ६,
उदीय लज्या ५, मारीए मन , खाए गम , दमीये देहनें ए, परमरस पीजीए. १० दश बोल महा पापीरा कहीजे. आपरे जीवरी घात करसुं महा पापी कहीजे १,
विश्वास दे घात करेसुं महा पापी२, कीनोमा गुण विसरेसुं महा पापी ३, सुंष लेने कुमी साख जरेसुं महा पापी, हिंसामें धर्म परुपेसुं महां पापी ५, तरी सत्नामें जूठ
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बोले महापापी ६, रुझमें दाव लगाये मदा पापी 3, वनस्पती काटेसुं महा पापी छ, तलावरी पाल काटेसुं महा पापी ए, गरन पमावसुं महा पापी. ऐ दश मोटा पाप वे १०.
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१० दश बोल बकाया वधे घटाया घंटे. क्रोध १, दास्य ५, रमत ३, खुराक ४, सोग ५, बुध ६, जय, निंत्र, अहंकार ए, पंचेंी विषय सेवन १०.
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१० ज्ञानी पुरुषरो १० लक्षण. क्रोधी हुवे १, वैरागी हुवे 2, जीनेंडी हुवे ३, दमावान हुवे ४, दयावान दोवे ६ सेवे जन प्रिय (मंगलाने प्रिय लागे), निरलोनी हुवे छ, दातार हुवे ए, जयरक्षित हुवे १० शोके चिंता रहित हुवे यानंद ी हुवे. १० दश बोले असत्य मापाए. क्रोधरे वा बोले तो असत्य १, मानरे वा बोले तो प सत्य २, मायारे वश बोले तो असत्य ३, लोजरे वश बोले तो असत्य ४, रागरे वश बोले तो सत्य ५, द्वेषरे वश बोले तो असत्य ६, दास्यरे वश बोले तो सत्य, जयरे वंश बोले तो मत्य छ, मुखरी वचन बोले तो सत्य ए, विकथाकारी वचन बोले तो असत्य १०.
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|| १० दश बोले करी देवतामें उपजे. अल्प कषायी १, नष्ट वस्तुको सोच करे नही २,श्वः॥
सुन ध्यान ध्यावे नही ३, व्रत पञ्चखाण करे ४, शुरू सम्यक्त पाले ५, वैराग्य नाव लावे ६, दान देवे , धर्म ध्यान ध्यावे , बाल तपस्या अज्ञान नाव तप करे ते.
महा कष्ट सेवे ए, देव गुरु धर्म जगती करे १०. १० दश बोल देवगतिसे थाया मनुष्यमें उपजे-तिणमे पावे. देववास्तुक हिरण अपद
चोपद पामे १, मित्र २, सऊन ३, उचगोत्र , रूपसुंदर ५, शरीर नीरोग ६, नली बुद्धि, विनय , जसवंत ए, बलवंत १०.
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॥ अथ ग्यारमा बाल लिख्यते ॥ ११ ग्यारह श्रावककी पमिमा. लोकिक लोकोत्तर मिथ्यात्व चलें शुध सम्यक्त पालें १, ||*
व्रत पञ्चकाण शुरू पालें दोय वखत सामायक पमिकमणा करें महीनेमें ६ पोसा ||* करें न्हावें नही धोवें नही धोतीकी लांग देवें नही १, रात्रीनोजन करें नही ३, दि-|| नका ब्रह्मचर्य पालें रातकी मर्यादा करें ४, कालसग्गध्यान करें ५, दिन रातका बह्मचर्य पालें ६, संचित्त त्यांग करें , श्रारंन करें नही , थारंन करावे नही ए,
रिन करतेने अंनुमोदे नही १०, साधुकी तरे विचरें गोचरी करें माथे सिखा राखें । लोच करावें ११... विधि-पहिली पमिमा १ मांस तपस्या करें एकांतरे पारणो करें सम्यक्तंबत निर्मला पालें इसीतरे जितनी पमिमा नुतनीहि तपस्या करें जैसे | श्यारमी पनिमा ११ मास तक तपस्या करें ११.दिनांसु पारनो करें लिया वृत पं
चेकाण निर्मला पालें. १ ग्यारे श्री वीरना गणधर. इंति १, अमिति ५, वायुति ३, व्यक्त ४, सुधर्मा ।
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स्वामी ९, मंतिपुत्र ६, मोरीपुत्र ७, ध्यकंपित छ, यत्राता, मेतार्य, प्रजास. ११ इग्यारे बोल जाणपणे का. धर्मका जाणपणा होय तो जीवदया पालें १, ग्यानका बल होय तो थोमा बोलें २. बुद्धिवंत होय तो सना जीतें ३, साधुकी संगती दो तो संतोष ऊपजें ४, वैराग्य होय तो पांच इंडी दमें ए, सूत्र सिद्धांत सुणतां रहें तो धर्म विषे प्रणाम चढता रहें ६. प्राणी जीवकी रिक्षा करें तो निर्भयपणो पामें 9, मदर तो देवताको पूजनीक हुवें छ, न्यायमार्गमें चालें तो शोजा पा , सर्वजीवकुं खमत खामणा करें तो साता पामें १०, भगवानकी व्याग्यासहित क्रिया करें तो मोद पामें ११.
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११ श्री जिनसास एामांदी सम्यगदृष्टिने ११ बोल जाएया जोश्जे. विधिवाद जे वीतराग श्म को श्मज करिखो. एह विधिवाद १, चरितानुवाद मुके इम कीधो नाम लेवो तनुवाद २, स्थितवाद जग़मांदी जे पदार्थ जिम तिमकदिवो ते स्थितवाद ३, शेयवाद जाणिवा जोग ४, देयवाद बांमिवा जोग ५, उपादेयवाद यादखा जोग ६, धर्मपद सम्यगदृष्टि श्रावक साधुनो मार्ग ते धर्मपद 9,
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थधर्मपद मिथ्यात्वी श्रधर्मी श्रावकपणो गमे तो अधर्मपद , मिश्रपद चारित्र श्राश्री विरती अविरतीनो मार्ग श्रादरे ते मिश्रपद ए, व्यवहारपद जे बाह्य देखता
लोक सहुने सुमता ते व्यवहारपद १०, निश्चेवाद केवलीगम्य ते निश्चयवाद ११. ४ ११ षट ऽव्यना ११ ठार. गाथा-परिणामजीवजीवमुत्ती सपएसएगेदते किरिया । नि
चं कारणे कत्ता थईए एवं एकारसम् ॥१॥ जीवऽव्य पुद्गलऽव्य ए वे प्रणामि में धर्मास्ति अधर्मास्ति श्राकाश काल ए चार अपणामी में १, जीवजव्य तो जीव बाकी पांच द्रव्य अजीव १, पुद्गलद्रव्य तो मूर्ति बाकी पांच द्रव्य श्रमूर्नि ३, कालद्रव्य थप्रदेशी बाकी द्रव्य सप्रदेशी ४; धर्मास्ति अधर्मास्ति श्राकाशास्ति एत्रण एकेक में सेष त्रण द्रव्य अनेक ५, आकाश क्षेत्री शेष पांच श्रोत्री ६, जीवद्रव्य पुद्गलद्रव्य एबे सक्रिया शेष चार अक्रिय ७, कालद्रव्य नो अनित्य शेष पांच नित्य , जीवद्रव्य तो थकारणी काम नही था शेष पांच कारणी काम थावें ए, जीवद्रव्य पु.
दल कर्त्ता शेष ४ अकर्ता १०, थाकाशद्रव्य तो सर्व गति शेष ५ ऽव्य श्वसर्वगति. ११ ग्यारे बोल चौरेंडीरा. विन १, दंकण २, जमरा ३, ब्रमरी ४, टीम ५, माखी ६,
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मांस ७, मबर ७, पतंगीया ए, कसारी १०, खम्माकमी ११. ग्यार बोख प्रस्तावीक. समकितरूपी मूल १, धीरजकंद २, विनय वेदिका (चोकी) १, जस ४, खंद पांच महावत ५, माया नावना ६, त्वचा गल ग्यान ध्यान, कुपलपान अनेक गुण , फुल सील ए, सुगंध उपयोग १०,फलमोद ११, बीज. ७ ज्ञयार बोले करी ग्यान वर्धे. नद्यम करतां १, निडा तजें तो १,जणोदरी करें तो ३, अल्प बोलें तो ४, पंमितरो संग करें तो ५, विनय करें तो ६, कपटरहित तप करें तो 9, संसार असार जाणें तो ७, चोलणा पचोलणा करें तो ए, ज्ञानवंतने पास जणें तो १०, इंडीयोना विषय त्यागें तो छान वधे ११.
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॥अथ वारमा बोल लिख्यते ॥
१२ साधुन १२ पमिमा. पहिली १ मासनी १ दान पनरी १ दात पाणीनी १. बीजी ||
मासनी २ दात अन्नरी २ पाणीरी २. त्रीजी ३ मासनी ३ दात अन्नरी ३ दात पाणीरी | ३ चोथी ४ मासनी ४ दात अन्नरी ४ दात पाणीनी ४. पांचमी ५ मासनी ५ दात अन्न ५ दात पाणी ५.ठी ६ मासनी ६ दात अन्न ६दात पाणी ६. सातमी ७ मा सकी ७ दात अन्नरी ७ दात पाणीकी ७. थाठमी ७ नवमी ए दशमी १० सात दिनरी एकांतरे उपवास करे त्रिण यासण करे १० श्यारमें बजक्त करे अहोरात काजसग्ग करे ११ बारमी पमिमा अष्टनक्त ३ करे मसाण चूमिमे १ रात्रि कालसा करे तिहां ३, उपसर्गा ऊपजे देवता १ मनुष्य २ तिर्यचनो ते सहे तो ३ गुण : पजे अवधिज्ञान १ मनपर्यव ग्यान १ केवलग्यान ३, जो नही सहे तो ३ औगुण होय गहिलो १ गुंगा १ बावला ३ होयजाय १६ रोग मादिलो को रोग ऊपजे धर्मथी ब्रष्ट होय.
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१५ साधु १५ कुलनी गोचरी करे. उग्र कुलाणिवा १, नोग कुलाणिवा १, राय कुला
णिवा ३, दात्री कुलाणिवा ४, खाग कुलाणिवा ५, दक्षिस कुलाणिवा ६, एसीय कुलाणिवा, बैसीय कुखाणिवा, कोठांग कुलाणिवाए,गंमाग कुलाणिवा १०,
गांमरद कुलाणिवा ११ बोकसालिय कुलाणिवा १२. १२ बारे बोल करी परम कल्याण करे. सम्यकत्व निर्मल पाले तो श्रात्मा परम कल्याण
करे श्रेणिक राजांनी परे १, नियाणा रहित करणी करे तो परम कल्याण करे तामली तापसनी परे१, मन वचन कायाका जोग सुन वरतावे तो यात्मा परम कल्याण करे ३, गजसुकमालनी परे बती सक्ति दामा करे तो यात्मा परम कल्याण करे प्रदेशी राजानी परे ४, पांच इंजीदमे तो यात्मा परम कल्याण करे. धन्ना थणगास्नी परे ५, साधूनो याचार पाले तो श्रात्मा परम कल्याण करे गोतमखामीनी परे ६, धर्म ऊपरि श्रधा परतीत ब्यावे तो यात्मा परम कल्याणकरे. वारुणनामनतुवाना मित्रनी परे ७, माया कपटा गं तो थात्मा परम कल्याण करे श्री मल्लिनाथजीका मित्रनी परे., रोग बाया हायजद न करे तो यात्मा परम कल्या
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ण करे धनाथिनी परे ए, थाश्रवमें संवर निपजावे तो थात्मा परम कल्याण करे|| संजती राजानी परे १०, परिसह थाया समन्नाव वर्ते तो श्रात्मा परम कल्याण करे मतार्यजीनी परे ११ श्राश् ममता पानी लेवे तो आत्मा परम कल्याण करे कपिल
मुनिनी परे १२. १२ तपस्याना १२ नेद. अणसण १, जणोदरी, निदाचरी ३, रसपरीत्याग ४, काय
लेश ५, पमिसंलिणता ६, प्रायवित्त , विनय ७, वेयावच ए, सिबाय १०, ध्यान
११ काउसग्ग १२. १५ बारे नावना. अनित्य नावना नरतजी नावी १, असरण नावना अनाथिजीने ना
१, संसार नावना शालिनपजीने नाई ३, एकत्व नावना नमिराय ऋषि ना ४, अन्य नावना मृगापुत्रजी नाश ५, अशुची नावना सनंतकुमार चक्रवर्ति नाश्६, थाश्रव नावना समुदपालजी ना, संवर नावना केसीकुमार गोतमजी नाश् , ||* निर्जरा नावना अर्जुनमाली नाए, लोकस्वरूप नावना सिवराज ऋषिश्वर नाश १०, धर्म नावना धर्मरुचिजी ना ११, बोधिबीज उर्खन नावना यादिश्वरना एज
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पुत्रो जाइ १२.
१२ बारे बोल श्रावकना. नव पदार्थ जाण दोय १, देवतादिकनो सादाय वांबे नही 2, देवादिक धर्मसु मिगावे तो मिगे नदी ३, श्री जिन वचन ऊपर संका कंखा प्राणे नदी ४, सम्यक्तमें दाम १नी मिजी रंगाणी होय ५, पूर्वी १ ने निरणय करे - ६, रिदय फिटक सरिखो निर्मलो ७, प्रतितकारीया घरमे जाय प, जीमतां घरका बारणा घामा राखे, साधुजीने १४ प्रकारनो प्रासुक दान देवे १०, आठम चजदश पक्षिमावास महिनेमें ६ पोसा करे ११, बती शक्ति धर्म करणी में श्रापणो बल गोपवे नही १२.
६
१२ बार प्रकारनो खादार पाणी परिढवणो पिए जोगवे नदी. धाकर्मि १, उद्देशीक २, सूतीकर्म ३, मिश्र ४, सचित्त यचित मिल्या ९, अद्योपरे ६, सिफातरनो 9, सचित्त पाणीनी बुंद पमे तो प, खेताइ जाइ कंते ए, कालाइ कंते १०, मगाइ कंते ११, पमाणाइ कंते १२.
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१२ वारे संजोग उपधि वस्त्र पात्रनो लेवों १, सूत्र सिद्धांत लेवो वाचणी लेवी देवी 2,
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थाहार पाणी लेवो ३, मांहोमांहि नमस्कारनो करखो ४, सिष्यादिकनो देवो.५, निमंत्रणा करवी ६, मांदोमांही खमा होणा, कीर्त्तिगुणग्राम करे , वैयावच्च करणी|
ए, एकदा मिलबो १०, एक भासण बेसवो ११, कथा प्रबंधनो कहिवो १२. | १२ लारे उपयोग. ५ ज्ञान ३ अझान ४ दर्शन एवं १२. १२ बारे बोल करी नव्य जीवकुं पिबतावणा पमे. ती जोगवा साधकुं दान नही देवे ||
तो १, दान देने पबितावे तो १, दान देता वर्जे तो ३, बती जोगवाइसमाश्क न ||* करे तो ४, सामायक करतांने वर्जे तो ५, बती शक्ति तपस्या न करे तो ६, करताने वर्जे तो, साध याया तेहनी वाणी न सुणे तो , साधुकी निंद्या करतो ए, साधु | कुं वंदणा नही करे तो १०, बती योगवा नणे नही तो ११, बती जोगवा पाट ||
पाटला थानक नही देवे तो १५. १२ बारे मुक्तिनां नाम. शसितिवा १, सिपशारातिवा २, तातिवा ३, तणुतातिवा ४,
सिधितिवा ५, सिद्धालएतिवा ६, मुत्तितिवा ७, मुत्तिलएतिवा , लोयग्रेतिवा ए, लोयग्रेथुनोतिवा १०, लोयपेक्षिबुमणातिवा ११, सबपाणनूयजीवसत्वसुहातिवा. ११
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१२ व्यासस्तमन विनयका बारे नेद. पापकारी मन प्रवर्त्तावे १, क्रियाकारी मन प्रवर्त्तावे 2, कठोरकारी मन प्रवर्त्तावे ३, नवोरकारी मन प्रवत्तीवें ४, करगसकारी मन प्रवर्त्तावे", कमवाकारी मन प्रवर्तावे ६, व्याश्रवकारी मन प्रवत्तीवे 9, बेदकारी मन प्रवर्त्तीवे दकारी मन प्रवर्त्तावे ए, उद्देगकारी मन प्रवर्तावे १०, परतापनाकारी मन प्रवत्तीवे ११, सर्वभूतप्राणी जीवने घातकारी मन प्रवर्त्तावे १२, १२ प्रसस्तमनका विनय बार नेद. निखद्यकारी मन प्रवर्त्ता १, व्यक्रियाकारी मन प्रववे २, कठोरकारी मन प्रवत्तीवे ३, छानठोरकारी मन प्रवर्त्तावे ४, टाकरंगसकारी मन प्रवर्त्तावे ९, अणकमवाकारी मन प्रवर्त्तावे ६, संवरकारी मन प्रवर्त्तावे 9, वेदकारी मन प्रवर्त्ता, खनेदकारी मन प्रवर्त्तावे ए, अणउद्वेगकारी मन प्रवर्त्तावें १०, परतापनाकारी मन प्रवर्त्तावे ११, सर्वभूतकारी प्राणी जीवकुं साता उपजावकारी मन प्रवर्त्तावे १२. ' १३
१२ निर्जरातत्त्वना बार जेद कहें वें. प्रथम व प्रकारे बाह्यतप. अनशनतप १, कणोदरी तप २, वृत्तिसंक्षेप तप ३, रसत्यागतप ४, कायक्लेशतप ए, संलीनता तप ६, बम
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कारे अन्यतर तप. प्रायलित तप , विनयतप , वैयावच्चतप ए, सिधायतप १०, - ध्यानतप ११, उत्सर्गतप १२. १५ कल्प याने याचारवान देवता ते बारलोकना नेदे करी बार प्रकारे में तेहनां नाम.
सौधर्म देवलोक १, ईशानदेवलोक १, सनत्कुमारदेवलोक ३, माहेंजदेवलोक ४,ब्र ह्मदेवलोक ए, लांतकदेवलोक ६, महाशुक्रदेवलोक , सहस्रारदेवलोक , बानत
देवलोक ए, प्राणतदेवलोक १० धारणदेवलोक ११, अच्युतदेवलोक १२. . १५ १५ उपयोग बार प्रकारे में. मतिग्यान १, श्रुतिग्यान , अवधिग्यान ३, मनपर्यवग्यान
४, केवलग्यान ५, मतिअग्यान ६, श्रुतयग्यान ७, विनंगयज्ञान , चकुदर्शन ए,
वचकुदर्शन १०, अवधिदर्शन ११, केवलदर्शन १२. १५ चार वानां पामवा उर्खन में. मनुष्यन्नव १, भार्यक्षेत्र १, मातापितानोपद शुक ३,
मार्गानुसारी ४, रूपवंतपणुं ५, नीरोगता ६, पूर्णाङखो, नलीबुद्धि धर्म सांज- 10
लवो ए, धर्मनी रुचि १०, सहहणा ११, धर्मने विषे उद्यम १२. .. १७ १ ११ अथ बारह व्रत श्रावकका तिणमें पांच अणुव्रत उसका स्वरूप लिख्यते है. प्रथम |
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श्रावतमे श्रावक चलते फिरते त्रस्य जीवकुं जानबुझके मारनेकी बुद्धि करके न मारे, घुणा हुवा अन्ननट्टीमें चुनावें नही जर घुणा अन्न पीसें पीसावें नही जर दखें दखावें नही जर सिरका गेरे नही जर मखीका गता तो नही जर गोबर समावें नही जर विना गने पाणी पीवे नही जर रस चलित पदार्थको वर्ते नहीथर्थात् जिस खाने पीनेकी चीजका अपने वर्ण गंध रस स्पर्शसे प्रतिपदा अर्थात् मी सें खट्टा जर खट्टेसें कमुया वर्ण गंध रस होय गया जेर जिस धादामें तथा मिशन्न पकान बुरा थादिमें खट पर जाय तो उसे बरतें नही अर्थात् बहुत कालके लियें वस्तु संचय करके रके नही जेसेकि चतुर्मासमें था तथा पंह दिनकें जपरांत काल तक संचय करें नही जर ग्रीष्मकाल गर्मी में १५ दिन व एक महीनसें उपरात संचय करें नही जर शीत कालमें एक महीने तथा देढ महीनसें उपरांत संचय करें नही जर चैतके महीनेसें लेकर थासोजके महीने तक रोटी दाख श्रादिक ढीली वस्तु रातवासी रखके खाय नही ऐसे पहले अनुव्रतके पांच अतिचार कहें हैं. १ प्रथम नौकरको तथा पशु घोमा बैल यादिकको तथा पदी काग सूया
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दिकको रीस करके पिंजरे तथा रस्सी आदिकसे बांधे नही २ दूसरे नोकर थादि । कको तथा पशु बेल घोसा आदिकको क्रोध करीने गाढा घाव मारें नही ३, कुनके तथा बेल आदिकके अंग (अवयव) कान पूज आदि बेदन करें नही, ४ जंट घोमे बेल गधे तथा गामी यादिमें सामर्थ प्रमाणके उपरांत नार घरे नही, रातोः || करके तथा पशु गाय घोमे आदिककें घास खानेके समय अंतर दे नही अर्थोद । नूखें रखें नही ॥ इति प्रथमानुव्रतम् ॥ १॥ . ॥ अथ थूल मृपावाद स्वरूप ।। दूसरे अनुव्रतमें विना मर्यादा मोटा जूठ बोलें नही यथा सूत्र कनाली गोयाली खाली थापणमोसा कूमी साख इत्यादि जूठ बोलें नही जब तक जीवे तो फीर ऐसे कन्नी न करें १, किसीकुं जूंग कलंक - र्थात् तहोमत लगावें नही १, किसीके जीपे हुवें अपराधको प्रगट करें नही क्योंकी कोई चाहें कैसाहीहो न जानें अपनी बुराई सुनकर कुब थापघात आदि कार्य करतें य॑थै ३, जूग उपदेश करें नही जैसेंकी मेंने तो जूठ बोलता नही तुमने अमुक कार्यमें अमुक जूठ बोल देना ऐसें कहें नही ४, स्त्रीका मर्म अनाचार बिल
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कुल प्रगट करें नही क्योंकी स्त्री चंचल खन्नाव होती है सो पहिले तो लेती है जर पी बुराईको सुनकर जलदीहि कुएमें कुद पमती हैं इत्यर्थः स्त्रीका मर्म प्रकाशित न करें अथवा किसीकीनी चुगली न करें, ५ जूठी बही चीही लिखें नही॥ शति दितीयानुव्रतम् ॥३॥
अथ तृतीय अनुव्रत प्रारंन । तीसरे अनुव्रतमें ताला तोमना १, धरी वस्तु || जग लेनी, कुंची लगानी ३, राहगिर बूट लेने ४, पमी वस्तु धनीकी जानकें घ. स्नी, इत्यादिक मोटी चोरी करें नही जब तक जीवें तो फिर ऐसा अकार्य कनी न करें १, कोई चीज चोरकीचुराईजानकर फिर सस्ती समझ कर खोजके वश होकर लेयें नही १ चोरको सहारा देवें नही जैसेकी जावो तुम चोरी कर लावो में खे ढुंगा र तेरेपै कष्ट पहेंगा तो में सहारा हुंगा ३ राजाकी जगात मारे नही * कम तोल कम माप करें कही ५ नयी वस्तुकी वानकी दिखाकर फिर उसमें पुरानी दा वस्तु मिलाकें देवें नही॥ इति तृतीय अनुव्रतम् ॥३॥
॥अथ चतुर्थ अनुव्रत प्रारंजः॥ चोथे अनुव्रतमें ख परणीत स्त्री-संतोष करें।
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परस्त्रीसें कामसंवनका त्याग करें यावज्जीवतक फिरनी कन्नी ऐसा न करें १ अपनी मागी हुई स्त्री जैसैकी नसी सहरमें सगाई होय रही होय तो उस मांगी हुई स्त्री सें काम सेवें नही क्योंके वदविवाहीता नहीश्अपनी व्याही हुई स्त्री गेटी ऊमरकी| हो तो उसके साथ काम से नही क्योंकी जसे कामकी रुचि नही हुई है.३ परस्त्री कुमारी व व्याही अविधवा तथा वेश्या हो तिसके संग कुचमर्दन थादि कामक्री || मा करें नही जर शीलवान माता तथा नगिनी धादिकके पलंगादिक एक थास- ||* नमें बैठे नही जर उ वर्षके उपरांतकी बेटी हो तो उसे अपनी शय्यामें निखागत करें नही अर्थात् सुलावें नही जर ऐसेही स्त्रीकु चाहीयेकी अपने पतिके सिवाय जर कोई बहनोई तथा ननदोई तथा कोई नर पाहुणा तथा नोकर वा पमोसी. हो तिसके सामने कटादनत्रसें देखें नही तथा दंतपंक्ती प्रकटायके हंसे नही जर || विना कार्य बोलें नही जर पूर्वोक्त मनुष्योके साथ अकेली रस्तेमें बार चखें नही । तथा एकांतस्थानमें अकेली रहें नही जर विधवास्त्रीको तो विशेषही पूर्वोक्त कार्य ||* वर्जित है उर विधवास्त्रीको शृंगार न करना चाहीयें क्योंकी जब मैथुन त्यागा गया ||||
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तो फिर शंगार करनेकी क्या जरूरत है नर यात वर्षके उपरांत पुत्रादिकको अपने || साथ पलंगपर सुश्रावे नही जर पिता ब्राता श्वसुर जेठ देवर थादिकके बराबर एक वासन बेसे नही. क्योंकि अमि घृत के दृष्टांत अकार्य मैथुनके प्रसंगसे लोक व्यव-1 हारमें अपयश होता है और गर्नादि कारण होनेसे श्रापघात बालघातादि षण. होता हे.नेर दषणके प्रनावसे परलोकमें नरक प्रास होकर (अमि प्रज्वाखन)ता-||* ते थंन बंधन मारन तामन जम पराजवरूप सुःखोंका नागी होता है तिणे कारणसे काम क्रीमा हास्य विलास करे नही ४ चोथें पराये नाते रिस्ते सगाश् व्याह जोमे नही ५ कामनोगपर नीव अनिलाषा करे नही । ति चतुर्थ अनुवत ॥४॥
॥अथ पंचम अनुव्रत प्रारंन्नः ॥ पंचम अनुव्रतमें तृष्णाका प्रमाण करे सो परि ग्रह अर्थात सोना चांदी नरं रत्नादिक तथा मकानात खेत माल गाय नेंस उर घोमा आदिककी मर्यादा करे जैसेकी में इतना पदार्थ रखुंगा जर इतने उपरांत नही रखंगाजर फिरनी एसे न करे पूर्वे करी मर्यादा लंघे.जैसेकि मेने ५००० हजार | रुपीया रखाथा जर अब ज्यादा स्पीया होय गया तो अब मकानादि बनवा लूंगा
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अपितु ज्यादा होय जाय तो धनयदानादि धर्मोपकारमें लगाय देवे ॥शति पंचम अनुव्रतम् ॥५॥
॥ अथ सात शिदाबत लिखते है सो श्न ७ सिदावतोमेंसे प्रथम तीन गुण- | व्रत कहते है. इन तीन गुणवतोकें अंगीकार करनेसें पूर्व पांच श्रनुब्रतोको संवररूप | गुणकी पुष्टि होती है। अथ प्रथम गुणव्रत प्रारंना प्रथम गुणवतमें दिशाकी म. र्यादा करे जेसेकी उंची नीची दिशा पर्वत महल ध्वजादिक र नीचि दिशा कुथा | चुमि गृह थादिक और तिर्वि दिशा पूर्व १ दक्षिण पश्चिम ३ उत्तर " इत्यादिक दिशानकी मर्यादा करे. जैसे कि में इतने कोस उपरांत स्वेला काया करी रंन व्यापारादिके निमित्त जाऊंगा नही क्योंकि उतने कोस उपरांत बाहिरले दोत्रके || बकायके हिंसारूप वैरकी निवृत्ति रहेगी. फिर ऐसे न करेकि पूर्व जो जंची नीची ति- | नि.३ दिशाका जितना प्रमाण करा हो जुस विसरा देवे, क्योंकि जो. विसारेगा तो. शायद जादा जाना पड़ जाय र ४ चोये एसे.न करेकि मैने पूर्वकी दिशाको १० जोजन जाना रखा है सो पश्चिमको जानेका तो काम कम पढ़ता है और पूर्वको
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बहुत दूर तक जाना पड़ता है तो पश्चिमका १५ योजन जाऊंगा र पूर्वकुंजो -|| ज़न चला जाजंगा एसे करे नही ५पांचवें एसे ज्रम पम गया होकि मैने न जाने पश्चिमको ५० योजन रखाथा र पूर्वको १०० योजन रखाथा; न जाने पश्चिमको १०० रखाथा; तो पूर्व र पश्चिमको ५० योजन ऊपरांत जाय नही॥ इति. प्रथम गुणवतम् ॥६॥
॥अथ हितीय गुणवत प्रारंजः ठितीय गुणवतमें ग परिनोग पदार्थका यथाशक्ति प्रमाण करे अर्थात जपनोग्य पदार्थ जसको कहते है कि जो पदार्थ वार १ नोगा जाय जैसेकी फूल कपमा स्त्री मकान यादि सोएसे पदार्थोकी मर्यादा कर लेवे क्योंकि संसारमें अनेक पदार्थमें जर सर्व पदार्थ पांच प्रकारके यारं नसे सनीके वास्ते बनते है सो मर्यादा करे. विना पदार्थोकी पैदायशका थारंजरूप पाप हिस्से बमृजिम याता है क्योंकि डाके प्रमाण करे विना न जाने कोनसा शुन्नाशुज पदार्थ नागने में या जाय.जिसे एसे मर्यादा कर लेवे कि जैसे २४ चोवीस जातिका धान्य दे अर्थात् अन्न हे, तिस्कीमर्यादा करे की इतने जातिके अन्न नहि
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खाऊंगा जैसेकी मया चोला कंगनी स्वाक श्त्यादि धान्यका बिलकुल त्याग करे और फलोंकी मर्यादा करे. परंतु जो जमीनमें फल नत्पन्न होता है जैसेकी खशन गाजर मूली इत्यादि लाखोंकि सम है और जो त्रस जीव अर्थात चलतफिरते || जीवसहित फलंफूल सागहो जैसेकी गुलरफल पीपलफल बमफल आदि थोर फूल || कचनार फूलसिबल फूलगोनी आदि और सागनूणी सागचणा इत्यादि तो बिलकुलही त्यागने चाहिये और थकात फलानी न खाना चाहिये और ऐसेही ए प्रकारकी विगय सूत्र समाचारीमें कही है. अग्ध १ दही २ मकन नोणी ३ घृत ४ तेल ५ मांग गुम आदि ६ मधु शहद ७ मद्य मदिरा मांस ए शति सोश्नकी मर्यादा करे परंतु मद्य १ मांस २ ये विगय सर्व आर्य पुरुषोने अनद कही है सो श्न-|| को विलकुलही त्याग धौर ऐसेही चर्मगल सण जुन रेशम और कपासके वस्त्रकी मर्यादा करे परंतु चर्मके वस्त्रतो विलकुल त्याग दे और रात्रिनोजनकानी त्याग करे || रात्रिजोजनमें महा दोष है स्वमत परमत सन्नीमें त्याग है इससे अवस्य त्याग और चवदह नेमनी सी ब्रतमें गर्जित है सो चवदे बोलसे जाणना. फेर नोगपरि
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नोग्यकी मर्यादावान ऐसे करेकि १ मर्यादा नपरांत सचित्त वस्तु फलादिक शुन्य चित्त अर्थात गाफिल होकर खावै नही और २ सचित्त वस्तुको स्पर्श कर मर्यादा उपरांतकी अचित्त वस्तुनी खाय नही जैसे बृदसे गुंद तोमके खाय तोगुंद अचित्त है और वृक्ष सचित्त है इत्यादि र ३ अधपक्का खाय नही और ५ कुरीतपक्काया जैसे ही चूर्थीयादिक-खाय नही और ए नूख अनिवारक जिस औषधि अर्थात जिस फलसे नूख न मिटें उसे खाय नही जैसे जिस फलका थोमा खाना और बहूत गेरनेका स्वन्नाव हे, यथा ईख सीताफल अनार सिंघोमा जामन जमोया कैत बिल्ल इत्यादि खाय नही,अथ दूसरे गुणवतमें अशुरु कर्त्तव्यकानी त्याग करे जैसेकी १५ कर्मादान सो पनरमें वोलसे जाना ॥ इति सप्तम ब्रतम् ॥
॥ अष्टम गुणवत प्रारंजः ।। अनर्थदंम अर्थात् नाहक कर्मबंधका ठिकाना तिसका त्याग करें वह अनर्थदंग च्यार प्रकारका है. १ प्रथम अवाणचस्यिं सो थार्तध्यान अर्थात् १ मनोगम पदार्थके न मिलनेकी चिंता ५ अमनोगम पदार्थ मिलनेकी चिंता ३ नोगोके न मिलनेकी चिंता और ४ रोगोके मिलनेकी चिंताका क
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रना २ दूसरा रौऽध्यान अर्थात् यम हिंसानंद सो हिंसाकर कर्मके विचारमें| ध्यान होता जैसेकि मेरी सोकन तथा सोकनका पूत किस नपायसें मारा जाय | और कब मरेगा तथा मेरी स्त्री रोगी है वा कुरूपा कलहकारी हे सो कब मरेगी | और यह बुढाबुढी कब मरेंगे तथा मेरे वैरीका नास कब होयगा और वेरीके शोक || कब पमेंगा तथा वेरीके घरमें तथा खेतमें भाग कव लगेंगी इत्यादि और दूसरे मृपानंद सो जूठ बोलने के तथा जूग कलंक देनेके उपाय विचार रूप और ३ चौ.* निंद सो चोरीके ब्लके विश्वासमें देनेके प्रसंग ठगी करनेके उपाय विचाररूप |
और चोथे ४ संरक्षणानंद सोधन धान्यके पैदा करनेके तथा धन धान्यकी रदा करनेके हिंसाकारी उपाय विचाररूप अर्थात् चूहे घी खाते है तो बिल्ली रखो इत्यादि सोचे.थार्तध्यान जर रौध्यान,ध्यानमें अनर्थ अर्थात् नाहक कर्मबंध हो जातें है अथ दूसरा अनर्थदंम प्रमादाचरण सो प्रमाद ५ पांच प्रकारका है तिसका थाचरण सो प्रमादाचरण होता है सो १ प्रथम निषा प्रमाद सोचें मर्यादा वखत बेवखत मो रहना यथा निषा चार प्रकारकी है १ स्वल्पनिका २ सामान्यनि
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जा ३ विशेषनिषा ५ महानिखा. स्वल्पनिला सो सात प्रहर जागना और एक पर सोना तिसकं नत्तम परुष कहते है, और दसरा सामान्यनिडा सो पांच पहर जागना और त्रण पहर सोना तिसको मध्यम पुरुष कहते है. और तीसरे विशेषनिखा सो चार पहर जागना और चार पहर सोना तिसको जघन्य नर अर्थात् नीच नर कहते है. और महानिषा सो तीन पहर जागना और पांच पहर सोना थायोमण नर कहते है. परंतु रोगादिक कारणकी वात न्यारीहे. औरश्राविकविवेकवान रके नही क्या दिककी कथा करनी और देशोके खाने पक्कान व्यंजन कए जस उपकरणसे पके चाल चलन आदि चोरोंकी जारोंकी राजाओंकी.क
से नाहक कमबध और ३ तीसरे विषयप्रमाद सो बाग बगीचा नाटक | A-अवतक ताना और पराये वर्ण गंध रस स्पर्श देखके जुलसना और फार
अाणमित पुरुपको देखना क्योंकि वहां एसे परिणाम होणेंक
फांसी लगें कब घरकुं जाये इत्यादि. और ४ चोथे कक्षायम माद क्रोम नारक जलना और मानमें नमेवना और माया अर्थात् दगाबाजी
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याने उससे बात धमनी और लोन संझामें प्रवर्तना जैसे कोई अकसका अंधा
और गांउका पूरा प्राय 'जाय इत्यादि और ए पांचवे बालस्यप्रमाद सो गुरु दर्शन करनेका और व्याख्यान पुणनेका बालस्य जैसेंकी धूप पम्ती है अब कौन जाय.
