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________________ नियोंको वश्य करणी होय तो पराया गुणमें प्रवेश न कर गुण ग्रहण करो मी. गर हितकारी वचन बोलो जर नदारता गुणकी वृद्धि करो ११, थपणे हसते कहते है कि क्या तुम्हारा हाथ टुट गया क्या तुं अंधा होय गया ऐसे एसे कटुक वाक्य कहकर चीकणे कर्म वांधते है वो जब कर्म जदय यावेंगे तब रोय रोय करनी गेमतां मुश्किल होयगा वास्ते वचन निकालती वख्त खुब शोच कर बोलना क्युकी बूरीका तथा तखारादि शस्त्रका घाव दवाईसें अग होय जावें परं वचनका घाव मिलना कठिन है से हरेक वक्त विचार पूर्वक बोलना ११, सामायिक करती वखत जिसका प्रणाम खजनोके जपर उर परजनोके उपर उर निंदा तथा| प्रशंसामें समन्नाव रखेंगे नसीहीका सामायिक मोददायक होवेगा १३, जैसे राजाकी थाझाका नंग करणेसें श्सलोकमें मनुष्यको धन वगेरेका दम होता है तैसेंही स-1 र्वज्ञ नगवानकी याझा नंग करणेसें जीवको पर नवमें अनंता नवज्रमणरूप दम होता है १४, जो तुम्ह तुम्हारे प्रियमित्र और सगा तथा संबंधीके साथ प्रेम रखणा चाहते हो तो जिस वखत ते क्रोध करें तव तुम दमा धारण कये १५, जो तुम्ह
SR No.010805
Book TitleChattrish Bol Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Bherudan Sethia
PublisherAgarchand Bherudan Sethia
Publication Year1916
Total Pages369
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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