________________
************* ***}***@***********
२१ श्रावकके इकवीश गुण. नवतत्त्वका स्वरूप जाणें १, धर्मकरण में सहाय वंबे नदी २ धर्म की चलाया किसी का चलें नदी ३, जिनधर्म में शंकादि घ्या नही ४, जे रो पर्थ ग्यान धारें तिरो निर्णय करें प्रमाद करें नंदी ९, श्रावकरी दाम दारी मीजी धर्म में रंगायमान रेवे ६, म्हारो यानखो व्यथिर दें, जिनधर्म सार बें इसी चिंता करें 9, श्रावकंजी फटिकरत्न जैसा निर्मला दोय कूम कपट राखें नदीप, श्रावकं घरका द्वार सवा पोहर दिन चढें तांई दान सारु उघामा राखें ए, श्रावक एक मासमें ब पोसा करें १०, श्रावक राजाके अंतेजर नंमार शाहुकारकी कानमें जावें तो प्रीति ऊपजें नही ११, लिया व्रत पञ्चरकाण निर्मला पालें १२ चवदे प्रकारे दान सुजतो मुनिने देवें १३, धर्मको उपदेश देवें १४, तीन मनोरथ सदा चिंतवें १५, च्यार तीर्थरा गुणग्राम करें अन्याय करें नही १६, नया नया सूत्र सिद्धांतसु ११, कोइ नयो यादमी धर्म पायो हुवें जिसने सादाज्य देवें य्यान सिखावें १८, दो वखत कालोकाल पकिमणा करें ११५, सर्व जीवसुं दितपणो राखें वैरभाव राखें नही ५०, बत्ती शक्ति तपस्या करें ग्यान शिखणको उद्यम करें २१. ४
सू
र
\E936* *CE93K* *XC9K************€£@3++£©K***€334