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________________ - कुल प्रगट करें नही क्योंकी स्त्री चंचल खन्नाव होती है सो पहिले तो लेती है जर पी बुराईको सुनकर जलदीहि कुएमें कुद पमती हैं इत्यर्थः स्त्रीका मर्म प्रकाशित न करें अथवा किसीकीनी चुगली न करें, ५ जूठी बही चीही लिखें नही॥ शति दितीयानुव्रतम् ॥३॥ अथ तृतीय अनुव्रत प्रारंन । तीसरे अनुव्रतमें ताला तोमना १, धरी वस्तु || जग लेनी, कुंची लगानी ३, राहगिर बूट लेने ४, पमी वस्तु धनीकी जानकें घ. स्नी, इत्यादिक मोटी चोरी करें नही जब तक जीवें तो फिर ऐसा अकार्य कनी न करें १, कोई चीज चोरकीचुराईजानकर फिर सस्ती समझ कर खोजके वश होकर लेयें नही १ चोरको सहारा देवें नही जैसेकी जावो तुम चोरी कर लावो में खे ढुंगा र तेरेपै कष्ट पहेंगा तो में सहारा हुंगा ३ राजाकी जगात मारे नही * कम तोल कम माप करें कही ५ नयी वस्तुकी वानकी दिखाकर फिर उसमें पुरानी दा वस्तु मिलाकें देवें नही॥ इति तृतीय अनुव्रतम् ॥३॥ ॥अथ चतुर्थ अनुव्रत प्रारंजः॥ चोथे अनुव्रतमें ख परणीत स्त्री-संतोष करें।
SR No.010805
Book TitleChattrish Bol Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Bherudan Sethia
PublisherAgarchand Bherudan Sethia
Publication Year1916
Total Pages369
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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