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________________ यद सुफलानी होय जाय और विना समय तो अकाल मेघ मागनेवत् है और चोथे जो गृहस्थी आप एकांत वेग हो तो प्रमादके बस होके दूमरेको थाहारपानी * देनेका काम न सोंपे अपितु आपही देवे क्योंकी आपदेश कुल आदिकी सामग्री बिना सुपात्रदानकी योगवार कहां धरी हे श्त्यर्थः और ५ पांचवे थाहारपाणी दे नेके पहिले वा पीने अहंकार न करे जैसेकी में बमा दाता हुँ मेरे तुल्य और यहां कौन दाता है हे नाथ जो आपको चाहिये सो यहांसे ले जाया करो अथवा मै ||* दान उंगा तो लोक मेरी वमा करेगे अपितु निर्जरा मोंदार्थ उत्साह सहित दान ||* देवे सो इस रीतीसे जैन धर्मकी मन्नावना होती है ।। इति चतुर्थ शिक्षा व्रतम् ॥ इति बारह व्रत संपूर्णम् १५. बारे नावना. १ अनित्य नावना. यह हमारा शरीर वैनव लक्ष्मी जर कुटुंब परिवार ||* ए सर्व विनाशी है हुँ आप अविनाशी हूं तो नश्वर वस्तुमें नाहक मूर्ग करके बुब्ध हुवा हुं. श्य शरण नावना. मृत्यु समय मैरा एश्वर्य लक्ष्मी जर कुटुंब परिवार मेरेकुं || बचावेगा नही जर साथनी को करेगा नही अशरण ऐसा मुमकुं एक धर्मकाही
SR No.010805
Book TitleChattrish Bol Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Bherudan Sethia
PublisherAgarchand Bherudan Sethia
Publication Year1916
Total Pages369
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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