और सामायिक करनेका शालस्य कि अबतो गर्मी पमती है तथा शीत पमती है कौन सामायिक करें. और साधूको थाहार अर्थात् निदा देनेका बालस्य करेंकी अरे अमुक तुही देदे, मैं तो लेटाहुं. इत्यादि तथा घी तेल तथा याचारका बर्तन गुरु तथा सहतका बर्तन इत्यादिक जघामा बालस्य करके रखें तो नाहक कर्म बंध जाते है. क्योंकि प्रदेश जतु स्थूल सूक्ष्म पूर्वोक्त नाजनोमें गिर गिरके सूब सूबके | मरजात है ति दितीय अनर्थदंम २. अथ ३ रा अनर्थदंम. पापकर्मोपदेश सोब-14 पने मतलब विना हरएक पास पमोसी थादिकको ऐसें कहनाकि अरे तेरे बदमे बमे होय गये है श्नकु बधिया कराले तथा तेरी गाय घोमी सुनी होय गई है । नकु गर्जन करावें तथा तेरी बेटी सुनी हो गई है इसको व्याह दे तथा श्राम थामले थादिक बहुत विकने आये हैं सो तुम बेवे क्या करते हो,जानें ले थार्ज,
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श्राचार गेर लो अबतो सस्ते मिलते है तथा घरे तेरे खेतमें जामिये बोहोत हो गई है तथा बाम पुरानी होय गई है सो श्नको फूंक दे इत्यादि. इति तृतिय थनर्थदंम ३. श्रय ४ चोथा अनर्थदम. हिंसाप्रदान सो हल मुसल चकी चर्खा दांती कुहामा घीयांकस कांटा मोल निकालनेका कोहलु इत्यादि तथा शस्त्रकी जाती त-॥ था टोकना कमादा भासमाना इत्यादि उपकरण अपने वर्तनसे ज्यादा रखने सो विवेकवान रके नही. क्योंकि ज्यादा रखेगा तो हरएक माग लेजायगा तो वहलेजा || नेवाला नस उपकरणसे पटकाय हिंसारूप धारंन करेगा. तव जसको थारंनका हि-||* स्सा भावनेसें नाहक कर्मबंध होंगे. इस च्यार प्रकारके अनर्थदंमका बुध्विान पुरुष || त्याग करें यावज्जीवतक तो फिर ऐसें न करें. १ प्रथम कंदर्प सो हांसी बिलास ठ का (मश्करी) कामविकारके दिपानेवाले गीत राग रागनी दोहा बंद इत्यादिक निरर्थक चित्त मलीन करनेके और सोग पैदा करणेके कारण है. सोन करे और दूसरा कुकच सो जमचेष्टा जैसेकी काणेकी अंधेकी लंगमेकी गूंगेकी खाज श्रादि | रोगीकी नकल न करनी याने वैसे वनके दिखाना फिर हमहम करके हंसना जर
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शौरोको हंसाना और तिलस्मात् इंडजाल करके कुतुहल करना तथा ख्याल तमा शे सांग नाटकका देखना तथा चोपम गंजीफा गोली कौमीसें खेलना इत्यादि निर्थक कालका और काजका विगोवना है क्योंकि इसमें कुछ लानका. कारण नहि है इसीसें जम चेष्टा न करें. और ३ तीसरे मुखारिसो नाहक गांली देना याने गा-| ली बिना बातका न करना तथा मातापिता और शाहका जर, विद्या गुरुका सामना कमुथा बोलना और निंदा करना तथा देवगुरु धर्मकी कसम खानी और तु तुं ||* क्या है,श्त्यादि निरर्थक कलहका करना सो न चाहिये.और ४ चोथे संयुक्त अ॥ धिकरणसोपायकारी उपकरण पूर्वोक्त गज गननी हल मूसल श्रादिक बहुत रख-|| ने. सोरके नही.और ५ में उपनोग्य अतिरिक्त सो खानेकी पीनेकी पहरनेकी वस्तु पै बहुत मोह करना और अनहुई वस्तुकी चाद करनी. जैसेकी मेरी पमोसीकी छ। कान हवेली स्त्री थादिक क्या यही है, थाह मेरे ऐसी ऐसी क्यों न हुई मुफेनी ऐसी चाहीय. इत्यादि तीव्र अग्निलाषा करनी न चाहीये शति तृतीय गुणवतम् ॥
॥अथ प्रथम शिदाव्रत प्रारंजः ॥ प्रथम शिदाव्रतमें सामायक करें सो सामा
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यिक च्यार प्रकारकी. उव्यथकी १ देत्रथकी कालथकी३ जावथकी४ ते अन्य थकी सामायिक १ तथा श्खेत्रथकी लोक प्रमाणकालयकी २ घमी तथा ४ घमी ३ नावथकी शान्ति प्रणाम और सर्वतूत यात्मकल्प शत्रुमित्रसम४श्त्यादि अथवा। प्रकारकी सामायिककी शुरुता सो १ ऽव्यथकी खेत्रथकी कालथकी। नावकी. सोव्यथकी सामायिक शुक सामायिकका नपगरण शुरू अर्थात् श्रासन शुक रके जैसेकी बहुत करमा तप्पम आदिकका न रके क्योंकी कोई मकोका थादिक जीव मसला न जाय और बहुत नर्म नमदादिककालीन रके क्योंकि कोई पूर्वोक्त जीव फसके न मर जाय. सोलो तथा कंबलं तया बनात तथा और सामान्य वस्त्रका आसन रके जर पचर आदिककी नारी माला न रके. सूतकी तथा काष्टकी माला सोनी हलकी होय तो रके और पूजन थानुपूर्वी पोथी शुरू रखें १ देत्रथकी सामायिक शुछ सो पूर्वोक्त एकांत स्थानक सामायिक करें अपितु नाटक चेटकके स्थान तथा चूल्ले चक्कीके पास न करें. क्योंकी नाटक चेटक रागादिक देखने सुननेसें शायद श्रुति सामायिकसे निकल जाय और चुल्ले चक्कीके पास सचित्तका.
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संघट्ट होय जाय तथा बालबच्चे के बावजावसें चित्त भंग होय जाय इत्यर्थः और || खामायिक शुछ सो लघुनाति वमीनीतिकी बाधाका काल न होय तथा राजादिक-||* 'के बुलानेका यानि कचहरी जानेका काल न होय क्योंकी चित्त व्याकुल होय जा यगाकि कव सामायिक पूरी होय और कब जाऊं इत्यर्थः ३ नावशुछ सो पूर्वोक्त नावका शुद्ध रखना ॥ इति प्रथम शिदाव्रतम् ॥ए॥
॥ अथ द्वितीय शिदाव्रतम् प्रारंन ॥ वितीय शिदावत दिशावकासी सोबळें| और सातवें व्रतमें दिशाका और जपनोग परिनोगका विस्तारसहित और यावज्जी वतक प्रमाण कियाथा सो उसमेंसे दसवें दिशावकाशीव्रतमें दो घमीसें लेकर चार * मास लगकी बहुत मर्यादा कर लेवें यथा सूत्रम् ॥इति द्वितीय शिदावतम् ॥१०॥
॥अथ तृतीय शिदाव्रत प्रारंनः ॥ तृतीय शिदावत पोसोपवास सो द्वितीया पं. चमी अष्टमी एकादशी चतुर्दशी तथा पदीके दिन वा जिस दिन बन या उसी दिन पोषधसाल अर्थात् एकांत मकानमें चारों श्राहार मैथुन और सावध व्यापारका परित्याग करके सूर्योदयसें अगले सूर्योदय तक बेग रहें यथा सूत्र पोसा करें,
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देवगुरु धर्मकी महिमारूप खाध्याय करें और पमना पमाना सिखना सिखाना थादिक धर्मकार्य करता रहें और जो पूर्वोक्त तिथियोंको पोपावन न बन यावें तो पदीको जरूर करें जर जो पदीको न बन आयें तो चोमामीको करें और जो चो. मासीकोनी न बन पायें नो उमरीको तो जरूरही पोपा करें क्युकी वर्षदिनमें एक दिन तो सफल होय जाय इत्यर्थ ।। शति तृतीय शिदावतम् ।। ११ । '
॥ अथ चतुर्थ शिदाव्रत प्रारंनः ।। चतुर्थ शिदाबत श्रातिश्यमंविनाग सो तथा रूप श्रमण साधु त्यागी पुरुषको निर्दीप पासूक अन्न पाणी देवें परंतु ऐसें न करेंकी १ प्रथम जो पासूक अर्थात् अभिआदिकसे नथा पीसन कूटन प्रमुख निर्जीव पदाथे हो चूका हो तो फिर जसको मचित्त फल फूल बीज आदिक नपर रखना नहीं || और २ दूसरे मचित्त वस्तु करके प्रासूक वस्तु को टके नही क्योंकी जो ऐसे रखें तो नसको साधु महापुरुषके पमिलाननेकी दान लब्धि केसे होगी और उनकी नावना विनतीनी निष्फल होय जायगी और ३ तीसरी साधुकी निदाकी वख्त बीते पी.
भावना नावनी सो कालाश्कम्मे दोष है क्योंकि समयपर नावना नावें तो शा.
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यद सुफलानी होय जाय और विना समय तो अकाल मेघ मागनेवत् है और चोथे जो गृहस्थी आप एकांत वेग हो तो प्रमादके बस होके दूमरेको थाहारपानी * देनेका काम न सोंपे अपितु आपही देवे क्योंकी आपदेश कुल आदिकी सामग्री बिना सुपात्रदानकी योगवार कहां धरी हे श्त्यर्थः और ५ पांचवे थाहारपाणी दे नेके पहिले वा पीने अहंकार न करे जैसेकी में बमा दाता हुँ मेरे तुल्य और यहां कौन दाता है हे नाथ जो आपको चाहिये सो यहांसे ले जाया करो अथवा मै ||* दान उंगा तो लोक मेरी वमा करेगे अपितु निर्जरा मोंदार्थ उत्साह सहित दान ||* देवे सो इस रीतीसे जैन धर्मकी मन्नावना होती है ।। इति चतुर्थ शिक्षा व्रतम् ॥ इति बारह व्रत संपूर्णम् १५. बारे नावना. १ अनित्य नावना. यह हमारा शरीर वैनव लक्ष्मी जर कुटुंब परिवार ||* ए सर्व विनाशी है हुँ आप अविनाशी हूं तो नश्वर वस्तुमें नाहक मूर्ग करके बुब्ध हुवा हुं. श्य शरण नावना. मृत्यु समय मैरा एश्वर्य लक्ष्मी जर कुटुंब परिवार मेरेकुं || बचावेगा नही जर साथनी को करेगा नही अशरण ऐसा मुमकुं एक धर्मकाही
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शरणा हे ३ संसार नावना. में (हमारी श्रात्माने) यह संसार समुज्में नमतां अनं-|| ता नव कर्या हे अब में उस बंधनसे कब बुटुंगा ४ एकत्व नावना.यह मेरीयात्मा एकली हे एकली धाश्हे परनव एकलीही जावगीजर किया अशुन कर्मफल
यापही नोगेगी५अन्यत्व नावना. हुं किसीकानहीजर नहीको मेरा है ६शशुचिनावना. यह नदारीक शरीर अपवित्र हे मलमूत्रकी खान हे रोग र जराका घर है में तिणसे जुदा हूँ ७ श्राश्रव नावना. मिथ्यात्व अव्रत प्रमाद अशुन योग जर कपाय, यह पांच पापकुं प्रवेश करणका रस्ता है अर्थात याश्रव हे संवरनावना. समकित ब्रत पचखाण अप्रमाद शुन योग जर अकषाय यह पांच यावा कर्मकुं रोकणैका दरवाजा हे अर्थात संवर हे ए, निर्जरा नावना-अनशन ननोदरी वृत्ति संदेप रस त्याग कायके क्वेष इंडिय पमिसंखीनता प्रायश्चित विनय वैयाक्च शास्त्र पठन ध्यान जर कानसग ये बारह जो पूर्व बंधे हवे पापोकुं बालने वाले अमिसमान निराबे १०,लोकस्वरूप नावना..मे अमुक घरमें हूँ याने कूवाके मेंमकवत अहंकारमें रह्या हुं परंतु चवदह राजमोकके अगामी में उर मेरा रदणका ||*
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स्थान किस गिणतमे. जना हुवा मनुष्यका आकारे रह्या चवदह राजलोकमे नीचे जुवनपति व्यंतर जर सात नरक दे त्रिजीमे अढाइ हीप हे जंचे बारे देवलोक नव प्रैवेक पांच अनुत्तर विमान र उपर अनंत सुखम पवित्र सिधगतिकी नजीक 'शिक्षशिला हे ११ धर्म नावना नव ५ में भ्रमण करतां २ सम्यक ज्ञानकी प्रसादी मेलणी अति मुर्खन हे १२ बोधिलन नावना धर्मके उपदेशक तथा शुरू शास्त्रका बोधक एसे गुरु जर श्रवण मिलना थति कठिन है॥ इति नावना ।।
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॥अथ तेरें बोल लिख्यते ।।
१३ तेरे १३ क्रिया. अता १, अणमा दमे १, हिंस्या दमे ३, अकस्मात दमे ५, दि.
खिविपर्यास दमे ५, मोसवतीए ६, अदिन्नादाणवतिए , अनबवत्तिए 0 माणवतिए ए, मितरदोसवत्तिए १०, मायावत्तिए ११, लोनवत्तिए ११, शस्यिावही १३. १ तेरे बोल हुवे जिहां साधू चोमासो करे बेरिडियादिक जीव थोमा होय १, कीचम कादो थोमो होय श्नच्चार पासवणकी जायगा निरवद्य होय ३,थानक साताकारी हुवे ४, दहि दूध घृत गोरस घणो होय ५, बस्ती घणी होय ६, राजवैद्य होय , घोषधनषेध चाहिजे सो मिले , श्रावक कोठे धान घणो होय ए, गामरो गकुर रागी होय १०, पाखंमीयोंका जोर थोमा होय ११, थाहार पाणीनी साता होय १२,
सिबाय करणेकी जायगा जुदी होय १३. है| १३ तेरे तिणगा जन्मरूपणी रूई मरणरूपणी तिणगा १, संयोगरूपणी रूई वियोगरू
पीया तिणगा , साता रूपणी रुई साता रूपीया तिणगा ३, संपदा रूपणी रूई
५
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थापदा रूपीया तिणगा , हरख रूपणी रूई सोच रूपीया तिणगा ५, सिलाई कुशील रूपीया तिणगा ६, ग्यानरूपी रूई अग्यानरूपी तिणगा , सम्यक रूई मिथ्यात्वरूप तिणगा , संयमरूप रूई असंयमरूपी तिणगाए, तपस्यारूपी र क्रोधरूपी तिणगा १०. विवेकरूपी रूई अनिमानरूपी तिणगा ११, सनेहरूपी रूई
मायारूपी तिणगा १२, संतोष रूपणी रूई लोन रूपीया तिणगा १३. १३ तेरें बोल. विद्या बुद्धिवंत नही.१, धर्मका प्यारा नही , धनवंत नही ३, जातका
निर्मल नही ४, दानको दातार नही ५, शूरवीर नही ६, रूपवंत नही , पंमित | नही ७, बहूश्रुति नहीए, सो नागवंत नही १०, मिथ्याल गया नही ११, सदा-|*
काल नली मनमें थावें नही १२, तपसी नही १३. | १३ तेरे काठीया. दूहा. जूवा १, आलस २, सोग ३, नय ४, कुकथा ५, कौतिक ६, ||*
कोह , पण बुध , अज्ञान ए, ब्रम १०, निडा ११, नर मद १५, मोह १३. | १३ वेवढ पामे वाटमे, करे उपञ्च जोर जैसे देश गुजरातमें कहे काठीया चोर.श्था
लस कर्म काठीयो १, मोह कर्म काठीयो , अजस (जंगण) कर्म काठीयो ३, |||
४॥
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प्रमाद कर्म काठीयो ४, कषाय कर्म काठीयो ५, रोग कर्म काठीयो ६, अविनय कर्म काठीयो , मान पूजा कर्म काठीयो , नय कर्म काठीयो ए, अंतराय कर्म काठीयो उपदेश नही लागे १०, अपजोग कर्म ११, निा कर्म काठीयो ११, सम-||* दाणी कर्म काठीयो १३.
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• ॥अथ चवदह बोल लिख्यते ॥ १४ अजीवतत्त्वना १४ बोल कहें में. धर्मास्तिकाय स्कंध १, धर्मास्तिकायदेश १, धर्मा
स्तिकाय प्रदेश ३, अधर्मास्तिकाय स्कंध , अधर्मास्तिकाय देश ५, अधर्मास्तिकाय प्रदेश ६, थाकाशास्तिकाय स्कंध , आकाशास्तिकाय देश , श्राकाशास्तिकाय ||* प्रदेश ए, कालवर्तना लक्षण १०, पुद्गलास्तिकाय स्कंध ११, पुद्गलास्तिकाय देश १५ पुद्गलास्तिकाय प्रदेश १३, पुद्रास्तिकाय परमाणु १४.
१४ १४ काल प्रमाण १४ नेद. प्रथम अति सूक्ष्म कालने एक समय कहिये १, तेवा असं
ख्याता समये एक श्रावलिका थाय २, तेवी १६७७७११६ श्रावलिये एक मुहूर्त था-|| य ३, त्रीस. मुहूर्ते दिवस एटले एक अहोरात्रि थाय ४, पंदर अहोरात्रे एक पख- | वामयुं थाय ५, वे पखवामीये एक महीनो थाय ६, बार महीने एक वर्ष थाय 9, | तेवा ७०१६०००००००००० वर्षे एक पूर्व थाय U, तेवा असंख्याता पूर्व एक पढ्योप-| म थाय ते थावी रीते च्यार गान जमो अने च्यार गान पहोलो गोल थाकारे ती-||8|
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न योजन फाफेरी परिधिवालो एक पट्य कल्पवो ते मादिनत्तर कुरुदोत्र संबंधी यु.॥॥ गलीयानो रोम एहवा सूक्ष्म में के ते ४०५६ रोम एकग करीये तिवारे कर्मचूमि मनुष्यनो एक बाल थाय एहवा ते युगलीयाना सूक्ष्म रोम ते रोम लंबाश्ये एक तसुनो लेश्ने तेना सात वखत श्राप थाप कटका करीये तेवारे २०७१५५ कटका || थाय तेवा कटके करी पूर्वोक्त पालो जरीजे पनी ते एकेक कटको सो सो वर्षने थां-* तरे काढतां जेवारे ते पल्य खाली थाय तेवारे संख्याता वर्ष थाय तेने बादर पक्ष्यापम || कहीयें थने ते पूर्वोक्त एकेका रोम खमना असंख्याता खंड करीने तेवा खमे ते पू. वक्ति कूप एवी रीते गंसीने नखो के तेना उपरथी चक्रवर्तनी सेना चाली जाय तो पण ते दवाय नही पनी ते एकेको सूक्ष्म खम सो सो वर्षे काढतां असंख्याता पूर्व || व्यतिक्रमे बते ते पन्य खाली थाय तेवारे एक पख्योपम थाय ने ए, दश कोमाको मी पब्योपमे एक सागरोपम थाय ११, दश कोमाकोमी सागरोपमे एक श्रवसर्पिणी थाय ११, दश कोमाकामी सागरोपमे एक उत्सर्पिणी थाय ११, उत्सर्पिणीथ वसर्पिणी मिली एक कालचक्र थाय १३, अनंता कालचक्रे एक पुद्गल परावर्त्त थाय
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एवा. अनंता पुद्गल परावर्त संसारमें परिभ्रमण करतां जीवे व्यतिक्रम्या-१५.... १४ संघपट्टा नाम अंथ तथा गुणप्राप्त नाम ग्रंथमें सम्यक्त्वने लायक मनुष्यमें चवदे बोल
पावें. पहिले थापणी.यात्मारो कल्याण करनेकी दृढ हा होय १, गुणग्राही होय १, जूठने निंदवे ३, विनयवंत होय ४, निष्कपटी होय ५, सत्यवादी होय ६, पांचुं जियाने दमणहार होय ७, कोमल हृदयरो धणी होय., नीतिवान होय ए, थिर चिंत्तनो धणी होय १०, हिमतबाहार होय ११, खरे धर्मरो थरथी होय ११, बुधवान होय.१३, विवेकवान,१५. .
. . . . . ३ १४ शिक्षाके १६ बोल. १ मातापिता गुरु-तथा मोटा पुरुषनो विनय :करखो केशने थानके
मौनपाएं धारण कां, ३ इंडीयो.सर्वथा वश राखवी, ४ एक श्रदार शीखवनारने पण गुरु करं। मानवो, ५ पोताना अवगुण शोधी कादवा, ३ महोटा पुरुष घेर धावें तो || जन्ना थक्ष सन्मान.देवं, 9 दोस्तदारी मित्राचारी पंमितो साथे राखवी, नवानवां शास्त्र वाचवानो. अन्यास. राख़वों, ए जे यापणीसगी थती नथी तेनी.साथे बाध-* थवा बेन वा माता कहीने बोलवानो रीवाज राखवो १०, पुत्र पुत्रीने नानपणमाथीज
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सार संगत राखवी सदविद्या तथा धर्मना मूलतत्त्व शिखावना ११ जवान अवस्थामा पांचे इंजियोने वश करखी तथा रागपि विषय अने कपायादिक जीतवा, १५ हुँ मृ.. त्युना मुखमा रह्यो तुं माझं घायुष्य दणमात्र नथी एम मानी यथेष्टदान धर्म आचखा, १३ सर्व वस्तुनो नाश थतो होय तोपण पोतानुं वचन अवश्य पालवं, १५ क-|| रखं होय ते बनते प्रयत्न झाननी अने ज्ञानीनी विनय नक्ति करो अने लघुनीति
वमीनीति स्नान मेथुन अने नोजन करती वखते शब्द उच्चारण न करो. १४ जीवका नेद १५. एकेजीका ४ नेद. सुक्ष्म एकेंद्री अपर्याप्ता १, पर्याप्ता २, बादर ए
केंसी अपर्याप्ता ३, पर्याप्ता ४, चरेंडी अपर्याप्ता ५, पर्याप्ता ६, तेरेंडी अपर्याप्ता , पर्यासा , चोरेंडी अपर्याप्ता ए, पर्याप्ता १०, प्रसन्नीपंचेंजी थपर्यासा ११, पर्याप्ता |
१२, सन्नी पंचेंसी अपर्याप्ता १३, पर्याप्ता १४. १५ गुणगंणा १४. मिथ्यात्व गुणगंणो १, सास्वादन गुणगंणो १, मित्रगुणगंणो ३,
श्रवृत्ति सम्यग्दृष्टि ४, देशवृत्ति गुणगंणो ५, प्रमत्त गुणगणो ६, थप्रमत्त गुणगंपो, नियटिवादर गुणगणो , अनियट्रिवादर गुणगणो ए, सुक्ष्म संपराय गुं
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पागंणो १०, उपशांत मोहनी गुणगणो ११, वीणमोदनी गुणगणो १२, सयोगी
केवली गुणगणो १३, अयोगी केवती गुणगंणो १४. . १५ मूर्बिम मनुष्य १४ ठिकाणे ऊपजें. उच्चारेसुवा वमीनितिमें १, पासवणेसुवा मूत्रमें |
२, खेलेसुवा खंखारमें ३, संघाणेसुवा नाककें मेलमें , वातेसुवा उलटीमें ५, पिते | सुवा पीत्तमें ६, सोणिए सुवा खूनमें 3, पोयणीसुवा परुपासमां , सुक्के सुवा वीर्य में ए, सुक्क पुग्गलपरिसामे सुवा वीर्य सुका हुता फेर गिला हुवें उसमें १०, नगर नि. घमणे सुवा शहेरकी खालमें ११, स्त्री पुरुष संयोगे सुवा.१३, सबे असुश् गणेसुवा. पूर्व १४ ना नाम. उत्पात पूर्व १ हाथी प्रमाण ममी लिखता लागे १, अग्रणी पूर्व २ हाथी प्रमाण मसी लिखता लागे २, वीर्य प्रवाद पूर्व ४ हाथी प्रमाणे मसी लि.' खता लागे ३, धास्ती नास्ती पूर्व ज हाथी प्रमाणे मसी लिखता लागे , ज्ञानप्रवाद पूर्व १६ हाथी प्रमाण मसी लिखता लागे ए, सत्यप्रबाद पूर्व ३२ हाथी प्रमाण मसी लिखता लागे ६, श्रात्माप्रवाद पूर्व ६४ हाथी प्रमाणे मसी लिखता लागे , कर्मप्रवाद १२ हाथी प्रमाणे मसी लिखता लागे , प्रत्याख्यान पूर्व २५६ हाथी
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प्रमाणे मसी लिखता लागे ए, विद्याप्रवाद पूर्व ५१२ दाथी प्रमाणे मसी लिखता लागे १०, विद्या पूर्व १०२४ हाथी प्रमाणे मसी लिखता लागे ११, प्राण पूर्व २०४८ दाथी प्रमाणे मसी लिखता लागे १२, क्रिया विशाल पूर्व ४०५६ दाथी प्र· माणे मसी लिखता लागे १३, लोकविंडसार पूर्व ८११५२ हाथी प्रमाणे मसी लिखता लागे १४, सर्व दाथीनी संख्यां १६३०३ हुवा.
१४ जंबुद्दीपमें १४ मोटी नदी. गंगा १, सिंधू २, रोहिता ३, रोहिसा ४, हरिकंता ए, दरि सलिला ६, सीतोदा 9, सिता प, नरकंता ए, नारीकंता १०, सोवन्नकुला ११, रूपकुँला १२, रत्ता १३, रत्तवश १४, ए सर्वने १४ लाख ५६ हजार ५० नदीजनो परिवार बे.
G
१४ अरिहंतनी माता १४ सुपना देखे. दाथी १, वृषन २, सिंह ३, खक्षीदेवता ४, फूलमाला १, चंद्रमा ६, सूर्य ७, घजा , कुंन ए, पद्म सरोवर १०, खीर समुद्र ११, देवविमान १२, रत्नराशि १३, मिशिखा १४.
१४ देवतामदि १४ बोल उपजवाना. संजय प्रवियदवदेवा जघन्य तो भवनपति -
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स्कृष्टो ऊपरती नव प्रैवेयकमे १, अविराधक साधु जघन्य पहिले देवलोक उत्कृष्टो २६ देवलोकमें २, विराधक साधु जघन्य नवनपति उत्कृष्टो पहिले देवलोकमें ३, अविराधक श्रावक जघन्य पहिले देवलोकमें उत्कृष्टो बारमें देवलोको ४, विराधक श्रावक जघन्य नवनपति उत्कृष्टो ज्योतिषी ५, असन्नी तिर्यंच जघन्य नवनपति ज. त्कृष्टो वाणव्यंतर ६, बालतपसी जघन्य नवनपति उत्कृष्टो जोतिषी ७, कुतुहलीयो साधु जघन्य नवनपति उत्कृष्टो पहिले देवलोक , प्रवार्थक त्रिदंमीया जघन्य नवनपति नत्कृष्टो पांचमे देवलोक ए, निन्दवजमाली जघन्य नवनपति बळे देवलोक | हेकिलमेषी १०, सन्नी तिर्यंच जघन्य नवनपति उत्कृष्टो पाठमे देवलोक ११, श्राजीवकामति गोसालो जघन्य सौधर्म उत्कृष्टो बारमे देवलोक ११, अन्नियोगी साधु जघन्य नवनपति उत्कृष्टो वारमे देवलोकं १३, खलिंग साधु दर्शणविवनगा जघन्य
नवनपति उत्कृष्टो उपरली ग्रीवेकमां १४. है| १५ श्रवनीतके १४ बोल. बार वार क्रोध करें ते अवनीत १, प्रतिबंधका क्रोध करें ते श्र
वनीत २, मित्रकी मित्राई गमे तो श्रवनीत ३, सूत्र नणी मद करें तो अवनीत ५ ||8||
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आपके गुण पारके माथे देखें तो अवनीत ५, मित्र नपरी कोप करें तो श्रवनीत || ६. मित्रकी पूर्व पाजे निंद्या करें तो अवनीत ७, निश्चयकारीनाषा बोलें तो अवनीत , सोही दोष तो अवनीत ए, अहंकारी होय तो अवनीत १०, संविघ्नागी कीसीकुं नही हवे तो यवनीत ११, अप्रितीकारीयो होय तो अवनीत १२, लोनी
होय तो अवनीत १३, इंघीयो मोकली मेले-विषय लालची ते अवनीत १४. १२ १४ सातावेदनी १४ बोल करी बांधे. दयावंत होय तो १, दर्षसुं दान देवें तो १, दमा
करें तो ३, व्रतपच्चकाण शुरु पालें तो ४, पांच इंजीवश करें तो ए, बकायरी. दा करें तो ६, शुद्ध मन शील पालें तो 9, ग्यानवंत होय तो ज, साधुको वंदणा नमस्कार करें तो ए, सूत्र सिद्धांत नणे तो १०, तीर्थकरजीने चंदणा नमस्कार करें तो ११, अनुकंपा करें तो ११, धर्मोपदेश देखें तो १३, सत्यवचन बोलें तो १४. १३ चक्रवर्त्तिक १५ रत्न. गाथा सेणावेश सेन्यापती १, गाहायगाथापती, पुरोहिया पुरोहित ३, वदेश सुथार ४,चियनाकरे बिरयणराकुखें स्त्रीरल.५, वयतले करी इस्ति रत्न ६, तुरीयी अश्वरत्न ७, चक्का चक्ररत्न , असि खारत्न ए, बत्र बत्ता
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१०, दमेय दमरत्न ११, थानह सालाहवंति चत्तारी चम्म चर्मरत्न ११, मणी मणी
रत्न १३, कांगणी कांगणीरत्न १५. निही सिरीगेहे चकिणो हुंती. १४ चवदे ग्यानका अतिचार. गाथा जंवाझं बाधा पाग सूत्र अर्थ नएया १, वचा
मेखीयं उपयोगरहित नएया २.दिणखरियं हिण अदर नएया ३, अचखरियं श्रधिक श्रदर नण्या , पयहिणं पद जंगे नएयो ५, विनयहीणं विनयरहित नणे ६, जोगहीण तीन जोग गम राख्या विना नणे , घोसहीणं शुधनचारहीणं , सुदिनं नलो ज्ञान अविनीतने दोघो ए, उछ पमिबियं अविनीतपणे ग्यान लीयो
१०, काले कर्ज सिशा अकालमें सशाय कीनी ११, काले न कळ सिशान || ___खरे वखते पढ़ें नही ११, असिशाए सिशायं असिशाश्में नएया होय १३, सिशाएन
सिशायं सिशाय करखा योग्य जायगामें सिशाय नही करी होय १४. १५ उत्तम पुरुषके १४ सदण. सुमतिवंत १, शीलवंत २, संतोषी ३, सत्संगी, खजन ५, साचाबोला ६, सत्पुरुष, समेला , सुलक्षण ए, सुलज्ज १०, सुकुलीन ११, गंनीर १२, गुणवंत १३, गुणज्ञ १४.
