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॥ अथ चोतीस बोल लिख्यते॥
३५ चोतीस तीर्थकरदेवजीरा अतिशय. रोमराय केश नख सोननीक वधे पिण असोज
नीक नहि वधे १, नगवंतजीरे गात्रे लेप लागें नहि , गायरो दूध उजलो निर्मल साकर घालीये मीगे तिसो नगवंतजीरो रुधिर मांस मीगे ३, पद्म कमल सुगंध सुहामणो वासें तिसो नगवंतजीरो श्वासोश्वास सुगंध सुहामणो वासे ४, चरमचकुरोधणी थाहार निहार करतां देखें नहि ५, श्री जगवंत देव विचरे जिसें तीन 3-1 त्र होय ६, नगवंतजी विचरे जिवें तीन चमर होय , फिटक रत्नमयी सिंहासण फांखे, विहारमें सहस्र ध्वज बागें चालें ए, धर्मचक्र ागल चालें १०, अशोक वृक्ष फल्यो फूल्यो मार्गमें गया करें ११, पू नाममल पन्ना करें १२, विचरें जितें रमणीक चुमि सुदामणी लागे १३, विचरें जिसें कांटारा मुंढा बंधा होय १४, बहुत रुत सुहामणी लागें १५, थोमो सुहामणो सुहामणो वायरो वाजें १६, नाहनी नाहनी बुंद मेह वरसें तिणसुं रज होय ते उपसम जावें १७, टिंचण परिमाणे थचि
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