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तो फिर शंगार करनेकी क्या जरूरत है नर यात वर्षके उपरांत पुत्रादिकको अपने || साथ पलंगपर सुश्रावे नही जर पिता ब्राता श्वसुर जेठ देवर थादिकके बराबर एक वासन बेसे नही. क्योंकि अमि घृत के दृष्टांत अकार्य मैथुनके प्रसंगसे लोक व्यव-1 हारमें अपयश होता है और गर्नादि कारण होनेसे श्रापघात बालघातादि षण. होता हे.नेर दषणके प्रनावसे परलोकमें नरक प्रास होकर (अमि प्रज्वाखन)ता-||* ते थंन बंधन मारन तामन जम पराजवरूप सुःखोंका नागी होता है तिणे कारणसे काम क्रीमा हास्य विलास करे नही ४ चोथें पराये नाते रिस्ते सगाश् व्याह जोमे नही ५ कामनोगपर नीव अनिलाषा करे नही । ति चतुर्थ अनुवत ॥४॥
॥अथ पंचम अनुव्रत प्रारंन्नः ॥ पंचम अनुव्रतमें तृष्णाका प्रमाण करे सो परि ग्रह अर्थात सोना चांदी नरं रत्नादिक तथा मकानात खेत माल गाय नेंस उर घोमा आदिककी मर्यादा करे जैसेकी में इतना पदार्थ रखुंगा जर इतने उपरांत नही रखंगाजर फिरनी एसे न करे पूर्वे करी मर्यादा लंघे.जैसेकि मेने ५००० हजार | रुपीया रखाथा जर अब ज्यादा स्पीया होय गया तो अब मकानादि बनवा लूंगा