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49693++£3+£63*****99***99*9893986934
१४ वमी चोवदद विद्याका नाम. नजोगानिनी १, परकाय प्रवेशनी २, रूप परावर्त्तनी ३, स्तंभनी ४, मोहनी ए, सुवर्णसिद्धि ६, रजत सिद्धि 9, रससिद्धि छ, वंधथोजिनी ए, शक पराजयनी १० वशीकरणी ११, भूतादि दमनी १२, सर्व संपत् करी १३, शिवपद प्रापणी १४.
१५
१४ वक्ताना चवदद गुण लिखतें है. प्रश्नव्याकरणोक्त शोल बोलनो जाए पंमित दोय १, शास्त्रथी विचार जाणे २, वाणीमांदे मीठाश होय ३, प्रस्ताव व्यवसर जलखें ४, सत्य बोलें ९, सांजलने वालाका संशय दूर करें ६, छानेक शास्त्रवेत्ता गीतार्थ उपयोगी होय 9, अर्थने विस्तारी तथा संवरी जाणें प, व्याकरणरहित बतां कंठनी भाषामें पिण छापशब्दन बोलें ए, वचनसें सभाजनने दर्ष करें १०, प्रमार्थ ग्राहक ११, निमानरहित १२, धर्मवंत १३, संतोषवंत १४. ए चवदे वोलका जाणकार होय सो वक्ता जाणना. १४, श्रोताका १४ गुण. भक्तिवंत १, मीठाबोला २, गर्वरहित ३, सांजलवा उपर रुचि ४, चंचलतारहित एकाग्रचित्ते सुर्णे जर घारें ए, जैसा सुपें वेसा प्रगट अदर कहे ६,
१०
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*93% •98493« *C9K« €€93%
प्रमका जाण 9, घणा शास्त्र सुण्या तिपके रहस्य जाणें प, धर्मके कार्य घ्यालस्य न करें, धर्म सुतां निषां न करें १०, बुद्धिवंत होय ११, दाताररूप गुण होय १२, जिसके पास धर्म पे उसका पिबामी गुण वर्णवें १३, कोश्नी निंदा न करें किसी के साथ वादविवाद न करें १४. 把
१४ छाथ चवदह नियम दिन प्रति प्रमाण श्रावक करें सो विचार लिखतें है. गाथा-सचित्त १ व २ विगई ३, वादि ४ तंबोल ५ व ६ कुसुमेसु 9 | वाढूण ८ सय [ विलेवण १०, बज १९ दिशि १२ न्हाण १३ मत्तेसु १४ ॥ १ ॥ अर्थ - श्रावक नि प्रतिनियम संजाले दिनमें जो चीज छापणे अंग खाते लगे उसका प्रमाण इस तरेसें करें. मट्टी सर्व जाती पाणी सर्व जाती जल व्यभि वायु वनस्पतिका बेदन ने दन तरकारी फल परवल नीमी तोरी केला मतीरा ककमी खरबुज निंबु यांब नारंगी जामू इत्यादिक जो चाहीयें सो रखें बाकीका त्याग करें १, दूसरा सव्य प्रमाण तां धातु बस्तुकी शली तेसे पणी अंगुली विगर जो चीज मुमें मालणेमें यावें सो सब अव्यकी गिणती में याता है नामांतर - स्वादांतर स्वरूपांतर परिणामां
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तर अव्यांतर होणेसें अव्य जुदा गिणनेमें आतें है जेसें गहुं एक व्य उसकी प-1 तली रोटी फीणा रोटी वेढवारोरी वाटी यह सब जुदा अव्य कहलाता है इसतरे नात | दाल रोटी कढी मामीया कट्ट तरकारी सब जात पापम खीचीया सब तरके फीणी घेवर खाजा इत्यादिक सर्व व्यमेंसे जो चाहीयें सो रखें बाकी नियम करें उत्कृष्टपणे एक व्यका नाम लेकर रखें सो एकही भव्य कहलावे जैसेकी मेवेकीखीचमी तो वह अनेक व्य सेवणी हें तोनी एकही व्य कहीयें शति ऽव्य प्रमाण १,तीसरा विगय प्रमाण तिहां दश विगयोमेंसे श्रावककुं च्यार महाविगयका तो त्यागही होता है जसे मदिरा १, मांस २, मकण ३, रसहत ४. जदविगय ६. घृत १, तैख १, मीग ६, दूध, दही, कढाईकी तली चीज ६. यह धारणा प्रमाण रखें शति विगय नियम ३, पादत्राण नियम तहां जूती खमाजं मौजा अप
पाणलाना ना इतना विराणा ऐसे नित्य धारणा प्रमाणे मोकला राखें इति पानदि नियम ४, अथ पांचमा तंबोल नियम. पान बीमा सुपारीलोंग खायची गटी र बझी जा. यफख जावंत्री प्रमुख सर्व खादिम वस्तु किरियाणेकी चीज धारणा प्रमाणे रके '
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ति.तंबोल नियम ५. अथ बना वस्त्र नियम. पोसाक बे तथा च्यार बूटा वस्त्र पांच तथा सात मोकला राखें, पोसाक एकमें पघमी १ जामा १ कमरबंध ३ घोती ४ श्क पट्टा उत्तरासण ए यह पांच वनकी एक पोसाक कहोनें एसेही सीके स्त्री मुजब जो एसा नहीं कर शके तो ४० तथा २० कपमा दिनमें मोकला राखें पराया वस्त्र चूलचूकमें थावें तो जयणा ति वस्त्र नियम ६. अत्र सातमा फूल नियम. गुलाब * चपेली बेला केवमा केतकी कुंद मचकुंद सेवती चंपा मालती श्रादिक सब फूलका धारणा प्रमाण राखें शति फूल नियम ७, अथ थाउमा वाहन नियम. रथगामी वहली का बग्घी कोच पालखी घोमा हाथी ऊंट नामजाम म्याना इत्यादिक सब थस वाहन पाणीमें चलनेवाले मोरपंखी बतक घुम दोम खचकार मगर पनसोपसवार वजरा नाव बोट इत्यादि सब तरहका तिरता फिरता चरता रेख वगेरे सब प्रकारके यसवारीकी धारणा करें शति वाहन नियम U. अथ शय्या नियम. पलंग * खाट तखत चोकी पट्टा गही कुरसी बनात सूजनी सेQजी दूलीचा चानणी शीतल-* पट्टी चदई सफंदर खतकी गलका चममेका कामला मुखमल श्रतलस कारचोपी
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इत्यादिक धारणा प्रमाणे शय्याका प्रमाण करें इति शय्या नियम ए. अथ दशमा विलेपन नियम. सरसुंका राईका आटेका तेल फुलेख सब जातिका केसर चंदन का पूर कस्तुरी कुंकुं इत्यादिक शरीरके सुख वास्ते तथा रोगादि कारणे औषधादिकका विलेपन फोमें परिमल प्रमुख श्रांखामें अंजन इत्यादि अंगोपांगमें लगाणा सो वि. लेपन धारणा प्रमाणे प्रमाण करें इति विलेपन नियम १०. अथ ब्रह्मचर्य नियम. रातको तथा दिनको सूई मोरेके दृष्टांत जोगादिकका प्रमाण करें स्वमेकी मनकी वचनकी जयणा इति ब्रह्मचर्य नियम ११. अथ दिशि नियम. पूख १, पश्चिम २, दक्षिण ३, उत्तर ४, श्रमिकुण ५, नैऋतकुण ६, वायवकुण 9, ईशानकुण , अघोदिशि ए, अदिशि १०, यह दश दिशिका अपणे जाणे श्राणेंका प्रमाण करें चिठी लिखणी आदमी नेजणा देशांतरकी चिढी वाचणी उसकी जयणा शति दिशि नियम १५. अथ तेरमा स्नान नियम. तहां भाजदिनमें स्नान २ वार अथवा ४ वार मोकला परंतु पाणीका तोल रखें घमे प्रमुखकका प्रमाण करें एक स्नानमे श्तना पाणी खरच कर ज्यादा नही गटाऊ इति स्नान करण नियम १३, श्रथ चौद
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मा नात नियम दिनमें नात २ सेर तथा २ वेर जीमूंगा अथवा च्यार वेरे उपरांत अविहार या चौविहार धारणा प्रमाणे राखें तया दिनमें जल पीणे आवें उसका प्रमाण राखें तोलसें या मापसें इति चवदे नियम विचार संपूर्णम् १४. एही नियम चोतीसमें बोलमेंनी विस्तारपूर्वक हे.
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॥ व्ाथ पनरे बोल लिख्यते ॥
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१५ मनुष्य समजावणी १५ बोले. १ रूप क्रोध तक छांध न वदीजें, २ जांग तमाखुं मल तजीजें, ३ बुरी गाररो संग न कीजें, ४ वेर बुराई कदे न लीजें, ए न्यात जातमें फंद न पामीजें, ६ सात व्यसनसुं अलगा रहीजें, 9 चोरी जारी जूठ तजीजें, खोट दगारा वाज न कीजें, ए मोद मायामें निपट न कलिजें, १० छाथिर संसार सुं विरक्त रहीजें, ११ गृहस्थ धर्म बारे व्रत कीजें, १२ दकमें चाल खरो जस खीजें, १३ इसा सूर किणसुं गंजीजें, १४ निरलोनी निर्बंध गुरु कीजें, १५ साचा सुख मोदारा खीजें.
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१५ पनरे योग. १ सत्य मन योग, २ त्यमृषा मनोयोग, १ सत्य वचन योग, असत्य मृषा वचन योग, काययोग, ११ वैक्रिय काययोग,
सत्य मनयोग, ३ सत्य मृषा मनोयोग, ४ यसयोग, ६ छयसत्य वचन योग, ७ सत्य मृषा वचन ए खौदारिक काय योग, १० खौदारिक मिश्र १२ वैक्रिय. मिश्र काययोग, १३ यादारक काय -
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योग, १४ आहारक मिश्र काययोग, १५ कार्मण काययोग. १५ सिघना जीव पन्नरे नेदे में तेहनां नाम. १ जिनसिक. ऋषनादि तीर्थकर जाणवा,
श्थजिनसिक ते घुमरिकादि गणधर जाणवा, ३ तीर्थसिक ते प्रसन्नचंडादिक तथा गणधरादिक, ४ अतीर्थसिक ते मरुदेवादि जाणवा, ५ प्रहस्थलिंगसिक ते नरतचक्रवादि जाणवा, ६ अन्यालिंगसिक ते तापसादि वेसे वल्कलचिवरी, ७ स्वलिंग सिक ते साधु वेसे जंबुस्वामी प्रमुख, U स्त्रीलिंगसिक ते राजीमत्यादि,ए पुरुषलिंग सिद्ध ते गुणाढ्यराजादि, १० नपुंसकलिंग सिद्ध ते करत्रिम नपुंसक गांगेयादि, १३ | बुधबोधित सिद्ध ते पनरेसेंतीन तापसादि, १४ एक सिद्ध ते गजसुकुमालादि, १५ ||
अनेक सिद्ध ते नरतपुत्रादिक. १५ परमाधामी १५ जातका. गाथा-श्रांवे १ अंबरसे २ चेव, सामे ३ सबले तियावरे ।
रूदे ५ विरुदे ६ काले ७ महाकाले तियावरे ॥ ए॥ असीपत्ते १० घणं ११कुंने |
वायु १२ वेयरणी १३ । खरसरे १४ महाघोसे १५ ए ए पन्नरस परमाहामिया ॥शा ||* || १५ पंह कर्मादान नाम मात्र स्वरूप लिखतें है. कर्मादान उसकुं कहते है जिस क
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र्तव्यके करनेसे महा पापकर्मनी थामदानी होय. श्त्यर्थः-प्रथम अंगालकर्म सो कोयले करके वेचने और काचनही पजावें लगावें उर नाट फोकना इत्यादि कर्म करें नही १, और दूसरे वनकर्म. सो वन कटावें नही वन कटानेका ठेका लेवें नही १, सामीकर्म. सो गामी बहल पहिये बेमा हल चर्खा कोल्हु चुहा घीस पकमने पिंजरा इत्यादि बनवाके वेचें नही ३, चोथा नामीकर्म. सो ऊंट बैल घोमा गद्धा गामी रथ किराची श्नका नामा खावें नही ४, पांचवा फोमीकर्म. सो लोहेकी खान वा बूण आदिककी खान खुदावें फुमावें नही तथा पञ्चरकी खान फुमा खुदावें नही ये पांच कुकर्म कहें है. अब पांच कुवाणिज्य कहते है. प्रथम दांत कुवाणिज्य. सो हाथीके दांत उल्बुके नख गायका चमर मृगके सींग चममा जूता इत्यादिक वाणिज्य करें नही १, दूसरा लाख कुवाणिज्य. सो लाख नील सजी शोरा सुहागा मनशिल इत्यादिकका वाणिज्य करें नही१, तीसरा रस कुवाणिज्य सो मदिरा मांस चरबी घीराल मधु (शहत) खांम इत्यादिक ढीली वस्तुका वाणिज्य करें नही ३ चोथा केशवाणिज्य. सो हिपद लमका लम्की खरीद कर उन्हें पाल कर नफा कर
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वेचें तथा पंखी तोता मैना तीतर वटेर मुर्ग प्रमुख लेकर वेचने तथा चोपदा गाय नेस बेल घोमा प्रमुख खरीदके पालने नफा लेकर वेचना इत्यादिक वाणिज्य करें नही ४, पांचवा विष वाणिज्य. सो संखिया वहनाग अफीम हरताल चरस गांजा प्रमुख तथा शस्त्र इत्यादि कुवाणिज्य कहें है. अब पांच सामान्यकर्म कहते है. प्रथम यंत्र पीमन कर्म सो सरसों तिल श्छु अादिक पीला नही १, निर्बाचन कर्म सो बैल घोमा खस्सी करना तथा ऊंट बैलको दाग देना तथा कूत्ता यादिकके कान पूंन काटने तथा चोर बादिकको बेत लगाने फांसी थादिक देनेका हुकम चढाना पमें ऐसा नोकरी सो इत्यादिक कर्म करें नही २, तीसरा दावामि दानकर्म. सो वनमें आग लगानी तथा खेतकी वाम फूकनी इत्यादि करें नही ३, चौथा शोषण कर्म. सो कूवा तलाव आदिकका पाणी सुकावें खेतमें देनेको तथा नया पाणी पैदा करनेको इत्यादि करें नही ५, पांचवा असति जन पोषणकर्म सो शौकके निमित्त तीतर बटेर कबुतर कूत्ता बिल्ली प्रमुख पालणे पोषणे तथा नेर जुष्ट शिकारी जनका पोषण श्त्यादिक कर्म करें नही. शति पन्नरे कर्मादान १५.
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१५ सुविनीतका १५ वोल. नीचा प्रवर्त्ते १, चपलपणारहित २, मायारदित ३, कतुलपपारहित ४, कर्कश वचनरहित ९, दीर्घ रोष न करें ६, मित्रसुं मित्राश्पणो सेवें 9, सूत्र खहि मद न करे, याचार्यादिकरी निंदा न करें ए, मित्रके उपर कोप न क१०, मित्रके पूठ पार्ने गुण करें ११, कलह ममतरहित १२, ग्यानतत्त्व जाणे १३, निजात विवंत १४, लज्यावंत इंडीगुति १५.
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१५ बोल १५. समुद्रनी उपमाए संसावर्णव. पूज्य भगवान समुझमें पाणी वें, संसाररूपोये समुझमें कीसो पाणी बें, जन्म जरा मरणरूपीयो पाणी बें १, पूज्य भगवान समु कादो, संसाररूपीये समुझमें कीसो कादो बें, कामनोग रूपीयो कादो बें २, पूज्य भगवान समुझमेंतो फेण उठें बें, संसाररूपी समुद्रमें पहंकाररूपी फि
३, पूज्य भगवान समुद्रमें तो दरमां बें, संसाररूपी समुद्र में त्रसनारूपी दरमा ४. पूज्य भगवान समुद्रमें तो क्लस वें जबके दें, संसाररूपी समुद्रमें नारकी ती मनुष्य देवतारूपी कलस जबके वें १, पूज्य समुद्र में मगरमछ र्बे संसाररूपी स मुद्रमें सबला निरखला मारें दें तीके मगरमछ सरीखा जाणवा 9, पूज्य भगवान
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'समुद्रमें तो उंगर में संसाररूपी समुद्रमें बात करमरूपीया उंगर में ७, पूज्य जग वान समुद्रमतो नवरीया पके, संसाररुपी समुद्रमें दगाबाजी कपटरुपी नवरीया पमे||*
ए, पूज्य नगवान समुद्र तो तीरे ने संसाररुपी समुद्रमें अलोनरुपी तीरणोडे १०, पूज्य नगवान समुद्रमेंतो सीगोटीया ने संसाररुपीसमुद्रमें तीनसें तेसठ पाखमरुपी या सीगोग ने ११, पूज्य नगवान समुद्रमेंतो मोती माणक हीरा रत्न नीकले ||* संसाररुपी समुडमें साधु साधवी श्रावक श्राविकारुपीया रत्न पदार्थ बे ११, पूज्य || नगवान समुज्में कलोला ने संसाररुपी समुद्रमें लोजरुपी कझोला १३, पूज्य न.* गवान समुद्र तो थमि ने संसार समुज्में क्रोधरुपि अमिले १४, पूज्य नगवान | समुद्रमें कागे जे संसाररुपी समुद्रमें मोदरुपीयो कांगे जे १५.
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॥अथ सोखे बोल लिख्यते ॥
सूत्र सुयगमांगका १६ अध्ययन. स्वसमय परसमय अध्ययन १, बेताली अध्ययन १, उपसर्ग परीझा अध्ययन ३, बिपरिझा अध्ययन ४, नरक विनति अध्ययन , वीरथुश्बध्ययन ६, कुशील परिनासिया अध्ययन ७. सकाम अकामवीर्य अध्ययन U, धर्म अध्ययन ए, समाधि अध्ययन १०, मोद मार्ग अध्ययन ११, समोसरण अध्ययन १२, जथातथ अध्ययन १३, ग्रंथ अध्ययन १४, जमति अध्ययन १५, गाहा अध्ययन १६. सोख वचन. एक वचन घट पट वृद १, विचन घटौ पटौ वृदौ १, बहुवचन घटा वृदा ३, स्त्रीलिंग वचन कुमारी नगरी नदी ४, पुरुषलिंग वचन देव नर अरिहंत साध , नपुंसकलिंग वचन कुम कमल नैण ६, अतीतकाल वचन अकरोत् श्रवृत् 9, अनागतकाल वचन करिष्यति नविष्यति पठिस्यति , वर्तमानकाल वचन करोति जति पतिए,परोद वचन ए कार्य श्णे किधो १०, प्रत्यद वचन श्मज
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११, उपनीत वचन ए पुरुष रूपवंत १२, अपनित वचन जिम ए पुरुष कुरुपवंत १३, उपनित थपनित वचन जिम ए रूपवंत परं कुसीलियो १४, अपनित उपनीत वचन जिम ए पुरुष कुशीलियो परं रुपवंत ३ १५, अध्यात्म वचन नग्न बोले रुई वाणीयानि परे १६. . सोल सुख. पहिलो सुख काया निरोग १, बीजो सुख घरमे नही सोग २, तीजो सुख गुणवंता साथ ३, चोथो सुख जे स्त्री हाथ ४, पांचमो सुख जे रिण नही देणो ५, बढो सुख जो धरमी तणो ६, सातमो सुख जो निर्ने गम , थाउमो सुख चलणो नही गाम , नवमो सुख जे मीठगे नीर ए, दशमो सुख जे पंमित सीर १०, झ्यारमो सुख जो पौषधसाल ११, बारमो मुख जो चित विशाल ११, तेरमो सुख जो पुत सपुत १३, चवदमो मुख जो घरे विचूत १४, पनरमो सुख जे केवलज्ञान १५, ||
सोलमो सुख पोहचे निर्वाण १६. *. १६ चंचगुप्त राजाना १६ सुपना. कल्पवृक्षानी तुटी माल संयम लेसे नही जूपाल १, सूर्य
थकाल आथमेरो जाण जाया पंचमकालना तिणने न होसी केवलज्ञान , तीजे
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चंडमा चालणी समाचारी जोई ३, चूत चुतणी नाचता दीग ते पाखंमीयानो |||| जोर होसी ४, बारा फणरो नाग दोगे तिणरो फल बारा बरसी काल पमसीए, दें। वतारो विमान पागे फिरीयो देख्यो तिणरो फल विद्यालब्धि विजेद जासी ६, ज-| करमी ऊपर कमल लग्यो देख्यो तिणरो, फल चार वरणा मांहि वाणीया के जिन धर्म रहसी, वागीयानो दीगे नद्योत बहु मिथ्यात अल्पं धर्मरी जोत , समुख सुको तीन दिस दक्षिणकानी थोमो पाणी दक्षिणमे नगवंतरो धर्म जाणी ए, हेम थालीम श्वान खा खीर खांम ऊंचकी लक्ष्मी नीचके घर मांक १०, हाथी उपर चढयो वंदरो नीच कुलको राजा सुंदरो ११, समुख मर्यादा लोपी तिवार सिख लोपी गुरु मावीतनी कार ११, महारथ जूता वाउमा धर्म करसी बहू बालुमा १३, तेज रहित रत्नज देख गरमा धर्ममे कुलख विशेष १५, राजपुत्र बेल चढयो देख राजा मिथ्या धर्म संवेख १५, विगर मावत हाथी लमता मही बहु वर्षा थारे पां. चमे नही १६. सोले शीलका गुण, शुक शील पाले तो कलंक लागे नही १, शुक शील पाले तो
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संसार समुड रहित हवे, शुछ शील पाले तो साचो धर्म पावे ३, शुद्ध शील पाले तो लोकमें जस होय , शुद्ध शील पाले तो देवता होय ५, शुद्ध शील पाले तो देवताका पूजनीक होय ६, शुद्ध शील पाले तो रूपवंत संपदा पावे , शुद्ध शील पाले.तो सर्प फूलकी माला होय , शुद्ध शील पाले तो अमि शीतल होय ए, * शुद्ध शील पाले तो विष अमृत होय १०, शुद्ध शील पाले तो सिंह मृग होय ११, १ शुद्ध शील पाले तो गज बकरी होय १२, शुद्ध शील पाले तो आपदासुं संपदा पामे १३, शुद्ध शील पाले तो टुणो टुमण लागे नही १४, शुद्ध शील पाले तो स
मुख थाग देवे १५, शुद्ध, शील पाले तो मेरू पर्वत टीचे सरीखो थावे १६.. ५ १६ सोले बोल देख्यारे चेला वना पांख सूवा देख्यारे चेला विना मोत मुवा देख्यारे वि
ना पान तखर देख्यारे वेला विना पाल सरवर. उत्तर-देख्या गुरुजी विना पांख सु★ वा देख्या गुरुजी विना मोत मुवा देख्या गुरुजी विना पान तरखर देख्पा गुरुजीवि-2 ना पाल सखर. प्रश्न क्यारे चेला विना पांख सूवा क्यारे चेला विना मोत मुवा क्यारे चेला विना पात तरुवर क्याहेरे चेला विना पाल सरवर. उत्तर-मनहै गुरू
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जीवन
सुवा, निदा है गुरुजी विना मोत मूवा २, हिंसा है गुरूजी विना पान तर ३, सना है गुरूजी विना पाल सखर ४, क्रोध है विना यमि जलतें ६, पाप है गुरुजी विना खार खार 9, धर्म है गुरुजी विना प्यार प्यारा छ, वादल हे गु रुजी विना वृा बाया ए, विद्या है गुरुजी विना द्रव्य माया १०, राग है गुरुजी विना बंध बंधण ११, निंद है गुरुजी विना मं मं १२, परिग्रह है गुरुजी विना नरक दुःख १३, संतोष है गुरुजी विना सुख सुखं १४, साधु है गुरुजी विना दान दानं १४, सिंह है गुरुजी विना मान मानं १६..
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१६ सोलै दुःख. पदले दुःख घर प्रांगण कूत्रो १, दूजो दुःख बैटो जूवो २, तीजो दुःख घर घ्याल काम ३, चोथे दुःख पामोसी चाम ४, पांचवे दुःख वेठ्यां घणी ए, बढ़ें दुःख निरधन धणी ६, सातमो दुःख कुल क्लेश 9, खाठमो दुःख कमाणी परदेश
म ः कुबोया बोलए, दशमो दुःख बहु बेटी रंमोल १०, इग्यारमो दुःख खन्याई राजा ११ बारमो दुःख शरीरे नदी ताजा १२ तेरमो दुःख लंपटसुं काज १३ चवदमो दुख घर स्त्री दगाबाज १४ पनरमो दुःख जे माथे रिणी १५ सोलमो दुःख जे फोजा घणी. 9
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॥अथ सतरह बोल लिख्यते ॥
१७ असंयमका १७ नेद. पृथ्वीकाय असंयमे १, अप्पकाय असंयमे २, तेजकाय असंयमे
३, वाऊकाय असंयमे ४, वनस्पतिकाय असंयमे ५, बेरंखी असंयमे ६, तेरेंडी थ. असंयमे ७, चोरेंद्री असंयम., पंचेंद्री असंयमे ए, अजीव असंयमे १०, पेहिया थासंयमे ११, नपेहिया असंयमे १२, परमार्जणा असंयमे १३, परिक्षावणीया असंयम * १४, मन असंयमे १५, वचन असंयमे १६, काय असंयमे १७. . १ सतरे नदे संयम. पृथ्वीकाय संयमे १, अप्पकाय संयमे १, तेनकाय संयम ३, वाजकाय संयमे ४, वनस्पतिकाय संयमे ५, बेंद्री संयमे ६, तेंद्री संयमे , चोरेंद्री संयम ज, पंचेंद्री संयमे ए, अजीव संयमे १०, पेहिया संयमे ११, उपेहिया संयमे १२, पमजणा संयमे १३, परिकावणिया संयमे १४, मन संयमे १५, वचन संयमे १६, काय 0
संयमे १७. १७ सतरे मरण. श्रबीची मर्ण ते समय समय आयु घटें १, अवधीमर्ण ते नारकी देवता
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Rear देवता नारकीमें न ऊपजें २, ध्यायंतिय मर्ण मनुष्य मर कर मनुष्य में ऊपजें तिर्यच मर कर तीर्थचमें ऊपजें ३, बलमर्ण व्रत नागीने मरे ४, वसम इंडीया बल मरें ए, छांतोलमर्ण पाप विना आलोयण मेरे ६, तदजवमण, प्रबालमवतीम प, पंमितमर्ण चोराशी लाख जीवायोनी के साथ खामणा करके मरें ए, बाल पंमित मर्ण मिश्रपणे मर्ण १०, बद्मस्थ मर्ण ११, केवली मर्ण १२, बेदास मर्ण फांशी लगा कर मरे १३, गिद्धपिठ मर्ग जनावरके कलेवरमांदे प्रवेश दोय कर मरें १४, जत्त पच्चरकाण मर्ण यादारत्याग कर मेरे १५, संगीतमर्ण च्यार • यदार त्याग कर मरें १६, पाडुगमनमर्ण संथाराका म १७.
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१७ तेंद्रियना ११ नेद. कानखजुरा १, मांकम २, जू ३, कीमीयो ४, उद्देदी ५, मक्कोमा ६, इल 9, घीमेल, सावा ए, गोकीमा १०, गद्ददीया १९, विष्टाना कीमा १२, गोवरना कीमा १३, धनेरिया १४, कुंथुच्या १५, गोपालीक १६, इंद्रगोप १७. ११ सत्तरे बोल प्रस्ताविक जो तुमकुं दुःखोका जय होय और सुखनी अभिलाषा दोय
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तो धर्मरूपी कल्पवृक्ष सेवो १, धर्मकी जम विनय और पापकी जम व्यसन यह को
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म ग्रंथका सार है २, जिसके पास दमारूपी खमंग नित्य पास है उसकुं क्रोधरूपी वैरी कुब नही कर सक्ता ३, शोकरूपी वैरीकुं ज्यादा पास रखोगे तो तुम्हारी बुद्धि के हिम्मत और धर्म ए तीनका जमसें नाश हो जावेगा , जैसे पुत्र विगर पालणा
और वींद विगर जान शोनती नही तैसें धर्म विगर आत्मा शोनती नही ५, जिके | मनुष्य परस्त्रीकुं मात तथा बेनके सदृश समफंता है और सर्व जीवोकुं अपणी था- 20 त्मा समान गिणता है वह मुखी नही होता यह वात शास्त्रधारा सिंध है ६, शा. स्त्रका श्रवण शमशानचूमि और रोग पीमा ए तीन स्थान वैराग्य उपजणेका मु.8 ख्य कारण है , बसमजका अर्थ करणेवालेकुं शास्त्रजी शस्त्रकी तरे हो जाता है ७, बुद्धि बढनेका र नया तर्क उत्पन्न होणेका मुख्य कारण मनकी शुद्धि है ए, 8 तुम्हको पुःख पमें उस वक्त चिंता त्याग कर धैर्य राखो क्युकि चिंता कुब सुख हरणेकी दवाई नही चिंतासें चतुरा घटेंगी जर चतुराश्के बनावे तप जप र ] · नियम किसकें श्राधारे रहेंगे सम दम र समाधि किसकुं अवलंबन करेंगे वास्ते |
उस वक्त धैर्य राख कर धर्म सेवण करना एहीज उत्तम है.१०, जो तुमको' सर्व १
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नियोंको वश्य करणी होय तो पराया गुणमें प्रवेश न कर गुण ग्रहण करो मी. गर हितकारी वचन बोलो जर नदारता गुणकी वृद्धि करो ११, थपणे हसते कहते है कि क्या तुम्हारा हाथ टुट गया क्या तुं अंधा होय गया ऐसे एसे कटुक वाक्य कहकर चीकणे कर्म वांधते है वो जब कर्म जदय यावेंगे तब रोय रोय करनी गेमतां मुश्किल होयगा वास्ते वचन निकालती वख्त खुब शोच कर बोलना क्युकी बूरीका तथा तखारादि शस्त्रका घाव दवाईसें अग होय जावें परं वचनका घाव मिलना कठिन है से हरेक वक्त विचार पूर्वक बोलना ११, सामायिक करती वखत जिसका प्रणाम खजनोके जपर उर परजनोके उपर उर निंदा तथा| प्रशंसामें समन्नाव रखेंगे नसीहीका सामायिक मोददायक होवेगा १३, जैसे राजाकी थाझाका नंग करणेसें श्सलोकमें मनुष्यको धन वगेरेका दम होता है तैसेंही स-1 र्वज्ञ नगवानकी याझा नंग करणेसें जीवको पर नवमें अनंता नवज्रमणरूप दम होता है १४, जो तुम्ह तुम्हारे प्रियमित्र और सगा तथा संबंधीके साथ प्रेम रखणा चाहते हो तो जिस वखत ते क्रोध करें तव तुम दमा धारण कये १५, जो तुम्ह
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को धर्मकी जब्दो उत्पत्ति करणी होय तो शास्त्रका बहुमान करो और श्रग थाचरण राखो १६, कमवा वचन कटुक मती कृषणपणा और कुटिल खन्नाव ए च्यार
उर्गण. त्यागोगें तबही निश्चे धर्मकी प्राप्ति होगी १७. १७ ज्ञानावरणी कर्म बांधवाना हेतु १७. झानरी पासातना करें १, झानी साधु प्रमुखरी
प्रासातना करें जूंमो याचरें २, ज्ञानरो कारण पुस्तक प्रमुखरी थासातना करें ३, || नटजाय में जण पासें न नण्यो, नपघात करें ज्ञान अथवा ज्ञानीरो मूलसुं विनाश करें ५, प्रक्षेष ज्ञान अथवा मतिझानी प्रमुखसुं अप्रीति राखें ६, मतिज्ञानी, प्रमुखरे नात पाणी कपमा प्रमुखरो अंतराय करें अथवा ज्ञान नणतां अंतराय करें | , मतिग्यानी अथवा मतिझान प्रमुख नघामे, अथवा ज्ञानरो अवर्णवाद बोलें ए, श्राचार्य उपाध्याय प्रमुखरो अविनया करें १०, थकाले सिशाय करें ११, कालें सिशाय न करें ११, जीवहिंसा करें १३, जूठ बोलें १४, चोरी करें १५, कुशील सेवें १६, परिग्रहको त्याग करें १७, रात्रीनोजन इत्यादि हेतु करी झानावरणी कर्म बांधे.
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॥अथ अढारे बोल लिख्यते॥ १० अब्रह्मचर्यना १७ नेद. उदारीक मैथुन सेवन श्राश्री मने करी १, वचन करी २,
कायाने करी३, सेवावण श्राश्री मन करी ४, वचन करी ५, कायाये करी ६, खनुमोदन थाश्री मन, वचन ७, काया ए, वैक्रिय मैथुन याश्री महीज करण ३, करावण ३ अनुमोदन ३, एवं १०. पोषध तथा सामायिकमें रहे हुवे के १७ दोष. असामायिकवंतकी वेयावच करतो दोष १, पोष निमित्ते सरस आहार करे तो २, संयोग मिलावे तो ३, केश नख स मरावे तो ४, पहिले दिन वस्त्र धोवरावे तो ५, शरीरकी शुश्रुपा करे तो ६, थानर्ण पहिरे तो, मयल जतारे तो U, निंडा लेवे तो ए, विण पुंजे खाज खणे तो १०,विक्रथा करे तो ११, पारकी निंदा करे तो १२, अनेरी संसारकी चरचा करे तो १३, नय करे तो १४, अंग लपांग स्त्रीना निरखे तो १५, संसारको नातो करे तो खुले मुख बोले तो १७, संसारकी बात करे तो १७.
