SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ माने पुजे. संसारना सर्वकार्य करें तिको लोकिक मिथ्यात्व ?, लोकोत्तर मिथ्यात्वं ते देवगुरुना गुण नही अने देवगुरु करीने जाणे हिंसा तमांहि धर्म जाणे सर्दहे तिको लोकोत्तर मिथ्यात्व २, कुप्रावचनीक मिथ्यात्व ते योगी सन्यासी इत्यादिकं कु. तीर्थीरो मार्ग से तिको कुमावचनीकमिथ्यात्व ३, जणायरिय मिथ्यात्वे नगवंतरी प्र-2 रूपणासुं जो प्ररूपें ४, अतिरिक्तमिथ्यात्व नगवंतरी प्ररूपणासुंयधिको प्रख्.४४ ५ पांच प्रकाररो मिथ्यात्व. विपरीत मिथ्यात्व जगवंतरो मार्ग विपरीत हीणो कहें १, थ क्रियमिथ्यात्व तिको क्रिया कर तुठ माने नही सर्व वस्तुनी नास्ति मानें २, अनाण मिथ्यात्व ते सर्व नाव उलटथी जाणे ३, अविनयमिथ्यात्व गुणवंतरा गुण नही करें ४, असातना मिथ्यात्व ग्यान दर्शन चारित्ररी थासातना करें ५. ४५ ५ पांच जणा वांदवा योग्य नही. बापरे गंदे चालें तिणने १, संयमने विषे दोष ले गावें तिणने १, गृहस्थसुं परिचय करें तिणने ३, संयमनें पसवामे मेहल दीयो, ति णने ४, मागेयाचार सेवे तिणने ५, एपांचेही वंदवा नमस्कार करवायोग्य नही. ५ पांच कारणे उमरी पहिले विहार करें. नयरे कारणे करें १, सुनद काल में
SR No.010805
Book TitleChattrish Bol Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Bherudan Sethia
PublisherAgarchand Bherudan Sethia
Publication Year1916
Total Pages369
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy