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________________ थापदा रूपीया तिणगा , हरख रूपणी रूई सोच रूपीया तिणगा ५, सिलाई कुशील रूपीया तिणगा ६, ग्यानरूपी रूई अग्यानरूपी तिणगा , सम्यक रूई मिथ्यात्वरूप तिणगा , संयमरूप रूई असंयमरूपी तिणगाए, तपस्यारूपी र क्रोधरूपी तिणगा १०. विवेकरूपी रूई अनिमानरूपी तिणगा ११, सनेहरूपी रूई मायारूपी तिणगा १२, संतोष रूपणी रूई लोन रूपीया तिणगा १३. १३ तेरें बोल. विद्या बुद्धिवंत नही.१, धर्मका प्यारा नही , धनवंत नही ३, जातका निर्मल नही ४, दानको दातार नही ५, शूरवीर नही ६, रूपवंत नही , पंमित | नही ७, बहूश्रुति नहीए, सो नागवंत नही १०, मिथ्याल गया नही ११, सदा-|* काल नली मनमें थावें नही १२, तपसी नही १३. | १३ तेरे काठीया. दूहा. जूवा १, आलस २, सोग ३, नय ४, कुकथा ५, कौतिक ६, ||* कोह , पण बुध , अज्ञान ए, ब्रम १०, निडा ११, नर मद १५, मोह १३. | १३ वेवढ पामे वाटमे, करे उपञ्च जोर जैसे देश गुजरातमें कहे काठीया चोर.श्था लस कर्म काठीयो १, मोह कर्म काठीयो , अजस (जंगण) कर्म काठीयो ३, ||| ४॥
SR No.010805
Book TitleChattrish Bol Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Bherudan Sethia
PublisherAgarchand Bherudan Sethia
Publication Year1916
Total Pages369
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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