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सिखामण १७ रे. आवसग्ग करे तो पञ्चकाण उपयोग हुवे १, मनमें संदेह होय सो पूंजने टाले २, साधर्मिकुं दोष लाग्या हुवे तो एकांत सिखामण दे ३, सांज सवेरे ||* व्रत पच्चखाण चितारे संन्नाले ४, जेसा प्रायश्चित्त लाग्या होय तेसा दम लेवे , साधर्मिसु चरचा करतां विचमे वाद न करे ६, नगवंतका मार्गमें खेंचातांण न करे ७, एकली स्त्रीसुं बालाप संलाप न करे , पकी चोमासे नफो टोटो विचारे ए, विनयसहित अक्षर पढे विनयसहित पढावे १०, तीर्थकरनी पाग्या सहित कोशसि-* खामण देवे तो सत माने ११, को साधर्मि धर्म करणी करतो हुवे तो विचमें मिले ||* नही ११, धर्मके ठिकाणे यायके संसारी वात न करे १३, धर्मि २ अापसमे कलह ||* राम न करे १४, धर्मि धर्मके ठिकाणे गेमके जर ठिकाणे जाय नही १५, स्वध- ||98
मिङ मिगतेकुं थिर करे १७, रोगी गिलाणीकी वेयावच्च करे १७. १०. साधु १० स्थानके उतरे. देहरा १, सन्ना २, पाणी स्थानक ३, प्रव्राजक मठ ४,
वृद नीचे ५, वन ६, गुफा ७, लोहारसाला ७, पर्वतनी गुफा ए, जूना थानक १०, बाग फल फूल करी सहित ११, रधशाला १२, कूपशाला १३, यग्यादिक मंझप १४
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१०
सूना घर १५, मसाण १६, पर्वत मांहि कोरया घर १७, हाट १०. अठारे कल्प. अहिंसा १, अमृपा १, अदत्त ३, ब्रह्मचर्य ४, अपरिग्रह ५, पृथ्वी ६, अप्प, तेज, वायुए, वनस्पति १०, त्रस ११, रात्रीनोजन त्याग १२, अकल्पनीय टाले १३, गृहस्थनो नोजन तजे १४, गृहस्थने गृह न वसे १५, पलंग तजे
१६, स्नान न करे १७, सिणगार न करे १०. १० अठारे व्य दिसि. पूर्व १, पछिम २, दक्षिण ३, उत्तर ४, प्रशाण कूण ५, अ
ग्नि कूण ६, नैऋत क्ण , वायव कूण ७, विदिशिना आठ अांतरा एवं १६,
उंची १७, नीची १०. १० अहारे नाव दिशी. पृथ्वी १, अप्प २, तेज ३, वाऊ , अग्गबिया ५, मूलबिया ___६, पोरबिया ७, खंघबिया , बेंद्री ए, तेरेंडी १०, चौरेंडी ११, पंचेंबी १२, तिर्यंच
१३, कर्मतुमी १४, अकर्मतमी १५, बप्पन अंतरछीपा १६, देवता १७, नारकी १०. १० श्री ऋषनदेवजी १० लिपी प्रगट किवी. हंस लिपी१, नृत लिपी, जद लिपी ३
रादस लिपी४, नमी लिपीए, पवनि ६, कुरकी, ७, वामी, माधवीए,-मालवी
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१०, नमी ११, नागरी १५, लाटी १३, पारसी १४, अनमति १५, चाराणी १६, प्रदेश
१७, मूल देश १०. ॐ १७ अठारे वर्ण नाम. कंदो। १, पटेख १, कुंजार ३, सोनार ४, माली ५, तंबोली ६,
गंधर्व ७, वैद्य ७, सुथार ए, नारू १०, घांची ११, मोची, ११, गांगरी १३, पीजी १४,
गरा १५, ग्वाल १६, दरजी १७, कैवर्तक निल्ल १०. ... दारे बोल १०७ बोला माहिसं धर्मि पुरुषके योग्य. बमोके बीचमें न बोले १, म- | र्मको वचन नही बोले २, माया कपटाश्ना वचन नही बोले ३, विचारीने बोले ४, हिंस्याकारक वचन गना या नघामा नही बोले ५, उष्ट वचन ते नही बोलेप, चूंमा || नाम गोत्रका वचन नही बोले , तुकारा देकर नही बोले , अणसुहाता नही | बोले ए, मारकूट पमे क्रोध नही करे दूसरेकी साखीमें शुन्न मन वरतावे १०, वचन | बोले तो क्रोध न करे ११, कोलाहल शब्द जपर क्रोध न करे १२, गुरुके थाझामें || चले श्रापरे बंदे नही चाले १३, गुरुरी सेवा करतो थको गुरुरे पास रहे १५, गुरुरी || सेवा करे नली प्रहारो घणी जलो तपस्वी शूरवीर कहीये १५, धीरजवंत १६, सरल ||
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मनुष्य विचारीनें धर्म परुपे १७, गृद्धी नदी आणे पांच इंद्रियोके विषयपर तथा प्रारंभ विषे १८.
१०
१० श्रावकको टाढारे पापस्थान त्यागना.: प्राणातीपात जीवकें प्राणोकी हिंसा १, मृषावाद सत्य जूठ बोलवु २, प्रदत्तादान चोरी करवी ३, मैथुन कुकर्म सेवणा ४, परिग्रह द्रव्य घन राखणो ए, क्रोध कोप करणो ६, मान ाकार करणो 9, माया कपट करणोप, लोन तृष्णा जादा रखणी ए, राग सनेह प्रीति करणी १०, द्वेष द्वेष तरी ११, कलह कलेश करणो १२, धन्याख्यान जूता कलंक देणा १३, पैशुन्य चुगली करणी. १४, परंपरिवाद दूसरेका व्यवर्णवाद कदणा १५, र ती ती खुसी नाराजी राखणी १६, मायामोसो कपट कर जूता बोलणा १७, मिथ्यादंसण शल्य जूठी श्रद्धाको शब्य राखणो १८. ए ढारें पापस्थानक श्रावक वर्जे १० घंढारे बोले कर साधु धपणा मन चलायमान हुवें को धीर करें. प्रथम दुःखमा रायाजीविकाका कष्ट ९, दूर्जे कामनोग विषय मधुबिंदु समान २, तीजें काम जोग रोगका जय ज्यादातर दे ३, चोथे इद दुःख सामान्य है छाल्प समय रहेंगा
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४, पांचमें लोक हांसी करेंगे ५, न वमन कीया विषय फेर प्रहण करंगा ६, सातमे कुगती बंधन संग्रह हुवेगा , थामें सम्यक्तरूपी शुरू धर्म हाथ आवेंगा नही ||
, नवमे रोग थाणेसें क्या करंगा ए, दशमे गृहस्थाश्रममें मन सदा चिंतातुर रहेंगा १०, ग्यारमे कष्टरहित दिदा है कष्टसहित गृहस्थावास ११, बारमे बंधण गृ. हस्थाश्रम मुक्त प्रवा ने चारित्र ११, तेरमे सावध गृहवास निखद्य चारित्र १३, ||* चवदमे सामान्य कामनोग्य १४, पनरमे परतख पुण्य पाप १५, सोलमे मनुष्यका वायु अनित्य है जैसें मान उपरी जलबिंञ्चत् वा बीजलीका चमत्कार समान १६, सत्तरमे पापकर्म करेंगा १७, पढारमे विना नोगव्या बूटेंगा नही १०.
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॥अथ जंगणीसमा बाल लिख्यते ॥
झातासूत्रका १ए अध्यन. मृगापुत्र अध्यन १, धनासार्थवाह अध्यन १, मोरमीके ईमेका अध्यन ३, काडबाका अध्यन ४, थावच्चापुत्रका अध्यन ए, तुबमीका अध्यन ६, रोहणीका अध्यन ७, मल्लिनाथका अध्यन ७, जिन ऋषिजिनपालका अध्यन ए, चंमाका अध्यन १०, दबदब ऋषिकी दवदंत ऋपिका अध्यन ११, सुबुविप्रधान अध्यनं ११, नंदन मणयारका अध्यन १३, तेतली प्रधानका अध्यन १४, नंदी वनफलका अध्यन १५, द्रौपदीका अध्यन १६, काली दीपक घोमेगा अध्यन
१७, सुसमादारीयाका अध्यन १०, पुंमरीकका अध्यन १५.. १ए कावसग्गरा १ए दोष. गोमा नपर पग राखें १, काया आधी पाबी मोलावे १, न
ठंगण लेवें ३, माथो नमाय नन्नो रहें ४, दोन हाथ जंचा राखें ५, धुंघटो काढे ६, पग नपर पग राखें , वांको मो रहें , साधुनी बरोबर रहें ए, गामीनी संघ एनी परे रहें १०, खमो वांको रहें ११, रजोहरण ऊंचो राखें १२, एक घासण न|
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रहें १३, थांख एक गम न राखें १४, माथो हलावें १५, कुकुकार करें १६, मील
चलावें १७, बालस मोमे १०, सुन्य चित्त करें १ए. १ए जीवनी जाति देहमान आयु. पृथिवीकाय अंगुलनो असंख्य नाग २२००० वर्ष
वायु १, अपकाय अंगुखनो असंख्य नाग ७००० वर्ष आयु २, अनिकाय अंगुलनो असंख्य नाग तीन दिनका आयु ३, वायुकाय अंगुलनो असंख्य नाग. ३००० || वर्ष वायु ४, साधारण वनस्पतिकाय अंगुल असंख्य नाग वायु अंतरमुहुर्त , प्रत्येकवनस्पति हजार योजन काजेरा १०००० वर्ष श्रायु ६, बेंख्यि जीव बारे योजन बारे वर्ष आयु , तेंख्यि जीव तीन कोस ४ए दिन श्रायु , चौरिंकि जीव चार कोस उ महिना आयु ए, समूर्बिम मतस्यादि हजार योजन क्रोमपूर्व १०, संमूर्डिम चतुष्पदादि दोयसेंले नव कास ४००० हजार वर्ष आयु ११, समूर्बिम खेचर दोयसेलें नव धनुष ७२००० हजार वर्ष वायु ११, समूर्बिम जरपरिसर्प दोयसलें नव योजन ५३००० हजार वर्ष आयु १३, समूर्बिम जुजपरिसर्प दोयसलें नव धनुष ४२००० हजार वर्ष श्रायु १४, समूर्बिम नरपरिसर्प दोयसें नव योजन ५३००० ह
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जार वर्ष श्रायु १५, समूमि जुजपरिसर्प दोयसेंसें नवधनुष ४२००० हजार वर्ष था यु १६, गर्नज मत्स्यादि हजार योजन क्रोमपूर्व वायु १३, गर्नज थलचर कोस तीन पत्योपम गर्नज खेचर पंखी दोसलें नव धनुष पत्योपमासंख्य. १०,गर्नज तर-|* परिसर्प हजार योजन क्रोम पूर्व गर्नज तुजपरिसर्प दोसेलें नव कोस क्रोम पूर्व.३ |
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॥अथ वीस बोल लिख्यते ॥ २० वीस बोल, बमोंकी सीख. १ नलो चावें तिणरी सीख मानीजें, १ गुण माने तिणने |
नणाजे, ३ कृतघ्नने श्रीगणग्राही जाणीजे, ४ अति तृमा लोन न कीजें, ५ वांको वरते तोही क्षेष न कीजें, ६ खोटे हाण खरेबरकत जाणीजें, ७ पापथी जुःख ने धमंथी सुख जाणीजें, जंगे वचन बोलें तिणने हलको श्रादमी जाणीजें, ए मा-| ता पिता गुरु देवरी नक्ति कीजें पाग्यामें रहीजें, १० वमेरांरो हुकम मानीले पागे उत्तर न दीजें, ११ वापरो धर्म हुवें तिण मारग चालीजें सील पालीजें पारकी स्त्री सुं टालो कीजें, १३ आपरा कुलरा याचारमें चालीजें कू न नाखीजें, १४ फुःखी होवें तिणरो उपगार कीजें, १५ गांव चालीजें तो सखरा सुकन देख चालीजें, १६ | नाणो परखने लीजें, १७ फाटो कपमो सीवीजें, १० रूठगने मनानें, १ए वापरो
धन सुमारग खरचीजें, २० थलारा गांवमें वसीजें तो श्रगनरो जतन कीजें. १ | २० वीस असमाधिया. दब दब करतो चालें तो १, विना पूजे चालें तो १, पूंजे किहा ||*
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पग धरें कहां तो ३, मर्यादासु अधिका पाटला जोगवे तो ४, गुरुके सामो बोलें तो ५, बहुश्रुतिजीकी घात चिंतवें तो ६, बके सामो बोलें तो , वारवार क्रोध करें तो, पीठ पूरे गुणवंतका अवगुणवाद बोलें तो ए, निश्चेकारीलाषा बोलें तो १० नवो कलह करें तो ११, कलहकुं क्षमाया हुवें फिर फिर जदीरे तो १२, थकाखे सिशाय करें तो १३, सचित्त रजसुं खरड्यो होय विना पूंजे उठे बेठे चले तो १४, ||* पहर रात्री उपरांत गाढे शब्दे बोलें तो १५, वाखार च्यार तीर्यमें कलह करें तो तः || था सर्व प्राणीजूतनी घात चिंतवें तो १६, रेतुं बोलें तो १७, कायके जीवांकुं य. समाधि उपजावें तो १७, सवेरेका थाहार लावें स्यामतां नोगवे तो १५, एषणा
कुमती थाहार नोगवे तो २०. *॥ २० वीस विहरमान नाम. सीमंघरजी १, जुगमंधरजी १, बाहुजी ३, सुबाहुजी ४, सुजात
जी ५, स्वयंपनजी ६, ऋषनानंदजी, अनंतवीर्यजी , सूरप्रमुजी ए, 'विशालजी १०, वज्रघरजी ११, चंडानंदजी १२, चंबाहुजी १३, सुजंगजी १४, इश्वरज। १५, | नेमप्रनजी १६ वीरसेनजी १७ महानजी १०.देवजसाजी १एअजितविर्य स्वामीजी
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वीस बोलें करी जीव तीर्थकर गोत्र कर्म बांधे. परिहंतजीरो जाप करें तो जीव कर्मरी कोमी खपा जस्कृष्टी नावना था तो तीर्थकर गोत्र बांधे १, सिबारां गुणग्राम करें तो तीर्थकर गोत्र बांध १, सूत्रसिघांतरा गुणग्राम करें तो तीर्थकर गोत्र बांधे ३, गुरुना गुणग्राम करें तो तीर्थकर गोत्र वांधे ४, श्रिवरना गुणग्राम करें तो तीर्यकर गोत्र बांधे ५, बहुश्रुतीना गुणग्राम करें तो तीर्थकर गोत्र बांधे ६, तपस्वीना गुणग्राम करें तो तीर्थकर गोत्र वांधे 9, ग्यान जपर उपयोग देतोयको तीर्थकर गोत्र वांधे U, सम्यक्त पालतो थको तीर्थकर गोत्र बांधे ए, विनय करतो थको जीव तीर्थकर गोत्र बांधे १०, दोय वेला आवसग्ग करतो थको जीव तीर्थकर गोत्र बांधे. ११, व्रत पञ्चकाण चोखा पालतो थको जीव तीर्थकर गोत्र बांधे १२,धर्मध्यान शुक्लध्यान ध्या-| वतो थको जीव तीर्थकर गोत्र बांधे १३, वारे नेद तपस्था करतो थको जीव तीर्थकर गोत्र बांधे १४, सुपात्रने दान देवतो थको जीव तीर्थकर गोत्र बांधे १५, वेयावच करतो थको जीव तीर्थकर गोत्र बांधे १६, सर्व जीवांने सुख उपजावतो थको जीव तीर्थकर गोत्र बांधे १७, अपूर्वग्यान पढतो थको जीव तीर्थकर गोत्र बांधे १०, सूत्र
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क्ति करतो थको जीव तीर्थंकर गोत्र वांधे ११५, तीर्थकरनो मार्ग दीपावतो थको जीव तीर्थकर गोत्र बांधे २०.
२० दर्शनावरण कर्म बांधवाना हेतु कहें वें. १ चक्रुदर्शन प्रमुखरो मूंको करें, १ दर्शनी साधु प्रमुख भूंको करें, ३ दर्शनरों कारण कान आंख्या नाक प्रमुखरो तूंको करें कान प्रमुख बेदें, ४ पुस्तकरी यशातना करें, " में उण पासे नदी नएयो इम नट जाय, ६ दर्शन अथवा दर्शनीको मूलसुं विनाश करें, 9 दर्शन घ्यावा दर्शनी प्रमुखसुं प्रीति राखें, दर्शन अथवा दुर्शनी प्रमुखरे जात पाणी वस्त्र उपाश्रयरो गं - तराय करें अथवा तां अंतराय करें, " दर्शन अथवा दर्शनी की घी व्याशा तना करें जाति प्रमुख धाम, १० दर्शन पथवा दर्शनीमांदी दूपण काढे, ११ कान कातरे, १२ यांख्या उघामें, १३ नाक बेदें, १४ जिह्ना प्रमुख कतरें, १५ जीवरी हिंसा करें, १६ जूठ बोलें, ११ चोरी करें, १० कुशील सेवें, ए परिग्रहको व्रत नही हु वे, १० रात्रीोजनको त्याग न करें. इत्यादि देतु करी दर्शनावरणी कर्म बाँधे. ५
४
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॥ अथ इकवीस बोल लिखते ॥
२१ इकवीस सबला दोप. दस्तकर्म करें तो सबलो १, मैथुन सेवें तो २, रात्रीभोजन जोगवें तो ३, व्याधाकर्मी घ्याहार जोगवें तो ४, राजपिंग खदार जोगवें तो ५, उदेशी १, की २ पामीचे ३ बजे ४ अणुसिद्धे शायरे ६ ए ब दोष आदार जोगवें तो ६, वारवार पच्चस्काण लेवें बोकेँ तो 9, ब महीनामांदी नवो टोलो बदले तोप, एक मासमें ३ नदी के पाणीरो लेप लगावें तो ए, एक मासमें ३ माया थानक सेवें तो १०, सिज्ञातरनो व्याहार जोगवें तो ११, जाणपुग्ने प्राणातिपात सेवें तो १२, जापुर मृषावाद बोलें तो १३, जाण पुब प्रदत्तादान लेवें तो १४, सचित्त उपरे ठें बैठे तो १५, सचित्त संनिग्ध माटी उपर उठें बेठें तो हलें चलें तो १६, मा जालासहित पाट पाटला जोगवें तो १७ मूल १ कंद २ खंध ३ वा ४ शाखा ५ पलव ६ फूल 9 फल बीज ए हरी १० ए दश प्रकारनी हरीकाय जोगवें तो १८,
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एक सालमें दश नदीरो खेप लगावें तो १ए, एक वर्ष मध्ये दश दशमाया थानक सेवे तो २०, सचित्त सेती हाथ पग खरख्या होय जिसके हाथसु थाहार पाणी वे.
इरावे साधु वें तो सबलो दोष लागें २१. १ कवीस जात पाणी घोवण. डांमीनो १, करगेतीनो , चावखनो ३, तिलनो ४ ||
तुसनो ५, जवनो ६, नसावण ७, कांजीनो , जन्हो पाणी ए, अंबामनो १०, थांबानो ११, कविठ्नो ११, विजोरानो १३, साखनो १५, दामिमनो १५, खजुरनो ||
१६, नाखेरनो १७, कयरनो १०, बोरनो १ए, थामलानो २०, यामलीनो धोवण.५ २५ श्रावकना कवीस गुण. थकुछ १, जसवंत १, सोम प्रकृति ३, लोकप्रिय ४, याक
रो खन्नाव नही ५, पापसें मरें ६, श्रघावंत , खलद , खज्यावत ए, दयावंत | १०, मध्यस्थ ११, गंजीर १५, सोमदृष्टि १३, गुणरागी १४, धर्मकथी १५, साचो प६ करें १६, शुरू विचारी १७, वृछोकी रीत चालें १७, विनयवंत ए, किया गुण मानें १०, परहितकारी ११.
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२१ श्रावकके इकवीश गुण. नवतत्त्वका स्वरूप जाणें १, धर्मकरण में सहाय वंबे नदी २ धर्म की चलाया किसी का चलें नदी ३, जिनधर्म में शंकादि घ्या नही ४, जे रो पर्थ ग्यान धारें तिरो निर्णय करें प्रमाद करें नंदी ९, श्रावकरी दाम दारी मीजी धर्म में रंगायमान रेवे ६, म्हारो यानखो व्यथिर दें, जिनधर्म सार बें इसी चिंता करें 9, श्रावकंजी फटिकरत्न जैसा निर्मला दोय कूम कपट राखें नदीप, श्रावकं घरका द्वार सवा पोहर दिन चढें तांई दान सारु उघामा राखें ए, श्रावक एक मासमें ब पोसा करें १०, श्रावक राजाके अंतेजर नंमार शाहुकारकी कानमें जावें तो प्रीति ऊपजें नही ११, लिया व्रत पञ्चरकाण निर्मला पालें १२ चवदे प्रकारे दान सुजतो मुनिने देवें १३, धर्मको उपदेश देवें १४, तीन मनोरथ सदा चिंतवें १५, च्यार तीर्थरा गुणग्राम करें अन्याय करें नही १६, नया नया सूत्र सिद्धांतसु ११, कोइ नयो यादमी धर्म पायो हुवें जिसने सादाज्य देवें य्यान सिखावें १८, दो वखत कालोकाल पकिमणा करें ११५, सर्व जीवसुं दितपणो राखें वैरभाव राखें नही ५०, बत्ती शक्ति तपस्या करें ग्यान शिखणको उद्यम करें २१. ४
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२१ श्कवीस बोल. चुगल १, चोर २, बली ३, अधर्मि , अधम ५, थविनीत ६, श्र-||
धिक बोला , अनाचारी, अन्यायी ए, अधीरा १०, अधूरा ११, निःस्नेही १२, कुखदण १३, कुबोखा १४, कुपात्र १५, कुमाबोखा १६, कुशीलिया १७, कुशासनी १०, कुलखपण १ए, जूंमा १०, उंब १.
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॥अथ बास बोल लिख्यते ॥
२५ परिसद १२. दिगंडा बुधा परिसहं १. पिपासा तिरषा २, सीत ३, नष्ण , अचेल
कपमाका परिसह ५, मांस मबर परिसह ६, धरई थारति पीमा 9, श्ली स्त्री परिसह , चरिया विहार परिसह ए, निसिया थानकका परिसह १०, सेजा संथाराका परिसह ११, थाक्रोश रीस परिसह १२, वह वधबंधण परिसह १३, जायणा निख्याका परिसह १४, घलान नही मिलणेका परिसह १५, रोगका परिसह १६, तृणकास मान प्रमुख फरस परिसह १७, जल मल पसीना मेलका परिसह १०, सकार बाद बहुमान परिसह १५, पन्ना बुछिका परिसह २०, अज्ञान परिसह २१, दर्शण परि सह संका नही करे १५, बोल १२. अनंता सुक्ष्म परमाण मिले १, बादर परमाण होय १, अनंता बादर पर-1 माणु मिले तो १ नष्ण सेनिया रज होय २, पाठ जष्ण सेनीया रज मिले तो? शीतसेनिया रज होय ३, आठ शीतसेनिया रज मिले तौ १ उर्ड रेणु रज होय ४,*
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नई रेणु मिले १ तसरेणु रज होय १, आठ तसरेणू रज १ रथरे रज दोय ६, पाठ रथरेणु रज मिले १ देवकुरू उत्तरकुरूना मनुष्यनो बाल दोय 9, घ्याव देवकुरू उत्तरकुरूरा मनुष्यारो वाल लिजे तो १ दरिवास रम्यक वासना मनुष्यानो बाल होय, या दरिवास रम्यकरा मनुष्यारा बाल खीजे तो हेमवय एरणवना मनुष्यरो १ बाल होय ए, ध्याव देमवय एरणवयना मनुष्यारा बाल बीजे तो १ मदाविदेदना मनुष्यनो बाल होय १०, यात महाविदेद मनुष्यारा बाल लीजे तो १ मर्त्त एवर्त्तना मनुष्यारो बाल होय ११, या भरत एरवर्त्त मनुष्यारा बाल बीजे तो १ लीख दोवे १२, आठ लीखे १ जू १३, जुवे यात जव मध्य एक १४, पाठ जव मध्ये १ गुल १५, अठार यांगुले १ पांव पग १६ दोय पग १ विदब विलस्त १५, दो वि १ दाथ १०, दोय दस्ते १ ख ११५, दोय कूखे १ धनुष २०, दोय दजार धनुष १ गाड २१ चार गाउए १ जोजन २१.
२२ बोल २२ सुठाम १, सुगाम १, सुजात ४, सुत्रात १, सुतात ६, सुमात 9, सुवात , सुकुल, सुबल १०, सुखी ११, सुपुत्र १२, सुपात्र १३, सुक्षेत्र १४, सुदान १५
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सुमान. १६, सुरुप १७, सुविद्या १०, सुदेव शुए, सुगुरु २०, सुधर्म ११, सुदेश २२,|
सुदेश. ए सर्व पुन्यसे मिलती हे. | १२ वाद २५ सुं न करणा. १ धनवंत सेती वाद न करीजे, २ बलवंत सेती वाद न कीजे
३ घणे परिखाररे धणीसुं वाद न कीजे, ४ तपस्वीसुं वाद न कीजे, ५ नीचसुं वाद न कीजे, ६ अहंकारीसुं वाद न कीजे ७, गुरांसुं वाद न कीजे, थिवरासुं वाद न कीजे, ए चोरसुं वाद न कीजे, १० जुवारीसुं वाद न कीजे, ११ रोगीसुं वाद न कीजे, ११ क्रोधीसुं वाद न कीजे, १३ जुग बोले तेसुं वाद न कीजे, १४ कुसंगती सुं वाद न कीजे, १५ राजा सेती वाद न कीजे, १६ शीतल लेश्यारे धणीसुं वाद | न कीजे, १७ तेजु खेश्यारे धणीसुं वाद न कीजे, १० मुंमे मीग पेटे दगो तेसुं वाद न कीजे, १ए दानेसरीसुं वाद न कीजे, २० ज्ञानीसुं वाद न कीजे, २१ गणिकासुं|
वाद न कीजे, २२ बालकसुं वाद न कीजे. १५ बोल २२ सिमांतरा. जे को साधु राते नषध सनिधि राखे रखावे तो अणाचारी।
प्रही समान जाणवो दश वैकालिकमें कह्यो डे १, जे को साधु गृहस्थ कने चं
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पावे ते अनाचार जाणवो श्राचारांग माहे कह्यो १, जे कोश् साधु ग्रहस्थ कंने वस्तु थोढण वास्ते लेवे ते अनाचारी जाणवो सुगमांग मांहे कह्यो अध्ययन ए मे ३, जे कोइ साधु काकमी खरखुज तया मोरही फल जी वनस्पतिना फलं गेली बीज काचरी काढी हुवे लेवेतेअनाचारी पनवणातया दशाश्रुत स्कंधमांहेकह्यो । जे को साधु साधवी एकठगे विहार करे ते आग्या बाहर गणांगमें कह्यो ,||* जे कोश् साधु साधवीनो थाएयो थाहार करे ते अनाचारी जाणवो आचारांगमें कह्यो बे ६, जे कोश् साधु गोचरी प्रमुख बाहार जातो थको नार उपगरण फलक पीवं पाटीया ग्रहस्थने नोलावीन जाय ते पाग्या वाहिर दश विकालिक ७ अध्ययनमें कह्यो , जे कोश् साधु ग्रहस्थ माथे चीठी तथा पोथी मेले ते अनाचारी जाणवा दश विकालिक ७ मे अध्ययनमे कह्यो , जे को साधु पुरुष विना स्त्रीने नपदेश देवे ते अनाचारी जाणवो नगवती सूत्रमें कह्यो ए, जे कोसाधु दोय तथा अढाइ कोस नपरांत थाहार पाणी लेवा जाय ते अनाचारी नगवती तथा उत्तराध्यन सूत्र में कह्यो १०, जे कोश् साधु व्य धातु राखे ते अनाचारी ब्रह्म व्या
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करण को बे ११, जे कोइ साधु बुगमा घोवे घोवावे स्नान करे ते चारित्रथी दुराचारी जावो सुगमांग अध्यन 9 मेमें कह्यो बे १२, जे को साधु होय मोर पांखनी पीढी राखे ते अनाचारी प्रश्न व्याकरणमे कह्यो बे १३, जे साधु होय सुगंध यत्तर प्रमुख लगावे सुगंध लेवे माथो घोवे ते अनाचारी दस विकालिक ६ ध्यन को बे १४. जे साधु नित्य पिंम लेवे ते पासो व्यावश्यक चूर्णिमें कह्यो
१५, सिफातर पिंम लेवे ते पासबो घ्यावश्यक चूर्णिमें कह्यो बे १६, जे कोइ साधू एकलो विहार करे ते पासो उपदेशमालामे कह्यो बे ११, जे साधू होय चवदे उपगरणसुं त्र्यधिको राखे तो पासो निसीथचूर्णिमें कह्यो बे १८. जे कोइ साधू पुस्तक लिखावे ते पासो प्रवचन सारोद्धार में कह्यो बे १५, जे कोइ साधू शेषकाले मास १ उपरांत रहे तो पासो कर्णिकाया तथा घ्यावारांगमे कह्यो बे २०, जे कोइ साधू पुस्तक उपगरण पात्रा प्रमुख घणा करे ते पासबो २१, जे साधूके चला चेली श्रावक श्राविका साधवी परिग्रह घणो ते पासच्चो उपदेशमालामे कह्यो े २२. २२ १ जीवना नेद २ को १४ लाख १ गुणगणा ३ कोम १२ लाख ३ जोग ९ कोम
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४४ लाख. ४ उपयोग ४ कोम ६४ लाख. ए लेश्या ३को श्लाख ६शरीर३ कोर ए१ लाख. ७ वेद १ कोम लाख. ७ दीष्टं १ कोम ४२ लाख. ए संग ३ कोम ३६ | लाख. १० कषाय ३ कामे ३६ लाख. ११ प्राण ५ कोम १० लाख. १५ रूपीना २६ काम०लाख. १३ नावविषे ११ कोम १० लाख.१४व्यविषे १३ कोमलाख. १५ संघण १कोम ६६ लाख. १६ संगण १ कोम ७४ लाख. १७ समोसरणना बोल २६ | काम ७० लाख. १० निमतीना बोल ५०कोम ए लाख.१ए करणना बाल ३१ कोम ६० लाख.२० हेतु ए कोम ४४ लाख. १५खी १ कोम कही.२२ मनुष्यरी पर्याय १ कोम ११ साख.
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॥ अथ तेवीसमा बोल लिख्यते ॥
५३ सुगमांगजी के यष्ययन तेवीस. पहिले श्रुत स्कंधका १६ अध्ययन स्वसमयादिक कह्या ने जे श्रुत स्कंधनां 9 अध्ययन जाख्या अणगार पोखरणी ते बाचमीका १ क्रिया अध्ययन २, याहार परिज्ञा ३ पच्चरका परिज्ञा ४ अणगारि ९ श्राकुमारका ६ उदर्कपेलाद पुत्रका 9 एवं तेवीस अध्ययन.
१
२३ पदवी तेवीस रत्न चौद. चक्र १, छत्र २, चामर ३, दंग ४, टासी ए, मणी ६, कां-9, सेनापति, गाथापति 'ए, बढ १०, प्रोदित ११, स्त्री १२, अव १३, गजरत्न १४, नव उत्तम पुरुषकी तिर्थंकरकी १५, चक्रवर्त्तिक १६, वलदेव १७ वासुदेव १८, केवली ११५, साधु २०, श्रावक २१, सम्यग्दृष्टि २२, मंगलीक राजाकी २३ २३ पांच जीके तेवीस विषय श्रोतेंडी के तीन विषय. जीव शब्द १, अजीव शब्द २, मिश्रशब्द रे, चकुइंडीके पांच विषय. कालो ४, पीलो ए, नीलो ६, रातो ७, घोलो प घाडी वे विषय. सुगंध ए, दुर्गंध १०, फरसेंडी पाठ विषय खरखरो ११, 'सुवालो
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१२, हलको १३, नारी १४, शीत १५, जम १६, सुखो १७, चीकणो १०, जीवा ई
डीके पांच विषय. तीखो १ए, कमवो २०, कसायलो ५१, खाटो १५, मीगे३. ३| २३ चोवीस तीर्थंकरोका तेवीस यांतरा. ११२ तिर्थंकर विचाले ५० लाख कोम सागरको
यांतरो, श३ तिर्थकर विचाले ३० लाख कोमि सागरको थांतरो; ३५ तिर्थकर विचाले १० लाख काम सागरको अांतरो, र तिर्थकर विवाले ए लाख को सागरको श्रांतरो १६ तिथंकर विचाले ए० हजार कोम सागरको श्रातरो, ६७ तिर्थ- 18 कर विचाले ए हजार का सागरको अांतरो, S10 तिर्थकर विचाखे ए सय कोम * सागरको अांतरो, नए तिर्थकर विचाले ए० कोम सागरको यांतरो, ए१० तिर्थकर विचाले-ए काम-सागरको यांतरो, १०१११ तिर्थकर विचाले १ कामे सागर ६६ लाख २६ हजार वर्ष-नणा, ११११२ तिर्थकर विचाले ५४ सागरको अांतरो, १श१३ तिर्थकर विचाले:३० सागरको आंतरो, १३३१५ तिर्थकर विचाले ए सागरको श्रांतरो, ११५ तिर्थकर विचाले ४ सागरको अांतरो, १५॥१६ तिर्थकर विचाखे पजणपस्य-नणा ३ सागरको अांतरो, १६/१७ तिर्थकर विचाले श्राधे पल्यको अांतरो,
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१७।१७ तिर्थकर विचाले पल्यको चोथो नाग एक हजार कोम वर्ष नणो, ११ए तिर्थकर विचाले एक हजार कोम वर्षर्नु, १॥२० तिर्थकर विचाले २४ लाख वर्षरो, २०२१ तिर्थकर विचाले ६ लाख वर्षतुं, २१।२२ तिर्थकर विचाले १५ लाख वर्षर्नु, २२१२३ तिर्थकर विचाले ३ हजार २७५० वर्षतुं, २३।२५ तिर्थकर विचाले २५० व. पर्नु एक कोम सागरोपमरा ४२ हजार वर्ष नणा २३. तेवीस बोल जलदी मोद जाणेका. १ थाकरो (कग्नि) तप करें ते जीव शिघ || | मुक्ति जावें, २ मोदरी श्वा राखें तो जीव वेगे मोद जावें, ३ शुरु प्रणामसें सूत्र || सिंघांत सुणे तो जीव मोद जावें, ४ शुक मनसुं सूत्र ग्यान नणे तो जीव मोद जावें, ५ पांच इंजीना विषय त्यागे तो जीव मोद जावें, ६ बकाय जीवारी दया पालें तो जीव मोद जावें, ७ जण्या हुवा ग्यान वार वार विचारें तो जीव मोद जावें,
साधु साधवीरी जक्तिनाव राखें तो जीव मोद जावें, ए तीन जोगसें करण करावण अनुमोदन यह नव कोटी शुरु पच्चकाण करें तो जीव मोद जावें, १० धर्मका संबंध सईहतो जीव मोद जावें, ११ कषायका त्याग करें तो जीव मोद जावें,
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१२ क्षमा करें तो जीव मोद जावें, १३ खग्या मुषणका प्रायश्चित लेवें तो जीव मोद जावें, १४ लीये हुवे व्रत पच्चकाण निर्मल पालें तो जीव मोद जावें, १५ शुद्ध प्रणामसुं शील पाखें तो जीव मोद जावें, १६ च्यार तीर्थको साता ऊपजावें तो जीव मोद जावें, १७ निखद्य नाषा बोलें तो जीव मोद जावें, १० संजमखेकर श्रततक शुरू पाखें तो जीव मोद जावें, ए धर्मध्यान शुक्लध्यान ध्यावें तो जीव मो-| द जावें, २० महीनमें नव पोसा करें तो जीव मोद जावें, १ पागली रात्री धर्म जागरणा करें तो जीव मोद जावें, १२ नन्जय टंक काले प्रतिक्रमण करें सामाश्क करें तो जीव मोद जावें, २३ थाखायण लेश संथारो करी पंमित मरण हुवे तो जी-| व मोद जावें. बोल तेवीस नावपूजाका. न्हवण करूणानाव १, जिन गुण जल २, जयणा स्नान ३, चंगोगे थर्थात् नम्रता आंग सुकानें ५, केशर नक्ति कीजें ५, श्रद्धारूप वंदणा ६, ध्यान रंगरोल ७, तीलक ते शुद्ध नाव U, निरमन समाधि ते पखालए, धर्म ते अंगयुदणो १०, सनाव यानरण पहिरावे ११, नववामी शुद्ध ब्रह्मचर्य नव
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अंग-पूजा १२, पंचाचार विशुद्ध ते फूल पगर १३, ज्ञानरूप दीपक १४, नयाचिंतन || घतपूर १५, तत्त्व प्रात्र.विशाल १६, धूप संवर नाव १७, कृष्मागर गुरु जोग १०,थनुन्नव ते शुद्ध वास १ए, मद्य अष्ट त्याग ते अष्टमंमलीक २०, सत्य ते घंटा २१, सुधर्म ते मंगल दीवो २२, नीसल्प ते टीको २३.
