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________________ पिणं अंत करें तिके श्रादीश्वरजी नरतेश्वरजी १, एक थापरे कमरों अंत करें परं || अनेराने कर्मरो अंत नहीं करें तिके पमिमाघारी २, एक धागलेरे कर्मनो अंत करें | भने थापरो कर्मरो अंत न करें तिको पमिवार सम्यग्दृष्टि ३, एक आपरे कर्मरो अंत विण न थावे धने पेला रे कर्मरो पिण अंत न थावे तिके पांचमे थाराना साधु जाणवा ४. .. १४२ ५ च्यार प्रकाररा आचार्य. एक माहिला परिसह सहे थने बाहिरखा परिसह सहे ते | देशथकी थाराधक ने सर्वथकी पिण थाराधक, एक महिला परिसंह जीपे थने बाहिरला परिसह जीपे नही ते देशथकी विराधक थने सर्वथकी थाराषक १, एक बाहिरला परिसह जीपे थने मांहिला परिसद जीपे नही ते देशथकी धाराधक बने सर्वथकी विराधक ३, एक माहीला परिसह जीपे नही अने बाहिरला परिसद पिण __जीपे नदी ते देशयकी पिण विराधक अने सर्वथकी पिण विराधक जाणवा ४.१४३ ५ च्यार चपल थानक. चपल चप बसें १, गति चपख ते चपलासुंचा, नाषा * चंपल ते चपलासुं बोलें ३, नाव चपल ते एक सूत्र नणवो मांमे एक सूत्र नणतो ॥
SR No.010805
Book TitleChattrish Bol Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Bherudan Sethia
PublisherAgarchand Bherudan Sethia
Publication Year1916
Total Pages369
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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