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________________ २, अंसाधुरी पूजा नही हुर्वे ३, मोटे ठिकाणे सम्यक्त घणी हुवें ४, वारो विनय || घणों करें ५, मनगमतो शब्दं ६, मनंगमतो रूप ७, मनगमती गंध , मनगमतो|| रस ए, मनगमतो फरसं १०. दश.विध यति धर्म. खंती दमा १, मंबंव मान त्याग १, अङव सरखंता कपटाका त्याग, मुत्ती निर्लोन लोनका त्याग ४, तव तपस्या करे ,.संजमे संयम पाखे ६, सचं सत्य बोले , सोयं उन्नय सोच्य ७, अकिंचण द्रव्यका त्याग ए, बजंच ब्रह्मचर्य पाले १०. देश कल्प. चेले कल्प १, नदेशिक कल्प १, सिफातर कल्प ३, राजपिंक कल्प ४, कृतकर्म कंल्प ५, चर्तुर्याम कल्प ६, जेष्ट कल्प ७, मासकल्प , पमिकमाकल्प | ए, पोसणा कल्प १०. दशं बोल बदमस्थ जीणे न देखे. धर्मास्तिकाय १, अधर्मास्तिकायु १,थाकासास्तिकाय ३, शब्द ४, गंध ५, वायरो ६, अशरीरी जीव ७, परमाणु पुद्रलं , ए कर्मदाय करसी के नहिए, ए मोद जासि के नही १०. GS
SR No.010805
Book TitleChattrish Bol Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Bherudan Sethia
PublisherAgarchand Bherudan Sethia
Publication Year1916
Total Pages369
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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