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॥ व्यथ चोवीस बोल लिख्यते ॥
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२४ प्रन गुणनका व्यालस करें तो ग्यानका टोटा बहुसूत्री अध्ययनकी साख ९, साधु साधवी के दर्शन न करें तो सम्यक्तमें टोटा सोमल ब्राह्मणकी साख २, काले पक मणो न करें तो व्रत पञ्चरका में टोटा उत्तराध्यन सूत्रकी साख श मे अध्ययने ३, साधु साधवी मांदोमांदी वेयावच्च न करें तो तीर्थमें टोटा गणांगसूत्रकी साख ४, ततपस्या याचार भावनाका चोर हुवें तो देवताकी उंची पदवीका टोटा पांचमा अध्ययन भगवतीका डुजे उदेशाकी साख ९, कठिन कुक्षुष्य नाव राखें तो शितलतापपानो टोटो समवायांगसूत्रनी साख 9, व्यजयणासुं चालें तो जीवदयाका टोटा - त्तराध्ययन सूत्र व्यध्ययन २४ मानी साख छ, तन धन जोबन रुपको मद करें सो शुकर्मका टोटा पत्रवणासूत्रकी साख ए, बमानो विनय न करें तो तीर्थंकरकी आज्ञानो टोटो विवहारसूत्रकी साख १०, माया कपटाइ कम करें तो जस कीर्त्तिनो टोटो थाचारागसूत्रकी साख ११, पाबली रात धर्म जागरणा नदी करें तो धर्मध्यानको टोटो
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नसीबसूत्रकी साख १२, क्रोध कलेश कषाय करें तो हेत स्नेह नावका टोटा कोणि-110 क चमानी परे सूत्र नगवतीनी साख १३, चिंता उचाट माया सोग संकल्प विकल्प || मन करें तो बुद्धि अकलका टोय नगुमोहितनी शाख १५, स्त्रीनो लालची होय तथा तान राग सानले तो ब्रह्मचर्यनो टोटो उत्तराध्ययन सूत्रनी साख १५, साधु साधवी श्रावक श्राविका मांदोमांही देत मिलाप न राखें तो जैनमार्गनो टोटो संखजी पोखलजीनी परे जगवतीसूत्रनी साख १६, सुपात्रने नखटनावसें दान नही देखें तो पुन्य प्रकृतीनो टोटो पमें कपोलादासीनी साख १७, साधु गामाणुगामे विहार न करें तो धर्मकथानो टोटो पमें सेलक राजऋषीसरनी परे १०, धर्म करें नही ग्यान नणे, नही इंयां जीतें नही तो जिनसासननो टोटो पमें समाचारीनी साख १ए, व्रत पचस्काणमें दोष लगावें बालोवे नही नंदे नही पायलित लेवें नही तपस्या करें नही. संलेषणा करें नही तो मोदना सुखनो टोटो पमें श्री पार्श्वनाथजीनी दायसें उप्पन सा- || धवीनी परे २०, अरिहंतजीका तथा अरिहंत नाष्या धर्मका तथा च्यार तीर्थनाथवर्णवाद बोलें तो सत्यधर्म पामणको टोटो पमें गणांगसूत्र पांचमे गणेनी साख २१ ||
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सद्गुरुनो वचन नही मानें तो जंची गतिनो टाटो पर्फे ब्रह्मदत्त चक्रवर्तिनी साख २२, ॥ साधु साधवी गुरु गुरुणीनी थाज्ञा उलंघे तो श्राराधकपणानो टोटो पमे सुकमाला खंधकजीनी साख २३, नगवानरा वचन उपरांत तर्क उठायने कहे तो शुक मार्गनो टोटो पमे जमालीजीनी साख २४. चोवीस जातीना देवता. १० नुवनपति असुर कुमार १, नाग कुमार , सोवन कुमार ३, विद्युत कुमार ४, अभिम कुमार ५, दीप कुमार ६, उदधि कुमार ७, दिशा कुमार ७, पवन कुमार ए,थणीय कुमार १०. या वाणव्यंतर पिशाच १ चुत १, जद ३, रादास ४, किंनर ५, किंपुरुष ६, महोरग, गंधर्व u, पांच ज्योतषि चंजमा १, सूर्य १, ग्रह ३, नदात्र ४, तारा ए, एकवेमाणीक १४. अतीत कालकी चोवीसीका नाम. केवलझानी १, निर्वाणी१, सागरजी ३, महायसजी ४, विमलजी, सर्वानुभुतिजी ६, श्रीधरजी, दत्तजी, दामोदरजीए, सुत्तेजजी १०, स्वामीजी ११, मुनिसुव्रतजी ११, सुमतीजी १३, शिवगतिजी १५, अस्तागजी १५, नमिस्वरजी १६, अनिलजी १७, यशोधरजी १०, कृतार्थजी १५
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जिनेश्वरजी २०, शुद्धमतीजी २१, शिवंकरजी २२, स्वंदनजी २३, संप्रतिजी २४. ३ २४ अनागतकाल की चोवीसीका नाम. पद्मनानजी १, सुरदेवजी १, सुपार्श्वजी ३, स्वजी ४, सर्वानुतिजी: ए, देवश्रुतजी ६, उदयजी 9, पेढालजी प, पोटिलजी ए, सतकीर्त्तिजी १०, सुव्रतजी ११, ममजी १२, निष्कषायजी १३, निष्पुलाकजी १४, निर्ममजी १५, चित्रगुप्तिजी १६, समाधिजी १७, संवरजी १८, यशोधरजी ११५, विजयजी २०, मल्लिजी २१, देवजी २२, अनंतवीर्यजी २३, नकरजी २४. २४ छावगाहना २४ तीर्थकरनी. पदेलाकी ५०० धनुषरी अवगाहना १, दूजोंकी ४५० धनुष अवगाहना २, तीजाकी ४०० धनुषरी अवगाहना ३, चोथाकी ३५० धनुपरी अवगाहना ४, पांचमाकी ३०० धनुषरी पवगाहना १, बवारी २५० धनुषरी छावगादना ६, सातमारी २०० धनुषरी व्ावगाहना १, आठमारी १५० धनुषरी व्यवगा - दना, नवमानी १०० धनुषरी व्यवगाहना ए, दसमानी ए० धनुषरी अवगाहना १०, इग्यारमानी ८० धनुषरी व्यवगादना १२, बारमानी १० धनुषरी पवगाहना १२, तेरमानी ६० धनुषरी अवगाहना १३, चवदमानी १० धनुषरी व्यवगाहना १४, पन
४
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स्मानी ४५ धनुषरी अवगाहना १५, सोखमानी ४० धनुषरी श्रवगाहना १६, सत्तरंमानी ३५ धनुषरी अवगाहना १७, अंदारमानी ३० धनुषरी अवगाहना १०, जंगपीसमानी ए धनुषी श्रवगाहना ए, वीसमानी २० धनुषरी श्रवगाहना २०, ईकत्रीममानी १५ घनपरी अवगाहना १, बावीसमाना:
तेवीसमानी ए हाथरी अवगाहना २३, चोवीसमानी ७ हाथरी श्रवगाहना २४. ५ तीर्थंकर नाम: जन्मनगरी. पितानानाममातानानामा आयुर्मान. चवन. जन्म. | दिक्षा. केवल. मोक्ष १ ऋषभदेवजी. वनीतानगरी नामीराजा. मरुदेवा ४ लक्षपूर्व अ.ब.४ चै.व. वै.व. का. ब. माहव. २ अजितनाथजी अयोध्यानगरी जितशतुरा-सिद्धार्थरा७२ , मु.१३,मा.मु.८माह.९पो. स. वै.ह.५ ३ संभवनाथजी. सावधीनगरी जितारीरा. सेनाराणी ६० , का.मु.८)मा. . मि. स.का.ब.प.सु.५ | " अभिनंदनजी. अयोध्यानगरी संवरराजा सिद्धार्यरा.५० , वि.सु.४ मा.सु २माह सुदापो, सुदव.स.८
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है। ठमतिनाथली. अयोध्यानगरी मेघरथरा. 'मंगलाराणी लवपूर्ण आ-ख-चैव शु. विअ. वि. उ. वि.ख.
। १२ । १३ । १५ । ११ ।
१४
| ६ पद्मभचजी. कोशंबीनगरी श्रीधरराजा मुसीमारा. ३० - माहव. का. व. का. व.चे. म. मि. व.| | ७ उपार्श्वनाथजी. वणारसीनग. पतिष्टराजा.पृथ्वीमावा २० , भा.व नि.मु१२/जे. मु. का.व.का.ब.५
८ चंद्रप्रभुजी चंद्रपूरीनगरी महासेनरा. लक्ष्मणारा.१० , चै.व. ५/पो.व.१२/पो. व. का.व.भा.व.७ | ९ सविधिनायनी काकंदीनगरी मुग्रीवराजा रामाराणी | २ , फा.व.९मा. व. मि.व.६ का मु शभा स.९ १० चीतळनायनी मदिलपुर. ढरयराजानंदाराणी | १ , चै.व.६ मा. व. मा. व. पो. व. व.व. २ ११ श्रेयांसजी. सिंहपुरी विष्णुराजा विष्णुराणी ८४ लक्ष वर्षजे.व.६ फा. व. फा. व. माहव.सा.व.३
वासपूज्यजी. चंपापुरी वमुपूज्यरा.जयाराणी ७२ , जे मु.९ फा. व.फा.व.मा.मु.२/अ. मुद |१३ विमलनाथजी कपिलपुर. कृतवर्मरा. स्वामाराणी/६० , वैस-१२मा.स.मा.स.यो.स.अ.व.७ १४ अनंतनाथजी. अयोध्यानगरी सिंहसेनरा. सुयशाराणी३० , सा.व.७व.व.१/वै.व.१४/ वै. व. चे.व.५
११ । १२ । १४
।
१४ ।
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% 32
१४
१४ ।
१३
११ ।११ । १२ । १०
१५/धर्मनाथजी. रत्नपुरीनगरी.भानुराजा सुबत्ताराणी १०लक्षवर्ष वै.स. मा.सु.मा. मु. पो. स.जे.स.५
१)शांतिनाथ. गणपुर. विषसेनरा.अचिरारा.| १ , भा.सु. जे. व जे. व.पो.मु.९) जे.व. || १५ धुनाथजी. गजपुर. राजा श्रीराणी ९५हजारव सा.व.९/वे.व.१४वे व वैसु.३ वै.व. १ 8||१८अरनाथजी. गजपुर सुदर्शनरा. देवीराणी ५ , का.मु.मि. म. मि. सु. का.मु.मि. . ||१९|मल्लीनाथजी. मिथिलानगरी कुभराणा प्रभावतीरा.५५ , का.मु.मि. म. मि. म. मि. सु.फा. सु
२०४निमवतजी. राजगृहीनगरी समिनराजा पद्मावतीरा/३० , सा. म..व. फा. सु.का. व. न. ३९ *||२१नमीनाथजी. मयुरानगरी विजयराजा विभाराणी |१०, आ. सु.श्री.व.अ.व. मि. सु. वै.व.१०
२२नेमिनायजी. सौरीपर. सनद्रविजय शिवादेवी ) १ ,का०व०सा.सु.सा.सु.६/आ.व.अ.मु.८ ||२३पार्श्वनाथजी वणारसीनगरी अश्वसेनरा. वामादेवी १०० , पै.व.पो. व. पो. व. चै.ब. सा.मु.८ *||२४महावीरजी त्रियकुंड न सिद्धार्थरा, त्रिशलादेवी| ७२, म.सु.६/वे. मु. मि. व. वै.सु.१० का.व.९
११ । ११ । ११
१२
। १५ ।
१२१२
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१०
११
1.
आ.व.१३ गपिहार
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| २४ चोवीस दमकना नाम. सात नारकीरो एक दमक १, दश नवनपतीरा दश दमक
११, पांच थावररा पांच दमक १६, तीन विकलेंडीरा त्रण दमक १५, तिर्यंच पंचेंडी दमक २०, मनुष्यनो १, वाणव्यंतरनो १२, जोतषीनो २३, वैमानीकनो २४. ७
SORROR
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॥अथ पचीसमा बोल लिख्यते ।
---**-- २५ महाव्रतनी पचीश नावना. पहिले महाव्रतकी पांच नावना. ानावना १, मन
नावना १, वचननावना ३, एषणानावना ४, आयाणजम्मत निखवणानावनाए, पुजे महाव्रतरी पांच नावना. जूठ न बोलें ६, क्रोध करी न बोलें,लोन करी न बोलें , नय करी न बोलेंए, हास करीन बोलें १०, तीजे महाव्रतनी पांच नावना. अहार प्रकारना थानक न नोगवें ११, तृण मात्र पण जाचीनलेवें ११,थानक घटारे मगरे नही १३, साधर्मीका वस्त्र याझा विना लेवें नही १४, साधुरी वयावच करें १५, चोथे महाव्रतरी पांच नावना. स्त्री पशु पंमगरहित थानक नोग- १६, स्त्री की कथा न कहें १७, स्त्रीका धंग लपांग न निरखें १०, पूर्वखी क्रीमा नाग न संनारे १ए, सरस याहार नित प्रते न करें १०, पांचमा महाव्रतनीपांच नावना. शब्द २१, रुप २, गंध ३, रस २४, फरस २५. मनोगम जपर राग न करें अमनोगम उपरे ष न करें.
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२५ पमिलेहणा पचीस. नव अखोमा ए, नव पखोमा १U, उ पमिमा २४, एक दृष्टि. १ २५ बोल पचीस असंख्याता. पांच थावरका जीव. पृथ्वी १, अप्प २, तेन ३, वान ४,
प्रत्येक वनस्पतिका जीव ५, बरंखी ६, तेरंखी, चोरंखी, समुर्बिम मनुष्य ए, संमुर्बिम तिर्यंच १०, जलचर सनी ११, थलचर सनी ११, खेचर सनी १३, नारकी १४, नवनपंति १५, वाणव्यंतर १६, वैमानीक १७, जोतषी १०, दीप ए, समुष २० धर्मास्ति २१, अधर्मास्ति १२, थाकाशास्ति २३, एक जीवरा प्रदेशश्व,साधारण वन
स्पतिरा शरीर २५. २५ पमिलेहणा पचीश. समकितमोहनी १, मिथ्यातमोहनी १, मिश्रमोहनी ३, कामराग
४, स्नेहराग ५, दृष्टिराग ६, सुदेव , सुगुरु सुधर्मकी सरदहणा ए, तीन अग्यान गेमें १२ शुनमन १३, शुनवचन १४, शुनकाया १५, अशुन्न मन, वचन, काया
१०, कुदेवं १ए, कुगुरुं २०, कुधर्म २१, तीन ग्यान २४, दिष्टि २५. २५ पचीस पमिलेहणा. हास्य १, रति १, अरति ३, नय ४, सोग २, अगंग ६, कृष्णा
खेश्या , नीललेश्या ७, कापोतलेश्या ए, ऋछिगाख १०, रसगाख ११, सातागा
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ख १२, मायाशब्य १३ नियाणाशब्य १४ मिथ्यादर्शणशब्य १५ क्रोध १६ मान १७, माया १० लोन १५ पृथ्वी २० अप्प २१ ते १२ वा २३ वनस्पति, त्रसकाय. ए २५ मिथ्यात्व पचीस प्रकारनो. धम्मे व्यधम्म सन्ना १, व्यधम्मे धम्म सन्ना २, मग्गे जमग्ग सन्ना ३, मग्गे मग्ग सन्ना ४, जीवे जीव सन्ना ५, छाजीवे जीव सन्ना ६, साधु साधु सन्ना, साधु साधु सन्ना प, मुत्ते व्यमुत्त सन्ना ए, यमुत्ते मुत्त सना १०, निग्रहीक मिथ्यात ११, अणानिगृदीक मिथ्यात १२, निनिवेसिक मि'थ्यात १३, पण उपयोग. मिथ्यात १४, संसयिक मिथ्यात १५, लोकिक मिथ्यात १६ लोकोत्तर १७, कुपरावचन मिथ्यात १८, उणारित ११५, इरित २०, छाकरिया मि थ्यांत २१, विपरीत मि० २२. अविनय २३, अपमान २४, असातना मि० १५. ६ २९ पचीस क्रिया. काश्या १, दिगरीणीया २, पाजसिया ३, परितावलिया ४, पाणावाया ९, रंजिया ६, परिगहिया ७, माया वत्तिया प, मिलादंसण वतिया ए, पचखा वत्तिय १०, दिढिया ११, पुंठीया १२, पारुंचीया १३, सामंतोवणिया १४, सादचिया १५, निसीबीया १६, प्रणवणीया १७, विदारणिया १८, अपानो
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गवत्तिय ११५, प्रणवखव त्तिया २०, प्रणउपयोग २१, समुदाणी २२, पेज २३ दोस २४ इरियावदी क्रिया २५.
२५ सादा २५ या देश. मगध देश राजगद्दी नगरी १ कोमी ६६ लाख गाम 3, अंग देश चंपानगरी ५ लाख गाम २, बंग देश तामलीक नगरी १८ लाख गाम २, कलिंग देश कंचपूर नगर २० लाख गाम ४, काशी देश वाणारसी नगरी १ लाख ५० हजार गाम ९, कोसल देश जोध्या नगरी ५ हजार गाम ६, कुरू देश गजंपूर नगरीठ लाख २३ तेवीस हजार ४२५ गाम 9, कुशावर्त्त देश. सोरीपुर नगर १ एक लाख ४३ हजार गाम छ, पंचाल देश कंपिलपुर नगर तीन खाख तेसठ ६३ हजार गाम ए, जंगल देश पबित्रानगरी ७ लाख ४५ पेतालीस हजार गाम १०, कह देश कोशंबी नगरी शा हजार गाम ११ सांमिल देश नंदीपुर नगरी २१ हजार गाम १२, मालव देश नद्दिलपुर नगरी ७० हजार गाम १३, वह देश वेराट नगरी २ लाख 50 पट्यासी हजार गाम १४, दशार्ण देश मृगावती नगरी १० हजार गाम १५, वरण देश श्वापुर नगरी चोवीस २४ हजार गाम १६,
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विदेह देश सिवावती नगरी ४२ हजार गाम १७, सिंधू देश वीतजयपाटण नगरी ६ लाख ८० सी हजार पांचसो गाम १८, सोवीर देश मथुरा नगरी हजार गाम १९५, विदेह देश मथुरा नगरी ८ हजार गाम २०, शुरसेन देश पावापुरी नगरी ३६ तीस हजार गाम २१, जंग देश मासपुर नगर ५१ हजार चारसो पचास गाम २२, लाटण देश कादावती नगरी ७० लाख १३ हजार गाम २३, कुणाल देश सावची नगरी ६३ तेसठ हजार गाम २४, सोरठ देश द्वारा नगरी ६० अमसत हजार ५ पांचसे १६ वीस गाम २५, केकई देश सेतांत्रका नगरी १ लाख ५ हजार यार्य देश १ लाख १५ हजार अनार्य देश 9 हजार खालसे.
२५ पचीस स्थान प्रासाद 3, विहार १, हम्र्म्म ३, हस्तिशाला ४, अश्वशाला ५, नांमागार ६, कोष्टागार, भूमिगृह प, धर्मशाला ए, दानशाला १०, समाशाला ११, खायुपशाला १२, स्नानगृद १३, अलंकारसजा १४, नायकगृह १९, शत्रुकार १६, पानीयशाला १७ प्राश्रम क्रीमा गृह १० महानस भोजनशाला ११५ शांतिगृह २० टज प्रपवरकचंद्र० २१, सूतिकागृह २२, गोशाला २३, पाकपूटिंगतिका तपनीश
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ब्यशाला म भजाकण घोषनिषद्या मश्रुविस्थानम् २५. २५ पचीस क्रिया यर्थः कायाये करी क्रिया कीजें ते कायकी क्रिया १, हल मुसल कसी
कुबालादि शस्त्रसं ऊपजे ते अधिकरणकी १, रीससु उपजें ते प्रषिकी ३, परने पीमा उपजावें ते पारितापनकी ४, प्राणी वध की ते प्राणातिपातकी ५, पारंन कीजे करसाणादिक तेयारंनकी ६, धन धान्यादि लाने ते परिग्रहकी ७, मायाये क-110 री लागें ते'मायाप्रत्ययिकी ७, मिथ्यात्वे करी लागें ते मिथ्यादर्शनकी ए, अविरती। ने लागे.ते अपच्चलाणकी १० नाटक प्रमुखने जोयवै लागें ते दृष्टिकी ११, सुकमा-||* खने फरसे ते पृष्टिकी १५, बाहिरली वस्तु कांश देखी ते वस्तु करवा वा ते प्राती-|| ति १३, घृतादिक नाजन न ढांके ते सामंतोपनिकी १४, हथीयार घमा अथवा ती| खा करावें शस्त्रकी १५, श्रापणे हाथे हणे ते स्वहस्तीकी १६, वस्तु अणावे मेलिहवे ||* ते थाझापतिकी १७, फल काष्टादि विदारे ते विदारणकी १०, अजाणतां कीजें ते||* अनानोगीकी १ए, इहलोक परलोक विरोधी ते अनवकांख प्रत्ययकी २०, अन्य ||* पास कार्य करावें ते अन्य प्रयोगकी २१, आठ कर्मना बंध थाय ते समुदानकी १५,||*
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देकरी लागे ते प्रेमको २३, क्रोध माने करी लागे ते छेपकी २४, केवलीने लागें ज्यापथिक २५.
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॥अथ वीस बोल लिख्यते ॥ || २६ बोल वीस प्रश्नोत्तर. १ कहो पुजजी कहो स्वामीजी श्यां घणा जीवांरी उत्पत्ति की
सै पापरे उदेसुं. सुण सिष्य पुरखले नव घणाक मबरो याहार कीनो तिण पापरे नदेखें, १ कहो पुजजी श्ण जीवने नाणां गुणणो नही आयें सुं किण पापरे नदेखें पुखले जव आप नणीयो नही पेलने नणतां अंतराय दीनी तिण पापरे उदे सुं, ३ कहो पूज्य जीव कालो कुदरसण कीण पापरे नदेखें. पूरवले नव रूपरो अ-|| इंकार कीनो तिण पापरे नदेखें, ४ कहो पूज्य श्ण जीवने अजस अकीरती थावेसुं किण पापरे नदेखें सासु ससरेसे इसका कीना तिण पापरे जदेखें, ५ कहो पूज्य || ण जीवने कुमो कलंक आसुं. किण पापरे नदेखें पुरख नवे वारंवार कलह कीनो तिण पापरे उदेसुं. ६ कहो पूज्य श्ण जीवरो बोलायो चालीयो सुहावें नहींखें कि-|* ण पापरे नदेखें. पुरवले नव आपरो कियो थापीयो पेलैरो कियो तथापीयो तिण ||* पापरे नदेखें, कहो पूज्य श्ण जीवने शाबाशी जस मीलें नही सुं किण पापरे ||
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जदेखें. पूर्व नव जातरो अहंकार किनो तिण पापरे नदेखें, कहो पूज्य श्ण जी-|| वने घणो क्रोध आ सुंकिण पापरे उदेसुं. पुरवले नव घणो लोन कीनो तिण पापरे उदेसुं, ए कहो पूज्य श्ण नीवरे संसारमण मिट्यो नही सुंकिण पापरे जदैसु. पुरख नवे पोसा पमिकमणमें विराधना कीनी तिण पापरे नदेसुं १०, कहो पूज्य श्ण जीवने देस परदेस जावे पिण लान हुवे नही सुं किण पापरे जदैसु. पुरखले ||* नव पोते दान दियो नही पैलेने देतां अंतराय दीनी तिण पापरे उदेसुं ११, कहो पूज्य श्ण जीव पांचे इंडी हीण पाश्सुं किसे पापरे उदेसुं. पूरवले जव गाजर मूला कांदा जमिकंदरो आहार कीनो तिण पापरे जुदैसुं १२, कहो पूज्य श्ण जीवे पुरुष पणो पायने स्त्री सरीखो हुवे सुं किसे पापरे जदैमुं. पुखले नवे मायारी कपटाश्कीनी || तिण पापरे उदेसुं १३, कहो पूज्य श्ण जीवे पांच इंघिरो विजोग पायो सुं किण पापरे नदेखें पूरव नवे वनस्पतिनी बेदन नेदन घणी कीनी तिण पापरे नदेखें १५, कहो पूज्य श्ण जीवने घणी निंद आवे सुं किण पापरे उदेसुं. पुरख नवे दारु नागरो निसो घणो कीनो तिण पापरे उदै सुं १५, कहो पूज्य श्ण जीवरो शरीर
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निरोग नही रहे सुकिण-पापरे उदेसु. पुरख नवे घणा जीव मोसीया तिण पापरे जदे सुं १६, कहो पूज्य श्रा जीव बूलो पागलो गंगो कीसे पापरे उदैमुं. पुरवले नव नागसीमे घालने कुटोया पीटीया तिण पापरे उदै सुं १७, कहो पूज्य श्ण जीवने रोज घणो आवे सुं किसे पापरे उदै सुं।पुरखले नव काची कुंपलांतोमी तिण पापरे नदै सुं।१०, कहो पूज्य श्ण जीवसुं तपस्या नही हुवे सुं किण पापरे जदै सुं* पूखले नव आप तपस्या किधी नही ने पेले करताने अंतराय दीनी तिण पापरे जुदैसं १ए, कहो पूज्य श्ण जीवने झुगार बेटा घर सुहावे नही सुं किण पापरे | जदैसे पुरखले नव दान सील तप नावना नावी नही तिण पापरे जदै सु २०, कहो पूज्य श्ण जीवने सीख सीखामण वाहाली लागे नही सुं किण पापरे जदै सुं| पूरव नवे थार्त ध्यान रुफ ध्यान ध्यायो तिण पापरे नदै 'सु. ११, कहो पूज्य श्ण जीवने नरजोबनमे दयापणो श्रावे नही सुं किण पापरे जदै सुं पूरख नवे घणा मैला मंत्र कीना तिण पापरे नदै सुं २५, कहो पूज्य श्ण जीवने नरजोबनपणाम रंमापो थावे सुंकीण पापरे जदै सुं. पुख नवे जमां से रुख उपामिया तिण पापरे
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जदयसु २३, कहो पूज्य श्ण जीवने कुटंब घररो सुख देवे नही सुं किण पापरे जदै || सं. पुरख नवे टोगमा टोगमीने सुध गेमीयो नही ने अंतराय दीनी तिण पापरे जदै| सुं २४, कहो पूज्य या जीव कांणो हुवोसु किसे पापरे जदैसुं? पुरख नवे बोरकाचर फल फूल सूश्सुं विंधीया ने माला किनी तिण पापरे नदेसुं २५, कहो पूज्य था| जीव बांधो हुवेसुं किण पापरे नदसुं. पुरवले नव दीसता जीव धानमे पीसीया तिण पापरे उदेसुं १६, कहो पूज्य यो जीव अपुत्रीयो सुखीयो हुवे सुं किण पापरे जदैसुं. पुरखले जव घणी बुराश्कीनी अणदिदी अणसुणी वातो कीधी तिण
पापरे उदेसु. १६ बोल ३६ श्रावकरी मर्यादारा. अंगोग जल्बणिया विहं १, दंतण विहं १, वृदाना फल
फल विहं ३, तेलादि अनंगण विदं ४, मईन जवट्टण विहं ए, स्नानपाणी माण विहं ६, वस्त्र वह विहं ७, चंदनादि विखेवण विहं , फुल पुष्फ विहं ए, ग्रहणा
आनरण विदं १०, धूप विदं ११, पीणकीचिज पेज विहं ११, सुखमी वगेरे नकण विहं १३, चावल जदन विहं १४, दाल सूप विहं १५, विगय विहं १६, साग विहं
२४
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१७, वेलरा फल माहुर विहं १७, जिमण विहं १, पाणी विहं २०, मुखवास विहं २१, पगरणि वाहनि विहं २, असवारी वाहन विहं २३, सिङ्गा सयण विहं २४, सचित्त विहं २५, दव विहं १६. गुणगणा १४ ऊपर २६ बोल. १४ गुणगणा मांहि सावद १३,शनिर्वद १,१४||* गुणगणामेश्व धर्मि ११३, बाकी १२ धर्मि २, गुणगणा १४ मांहि श्परमत्ती ११३, १२ समत्ति ३, गुणगणा १४ मांहि २ विराधक ११२,१५ श्राराधक ४, गुणगणा. १४ में पाग्या बाहिर १३, १५ आग्या मांहि ५, १४ गुणगणामें शमिथ्यादृष्टि १।३। १२ सम्यगदृष्टि ६, १४ गुणगणेश अग्यानि १३, १२ ग्यानि ७, १५ गुणगणे ४||* प्रवृत्ति पांचमो १ वृत्ति ए सर्ववृत्ति में गुणगणा १४ असंवरी पहिलो १ पांचमो||* संवरासंवरी ए संवरी.गुणगणा १४ में संजती १ पांचमोसंयता संयती ए.संयमी || १०, १५ गुणगणे १२ अकेवली २ केवली १३१४ मो ११, १४ गुणगणे १० सरागी पहिला ४ वितरागी ११, १२, १३. १४१५, १४ गुणगणे ए सवेदी ५ श्रवेदी १० ११, १२, १३, १४ मो १३. १४ गुणगणे ३ गुणगणामे काल न करे शश१३ मे ||
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बाकी ११ गुणगणा काल करे १४, गुणगणा १४ में एसास्वताशयशा१३ मोए श्रसासता १५, तीर्थकरदेव ५ गुणगणा नही फरसे शश५/११ मो ए फरसे १६, १४ गुणगणे ६ प्रमादी प्रथम ७ अप्रमादी १७, १४ गुणगणे १० सकषा प्रथम ४ थकषाय १०, १४ गुणाणे १३ संयोगी १ अयोगी १४ मो १ए, १४ गुणगणे सलेसी १३ थलेसी १४ मो १०,१५ गुणगणे १३ नासक १ अनासक १५ मा ११, १४ गुणगणे १३ याहारी१ थाहारीक १४ मो १२, पहिले गुणगणे नव्य बजव्य दोर्नु वाकी १३ गुणगणे नव्य २३, गुणगणा ३ जीवरे परनव साथे जावे शश बाकी ११ न जावे १४, १४ गुणगणे ११ सशंदिया १३१४ मो धणेदीया
१५, १४ गुणगणा ४ अपचखाणी प्रथम १० पचखाणी १६. २६ देवलोक १६. बारे १२ कल्प ए ग्रेवेक ५ अत्तर विमाण एवं १६.
