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________________ नाना रंग दिसें तिम एक पदसु अनेक पद आवें तें बीजरूचि ५, अनिगमरुचि - ग्यारे श्रंग बार उपांगनो विचार करें ६, विस्ताररुचि एक पदना अनेक विस्तार करें सर्व पदार्थनी सातना करीने विस्तार करतो सम्यक्त पामें , संक्षेपरुचि मिथ्यातीनही अने जिनवचन पिण विशेष जाणे नही ते संदेपरुचि, क्रियारुचि नवमी किया करतुत करतां सम्यक्त पामें ए, धर्मरुचि पट व्यना नाव जाणतो जिनवचन सर्दहतो संम्यक्त पार्मे ते धर्मरुचि १०.. १० दश विधि समाचारी. श्रावसही स्थानकसे नीकलतां कहें १, निसहिया थानकमांही पेठतां कहें १, यापुखणा ते एकवारही पूबने कार्य करें ३,' पम्पुिखणा वारंवार पू. जीने कार्य करें ४, बंदना आगन्या लेश्ने कार्य करें ५, श्वाकारी ते गुरुनी श्वाये कार्य करें ६, मिथ्याकारी तेन वधु कार्य कीधे मिलामि कम देवें७, तहकारी ते गुरुवचन सुणीने तहत्ति करें , श्रापाणं ते गुरुनी सेवा पूजा करें ए, नवसंपयां ते गुरुने समीप रहें १० १० दश प्रकाररा स्थविर. ग्रामथिवर १, नगरथिवर २, देशथिवर ३, कुलथिवर ५, घर
SR No.010805
Book TitleChattrish Bol Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Bherudan Sethia
PublisherAgarchand Bherudan Sethia
Publication Year1916
Total Pages369
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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