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________________ सुखकारी होवें, त्वचाने सुखकारी होवें, रोमने सुखकारी होवें, सो मर्दन करें. पी. जनो सीतल सुगंधीए तीन पाणीसुं स्नान करावें, चोसत तरकारी बत्तीस पकवान * हाथें जीमावें, पीने कांधे लेने फिरे तो पिण नगवंतें कह्यो के मातापितासं करण न । यावें. परं केवलीरूप्या धर्मनें प्रवती तिवारें जसरावण थावें १, बीजे बोलें गुरुसें कू शिष्य जसरावण न था. अदार पिण जिकां गुरां पासें शिष्यो हुवै, जिकांरो विनय * करें घणी सेवा नक्ति करें उपगार मेटें नही. धर्मरे प्रनावें गुरांरे प्रनावें मरी देवता * हुवे घणी रिकि पामें. एक प्रस्तावें तेहीज गुरु विहार करता अटवी नजाममाहिलूयाथका देवता धावीने वसतीमांहि मेले, पजे रोग कोढ आय ऊपनाथका सुःखी है बे, धापदा जोगवें बे, ते देवता आवीने रोगजपसमावें, सुखसाता करें तो पिण गुरु तथा गुरुणीसुं जसरावण नही थावें. तिवारें गुरुरी तथा गुरुणीरीधर्म जपरसुं था- * सता ऊतरी जाणीने ते देवता हेतजुगत करीने केवली प्ररूपीया धर्ममें प्रवती.ति. वारे ते देवता गुरुशुं तथा गुरुणीशुं उसरावण थावें २, तीजे बाले वाणोतर शेरशुं * उसरावण नही थावें. शेठने यापदा पमी हुवेवाणोतरी पुण्याश् वधी बे, शेठरी पु
SR No.010805
Book TitleChattrish Bol Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Bherudan Sethia
PublisherAgarchand Bherudan Sethia
Publication Year1916
Total Pages369
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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