प्रथम १०१ सझदया
कल्प
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॥ अथ सत्तावीस बोल लिख्यते ॥
२१ सत्तावीस गुण साधुके. पांच महाव्रत पालें, पांच इंसी वश करें, च्यार कषाय टालें
एवं १५. दमावंत १५, वैराग्यवंत १६, प्नावसच्चे १७, करणसच्चे १७, योगसच्चे १ए, मन समधारणीया २०, वयसमधारणीया २१, कायसमधारणीया ५५, नाणसंपन्ने २३, दर्शनसंपन्ने २४, चरित्रसंपन्ने २५, सितादिकवेदनी सहे २६, मरणांत उपसर्ग सहे. १
आकाशना सत्तावीश बोल. आगासे तिवा १, आकाश बकाए तीवा २, गगणेतिवा ३, जसेतिवा ४, समेतिवा १, विसमेतिवा ६, खतिवा , तितिवा ७, वातातिवा ए, विवरेतिवा १०, अनरेतिवा ११, शंबरेतिवा १२, गमेतिया १३, गुसिरेतिवा १४, मगेतिवा १५, विमुदतिवा १६, प्रदेतिवा १७, वियदेतिवा १७, श्राधारेतिवा ए वोमेतिवा २०, नायणतिवा २१, अतिरिखेतिवा २५, सामेतिवा २३, उवासंतरतिवा
२४, वागमतिवा २५, फलिहेतिवा २६, बणंतेतिवा २७. २७ पृथ्वीकायना नेद सत्तावीश. १ स्फटिकरत्न, २ मणिरल, ३ रत्ननी सर्व जाति , प.
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खाला, ५ हिंगलो, ६ दरताल, 9 मणशिल, पारो, सोनुं, १० रूपुं, ११ त्रांबु १२ बोढूं, १३ जसत, १४ सीसुं, १५ कथिर, १६ खमीमाटी, १७ दमजीवानी १८ अ रोटोपाषाण, १५ पलेवोपाषाण २०, वरख २१, तुरीमाटीनी जाति १२, खारी माटीनी जाति, २३ माटीनी सर्व जाति, २४ पाषाणनी सर्व जाति, २५ सुरमानी जाति, २६ जननी जाति, २७ लूनी जाति.
२७ शिखामणके सत्तावीश वोल. १ मित्रसें कपट रखणा नदी, २ स्नेहवान स्त्रीका पण विश्वास न करणा, ३ अन्याय मार्गसेंती डव्य पेदा न करणा, ४ बमोंके साथ वैर करणा नदी, ५ नीच पुरूषके संग विवाद करणा नदी, ६ वैरीके उपर पण निर्दयी न होणा, १ समर्थ होकर उसरेकी घ्याशा नंग नहीं करणी, किसी कुं जूठा कलंक न देना, ए किसीकुं खराव मालुम दोय एसा वर्त्ताव नदी करणा, १०, जिस ठिकाणे डुश्मन ज्यादा होय वहां जावें नदी, १९ अपणी बनाइ मुखसें करणा नदी, १२ चोरीकी चीज मोल लेणी नदी, १३ कार्य तथा सत्कार विगर किसीके घर जाणा नदी, १४ मातापितानी याम्या खोपवी नदी, १५ सग साथे कदापि विरोध
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कखो नही, १६ कपटीका याबरको विश्वास न करणो, १७ शूरवीर होकर निर्बलने मुःख देणा नही, १७ अति कष्ट पर्फे पण आत्मघात करणा नही, १ए हांसी करतां किसीपर क्रोध करणो नही, २० को क्रोधने वशे करी कमवा वचन श्राय कर कहै तथापि न्यायमार्ग गेमें नही, २१ माता पिता गुरु शेठ स्वामी और राजा र णोके अवगुण बोलणा नही २२, स्नेहराग समान उसरा नत्कृष्टा बंधन नही जर प्राणीकी हिंसा समान मोटा पाप नही, २३, माता बेन उर पुत्री साथे एक श्रासने बेठणा नही, २४ क्रोधी कृपण बालसु और व्यसनीकी संगत करणी नही, २५ ध-||* नसें बहोत प्यार होय परंतु अन्याय करी नपार्जन नही करणा कारण सोनेरी बूरी || को पेटमां मारता नथी, २६ कदापी सत्य गेमना नही, २७ जिस घरमें कोम ||* नुष्य न होय नसमें चोकस विना जाणा नही.
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॥ अथ अनावीस बोल लिख्यते ॥
२० अळावीस याचार कल्प. आचारांगसूत्रना पचीश अध्ययन.स्त्रीपरिका अध्ययन १,
लोकविजीया , सीतोसनीया ३, समक्त ४,लोकसार ५, युता ६, विमोखा , उपादान ७, महाप्रझाए, पिंपणा १०, सेज्या ११, ा ११, नाषा १३, वस्त्र एषणा १४, पात्र एषणा १५, अवग्रहपमिमा १६, सात सतकीया २३, नावना १४, विमुक्ता २५, उसीतना त्रण. लघुमासादिक प्रायजित २६, गुरुमासादिक प्रायबित २७, व्रत | यारोपण प्रायति २०. शिखामणका अलावीस चोख. सुधी सरदहणासं सुणेवेका नद्यम करें १, जो जो मरियादा वमाने करी तेहनो निखाह करवो १, उसमनसेंती काम पमें तो विचारीने || पामिवो ३, घणी खटपट करें तिणने आपणो मन नही दीजें ४, लोक झुगा नन्ना रहेने वात न करवी ५, वमा सीख देवें तो प्रमाण करवी ६, जिसके वोलीये बंध न-1 ही तिणसेंती न बोलीये ७, सील समकितमें परिसह ऊपजें तो पिण नहि गणो |
१||
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नीचकी संगती न करवी ए, वमासु मित्रसुं हेत वधारखो १०. सात कुव्यसनरो संग न करखो ११, वमेरा चूका हुवे वाद न करवो ११, अणविवेकीने सीख न देणी,माने ||* वा न माने १३ वमेरानो विनय करखो १५, थापरा गुण आपरे मुंढेसुं न प्रकासवा १५, पारका गुण जाणतो हुवे ते किणही पागल न कहेवा १६, घरमें सुख मुर्ख अनेक बे पिण धर्मरी मर्यादा न मूके १७, नीच पुरुषने न मवो मे तो रेंकारा || तुकारा बोलें १०, पीठ पाने किणरी निंदा न करवी जो सानले तो वेर बंधे हुए, सील संयमे दिढ रहेको २०, क्रोधीने न जेमवो २१, दोय जणा वात करता होय तो तीजाने जन्नो न रहणो १, थापरे घररा बिल तथा सुख सुःख किणहीसुं न कहणो २५, जो क्रोध आवे तो जिम तिम न बोलें बोलें तो पीनतावणो में २४, विवहार निश्चे दो साचववा उद्यम ते व्यवहार निश्चे करखो ते मोद २५, वझरा ताणता होय तो गेटाने ढील देणी २६, घरमें काम अनेक में पिण दोय घी ध
मेरो काम करखो २७, धागे पाने जोश्ने चतुराश्सुं बोलवो श्. || २० अठावीसवार फलातां गिणवी. पुबंगे १, पुबे , त्रमियंगे ३, तुमीए ४, थममंगे ५,
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अममे ६, अववंगे , अववे, हुहुधंगे ए, हुहुए १०, उपलंगे ११, उपले १२, प्पनुमंसे १३, पजगे, १५, नलिणगे १५, नलिणे १६, श्रबणीचरगे १७, थरिणीचर १०, बाजधंगे ए, बाऊ १०, नऊयंगे २१, नन १२, पऊछंगे २३, पद २४, चुलिधंगे २५, चुली २६, ससीपहेली धंगे १७, सीसपहेली शा.
३ अगश्स लब्धी. आमोसदी १, विप्पोसही १, खेलोसही ३, जलोसही ४, सवोसही ५, सन्निनश्रोता ६, अवधिशान ७, रूजुमति , विपुलमति ए, चारपलब्धि १०, थसिविष ११, केवललब्धि ११, गणधर लब्धि १३, पूर्वधरलब्धि १४, अरिहंतलब्धि १५, चक्रवर्ति लब्धि १६, वासुदेवं लब्धि १७, बलदेव लब्धि १०, वीरमधुसपिया १ए| पदानुसारी २०, काबुछी १, बाबुबुकी ११, तेजु खेश्या १३, थाहारक सरीर खब्धि २४, सीतल लेश्या २५, वैक्रिय लब्धि १६, अखीण माहाणसीया लब्धि २७,
पुलाक सब्धि २०. २० श्री वीरनी २० उपमा. सूर्यनी जंपमा १, अमिनि उपमा १, समुन्नी जपमा ३,
देवतामांदि ईख मोटो, नचामांहि समेर पर्वत मोटो ५, खांबा पर्वतमांहि निषध
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पर्वत ६, चुमि श्राकारे पर्वतमाहि रुचिक पर्वत ७, रूखमांहि सामलि वृक्ष , वनां | मांहि नंदन वन ए, शब्दामांहि गाजनो शब्द १०, ग्रह नदात्र मांहि चंजमा ११, || सुगंधमांहि बावनाचंदन १२, समुपमांहि स्वयंजूरमण समुष १३, नागकुमार मांहि धरणिंड १४, रसामांहि सलमी रस १५, हाथीया मांहि ऐरावण हाथी १६, सिंह मांहि केसरीसिंह १५, नदीया मांहि गंगानदी १०, पंखीया मांहि गरूम पंखी ए॥ युधमें वासुदेव २०, फूला मांहि अरविंद कमल २१, दानमांहि अनयदान २२, रा. जामांहि चक्रवर्ति २३, सतनाषामांहि निरवद्य नाषा २४, तपस्यामांहि सिल तपस्या २५, देवताकी थितिमांहि लवसतमिया २६, सनामांहि सुधर्मा सना मोटी तिम न-1
गवंत मोटा २७, धर्ममांहि मुक्ति मोटी तिम नगवंत मोटा २८. २० चोथा मोहनीय कर्मनी उत्तर प्रकृति शश. १ सम्यक्त मोहनीय, २ मिश्र मोहनीय, ||*
३ मिथ्यात्व मोहनीय, ४ अनंतानुबंधी क्रोध, ५ अप्रत्याख्यानी क्रोध, ६प्रत्याख्यानी||* क्रोध, ७ संज्वलन क्रोध, ७ अनंतानुबंधी मान, ए अप्रत्याख्यानी मान, १० प्रत्याख्यानी मानी, ११ संज्वलनमान, ११ अनंतानुबंधी माया, १३ अप्रत्याख्यानी माया
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१५ प्रत्याख्यानी माया, १५ संज्वलन माया, १६ अनंतानुबंधी खोन, १७ अप्रत्या. ख्यानी लोन, १० प्रत्याख्यानीलोन, १९ संज्वलन लोन, २० हास्यनोकषाय, २१ रतिनोकषाय, अरतिनोकषाय, २३ शोकनोकषाय, २४ नयनोकषाय, २५ जुगुप्सानोकषाय, २६ पुरुष वेदनोकषाय, २७ स्त्री वेदनोकषाय, २० नपुंसक वेदनोकषाय.
31.
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॥ श्रय योगुणतीस बोल लिख्यते ॥ शए पापसूत्र शए. चूमिकंप विचार शास्त्र १, दिशा लाल फल विचार शाम २, सुपनकाः
विचार शास्त्र ३, जलकापात धरती धूलै ४, अंग फरणेका ५, सुरचलणका ६, ति-| लेमिसेका ७, स्त्री पुरुष सदण, अर्थ १६, अर्थ पाठ दोनो २४, विकथा करणे-||* का २५, जोतिषशास्त्र २६, वेदक शास्त्र २७, जोगमिलावणेका ० र अनेरा व
सीकरणादिक श्ए. शए मूर्खका शए बोल. १ विना चूख खाय सो मूरख, २ अजीर्णथकां खाय सो मूरख ३
घणो सूवे सो मूरख ४, घणो चले सो मूरख ५, घणी देर पग उपर नार देने के वे सो मूरख ६, वमीनीत गेटीनीतकी हाजत गेमें सो मूरख. , नीचेकुं शिर ऊपर|| कुं पग करके सुवे सो मूरख ७, सारी रात स्त्री संग विषय सेवें सो मूरख ए सोखे वरसकी उमर होय विना मैथुन सेवें सो मूरख १०, बुढापेमें व्याह सो मूरख ११, नोजन तथा नजन करतां वात करें तथा इसें सो मूरख १५ चिंता मिटता वाद करें।
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सो मूरख १३, हजामत करावतां वात करें सो मूरख १४, विना पहिचाने यादमीके साथ चले सो मूरख १५, पच्चरकाण लेक याद न करें सो मूस्ख १६, माता पिता
और गुरुकी नक्ति नही करें सो मूरख १७, धनवानसें और पंमितसें वाद करें सो मूरख १०, तपस्वीसें वाद करें सो मूरख १९, पराया बल धन रूप विद्या देखके हर्ष या ईर्षा करे सो मूर्ख १०, हकीमके मिलणेसे रोगकी हकीकत सुनायके औषध न खाय सो मूर्ख २१, पंमितके मिखे पर मनका संसा न मिटावे सो मूर्ख १२, सतपुरुष त्यागी साधूकी संगत पायके त्याग पच्चखाण सेवा नक्ति न करे सो मूर्ख २३, सुपात्रके जोग मिले पर दान नही देवे सो मूर्ख २४, पाणी पीतो हसे सो मूर्ख २५, दारिख यावे यागली कमाश्नी श्वा राखे सो मूर्ख १६, थापरा गुण थापरे मुखसुं वखाणे सो मूर्ख ७, माथे देणो करके धर्म करे सो मूर्ख २०, नधारो धन देके पागे नही मागे सो मूर्ख २९, सजन साथे. विरोध करे और पारका लोको साथे
प्रीति करे सो मूर्ख. || १९ २९ पदारना उत्कृष्टा मनुष. ७ कोमाकोम कोम कोम ९२ लाख कोमाकोर कोम
२५
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२० दंजार को कोमाको १ सो कोम कोमाको ६२ कोको ४२ दूजार कोमा कोम ६४३ सो कोमाको कोम ३९४ सो कोम ३५ लाख ५० हजार ३३६ ।। ३०|५||३५४|३||५०/३३६.
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कोम कोमाको २२ लाख ३७ लाख कोमं ५५ हजार ७७२ |२८|१| ६२|५११४२६४३॥
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॥ अथ तीस बोल लिख्यते ॥
|| ३० तीस बोल करी जीव महा मोहनी कर्म बांधे. त्रस जीवने पाणी मांहि बोयने मारे |
ते जीव महा मोहनीय कर्म बांधे १, मुहमा निंचीने गला घोंटीने मारे ते जीव महा मोहनी कर्म बांधे २, अभिमे प्रज्वालि धुवामामे घोटीने मारे ते जीव महा मोहनीय कर्म बांधे ३, माथे घाव घालीने मारे ते जीव मदा मोहनी कर्म बांधे ५, श्राला चांवमा धूप तावमा बेगश्ने मारे ते जीव महा मोहनी कर्म बांधे ५, गहला गूंगाने मारीने हसे ते महा मोदनी कर्म बांधे ६, श्रणाचार सेवीने गोपवे ते महा मो. हनी कर्म बांधे , थापणो सेव्यो पाप पारके माथे देवे ते महा मोहनी कर्म बांधे U, जरी पर्षदामें मिश्र नापा बोले ते महा मोहनी कर्म बांधे ए, राजाका बुरा चिं. तवें धन आवताने रोके राजारी राणीने नोगवे ते महा मोहनी कर्म बांधे १०, बाल ब्रह्मचारी नही बाल ब्रह्मचारी कहावे ते महा मोहनी कर्म बांधे ११, ब्रह्मचारी नही थोर ब्रह्मचारी कव्हावे ते महा मोहनी कर्म बांधे १२, साहने गुमास्ता राख्या येते.
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हना बुरा चिंतवे धन खंगावे साहको स्त्रीने नोगवे ते महा मोहनी कर्म बांधे १३, श्रने श्वर हुवो पंचने श्वर करी थाप्यो जे ते पंचानु बुरा चिंतवे ते महा मो-||* हनी कर्म बांधे १५, चाकर गकुरने प्रधान राजाने स्त्री नरतारने मारे सापण आपणे|| झाने गीले ते महा मोहनी कर्म बांध १५, पृथ्वीपति राजाकी घात चिंतवे ते महा* मोहनी कर्म बांधे १६, एक देशनो राजा तथा साध साधवीकी घात चिंतवे ते महा || मोहनी कर्म बाघे १७, धर्मि पुरुषने धर्म करता मिगावे ते महा मोहनी कर्म बांधे १७ तिथंकर देवके अवगुण वाद बोले ते महा मोहनी कर्म बांधे १ए, चतुर्विध संघका अवर्णवाद बोले ते महा मोहनी कर्म वांधे २०, श्राचार्य उपाध्यायजीके अवर्णवाद ||* बोले ते महा मोहनी कर्म बांधे २१, आचार्य जपाध्ययजीके समान बैठे ते महा मोहनी कर्म बांधे २५, बहु सूत्री नही यह कहावे ते महा मोहनी कर्म बांधे २३, ||* तपस्वी नदी तपसी कहावे ते महा मोहनी कर्म बांधे श्Y, रोगी गीलाणकी वेयावच ||* न करे ते महा मोहनी कर्म बांधे २५, टोला मांहि नेद पामे ते महा मोहनी कर्म बांधे २६, हिंस्याकारी शास्त्र परूपे ते महा मोदनी कर्म बांधे २७, देवता मनुष्यके
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धनते काम नोगकी वंग करे ते महा मोदनी कर्म बांये २०, ब्रह्मचर्य पाली तपस्या ||| करी बालोश निदि देवता थया ने तेहनी निंदा करे ते महा मोहनी कर्म बांधे श्ए देवता आवे नही अरु कहे मेरे पास देवता आवे ने श्म कहे ते महा मोहनी।
कर्म बांध ३०. ३० उपमा कालके ३० लक्षण. नगर ते गाम सरीखा १, गाम ते मसाण सरीखा २, कु-| टंब ते दास सरीखा ३, पुरुष प्रधान लालच ग्राही ४, राजा जम सरीखा , सुखी जन निर्लज ६, केताएक कुलनी स्त्री वेश्या सरीखी ७, पुत्र स्वबंदे चालसी ज, सिप्य ते गुरुना प्रत्यनीक होसी ए, उर्जन सुखी घणी ऋछिना धणी होसी १०, सजन सुखी अल्प ऋद्धिना धणी होसी ११, देशमें परचक्रना थाम्बर कंतार घणी || होसी १२, प्रथवी उर्निदादि अती पीमा १३, ब्राह्मण अर्थना लोजी १४, समण| महात्मा कुलवास त्यागी १५, मोटा धर्ममे कषाय कुलख-चित्त होसी १६, सम्यदृष्टि देवता मनुष्य थोमा १७, मिथ्यादृष्टि देवता मनुष्य प्रचुर घणा १०, मनुष्यने देवतानो दरसण घर्खन १ए, विद्या मंत्रनो प्रनाव जंगे १०, गोरसमें रस थोमो २१,
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बत धन थालखो थोमो २५, मासकल्प सरीखा खेत्र थोमा २३, साधु श्रावकरी पमिमा विद जासी २४, याचार्य ते शिष्यने सूत्र थोमो नणासी २५, शिष्य ते कसह असमाधिना कारण होसी २६, समण थोमा अने मुंम घणा २७, श्राप था-|| पणी समाचारी गहरी जुदी जुदी होसी शश, मखेड राजा बलवंत होसी श्ए, हिं| राजा अल्प होसी ३०. साधुकी त्रीस उपमा. कासीके नाजनकी १, संखकी २, काबेकी ३, सोलमे सोने की ४, कमलरे फूलरी ५, चंधमाकी ६, सूर्यकी , पृथ्वीकी छ, मेरुपर्वतकी ए, स्व-|| यन्नूरमणसमुपकी १०, थमिकी ११, चंदणकी १२, बहके पाणीकी १३, वृषनकी * १४, हाथीकी १५, आसोजकातिके पाणीकी १६, सिंघकी १७, गेंमेकी १७, नारंमपं-|| खीकी १ए, सुनाघरकी २०, पाउणेकी २१, श्राकाशकी २२, सर्पकी २३, चकोरपंखी-*
की २४ वायरेकी २५ जीवकी २६ वृदकी ७ नमरेकी श्ण मृगकी शए पारेवाकी. ३ || *|| ३० बोल त्रीस परम कल्याण. १ तपस्या करीने नीयाणो न करें तो जीवरो परम कल्या
ण हुवें किणनी परे तामलीतापसनी परे, २ समकित नीरमलो पालें तोजीवरो परम
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कल्याण होवे किणनी परे श्रेणिक राजानी परे ३, मन वचन कायानो जागे सुन्न ||४|| प्रवरतावे तो जीवरो परम कल्याण होवे किणनी परे गजमुखमालनी परे ४, उत्ती || सकती दमा करे तो जीवरो परम कल्याण होवे किणनी परे परदेशी राजानी परे ५॥ पांच महावत निरमला पाले तो जीवरो परम कल्याण होवे किणनी परे गौतमस्वामीनी परे ६, कायरपणो गेमे सुरपणो यादरे तो जीवरो परम कल्याण होवे किणनी परे सेलक मुनीराजनी परे , पांच इंखीने वस करे तो जीवरो परम कल्याण होवे किणनी परे हरिकसी मुनिराजनी परे , माया कपटाई गमे तो जीवरो परम कल्याण होवे किणनी परे मल्लीनाथजीना गए मित्रनी परे ए, खरे धर्मनी धास्ता राखे तो जीवरो परम कल्याण होवे किणनी परे वर्ण नामे नटनी परे १०. चरचा|| वारता करीने सरदहणा सुरू करे तो जीवरो परम कल्याण होवे किणनी परे केसी गोतमस्वामीनी परे ११, सुखी देखीने करुणा करे तो जीवरो परम कल्याण होवे | किनी परे मेघरथ राजा मेघ कुमाररे पारखे हाथीरे जवनी परे १२, खरे वचनरी थासता राखे तो जीवरो परम कल्याण होवे किणनी परे थाणंदजी कामदेवनी परे||
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१३, श्रदत्तादान त्यांगे तो जीवरो परम कल्याण होवे किणनी परे अमरजीरा सातसे सिष्यनी परे १४, शुरू मन सील पाले तो जीवरो परम कल्याण होवे किणनी। परे सुदरसण शेग्नी परे १५, ममता गमीने समता श्रादरे तो जीवरो परम कल्याण होवे किणनी परे कपील ब्राह्मण कपिल केवलीनी परे १६, सुपात्रने दान देवे तो जीबरो परम कल्याण होवे किणनी परे रेवतीजी गाथापतणीनी परे १७, चलीये चीतने थिर करावे तो जीवरो परम कल्याण होवे किणनी परे राजिमतीनी परे १० नस्कृष्टो तप करे तो जीवरो परमकल्याणीक हुवे घनाजी अणुगारको परे. १ए उत्कृष्टी वैयावच करे तो जीवरो परमकल्याणीक हुवे कीणनी परे पंथकजीनीपरे. २० अंतनावना नावे तो जीवरो परमकल्याणीक हुवे कीपनी परे नर्तमहाराजानी परे. २१ चली चीत्तने थीर करे तो जीवरो पररमकल्याणीक हुवे रेहनमीजीनी परे. १२, उत्कृष्ट दमा करे तो जीवरो परम कल्याण होवे किणनी परे घरजनमालीनी परे २३, जिन धर्मरी बासता राखे तो जीवरो परम कल्याण होवे किणनी परे घरपीकजीनी परे २४, चार तीर्थने साता जपजावे तो जीवरो परम कल्याण होवे कि
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गुनी परे तीजे देवलोकरे इंपरे पाउले शवनी परे २५, उतकृष्ट वीनो करे तो जीवरो||| परम कल्याण होवे किणनी परे वाहुबलजीनी परे २६, उत्कृष्ट दलाली करे तो जी वरो परम कल्याण होवे किनी परे कृश्न महाराजनी परे २७, उत्कृष्टो अन्निग्रह करे तो जीवरो परम कल्याण होवे किणनी परे दंढण मुनिराजनी परे २०, शत्रु मित्र नपर सरिखा नाव राखे तो जीवरो परम कल्याण होवे किनी परे नदाराजानी परे २ए, अनर्थरो हेतु जाणीने दया पालो तो जीवरो परम कल्याण होवे किणनी परे धर्मरुचीखणगारनी परे ३०, कष्ट पड्या सिखमें दृढ रहे तो जीवरो परम कल्याण होवे किणनी परे चंदनबाला वा जणकी मातानी परे. कर्मविपाक प्रकरणमेंसे ३० सामान्य कर्मबंध फल कहते है. यथा १ प्रम निर्धन किस कर्मसें होवे, जतर पराया धन हरणेसें.२ प्रम दरिखी किस कर्मसें होवे, उत्तर दान देतेको वर्जनेसें, ३ प्रम धन तो पावें परंतु नोगना नही मिलें किस कर्मसें, उत्तर दान देकें पछतावनेसें, ४ प्रण अकुली अर्थात् जिस पुरुषके पुत्र पुत्री न होय किस कर्मसे होवें, उत्तर जो वृद रस्तेके नपरदो जिनसें अनेक पशु और मनु
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ज्य फल फूल खावें और गया करके सुख पावें एसें वृदोको कटावें तो, ५ प्रम - ध्या किस कर्मसें होय, उत्तर गर्न गला तथा गर्न गलाने उषधि देवें तथा गर्नवती मृगीका वध करें तो, ६ अण मृत घ्या किस कर्मसें होय, उत्तर वैगण थादिका जुर्था करें तथा होलें करें तथा कंदमूल खाय तथा मुर्गी आदिक धमे बचे मार खाय तो, ७ प्रम अधूरे गर्न गल गल जायें किस कर्मसे, उत्तर पर मार मा-||* रके वृक्षके कच्चे फल फूल पत्ते तोमें तथा पंखीयोंके मालेने तो तथा पकमीके जा||* ले उतारें तो, प्रम गर्नमेंही मर मर जाय तथा योनिधारमें बाके मरे किस कमैसें उत्तर महा श्रारंन जीवहिंसा करें मोटा जूठ बोलें तथारूप साधुको असमता थाहार पानी देवें तो, ए प्रम धंधा किस कर्मसें होय उत्तर मक्ष्यालय तोमकें सहद निकाजे (निंमत तश्या दांटीया) मबरको धूयां देके आग लगाके मारे तथा कुछ जीवोको मबोके मारें तो, १० प्रम काणा किस कर्मसें होय उत्तर हरि वनस्प-|| तिका चुर्ण करें तथा फलफूल फूल वा बीज वींधे तो, ११ प्रम गुंगा किस कर्मसे होय उत्तर देवधर्मकी निंदा करें तथा निर्मथ गुरुकी निंदा करें तथा गुरुके मुंहम
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चको विष देखें तो, १२ प्रण बदरा बोला किस कर्मसे होय. उत्तर पराया नेद लेनेको बुक पिके वात सुनने तथा निंदा सुगनेका स्वभाव होय तो, १३ प्रण रोगी किस कर्मसें दोय उत्तर गूंजर उडुंचर घ्यादि फल खाय तथा चूहे घीस पकमने पिंजरे वेचें तो, १४ प्रण बहूत मोटी स्थूल देह पावें किस कर्मसें, उत्तर शाद दोके चोरी करें तथा शादका धन चुरावें तो, १५ प्रप्स कोढ़ी किस कर्मसें दोय - उत्तर वन में घ्याग लगावें तथा सर्वको मारें तो, १६ प्रष्ट दाद ज्वर किस कर्मसें दोय उत्तर ऊंट बेल गधे घोमेके उपर ज्यादा बोज खादे तथा शीत वा गर्मिमे राखें तो १७ सिरसाम अर्थात् चित्तत्रम किस कर्मसें दोय उत्तर ऊंची जाति व गोत्रका मान करें तथा बाना बाना अनाचार मद्यमांसादि प्रदाण करके मुकरे तो, १८ प्रम पथरी रोग किस कर्मसें दोय उत्तर कन्या तथा बढ्न बेटी माता स्थान स्त्रीसे विषय सेवें तथा वज्र कंद न नून खाय तो, १५ प्रष्म स्त्री पुरुष और शिष्य कुपात्र वैरी समान कीस कर्मसें दोय पिबले जन्ममें उनसे निष्कारण विरोध किया दोय तो, २० प्रष्ट पुत्र पाब्यापोसा मर जाय किस कर्मसें उत्तर घरोम मारी होय तो, २१ प्र
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म पेटमें कोई न कोई रोग चला रहें होताही रहें किस कर्मसें उत्तर वचा खुचा खापाके असारनिसार नोजन साधूको देखें तो, २२ प्रम बालविधवा किस कर्मसें हो. य उत्तर अपने पतिका अपमान करके परपतिके साथ रमें तथा कुशीलनी होयकें सती कहावें तो, २३ प्रम वैश्या किस कर्मसे होय उत्तर उत्तम कुलकी वहु बेटी विधवा हुए पीछे बुखकी लाजसें कोश्यार्त्तव्यतो न करने पावें परंतु सत्संगके श्र-| नावसें नोगोगी वांग रखें तो, २४ जो जो स्त्री व्याहे सो मरें जिम पुरुषकी स्त्रीन||* जीवे किस कर्मसें होय उत्तर साधु कहाके स्त्री सेवें तथा त्यागो हुश् वस्तुको फिर अहे तथा खेतमें चरती हुश् गोको त्रासे, २५ प्रण नपुंसक किस कर्मसें उत्तर अति कूट महा बलकपट करें तो, २६ प्रम नर्कगतिमें जाय किस कर्मसें होय उत्तर सात ||* कुव्यसन सेवें तो, २७ प्रम धनाढ्य किस कर्मसे होय उत्तर सुपात्रको दान देकें श्रानंद पावें तो, २० प्रम मनोवांबित नोग मिलें किस कर्मसें होय उत्तर परोपकार करें तथा वमीकी टहल करें तो, श्यं प्रम रूपवान किस कर्मसे होय उत्तर तपस्या करें तो, ३० प्रम स्वर्गमें जाय किस कर्मसें होय उत्तर क्षमा दया तप संयम करें तो.
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बोल ३०सिखामण. बोलीका बंध नही तिणरो संग न कीजे १, वीटलसु प्रीत न कीजे १, सङान मित्रने बेहन दीजे ३, चुकाने वार वार न पुनीजे ४, उलटी बु. छिने वार वार शिख न दीजे ५, घणो मान वधीयो तोही वीनी न गेमीजे ६, सुख मुखमे पिण नली मरजादा न गेमीजे , थापरा गुण थापरे मुझे न वखाणीजे , पुंठ पाने अवगुण न बोलीजे ए, बुरीगारने बेमीजे नही १०, हीयारी गत जिण तिणने कहीजे नही ११, विण विचार्या दाय थावे जिम न बोलीजे १२, कीयो नपगार मुखीजे नही १३, निर्गुण गुरु देव धर्म मानीजे नही १४, जणी गणीने वाद न कीजें १५, गुरांसुं कमांसुं सामो न बोलीजें १६, धर्मरे ठिकाणे जुळ न बोलीजें १७, कुमानी पख नही वांचीजें १०, धर्मरी वात नघामे मुख न बोलीजें ए, अवनीतरो पद न वांजीजें १०, कपटीरो वेसास न कीजें १, कीणही वस्तुरो गर्व न कीजें १५, कोणसु मंख राखीजें नही दुख न दीजें १३, पारकीचामी न खाजें। परजपगार करतां ढील न कीजें २५, कमवो कठोर निर्लज न बोखीजें २६, वृत्त प
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घकाणमें दोष न लगानं श, पांच इंडीने विषे रसमें न पामीजें शश, पाखंझी लोनी गुरुरी संगत न कीजें श्ए, सातुं व्यसन सेवीजें नही, ३०.
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॥श्कतीस बोल लिख्यते ॥
---**-- ३१ वाटें वहतां जोवरा प्रश्न ३१. १ वाटे वेहता जीवमे समकित ५ पावे वेदक सम्यक्त
टली, २ वाटें वहता जीवमे सरीर १ पावे तेजस १ कारमण, ३ वाटै वेहता जीवमें गुणगणा ३ पावै शशा वाटें वहता जीवमें जोग१ पावें कारमण, ५ वाटे वहता जीवमें उपयोग १० पावै मनपर्यव १ चक्कुदर्शन २ टल्या, ६ वाटे वहता जीवमें इंडीए बदमस्थमें केवलीमें नही, ७ वाटे वहता जीवमें लेश्या ६ तथा केवली थाश्रीअलेसी, वाटे वहता जीवमें दृष्टि दोय लाग्ने सम्यगदृष्टि १ मिथ्यादृष्टि एए वाटे वहता जीवमें अज्ञान ३खाने, १० वाटे वहता जीवमें समुद्गात २ पहली लाने, ११ वाटे वहता जीवमें ग्यान ४ लाने मनपर्यव झान टल्यो, १२ वाटे वहता जीवमें दर्शण ३ चकुदर्शन टल्यो, १३ वाटे वेदता जीवमें वेद ३ लाने अवेदी पिण हुवे, १४ वाटे वेहता जीवमें पर्याप्ति ६ माहिली नही, १५ वाटे वेहता जीवमें स्थित जंघन्य १ समय उत्कृष्ट ५ समयरी, १६ वाटे वहता जीवमें कषाय ४, १७ वादेवहता
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जीवमें ईषीया सहित तथा रहित, १० वाटे वहता जीवरा नेद ७ लाने अपाशा, १ए वाटे वहता जीवमें समकिती मिथ्यात्वी, २० वाटे वहंता जीवमें प्राण १ थानखो, ११ वाटे वहता जीवमें सन्नी श्रसन्नीवि, २ वाटे वहता जीवमें सिवि थावरवि २३ वाटे वहता जीवमें श्रात्मा ७ पावे चारित्र श्रात्मा टली, २४ वाटे वहता जीवमें' संग्या ४, २५ वाटे वहता जीवमें अनासक, २६ वाटे वहता जीवमें करण ।। २७ वाटे वहता जीवमें हेतु ३३, श वाटे वहता जीवमें सुंझम बांदर दोनु, श्री वाटे वह ता जीवमें श्रणाहारीक, ३० वाटे वदता जीवमें किरिया सहित तथा रहित, ३१ वाट
वहता जीवमें जोग १ कायारो. II. ३१ सिके ३१ गुणः ५ वर्ण' नही, ५ रस नही, ५ संगण नही - फरस नही,गंध |
नही ३ वेदं नही २० कर्म नही शए काया नही ३० संसारको संग्रह नहीं ३१. । सिंघोका ३१ अतिसय. ए ग्यांनावरणी कर्म दय कीया ए दर्शणावरणी कर्म दायकीया २, वेदनी कर्म १ मोहनी कर्म ४ श्राजखा कर्म दय कीया २ नाम कर्म दय कीया गोत्र कर्म दाय कीया ५ यंतरीय कर्म क्य कीया एवं ३१.
