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परस्त्रीसें कामसंवनका त्याग करें यावज्जीवतक फिरनी कन्नी ऐसा न करें १ अपनी मागी हुई स्त्री जैसैकी नसी सहरमें सगाई होय रही होय तो उस मांगी हुई स्त्री सें काम सेवें नही क्योंके वदविवाहीता नहीश्अपनी व्याही हुई स्त्री गेटी ऊमरकी| हो तो उसके साथ काम से नही क्योंकी जसे कामकी रुचि नही हुई है.३ परस्त्री कुमारी व व्याही अविधवा तथा वेश्या हो तिसके संग कुचमर्दन थादि कामक्री || मा करें नही जर शीलवान माता तथा नगिनी धादिकके पलंगादिक एक थास- ||* नमें बैठे नही जर उ वर्षके उपरांतकी बेटी हो तो उसे अपनी शय्यामें निखागत करें नही अर्थात् सुलावें नही जर ऐसेही स्त्रीकु चाहीयेकी अपने पतिके सिवाय जर कोई बहनोई तथा ननदोई तथा कोई नर पाहुणा तथा नोकर वा पमोसी. हो तिसके सामने कटादनत्रसें देखें नही तथा दंतपंक्ती प्रकटायके हंसे नही जर || विना कार्य बोलें नही जर पूर्वोक्त मनुष्योके साथ अकेली रस्तेमें बार चखें नही । तथा एकांतस्थानमें अकेली रहें नही जर विधवास्त्रीको तो विशेषही पूर्वोक्त कार्य ||* वर्जित है उर विधवास्त्रीको शृंगार न करना चाहीयें क्योंकी जब मैथुन त्यागा गया ||||