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________________ शरणा हे ३ संसार नावना. में (हमारी श्रात्माने) यह संसार समुज्में नमतां अनं-|| ता नव कर्या हे अब में उस बंधनसे कब बुटुंगा ४ एकत्व नावना.यह मेरीयात्मा एकली हे एकली धाश्हे परनव एकलीही जावगीजर किया अशुन कर्मफल यापही नोगेगी५अन्यत्व नावना. हुं किसीकानहीजर नहीको मेरा है ६शशुचिनावना. यह नदारीक शरीर अपवित्र हे मलमूत्रकी खान हे रोग र जराका घर है में तिणसे जुदा हूँ ७ श्राश्रव नावना. मिथ्यात्व अव्रत प्रमाद अशुन योग जर कपाय, यह पांच पापकुं प्रवेश करणका रस्ता है अर्थात याश्रव हे संवरनावना. समकित ब्रत पचखाण अप्रमाद शुन योग जर अकषाय यह पांच यावा कर्मकुं रोकणैका दरवाजा हे अर्थात संवर हे ए, निर्जरा नावना-अनशन ननोदरी वृत्ति संदेप रस त्याग कायके क्वेष इंडिय पमिसंखीनता प्रायश्चित विनय वैयाक्च शास्त्र पठन ध्यान जर कानसग ये बारह जो पूर्व बंधे हवे पापोकुं बालने वाले अमिसमान निराबे १०,लोकस्वरूप नावना..मे अमुक घरमें हूँ याने कूवाके मेंमकवत अहंकारमें रह्या हुं परंतु चवदह राजमोकके अगामी में उर मेरा रदणका ||*
SR No.010805
Book TitleChattrish Bol Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Bherudan Sethia
PublisherAgarchand Bherudan Sethia
Publication Year1916
Total Pages369
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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