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३१ बोल ३१ जिदाज व्य तथा नावका. १ डव्यजीदाज लकमीके पाटीयाकी दोय तिम संयमरूपी नाव जहाज़में १७ नेदे संयमरूपी पाटीया हुवें २ अन्य जिहाजमें सांकल होय तिम संयमरूपी नाव जिदाजमें धीरजरूपी सांकल दोवें, ३ डव्यं जि दाज में खीखा होवे तिम संयमरूपी नावमें पञ्चस्काणरूपीया खीला होवे, ४ व्यजिहाजमें चाटु होय तिम संयमरूपी नावमें गुरु उपदेशरूपीया चाट होवे, ४ अव्य 'जिहाजमें बात दो तिम संयमरूपी नावमें संवररूपी बात होवे, ६ डव्यं जिहाजमें यांना होय तिम संयमरूपी नावमें चढता वैरागरूपी यांना दोय, ७ व्यजिहाजमें जा होय तिम संयमरूपी नावमें निर्मल ज्ञानरूपी धजा होय, जन्यजिहाजमें खेवटीया होय तिम संगमरूपी नावमें समकितरूपी खेवटीया, ए व्यजिहाजमें मोरी दोय तिम संयमरूपी नावमें धीरजरूपी मोरी होय, १० व्यजिहाजमें काम करनेवाला होय तिम संयमरूपी नांवमें वेयावच करनेवाला होय, ११ द्रव्य जिंदाजमें खा मेरो माल जरी होय तिम संयमरूपी नावमें क्रिया शीलरूपी खाणेरो माल होय, - १२ द्रव्य जिहाजमें वायु चलें तिम संयमरूपी नावमें शुज नावे धर्मध्यान. शुक्रभ्यान
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तथा बारे नेदे तपस्या करणरूप वायरो होय, १३ द्रव्यजिहाजने वायरसुं बांको होय तेने रोके तिम संयमरूपी नावमें बालसरो त्याग कर ज्ञानको उपदेश रोके, १५ || द्रव्यजिहाजमें क्रियाणो नरे तिम संयमरूपी नावमें पांच महावत तथा बावत और * नाना प्रकारको ज्ञान नरे, १५ द्रव्यजिहाजमें रस्तो कितावसुं देखावें तिम संयमरूपी नावमें सूत्र सिघांतसुं साधु मुनिराज रस्तो बतावें, १६ द्रव्य जिहाज समुद्रमार्गे चांलें तिम संयमरूपी नावमें संजमरूपी मारगे चालें अकुलासे सीधे सरल मारगे, १७ व्यजिहाजमें पुरपाटण पहोंचे तिम संयमरूपी नावमें मोदरूपी पाटण पहोंचे, ||8 १७ द्रव्यजिहाजमें व्यापारी होय तिम संयमरूपी नावमें, साधुरूपीया व्यापारी होय, १ए द्रव्यजिहाजमें धनरा चरूतिम संयमरूपीनावमें अगीयारं चंग बार नपांग || रूपीया चरु में, ३० द्रव्य जिहाजमें व्यापारी नली नाषा बोले तिम संयमरूपी नावमें सुमतिसहित विचारने बोलें, १ द्रव्य जिहाजमें रत्न तिम संयमरूपी नावमें पामरूपी रत्न, श्वव्य जिहाजमें नला नफेरी वांग करें तिम संयमरूपीनावमें || मोदारी वांग करें, २३ द्रव्य जिहाजमें व्यापारी वासो करें तिम संयमरूपी नावमें ||* ॥
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मुनिराज गाम गाम एक रात नगरां नगरां पांच रात वास करें, २४ द्रव्य जिहाजमें चोर प्रमुखनो जयरहित होय तिम संयमरूपीनावमें पांच इंडीने जीतें सात नयरहित होय, २५ द्रव्यजिहाजमें व्यापारी वस्तुनी ममता करी पीरीन ले जाय तिम संयमरूपी नावमें साधु सचित्त अचित्त मिश्र परिग्रहनी ममता न करें, २६ द्रव्य जिहाजमें व्यापारी टोटेनो व्यापार न करें तिम संयमरूपीनावमें हिंसादिकथी निवरते, २७ द्रव्यजिहाजमें मालरी गांठ खोलें तिम संयमरूपी नावमें पापसुं निवरते श्राप कर्मरूपी गांठ खोलें,श द्रव्य जिहाजमें माल वेची हलको हाय'तिम संयमरूपी नावमें क्रोध मान माया लोन राग ष पतला पामेंसुं हलको होय, श्ए द्रव्य जिहाजमें व्यापारी विना चलती चीजरीवा नही करें तिम संयमरूपीनावमें व्यापारी असंजमरी वा नहि करें, ३० व्य जिहाजमें व्यापारी लोन वास्ते व्यापार करें तिम संयमरूपी नावमें व्यापारी १० जतीधर्मसहित दमारो व्यापार करें, ३१ व्य जिहाजमें व्यापारी नाना प्रकारनो व्यापार करें तिम संयमरूपी नावमें व्यापारी विविध प्रकारे धर्म करें.
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३१ बोल ३१ वृद्धोकी सीख. राजारी कृपा देखने थासंगो न कीजें मित्र करीने न जाणी
जे विनयादि करने श्ररज विनती सावधान थकी कीजे १, थापणी परणी स्त्रीने, पुत्र न दीजे जणरो भरण पोषण कीजे घणो धादर सन्मान प्यार राखीजे पिण, मरम वातरो नेद न दीजे २, परस्त्रीरो दासीनो वेश्यानो संग न कीजे ३, नीला रुख, नीचे धर्म थानक रावल देवल कुंम न नाखीजे ४, जूवे न रमीजें सात व्यसनन.सीखीजे ५, जिणरे वास वसे तिणसुं वाद न कीजे ६, जिण जायगा सुखसं रहीजे तठे बुरा न करीजे ७, पुत्रने खाणे पीणे कपमे गहणे सोरो राखीजे पिण लामको न कीजे विद्यारो उद्यम कराश्जे रीस करने माथामे न दीजे टाबर थकांनेहीन त्रासमें राखीजे नलो सुधरे ७. सनेहरी-जायगा हुवे तठे लेवा देवा वेपार न कीजे ए, पारको बुरो न विचारीजे निंदा न कीजे १०, सांजरा मारंग न चालीजे ११, मारगमें घसंदा थादमीरो विश्वास न कीजे १५, कुवा उपर उन्ना न काँखीजे'१३, पंचारो कह्यो नयापीजे नही १४, पाणी घट घाट न पीवीजे १५, काम जाते हुवे तो लारे हेलो न दीजे १६, काम जातां पाणी न पीवीजे १७, पाणी पीने घर न
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बूजीजे १०, लोक चहरे तिको वात न कीजे १ए, कुमारग धन खरचने न गमाइ जे १०, सगा सोयाने जाचीजे नही ११, व्रत नंगन कीजे ११, थासण पगसु खे सने बेठोजे २३, मार्गमें तरुण बुगारो साथ न कीजे १४, बारे नीकले तो गाफल न रहीजे चोकी पोरो दीजे २५, तीरसां थकां पाणी घणो न पीजे १६, कहुंचा न बेसीजे १७, दिनरी घणी निंडा न बीजे , घरमें बावल रुख न राखीजेथाः । बलीरी गया न बसीजे शए, बजाएयो उखद न खाजे ३०, पाणीरो श्रासंगो न कीजे ३१.
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॥अथ बत्तीस बोल लिख्यते ॥ || ३३ बत्तीस अनंतकाय. सर्व कंदनी जाति १, सूरण कंद २, वज्र कंद ३, लीली हलदी
४, लीळ यार, लीलो कचूर ६, सतावरी वेली ७, विराली वेली , कुंवारी ए, थोहरि कंद १०, गलोर ११, लसण कली १२, वासना कारेला १३, गाजर १४, बूणो साजी वृक्ष १५, लोढो पद्मनी कंद १६, गिरिकर्णिका सर्व वनस्पतिना नवा उगता कुंपल पान १७, खरसुथा कंद १७, थेग कंद १ए, निली मोथ २०, बूण वृदनी गल अनंतकाय जाणवी परंतु एना बिजा अवयव अनंतकाय नही २१, खियुमा कंद विशेष १५, अमृतवेलि २३, मूलानी पाम श्४, शूमिफोमा जे -
काले बत्राकारे जगे ते २५, विरुहा अंकूयी धान्य २६, टंकवथुल शाक ते वनस्पति पहेलु जग्यो तेहज बिजुं नही श, सूयर वेली शश, पवंक शाक विशेष शए,
कुवली थांबली ३०, आलु कंद ३१, पिंमायु कंद ३५... ३५ वांदणाके ३२ दोष. गुरुने वंदणा देने वांदे १, उक बेगे वांदे १, नाचतो वादे
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३, सगलाने एका वांदे ४, रजोहरण यांकुस जिम राखे ५, गृही कपमा ऊंचा का रीने वांदे ६, चपलपणे वांदे , माउलानी परे उलट पलट होय वांदे , मनमें गुण गेमी अवगुणही वांद ए, कपट जीवसुं वांदे १०, मरतो वांदे ११, जे मुमने श्रमुको मान देसे १५, साख करी वांदे १३, गर्व करी वांदे १४, इस लोकने हितकारी वांदे १५, चोरनी परे वांदे १६, प्रतिझा हेते वांदे १७, सासता वांदे १०, विस्वास उ-|| पजावा हेते वांदे १ए, वचन हिलतो वांदे २०, विकथा करतो वांदे २१, दृष्टि तिमि राखतो वांदे १५, कोश् साधु देखे को न देखे २३, क्या करीए वांद्या विना बुटका || नही २५, आपसमें घाट वाघ वांदे २५, गुरुने जंचे स्थानक वेग वांदे २६, वेग||* हुवा वांदे २७, हस्तो वांदे शश, रजोहरण थाघो पागे करतो वाद शए, समाधिया ||* होयने वांदे ३०, कानसम्गमें वांदे ३१, पडे समाधि पूजे वांदे ३१, ए दोष ३२ टाली-||
ने वांदे ते मुक्ति जावे. ३५ सामायकके ३१ दोष. १० मनका. अवसर विना करे १, जसकीर्तिके अर्थे करे ,
श्ह लोकनी वांग करे ३, गर्व अहंकारे करे ५, फल प्रते संदेह करे ५, विहितो
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धूजतो करें ६, संसेसहित करें ७, मनमांही रीस करें U, वनयहीण करें ए, वेगारीरी परे करें १०, दश वचनके. कुमा वचन बोलें ११, आणविमास्यो बोलें १२, रागां करी गीत गावें १३, घणो बोलें १४, कलह करें १५, विकथा करें १६, हांसी करें १७, उतावलो जतावलो नणे १०, अयुक्ति भाषा बोलें १ए, श्रवृतिने श्रावो पधोंरो कहें ३०, बार कायाके. पालाही वाली बेठे २१, अथिरासण बेठे १५, विषयसहित दृष्टि जोवें २३, सावज कार्य करें २४, घरखें काम करें २५ उठगणो लेश बेठे २६ शरीर संकोचीने बे २७, विना कारण अंग लपांग मोमें २०, करमका मोमें श्ए,
शरीरनो मेल जतारे ३०, विन पूंज्या खाज खुणे ३१, गंध लेवें ३२. ३२ पुरुषके बत्तीस गुण. सीलवंत १, कुलवंत २, सतवंत ३, विद्यावंत ४, अल्पथाहारी
५, जंचा चित्त ६, तेजवंत , प्रमोदसहित ७, वचन अचल ए, दयावंत १०, नरम प्रणाम ११, धर्मनीत ११, उत्तम १३, ज्ञानवंत १४, लज्यावंत १५, गुणगंजीर १६, सूरमा १७, ावंत १०, चतुर १ए, दानमें चित्त नदार २०, जोगध्यानी २१, नाग्यवंत १२, सुजाण ३, परऊपगारी २४, देवपूजा २५, मातापिताकी सेवा २६, गु
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रुकी सेवा २७, मातपितानी सेवा २०, गुरुनी सेवा श्ए बुधिवंत ३०, निर्नय होय ||
३१, तेजवंत ३२. ३३ थागम बत्तीसके नाम. याचारांग,सुगमांग १, गणांग ३, समवायांग ४, नगवती ||
५, ग्याता ६, जपासकदशा, अंतगम, थाात्तरोववाश्ए,प्रमव्याकरण १०, वि. पाक ११, बार उपांग. उववार १२, रायंपसणी १३, जीवानिगम १५, पन्नवणा १५, जंबुद्दीपपन्नत्ती १६, चंदपन्नत्ती १७, सूरपन्नत्ती १०, पुफिया १ए, पुफचुलिया २०, कप्पिया २१, कपवमंसीया १५, वह्निदशा २३, चार बेद. नसीत २४, दशाश्रुतस्कंध २५ वेदकल्प २६, विवहार २७, पांच मूल. दसविकाल शश, उत्तराध्ययन श्ए, नंदी
३०, अणुयोग झार ३१, श्रावसक ३५.. || ३५ योग संग्रह. बालोय निंदके निशब्य हाय , बाला
धर्मी होय ३, इहलोक परलोकनी वांगरहित तप करें ४, बासेवणा शिदाग्रहण || सिदा सेवें ५, शरीरकी सुसरखा न करें ६, गनी तपस्या करें अग्यात कुलनी गो-i0 चरी करें , निर्लोनी होय ७, सरल स्वनावी होय ए. परोसहसं मरे नही उपसम |
७
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वंत होय १०, निर्मल मनसुं संयम पालें ११, सम्यक्त शुध. पाले १५, चित्त एकाठगम राखें १३, मायारहित आचार पाले १५, विनयवंत होय १५, संतोष धैर्यवंत होय | १६, वैराग्यवंत १७, धर्मध्यान धजी तरा राखें १०, रुमक्रिया करें शुए, संवरकु पुष्ट करें २०, थापणी आत्माके अवगुण अलगा करें २१, अग्यानीका संग निवारे १५ मूल गुण उत्तरगुण धारा २३, एक गम चित्त राखीने कानस्सग्ग करें २४, प्र. मादरहित करणी करें २५, क्षिण प्रते रूमी. करणी करें २६, धर्मध्यान शुक्लध्यान | ध्या २७, मन वचन कायाका योग धर्ममें प्रवत्तीवें शश, संसारसुं विरक्ति नाव था. में श्ए, गुराने प्रायगित. दिया सो वहे ३०, बालोश्ने निशल्य थाय ३१, बालोश
निंदीने संथारो करें ३२. ३२ शीलकी ३२ उपमा. ग्रह नक्षत्र तारा मांहि चंखमा मोटो तिम सर्व व्रत माहि.सी
लवत मोटो १, मणी मोती सीप प्रवासादिक मांहि जिम रत्नाकर समुफ मोटो तिम| * सीलवत मोटो २, सर्व रत्न मांहे वैर्य रत्न मोटो तिम सीलव्रत मोटो ३, सर्व श्रा-1 मर्ण माहि माथेरो मुकुट मोटो तिम सीखनत मोटो ४, सर्व वस्त्र मांहि खेमयुगल
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।
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कपास वस्त्र मोटो तिम सीलव्रत मोटो ५, सर्व कमल मांहि अरविंद कमखनो फूस मोटोतिम सीलवत मोटो ६, सर्व चंदनोमांहि वावना चंदन मोटो तिम सीखवत मोटो , सर्व पर्वत मांहि उपधी करके चूल हेमवंत पर्वत मोटो तिम शीलवत मोटो ज, सर्व नदी मांहि सीता सीतोदा नदी मोटी तिम सीलबत मोटों ए, सर्व समुड मांहि खयंतूरमण समुड मोटो तिम सीलबत मोटो १०, गोल पर्वत मांहि रूचिक पर्वत चूमीथाकार मोटो तिम सीलव्रत मोटो ११, सर्व हाथीया मांहि इंजनो एंरावण हाथी मोटो तिम सीलव्रत मोटो १२,सर्व चोपदा मांदिकेसरी सिंह मोटो तिम सीलवत मोटो १३, नागकुमारमादिधरणेजीमोटा तिम सीलबत मोटो १४,सोवणकुमारना देवता मांहि वेणुकुमार मोटो तिम सीलव्रत मोटो १५, सर्व देवलोक मांहि पांच-| मो ब्रह्म देवलोक मोटो तिम सीलवत मोटो १६, सर्व सना मांहि सुधर्मा सना मोटी तिम सीलवत मोटो १७, स्थितिमांहि लवसत्मा देवताकी स्थिति मोटी तिम सीलवत मोटो १०, रंग मांदि किरमची रंग मोटो तिम सीलव्रत मोटो १ए, दान मांदिवजयदान मोटो तिम सीलवत मोटो ५०, संघयणमांही वज्रनाराचसंघयण मोटो तिम
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****************OK *O******* }
मोटो
सीलवत मोटो २१, संदा मांदी समचोरस संगण मोटो तिम सीलवत मोटो १२, 'ग्यानमादि केवलग्यान मोटो तिम सीलवत मोटो २३, ध्यानमांदि शुक्लध्यान तिम सीलव्रत मोटो २४, लेश्यामांदि शुक्कलेश्या मोटी तिम सीखत्रत मोटो २५, सां धुमांदि तिर्थंकरदेव मोटा तिम सीलव्रत मोटो २६, क्षेत्रमांदि - महाविदेहदोत्र मोटो तिम सीखत मोटो 29, पर्वतमादि उंचपणे सुमेरुपर्वत मोटो तिम सीलवत मोटो २०, वनामांदि नंदवन मोटो तिम सीलबत मोटो शए, वृक्षोमांदि जंबुसुदर्शण वृद मोटो तिम सीलबत मोटो ३०, सेनामांदि चक्रवर्त्तिकी सेना मोटी तिम सीलनत मोटी ३१, रथांमांदि वासुदेवको संग्रामीक रथ मोटो तिम सीलगत मोटो ३२. ' ३२ सूत्र बत्तीस . १ व्याचारांगसूत्र अध्ययन २५ मूल श्लोक २५०० शीलांगाचार्यकृत टीका १२००० चूर्णी ८३०० तथा नद्रवाहुस्वामी कृत निर्युक्तिनी गाथा ३६० श्लोक ४० प्राष्यं (तथा लघुवृत्ति नथी) सरखाले श्लोक २३२५०, २ श्रीसुयगमांग सूत्र अध्ययन २३ पाखंम्मत निर्दलनरूप मूलश्लोक २१०० शीलांगाचार्यकृत टीका १२८५० तथा चूर्णी १०००० श्लोक बे ने श्रीमद्रबाहुस्वामीकृत निर्युक्तिनी गाथा २०० श्लो
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क १५० (नाष्य नही) सरवाले श्लोक २५५०० तथा १५०३ नीसाखमां आधुनिक श्री हेमविमलसूरिये ७००० श्लोकने थासरे दीपिका करेली, पण ते जुनीटीपोमां पूर्वाचार्योनी गणतीमा नथी, ३ श्रीगणांगसूत्र एना दश अध्ययन में एना मूख श्लोक ३१० तेनी टीका संवत ११३० मा श्रीधजयदेवसूरिकृत १५२५० श्लोकनी || बे सखाले १ए०२० श्लोक में, श्रीसमवायांगसूत्र एना मूल श्लोक १६६७ में ते टीका थनवदेवसूरिकृत ३७७६ श्लोकनी में एनी चूर्णी पूवाचार्यकृत ४०० श्लोक में सवाले एज्४३ संख्या थर, ए श्रीविवदापन्नत्ति जगवती सूत्र शतक ४१एमांत्रीश सहस्र प्रम गौतमना में मूल श्लोक १५७५२ टीका संवत ११२० मां श्रीथतयदेव सूरिनी करेली झोणाचार्य शोघेली १७६१६ श्लोकनी ने एनी चूर्णि ४००० श्लोक पूर्वाचार्य कृत ने सखाले ३०३६७ नी संख्या तथा एनी लघु वृत्ति संवत | १५६० ना वर्षमा दानशेखर उपाध्यायनी करेली १२००० श्खोकनी संख्या ६, श्री झाता धर्म कथांग सूत्र अध्ययन १ए, कथा जगणीश सांप्रत देखाय ने प्रथम सामीत्रण कोटि कथा प्रसिएनी श्लोक संख्या ५५०० तेनी टिका श्री.
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जयदेव सूरि कृत ४२५५ श्लोक ७, श्री उपासकदशीग सूत्रं दश अँध्ययन मूल स्लोक २५ एनी टिका श्री अजयदेव सूरि कृत ए०० श्लोक वे सखाले १७१ ज, श्री अंतगमदशांग सूत्र एक अध्ययन के मूल श्लोक ए०० तथा अन्यदेवसूरि । कृत टिका १०० श्लोक ने सर्व संख्या १२००, ए, श्री अापत्तरोववार सूत्र तेत्रीश अध्ययन मुख श्लोक शU२ तथा अजयदेव सूरि कृत टिका १०० श्लोक जे सर्व सं-| ख्या ३५२. १०, श्री प्रश्न व्याकरण सूत्र दश अध्ययन रुप मुल श्लोक १२५० श्री । थनयदेव सूरि कृत टिका ४६०० सर्व संख्या ए७५०. ११ श्री विपाक सूत्र वीश* वंध्ययन ने मुल श्लोक १२१६ श्री अजयदेव सूरि कृत टिका ए०० श्लोकं सर्व मली ग्यारे अंगनी मुल संख्या ३५६एए तथा टिका ७३५४४ भने चूर्णि २२७०० तथा नियुक्ति ७०० मती १३५६०३ तथा सूयगमांगनी दिपीकानी संख्या जुदी ने एमां याचारोंग तथा सूर्यगमांगनी टिका श्री शीलांगाचार्य कृत ने. बाकी नव श्रंग-* नी टीका अनयदेव सूरि कृत ने माटे श्री अजयदेव सूरि नवांगी वृत्तिकारने नामे ||* उखखाय जे, हवे पार पांगनी संख्या लिंखे ने १२, श्री उववाश उपांग याचा-18
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रांग प्रतिबक एनी मुख संख्या १२०० तथा श्री अजयदेव सूरि कृत टिका सेख्यो ३१२५ सर्व संख्या ४३१५. १३, श्री रायपसेणी उपांग सूयगमांग प्रतिबक एनी मुख संख्या २०१० तथा श्री मलयगिरी कृत टिका ३७०० सर्व संख्या ५७७७. १४ श्री जि.* वानिगम उपांग गणांग प्रतिबक एनी मुल संख्या ४७०० तथा श्री मखयगिरिकृतक टिका.१४००० तथा लघुवृत्ति ११०० तथा चूर्णिश्लोक १५०० चे सर्व संख्या २१३०० १५ श्रीपन्नवणां उपांग शीस्याचार्यकृत समवायांग प्रतिबछनीसंख्या७७,मलयगिरि महाराजनी करेली टीका १६००० तथा हरिनद्रसूरिकृत लघुवृत्ति ३७२ श्लोक सर्व संख्या २७५१५, १६. श्रीजंबुद्दीपन्नत्ति उपांग जगवति प्रतिबक एनी मूल संख्या ४१४६ मलयगिरिकृत टीका १५००० तथा चूर्णि १०६० सर्व संख्या १०००६ १७ चंद्रपन्नत्तिसूत्र ज्ञाताप्रतिषक मूल संख्या २२०० तथा मलयगिरिकृत टीका ए४११|| तथा.लघुवृत्ति १००० श्लोक में ए सर्व संख्या १२६११, १० सूरपन्नत्ति उपांग पूर्वो-18 क्त चंदपन्नत्ति तथा ए बेहु मली झाताप्रतिवछ में एंनी मूल संख्या २२०० तथा|| श्रीमलयगिरिकृत टीका ए००० अने चूर्णी १००० सर्व संख्या १५२०० ए, नि
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स्यावलिका सूत्र अथवा नामांतरे एक कप्पिया अध्ययन १०, बीजें कप्पवर्मिसिया अध्ययन १५, त्रीजु पुफिया अध्ययन १०, चो) पुष्पचूलिया अध्ययन १० भने पांचमुं वहिदिसा ए पांच उपांगर्नु नाम निरयावलिका कदेवाय - ए कप्पिया प्रमु ख पांच उपांगनी अध्ययन संख्या ५२ ते अनुक्रमे सातमा उपासकदशांगादिक ||* पांच अंग प्रतिबक में ए पांचनी मली श्लोक संख्या ११०ए बैंए पांचनी वृत्ति || ७०० श्लोक प्रमाण श्री चंजसस्कृित में सर्व संख्या १००ए एम बारे जपांगनी सर्व मली मूल संख्या २५४२० तथा टीकानी संख्या ६७५३६ श्रने लघु टीकानी संख्या क्षा तथा चूर्णीनी संख्या ३३६० एकंदर सरवाले संख्या १०३५४४, १४ नशीथ | बेदसूत्र अध्ययन २० मूल जुनी टीपमा ७१५ श्लोक में एनुं लघु नाण्य १४०० श्लोक में तथा चूर्णी श००० श्लोक में मदोर्ट नाष्य १२००० श्लोक में ते टीकाने नामे पण कहेवाय ने सर्व संख्या ४७२१५ मे, २५ बृहत्कल्प बेदसूत्र अध्ययन २४ एनी जुनी टीपमा संख्या ४७३ नी में एनी वृत्ति संवत १३३५ ना वर्षमा बृदहाखिय श्रीदेमकीर्तिमरिकृत ४२००० संख्यांनी ने तथा एनुं नाष्य जुनी टीपमां १२०००
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संख्या में श्रने एनी चूर्णी १४३१५ श्लोकनी ने सर्व संख्या ७६७ए ले ३ व्यव- ||5|| हारदशाकल्पबेदसूत्र एना दश अध्ययन बे एनी मूल संख्या जुनी टीपमां ६००० नीने एनी टीका श्री मलयगिरिसूरिकृत श्लोक ३३६२५ नी ने तथा चूर्णी १०३६१ श्लोकनी बे एनुं नाष्य जुनी टीपमा ६००० श्लोकनुं खख्युने सवाखे संख्या ५०५०६ थ५ दशाश्रुतस्कंध बेदसूत्र जेनुं श्रापमुंअध्ययन कल्पसूत्र ने तेनीमू. ल संख्या १०३५ बे तथा चूर्णी २४ए श्लोकनी, धने नियुक्ति संख्या १२७ श्लोक बे सर्व संख्या ४२ थर १ दशवैकालिक सूत्र श्री सिधंनवसूस्कृित मूल श्लोक ७०० संख्या बे एनी वृत्ति तिलकाचार्यकृत श्लोक १००० प्रमाण तथा बीजी वृत्ति श्री हरिनसूरिकत ६७२० श्लोक बे तथा श्री मलयगिरि महाराजकृत वृत्ति ७०० श्लोक बे लघुवृत्ति ३७०० श्लोक तथा नियुक्तिनी गाथा ४१० जे तेम थाधुनिक श्री मोमचंधसूस्कृित लघु टीका ४२०० तथा समयसुंदर उपाध्याय कृत लघु टीका १६००२ उत्तराध्ययनसूत्र एना उत्तीस अध्ययन वैराग्यमय ने एनी मूल संख्या २००० तथा बृहवृत्ति वादिवेत्ताल श्री शान्तिसूरिकृत १००००
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ने प्रत्यंतरे १७६४५ पण बे तथा लघुवृत्ति संवत ११२ए मां श्री नेमिचंबसूस्किन १३६०० श्लोकनी ने एनी नियुक्ति श्री नवाहूखामिकृत गाथा ६०७ श्लोक तथा एनी चूर्णि ६००० श्लोकनी ने सरखाले संख्या ४०३०० ३ नंदीसूत्र श्री देवर्षिगणि दमाश्रमणकृत मूल उसोक १०० ने एनी वृत्ति ७७३५ श्लोक प्रमाण श्रीमलयनिस्कृित के एनी चूर्णि संवत ७३३ मां करेली २०० श्लोकनी ने एनी वधु टीका श्री हरिनबसूस्कृित श्लोक ३३१२ ने सरखाले संख्या ११४ तथा एनी टीप्पणी श्री चंडसूरिकृत ३०० श्लोकनी ने ४ अनुयोगदारसूत्र गाथा १६०० श्लोक १००० तथा मझधारी श्री हेमचंचसूस्कृित वृत्ति संख्या ६००० तथा श्री जि-||* नदास महत्तरकृत चूर्णि ३००० श्लोकनी ने तथा श्री हरिनजसूस्कृित लघु वृत्ति संख्या ३५०० सर्व संख्या १४३०० यावश्यकसूत्र मूल १.५ गाथा बे एनी टीका श्री हरिनासूरिकृत १२००० श्लोक ने तथा एनी नियुक्ति श्री जवाहुखामिकृत ३१०० श्लोक जे तथा चूर्णि १०००० श्लोक जे.
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॥अथ तेतीस बोल लिख्यते॥
PRum३३ गुरुकी थासातना तेतीस. तीन चालणेकी गुरुके आगे चाले १, गुरुके बरोबर चाखे
२, पाने थमतो चाले ३, श्म तिन श्रासातना खमे रहणेकी ६, म तिन बेसणकी। ए, दिशा गए गुरसुं पहला हाथ धोये १०, गुरुके पहली रियावही पमिकमे तो ११, गुरु प्रश्न करता होय विचमें बोले तो १२, गुरुके पास सुता होय गुरु बोलावे | जागना न बोले तो १३, थाहार पाणी व्यायकर गुरु थकी पहली गेटा जतिकुं देखावे तो १५, गुरु पहली गेटा जति कने बालोवे तो १५, गुरु पहली गेटा यः || तिकुंथामंत्रे तो १६, गुरुकी थाग्याविना गेटा यति तथा अनेरा साधुकुं थाहार | पाणी देवे तो १७, गुरु शिष्य थाहार पाणी करता होय सरस २ गुरुकुं देवे तो १०, ||* गुरु बुलावे बोले नही तो १ए, गुरु बुलावे पासण बेग जवाब देवे तो २०, गुरु || बुलावे तो कहे तुं क्या कहैतो २१, गुरुने तुंकारा देवे तो १, गुरुने तो तुं श्रवचन बोलावे तो २३, गुरुने उत्तर पमुत्तर देवे तो श्व, गुरु थर्थ करता होवे तिवारे जरी
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सजा कम म नहि बे २५, गुरु सूत्र पाठ कहता हुवे तिवारे जरी सप्नामें - कहे श्म नहि इम बे तो २६, गुरु कथा कदेता हुवे चेलो खुशी न हुवे तो 29, गुरु कथा देतां परखदामें जेद या तो २०, गुरु कथा कहता हुवे शिष्य कढ़े याहारकी वेला थवे वखाण बता दो क्युं नदी श्म कहे तो श, गुरु कथा कही वाही कथा वाय १ करे बीतरेसुं कहेतो तो ३०, गुरुके व्यासपणसुं टंचा सण बेठे तो ३१, गुरुके बरोबर व्यासण करे तो ३२, गुरुके खासणकुं पग लगावे संघठ करें विना खमाया जाय तो ३३.
३३ अल्पबहुत्व ३३. १ सबसुं थोमा चोथी नारकीना निकल्या सिद्ध भगवंत होय २, तीजी नारकीना निकल्या सिद्ध संख्यातगुणा ३, बीजी नारकीना निकल्या सिद्ध संख्यातगुणा ४, वनस्पतिना निकल्या संख्यातगुणा ५, पृथ्विकायना निकल्या संख्यातगुणा ६, छापकायना निकल्या संख्यातगुणा 9, ध्रुवणपति देवतारी देविरा निकल्या संख्यात गुणा छ, भुवनपति देवताना निकल्या संख्यात गुणा ए, वाणव्यंतर देवतारी देवीरा निकव्या संख्यात गुणा १०, वाणव्यंतर देवतारा निकल्या सं
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ख्यात गुणा ११, जोतषी देवतारी देवीरा निकल्या संख्यात गुणा १२, जोतषी देव-|| तारा निकल्या संख्यात गुणा १३, मनुष्यणी स्त्रीना निकल्या संख्यात गुणा १४, मनुष्यना निकब्या संख्यात गुणा १५, पेहली नारकीना निकल्या संख्यात गुणा १६, तिर्यचणीना निकल्या संख्यात गुणा १७, तिर्यचना निकल्या संख्यात गुणा १०, पांच अनुत्तर विमानरा निकल्या संख्यात गुणा १ए, नव प्रेवेयकना निकल्या सं. ख्यात गुणा २०, बारमा देवलोकना निकल्या संख्यात गुणा २१, ग्यारमें देवलोकरा निकल्या संख्यात गुणा १२, दशमें देवलोकरा निकल्या संख्यात गुणा २३, नवमा देवलोकरा निकल्या संख्यात गुणा श्य, थाउमा देवलोकरा निकल्या संख्या त गुणा २५, सातमा देवलोकरा निकल्या संख्यात गुणा २६, रन देवलोकरा निकल्या संख्यात गुणा १७, पांचमा देवलोकरा निकल्या संख्यात गुणा २०, चोथा देवलोकरा निकल्या संख्यात गुणा, श्ए तीजा देवलोकरा निकल्या संख्यात गुणा, ३० पुजे देवखोकरा देवतारी देवीरा संख्यात गुणा, ३१ जे देवलोकरा देवतारा नि
२८
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32
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कट्या संख्यात गुणा, ३२ प्रेहला देवलोकरी देवीरा निकटया संख्यात गुणा, ३३ पहेला देवलोकरा देवताना निकल्या संख्यात गुणा.
Trainin
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॥ अथ चोतीस बोल लिख्यते॥
३५ चोतीस तीर्थकरदेवजीरा अतिशय. रोमराय केश नख सोननीक वधे पिण असोज
नीक नहि वधे १, नगवंतजीरे गात्रे लेप लागें नहि , गायरो दूध उजलो निर्मल साकर घालीये मीगे तिसो नगवंतजीरो रुधिर मांस मीगे ३, पद्म कमल सुगंध सुहामणो वासें तिसो नगवंतजीरो श्वासोश्वास सुगंध सुहामणो वासे ४, चरमचकुरोधणी थाहार निहार करतां देखें नहि ५, श्री जगवंत देव विचरे जिसें तीन 3-1 त्र होय ६, नगवंतजी विचरे जिवें तीन चमर होय , फिटक रत्नमयी सिंहासण फांखे, विहारमें सहस्र ध्वज बागें चालें ए, धर्मचक्र ागल चालें १०, अशोक वृक्ष फल्यो फूल्यो मार्गमें गया करें ११, पू नाममल पन्ना करें १२, विचरें जितें रमणीक चुमि सुदामणी लागे १३, विचरें जिसें कांटारा मुंढा बंधा होय १४, बहुत रुत सुहामणी लागें १५, थोमो सुहामणो सुहामणो वायरो वाजें १६, नाहनी नाहनी बुंद मेह वरसें तिणसुं रज होय ते उपसम जावें १७, टिंचण परिमाणे थचि
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त्त फूलारी ढिगला देवता करें १७, अमनोज्ञ गंध रस शब्द रूप कदेही न होय १ए, मनोज्ञ गंध रस फरस शब्द रूप सदा काल होय २०, नगवंतरी वाणी जोजन तां सुणीजें १, बर्ष मागधी नाषा सांजलीजें २२, नाहर बकरी पशु जनरा | वैरग्नाव जागें नहि जागें तो जपशम जावें नेला बैठे २३, देवादिकनी जातना पूर्व || बछ वैर कृत्रिम अकृत्रिम सर्व वैरनाव दूर जायें २४, अन्यतीर्थ पिण नगवंतने ना| मस्कार करें २५, अन्यतीर्थ मत पदधारीने बोलें खिष्ट होय ते जावें २६, नगवंत विचरें जठे सो कोसतां श्त नहि होय २७, सो कोसमें मारी मिरगी न होय २०, || स्वचक्रनो मर नय न होय श्ए. परचकनो नय सो कोस ताश न होय ३०, घणी| वर्षा न होय ३१, थोमी वर्षा न होय ३१, काल उकाल पमें नहि २३, रोग सोग |
फोमी फुणगल नही होय कदाच होय तो उपशमें ३४. * ३४ श्रसिधा ३४. जकाचाए १, गजीए २, बिजीए ३, दिसीदाहे , निधाए ५, जुवए ||
६, जखालीतए , धूमीए , महीया ए, रजघाए १०, अठी ११, मंस १५, सोणी १३, असुश्सामंते १४, चंदोखराए १५ सुसाण सामंते १६, सूरोवराए १७, पमिणीए
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१०, रायबुगहे १ए, नवसथल थानो नरालियरा सलियर सरीरमें २०, चैद सुदि पुनिम २१, वैशाख वदि वीज ११, असाढ शुदि पुनिम १३, श्रावण वदि एकम २४ नादरवा सुदि पुनिम १५, यासोज वदि एकम २६, यासोज सुदि पुनिम ७, का तिक वदि एकम शश, कातिक सुदि पुनिम शए, मिगसर वदि एकम ३०, प्रनात |
३१, मध्याह्न ३१, सिंजा ३३, अरात्रि ३४. ३४ असिधा सवैयो. तारो टुरे १, रातिदिशा २, अकाले मेह गाजें ३, वीज ४, क
मके अपार ५, जेर जुमी कंपा नारी हे ६, बालचंड , जखचेन , थाकासे - गनकाय ए, काली धोली धुंध १०, जर रजुधात न्यारी हे ११, हाम ११, मांस १३ लोही १४, राघ १५, उमले मसाण बले १६, चंड १७, सूर्य ग्रहण १०, नर राज्य मृत्यु रालीहे १ए, थानकमें पड्यो ममाकी पंचेंडी कलेवर २०. ए बीस बोख टाल कर ग्यानी धाग्या पाली हे १, असाढ २१ नाद यासु काती चैत्ती पुनम जाण । ऋणथीलगती टालीये, पमुवा पांच वखाण ॥ पम्बा पांच वखाण सांज सवेर न न पीये। श्राधी रात दोष हर सर्व मिल चौतीस गिणिये ॥ चौतीस असमाश्यालके
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सूत्र नणसी सोय । ऋषि लालचंद श्णपरि कहे ताके विघन न व्यापे कोय ३४३ ३४ नियम धारण बोल. १ सचित्त जो जीवसहित होय कच्चा जल हरीवनस्पती फल
पान साकहरा दातण निमक उपरसे लेणा काचो कोरो धान ला माफक राखे
और त्याग करें, द्रव्य जितनी वस्तु मुखमें गेरे जतने द्रव्य जल मंजन दातण रोटी दाल नात शाक कढी मिगई पुमी पापम पान सुपारी श्लायची चुरण दही दूध घी तेल मीगे मलाइ खमी दवाश् चाय प्रमुख विगय दूध दही २ घृत ३ तेल ४ मीगे ५ मीगनी जात पकवान जो कमाहीमें घी तेलमा तलीया जावें महावीगय, ३ मधु १ माखण २ सहत ३ मांस ४, ४ पानीही जुता चटी मोजा खमाज व गेरे, ५ तंबोल पान सुपारी श्वायची लोंग पानकी जुर्की चूर्ण खाटेरी पोली पीप-|| सादि, ६ वट वस्त्र पगमी टोपी अंगोग रूमाल कपमा पढेरणे तथा जंढणका कपमा सर्व च्यार प्रकारना उनी सूवी रेसमी सणीका श्णकी मर्यादा रके, 9 कुसुमेसु जे| वस्तुना नाकसे सुंघणेमें आवे सो फूल फूलोका हार गजरा तुर्रा वगेरे थत्तर सुंघ. | णी वगेरे मर्यादा राखें, वहाण सवारी गामी फेटण हाथी घोमा जंठ रथं वैसी
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जगामी एका तांगा पालखी मोली रेलगामी तथा त्रामवे न्याव जदाज स्टी मर चेन दवाई जहाज मोटर साइकल यादि चढणेका प्रमाण राखें, सयण सोनेरी सिशा खुरसी पारा पलंग तखत बाजोठ मैच गलीचा सतरंजी जाजम गादि मकान दुकान यादि इणोंका हा मुजब प्रमाण राखें, १० विलेवणं यानें - सरीरपर लगाने तथा मलनेका पदार्थ केसर कुंकु चंदन तेल पीठी लेप दवाई द
तरमा वुरह कंधी दरपण सावन प्रमुखका प्रमाण करें, ११ बज त्रह्मचर्य का संजोग वेश्या तथा परस्त्रीका त्याग करें तथा स्वस्त्रीका पिण सूई मोः रां दृष्टांते प्रमाण करें दिनका कुशील त्यागे हांसी ठठाकीतोल नाता सगाई पर - विवादका त्याग वा प्रमाण राखें, १२ दिशि सरीरसें उत्तर दक्षिण पूर्व पश्चिम उँचा नीचा जाना तथा ध्याना संदेशा चिढि तार तथा काशीदं जना माल मंगाना
जना उसका प्रमाण राखें, १३ न्हाण स्नान बोरी स्नान दोनुं हाथ धोना मध्य खान मुंह पग तथा खाली लीला चंगोबा शरीरपर फेरणा मोरी खान सारे शरीरका ज्ञान कपमा धोना तथा घोलानारी मर्यादा करें नदी तलाव कुवा वावमीमें
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न्हाणका त्याग वा प्रमाण करें, १५ नत्तेसु च्यार प्रकारना थाहार अशन के अनं| सर्व जातिरो पान के० पाणी सर्व प्रकाररो खादिम बिदाम पिस्ता डाख यादि सादिम के० खारो सोपारी चूर्ण श्रादि वजनरो प्रमाण करें, १५ पृथ्वीकाय गेरु मुरम खमी माटी श्रादि वापरणका प्रमाण करें, १६ अपकाय कूवानो पाणी नदी नल तलाव करणेरो तथा पाको पाणी आपरे तथा दूजेरे पलीमेरो पीणो वापरणरो न्हाणे धोणे काममें थावें तेहनी वजनकी मर्यादा राखें उपयोगसहित विना गरायो पाणी पीणो वापरणो नहि, १७ तेनकाय प्रारंन करणो करावणो चूला सिगमी नळीमें विना देखें गणा लकमी वगेरे वापरणा नदि दाहा लगाएका चराग दियासलाई || विजलीरी चरागरी मर्यादा करें समककी रोसनीकी जयणा, १० वाजकाय पंखो त-|| था विजलीरो पंखो पंखी तथा रुमाल कागदसें हवा लेणेरी मर्यादा करें फूंक तथा| हिंझे हीमणेरी उपयोग सहित त्याग उसरे जागारे पंखेरी जयणा, १ए वनस्पतिकाय ||* हो साग वृक्ष तथा वेलका फल पान खाणेकी मर्यादा तथा हाथसें तोमनेरा त्याग हरे दातणरा त्याग तथा सूकी वनस्पति विना देख्या धान वापरणो नहि तृण
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काष्ट धान बीज लेणे वेचणेरी मर्यादा या त्याग, जम) कंदमुल मुलेरी जम गाजर या मुंगफली कादा लमण आदि लीलोतरीरा त्याग, लीलोती सुकाणी अथवा सुकवानीरा त्याग, २० त्रसकाय हालतो चालतो अपराधी कुबुद्धि करीने हणने तथा दानेरा त्याग, गाय ऊंव घोमा बेल डुपद चोपद वेपार अर्थ लेणा वेचणेरा त्याग, गामी घोमा सवारी जामे फेरनेरी त्याग, मागी देणेरी मर्यादा, विना देखें चालो नदि घेणो नदि उघामा वाम रखणा नहि गोवर समावें नदि क्रोध करी पशुको बांधे नहि जीवरी जयणा पालें बिना चुल्यो धान वापरणो नदि जाला फु· au आयो प्रहार विन गरयो पाणी त्यागें, २१ असी शस्त्र जंजार तरवार वंडुक तमंचा नाला वरती वगेरे चलाऐरा त्याग चक्र केची सरोटो चिमटो तालाकुंची वरतण ठाकमी कांटो वाटरी मर्यादा, २२ मस्सी लिखा पढणा दवात कलम पेनशीलाइप ापा वही किताब खाता वगेराकी मर्यादा, २३ कृपी किरसानी कर्म खेती खाण जाळा वन कटाणा घाणी कढाणी तलाव वावमी कुवा कुंम टांका नवरा जमीन खोदावणी तथा बागवगेचा वगेरा करसानी कर्मका त्याग, २४ याराकेता था
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रंन चुलेरा नीरा पारंन्न वगेरे करणे कराणेका त्याग या मर्यादा, २५ गारा कमगणो चेजो मकान मरमत चुनो ईट गारो गोवरको आरंन, १६ सोनारा चांदी सोनो कांसी तांवो पीतल लोहा वगेरेकी जनस घर तथा नाश् परसंगीरे अरथे कराणी लेणी वेचणेरी मर्यादा घरमें सोनार लोहार कखारा वगेराने राखीने काम कराऐरा त्याग, २७ गिणनारी मर्यादा, १० परखणा रुपीया तथा जुहारात वगेरे, श्ए तोला तोलरी मर्यादा वजन हाथसुं तोलणा उसरेसुं तोलाणा, ३० मापा हाथमुं| पायलीसुं तथा गजसुं हाते या उसरेसुं, ३१ कूरा घर उकान संबंधी जिनस खरीद-/ णेरी मर्यादा, ३२ विकरो घर उकान संबंधी जिनस वेचणेरी मर्यादा उपरांत त्याग, ३३ बापरे घररी तथा उसरेरे घरसुं आहुई तथा मोलरी चीजरी मर्यादा, ३४ श्रापरे घरी नोगणेमें यार तेहनी मयोदा.
॥विधि संदेपमें लिखा है विस्तार जितना अधिक करें याने खोल खाले कर रखें जतनाही जादा फायदा है परंतु जितना रखें उसमें दोष न लगावें चूलचुकलें अतिचार लग जाय तो कमसुं कम दस नवकार मंमलै और राख्या तिकेसु जादा
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लग जाय तो उसरे दिन कमती रखें. सवेरेसुं सामतक, च्यार पोहरका पञ्चकाण.करें तथा रात्रिकी च्यार पोहरके पञ्चकाण देवगुरु धर्माचार्यकी थाझाले या गुरु पासे पचकाण करें रोज नेम रखणा गिणती तथा वजन मर्यादा उपरांतरों त्याग,जितने तक त्रण नवकार कही नहि पारु उतनी तकरा च्यार पोदर तथा श्रांठ पोहरका | त्याग संघटेरी जयणा पनहीरी समकरी चिरागरी स्त्रीके संगटेरी सचित्तरे संगटेरी याने संगटो होय जाय तो दोप नहि ॥
चितारना दिननरमें जोजो नोग जपतोगमें बांया हुवे उसको याद करना राख्या उससे कमती लागा सो निरजराखाते थजाणमें जास्ति लागा होयं उसका मन वचन कायाए करी मिलामि जुकम।। .
॥ पारनकी विधिः ॥ फासियं पालीयरी पारी गुण कर त्रण नवकार.गुण, खेना फेर नेम कर लेंणा याने धारणा ॥ ए चवदे नियम-कहे.. जो मर्यादा करें जा कष्टि रसाण या तो तिर्थकरगोत्र कर्म बांधे नरक तियेचनी गतिने बंध करें साख सूत्र यावश्यकनी इति ॥
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॥अथ पैत्रीस बोल लिख्यते ॥ ३५ वाणीरा गुण पैत्रीस. समकितसहित वाणी बोलें १, उच्चै खरे बोलें १, सार वचन
बोलें निरसो वचन काढें नहि ३, पंमताश्नो वचन नाखें ४, गंजीर में स्वरे बोलें | शब्द तुटे नहि ५, पमबंदी उठें वाणीरा च्यार कोस तांश् सांजलें ६, रागसहित बोलें , सूत्र थामो अर्थ घणा विस्तारसें ना, मर्यादामांहि रहे पूर्व वचनसें किरुक नहि ए, पदे पदनो अर्थ जुदोजुदो कहें १०, सांगलणदारनो संदेह टालें ११, अन्यतीर्थीना वचन दोष हरें ११, सुणतांने रीफावें पिण मन ज्जी जायगा न जावें १३, देशकालवाची शुध वचन कहें १४, अणमिलतो वचन न नाखें १५, जीवादि। क वस्तु प्रकाशतां मिलतो वचन कहें १६, पद पागलें पद जोश्ने अर्थ उपदशें || १७, वातरूप बालक समफे तिम समभावें १०, अति मधुरी मीठी वाणी बोलें. १ए, || प्रचुजी देशना देवें पिण मरम किणरो प्रकाशें नदि २०, थर्थ धर्मसहित वाणी प्र.* काशे २१, जीवादिक वस्तु प्रकाशतां विस्तार नारी करें २५, मध्य स्वनावें कहें था
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पणी स्तुति परकी निंदा न करें १३, मधुर वाणी सनस नहि राखें २४, शब्द लिंगादि शुरू कहें २५, सांजलणहारने चिंते चमत्कार ऊपजें १६, नगवंत देवें देशना पिण घणी सुस्ती नहि घणी उतावळथी नहि , सानलणदारने रोगादिक फुःख | पी नदि २०, नरमणा विना वचन नाखें सुणनहारने संदेह नहि रहें श्ए, जे पदार्थ वर्णवें ते संपूर्ण कहें ३०, जगवंत देशनामांहि सापेद वचन नाखें ३१, बर्थ पद जुदो जुदो कहें ३२, च्यार नाषामांहि सत्य विवहार वचन नाखें ३३, खज्जासहित उत्साहसहित वचन नाखें ३५, जीवादिक वस्तु प्रकाशतां निशंक परूपें परं शंका नहि ३५.
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॥ श्रथ उत्तीस बोल लिख्यते ॥ ३६ उत्तराध्ययनजीके उत्तीस अध्ययन. विनय अध्ययन १. परिसह अध्ययन २, चतरं
गी अध्ययन ३, असंख्याय अध्ययन ४, अकाम सकाम मर्ण ५, खुमाग नियंख्यिं | ६, एसए , कविलियं , नमीरायरीसी ए, उमपत्तय १०, बहुसुए ११, हरियसियं १२, चित्तसंचूए १३, असुयारिकं थ० १४, सनिग्कु १५, बंजचेरसेमाही १६, पावसमणय १७, संजतिरो अ० १७. मियापुत्तस्स १ए महानियढियं १०, समुपपालिए २१, रहनेमि २२, केसीगोतम २३, अव्यपवयणा १४, जयघोस विजयघोस २५, स-1 मायारी २६, रकखळी २७, मोखमग्ग शश, सत्तपस्किम्म श्ए, तवमगाश्यं ३० चरण || विहनाम ३१, पमायगणं ३२, थाळकम्मपगमीन ३३, लेश्या ३५, श्रणगारमग्गं ३५, ॥
जीवाजीव नत्ती ३६. *|| ३६ श्राचार्यके उत्तीस गुण. पांच महावत पाले ५, पांच इंखि निग्रह करें १०, च्यार
कषाय निवारें १४, पांच याचार पाखें ए, थाप प्रवचन माताको धाराधे १७, नव
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वामि ब्रह्मचर्य पालें एवं ३६. पन्नवणासूत्रके बत्तीस पद. पदपरूपणा १, पदस्थान १, बहुवक्तव्यता ३, स्थित ४, विशेष ए, वुकंती६, सासोसास ७, सत्या , जाणीए, चर्म १०, नाषा ११, शरीर १२, प्रमाण १३, कषाय १४, इंक्षी १५, प्रयोग १६, लेश्या १७, कायथित १०, सम्यक्त १ए, अंतक्रिया २०, जंगाहण २१, संहाण ११, क्रिया २३, कर्मबंध २४, कर्म बेदना १५, बेदताबंधका १६, बेदत्ता वेदका २७, थाहार २०, उपयोग शए, पासपीया ३०, सन्या ३१, संयम ३२, उपध ३३, परिचारणा ३४, बेदना ३५, समुद्धात. नाव संग्राम उत्तीस. जीवरूपीयो राजा १, सम्यक्तरूपीयो प्रधान १, पांच महानत रूप जमराव ३, ग्यानरूपीमारी ४, धीर्यरूपी हाथी, अजव मदवरूपी होदा अंबामी ६, संतोषरूप महावत 9, मनरूप घोमो, परनपगाररूपी पखाण ए,नाषासुमतिरूपी पाखर १०, चारित्ररूपीलगाम ११, जिनधर्मरूपी चाचक ११,सीलरूपी रथ १३, नेदे संयमरूपी दल फोज १४, विवकरूपी निशाण १५, धर्मध्यान शुक्रध्यानरूपी धजा १६, पंच प्रकारे सिशायरूप चरित्र १७, नदे तपरूपी शस्त्र १०, सं
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वररूपी वगन ए, सीलरूपी वोपर २०, दमारूपी दाल २१, दयारूपी बरजी , क्रियारूपी कवाण २३, ग्यानरूपी तरकस २५, संयमरूपी तीर २५, अग्निप्रहरूपी तखार २६, शुक्लेश्यारूपी बंक २, पच्चकाणरूपी शांवाल श. सांचरूपी दारु भए। नावनारूप गोला ३०, रागषरूपी जामग्री ३१, च्यार चोकमीरूपी जाला ३५, का. यारूपी नुरज ३३, श्राप कर्मरूपी वैरी जीत्या ३४, मोदरूपी गढ लीधो ३५, काय ||
रूपी प्रजारे तेनी रिदा करवी ३६. ३६ उपदेशी उत्तीस बोल. सर्दवणा शुरू हुवे जिणरो उपदेश सुणीजे १, व्रत मर्यादा
कीधी हुवें तिणसुं प्यार कीजें १, परखस पमीया सील दृढ राखीजें ३, समकित शी स दृढ राखोजे ४, रीस चढे तोही दमा कीजें ५, धर्माचार्यरा हुकमसें चालीजें ६, जिण गुरु कने सूत्र वाच्या जणीया तिणने कष्ट करें तिणने पापश्रमण महा मोदः नीरो बंधनहार जाणवो, साचे मन गुरूकी भक्ति कीजें , गुणवंत देवगुरु धर्म मानीजें ए, संसय उपजे तो सत्गुरुने पूनीले १०, दोष आलोग्ने शुरू होनें ११ गुरांरो कारज हर्षसुं कीजें १५, काया वचे जठे धर्म जाणीले १३, सत्यवादीनी प्र
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तित खाणीजें १४, अमृतसुं मीठो निखद्य बोलीजें १५, पांच सुमति तीन गुप्ति शु६ चोखी पालीजें १६, संसाररो सगपण काचो जाणीजें ११, खाणो लोग कर्म बंधरो कारण जाणीजें १८, धर्मरो सगपण साचो जाणीजें ११५, निर्दोनी सतगुरांरी संगत कीजें २०, पाप गरे परिहरीजें २१, गुरांसुं वांको वरते तिरो वो नांग जाणीजें २१, गुरांसुं सवी वरते तिरो बना जाग जाणीजें ३३, गुरांरी सीख जंघी मानें तो दी पुनयो जाणीजें २४, गुरांरी सीख सुघी मानें तो पुण्यवंत जाणीजें १५, चूक चालें तो चोर कदीजें २६, सुध चालें तो शाद कहीजें 29, जंबो वचन नदि बोले तिने गंभीर प्रादमी जाणीजें २०, घणी दांसी लबलब करें ते गु.. ने खोवें श, सूर थइ संथारो करें तो वीतराग सरिखो जाणीजें ३०, सुवतां सागारी सण कीजें ३१, पाबली रातरी सिवाय धर्म चिंतणा कीजें ३२, छायां घामे दील न सूजें ३३, तीन काल अशुन वात न कीजें ३४, संसाररो कार्य ज तावसुं न कीजें ३५, नम नागा न सूइजें ३६. ३६ प्रायुखारा बत्तीस बोल. १ जीव जाति व्यायु वर्ष १२०, २ दस्ति व्यायु वर्ष १२०, ३
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मनुष्य आयु वर्ष १२०, ४ वायु वर्ष ३२ अथवा ४८, ९ व्याघ्र घ्यायु वर्ष ६४ ६ काग या वर्ष १००, 9 गर्दनायु वर्ष ६४, बाली खयु १६, श्वान खायु वर्ष १२, १० शियाल वायु वर्ष १०, ११ दरण यायु वर्ष ५४, १२ दंस ध्यायु वर्ष १००, १३ मांजारी घ्यायु वर्ष १२, १४ सुमा व्यायु वर्ष १३, १५ र्गेमा व्यायु वर्ष २०, १६ सारस वायु १०, १७ क्रौंच खायु ६०, १० बगला वायु ६०, १५ सर्पायु १०० अथवा १२०, २० कीमी आयु ४५, २१ जंदर आयु २ - २०, २१ ससला आयु १० - १४, २३ देवी प्रायु ५०, २४ सुवर व्यायु ५०, २५ वागोल यायु २०, २६ बपैया वायु ३०, २७ सिंह व्यायु १०००, २० माबला आयु १०००, शू जंट यायु २५, ३० जेंस यायु २५, ३१ गाय घ्यायु ३०, ३२ घेटा व्यायु १६, ३३ जु वायु मास ३, ३४ कंसारी वायुमास ३, ३५ वींबी व्यायु मास ६, ६६ चौरिंडी श्रायु मास ६. ९ ३६ वंश बत्तीश. १ सूर्यवंश, २ सोमवंश, ३ यादववंश, ४ कंदववंश, ५ परमाखंश, ६५ दवाकुवंश, चहुप्राणवंश, प चौबुकवंश, ए मौरिकवंश, १० शोलावंश, ११ सैंधववंश, १२ बिंदकवंश, १३ चापोत्कटवंश, १४ प्रतिहावंश, १५ झुमकवंश, १६ राष्ट
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कूटवंश, १७ करटकवंश, १० थरटपालवंश, १ए विरुदकवंश, २० गुहिलवंश, २१ गु-||*॥ हिलपुत्तवंश, २२ पौतिकवंश, २३ चहुयाणवंश, २४ धान्यपालकवंश, २५ राजपाशकवंश, १६ अमंगलवंश, २७ निकुंजवंश, २० दहिकरवंश, श्ए केलातुरवंश, ३० हूणवंश, ३१ हरिवंश, ३२ ढोढारवंश, ३३ शकवंश, ३४ चंदेववंश, ३५ शोलंकीवंश, ||ॐ
३६ मारखवंश. ३६ विनोद उत्तीश. १ दर्शनविनोद, १ श्रवणविनोद, ३ गीतविनोद, ४ नृत्यविनोद, ५ ||*
लिखितविनोद, ६ वक्ततृत्वविनोद, ७ शास्त्रविनोद, शस्त्रविनोद, .ए करविनोद, * १० बुद्धिविनोद, ११ विद्याविनोद, १२ गणितविनोद, १३ तुरंगमविनोद, १५ गजविनोद, १५ रथविनोद, १६ पदीविनोद, १७ बाखटकविनोद, १० जलविनोद, १ए यंत्रविनोद, २० मंत्रविनोद, १ महोत्सव विनोद, २२ फलविनोद, २३ पुष्पविनोद, २४ चित्रविनोद, २५ पतितविनोद, २६ यात्राविनोद, २१ कलत्रविनोद, २० कथा विनोद, श्ए युरुविनोद, ३० कलाविनोद, ३१ खमस्या विनोद, ३३ विज्ञानविनोद, ३३ वा विनोद, ३४ क्रीमाविनोद, ३५ तत्वविनोद, ३६ कवित्वविनोद.
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॥ हा॥ वासी वीकानेररा, सुश्रावक अतिज्ञान । शवंश घर सेठिया, अपचंद नैरुदान ॥१॥
नमि दूगी तास घर, वांचति निर्मल बुछ । बहु सिकांत संचय करे, मुनिजन कीजों सुंछ।शा || केवलझानीकुं सदा, बं वे कर जोम । गुरु मुखतें धारण करो, अपणो जिद्दकुं गेम || जिनवचन तहमेव सच, समन्नाव नहि ताण । जतनासुं वाचो सही, एद प्रचुन। वाण या सूत्र अर्थवरुनय वचन,तिनकेन्नेदअपार अल्पबुझिअग्यान हुं, कविजन लेहुं सुधार ।।। श्रदर पद उगेअधिक,आघोपीगेहोय । अशुध लिख्योहोय तेहनो, मिहासकम तेह ॥६॥
6 0*****
aan. sceneKEHRA******
॥ति श्री उत्तीस बोल समाप्त ॥
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नवीन खुश खबर. म्हारे त्या जैनधर्मनां, तत्वज्ञानना, अध्यात्मना भने दरेक जातनां पुस्तको जथ्थाबंध धणाज फायदेथी मळे बे. माटे घमारे त्यांथी मंगावq चुलता नहि. अमारो पुस्तको प्रसिक करवानो तथा वेचवानो वहीवट लगनग ४७ वरसथी चाले ने तो 'धमारो वहीवट | घणो जुनामां जुनो अने प्रसिकले.
अमारे त्यांथी लायब्ररीन, जैनशाळाजने सारु घणाजफायदेथी पुस्तको मोकलवामां आवे . वधु विगत सारु ७० पानानुं मोठं सूचीपत्र अर्धा थानानी टीकीट बीमी मंगावq.
एटल्लु तो निर्विवाद बे के, जनां प्रज्ञानरूपी पमळ खुल्लां थवानां होय, देशनो कोमनो अने खपरनो उदय ए जेनो उद्देश होय, तुंची स्थितिए चमी काश्पण कीर्तिनां कामो करवानुं जेना नशीवमां होय, संतानोने देशना वीरो बनाववाने जेनुं निशान होय अने जेवटे या असार संसारने गेमी मुक्ति मेळवी जीवन साफल्य करनार होय तेनेज उ
ली. बालाना बगनलाल शाह. ठे. कीकाभटनी पोळ, मु. धमदावाद.
पनाववाने जेनुं निशाना
तम पुस्तको वांचवानमा मुक्ति मेळवी
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याचारांगसूत्र. (श्रावृत्ति बीजी.) अमृतना मुस्वाद माटे खात्री आपवानी जरुर नयी. वीरपरमात्माना जीवनचरित्र अने अणगार महास्माओना आचार विचारयी वाकेफ थइ संसारमा श्रावक तरीकेतुं शुद्ध वर्तन राखवा आ पवित्र पुस्तक दरेक | जैने बाच, जोइए आजकाल शास्त्रार्थना जे झगडा थाय छे ते आवा पुस्तकना वाचनयी आपोआप, बंध यइजशे. सर्व देशना लोको लाभ लइ शके माटे द्वीतियारति मोटा नागरी वाळबोध पाइपयी सहेलं भाषान्तर अने | मुल पाटसहित मोठा खर्च प्रसिद्ध करेल छे. मुल्य रुपिया चार पोष्टेज खर्च वी. पी. साये पांच आना.
श्री संघपट्टक. संघे शी रीते वर्तवू जोइए ते संबंधी नियमोना फरमाननो सर्वोत्तम ग्रंथ. ___ आ ग्रंथ अद्भुत काव्योमा रचायेल छे अने ते नवांगी वृत्ति करनार श्री अभयदेवसरिना शिष्य श्री || जिनवल्लमसूरिए न्यायशेलीयी भरपुर घणीज उपयोगी अने विस्तारवाळी मोटी.टोका रची छे, आ ग्रंथ मोटा जैनी टाइपोथी लगभग पानां (७००) नो तैयार छे ने तेने पाका पुंठाथी बंधाएल छे आ ग्रंथनी फक्त योडीज नकलो शीलीक छे. आ ग्रंथनी रु.३-८-० छे. जोइए तेमणे ताकीदथी मंगावर्व पाछळयी पस्तावो यचे. टपाल खर्च वी. पी. साये आट आना.
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सामायिक प्रतिक्रमण सूत्रार्थ.
महंतमुनि तिलोकरीखजीकृत. आ सामायिक प्रतिक्रमणमूत्रने अमोए अमाराथी बनती महेनते बेत्रण प्रतो एकठी करीने शुद्ध करीने छपावी बहार पाडेल छे. आ पुस्तक सारु मारवाह, मेवाड, पंजाब, दक्षिण विगेरे आदि स्थलोना, भाइओने उपयोगी याय तेवी बनती गोठवण करी छे. आ पुस्तकनी अंदर सामायिक प्रतिक्रमण अर्य साये, दश पचरूखाणो, चचारी मंगळ, चार शरणां, आवंकने चितववाना त्रण मनोर्थ, प्रतिक्रमणनी सज्जाय, जोवराशीनी सज्जाय, उपदेशक पदो, महावीरस्वामीनु चोढालीयु, गौतमस्वामीनी सज्जाय, महावीरस्वामीनावे छंदो विगेरे विपयो आबेला छे. किम्मत आठ आना टपालखर्च वी. पी. साये व्रण आना.
नित्य नियमनी पोथी. (थावृत्ति चौदमी.) आ पोयीमा आनुपूर्वि, अनानुपूर्वि, वार भावना, शियलनी नववादो, शियलनुं चोटालीयुं, नानी तथा मोटी साघु वंदणा, शिखामणना अठावीश बोळ, समकितना ६७ वोल, श्रावकने चितववाना अण मनोर्य, सज्जायो तथा वैरागी पदो विगेरे घणा विषयो आवेला छे. आ पोथीना उपयोगीपणा विषे आ पोथीनी चौदमी आवृत्ति छपाइ वहार पडी छे तेज तेनी साबीती छे. जोइए तेमणे मंगाववी. किम्मत घेआना टपालखर्च||आनो
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जैनधर्मना अवश्य खरीद करवा लायक पुस्तको. (शास्त्री लीपीमां गपेलां.) पुस्तकोनां नाम. रु. आ.
पुस्तकोनां नाम.
रु. आ. आचारांग सूत्र सूळ साये भाषांतर. ४-० पंचपदानुर्वि आवृत्ती त्रीजी
-१ उतराध्ययन सूत्र मुळ साये पाकु टुं. ६-८
सामायिकसूत्र आवृत्ती १० मी नंग १००) ना २-AR " " पाटलीवाल्डं. ६-०
श्री सामायिक प्रतिक्रमणसूत्र आवृत्ती छही. . " " मोरबीवाळानुं ३-० जैनस्तुति पाका पूंगनी बांधेली. धनाशाळीभद्रनो रास.
श्री बृहदाल्लोयणा. वैराग्य रखाकर भाग १ लो आवृत्ती पांचमी. १-४ नारकीगा चीत्रनी मोटी बुक. देववैकालीकसूत्र. आवृत्ती त्रीजी. २-४ । नित्य नियमनी पायी आवृत्ति चोयी जैनपाठमाळा. भाग १ लो. आवृत्ती त्रीजी. ०-६ | छुटक अध्ययनो.
. उपरना पुस्तको शिवाय भीमशी माणेकना छपावेला तथा तमाम जातना पुस्तको मळे छे. वधु विगत साये मुचीपत्र तैयार छे.
ली. बालानाश्ग नलाल शाह.
जैनबुकसेलर एन्ड पब्लीशस. ठेकीकाभटनी पोळ-मु० अमदावाद.
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