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पाखंम्मत ३, चोथे सुपने श्वेत गोकुल गायोरी टोली दीनी तेढ्नो फल श्री जगन्नाथस्वामी माधु साधवी श्रावक श्राविका चतुर्विध संघ तीर्थ प्रवर्तावसी ४, पांचमे सुपने दो माला दीगी तेहनो फल नाना रत्न श्रावकरो धर्म मोटा रत्न साधुरो धर्मप्ररूपसी ५,ठे सुपने पद्मसरोवर कमलरे फूले करी गयो दीगो तेहनो फल जीवाजीवादिकना सर्व पदार्थरो नाव प्ररूपसी ६, सातमे सुपने लवण समुफ आपरी भुजाये || करी तिरीन दीगे तेहनो फल संसार समुज्ने तिरसी , आठमे सुपने | दिनकर सूर्य सहस्त्र किरण देदीप्यमान जगतो दीगे. तेदनो फल निर्व्याघात | विषे आंतरो पमें नही, निरावर्ण ते पाहाम पर्वत कूट चूलका थामा थावें || नही, कसिण ते पूरो देखें, पम्पुिन्ने ते संपूर्ण देखें पिण उगे नही देखें, लोकालोक प्रकाशक केवलग्यान केवलदर्शन उपजसी, नवमें सुपने मनुष्यलोक थापरें अांखो नथी वीटीयो दीगे तेहरो फल जगन्नाथस्वामीरो यश तीनलोकमें व्या पसीए, दशमे सुपने मेगिरे पर्वतरी चूलिका नपर सिंहासन ते उपरे पोतें विराजीया तेहनो फल श्री जगन्नाथस्वामी हादशांगी सूत्र थाख्यातसी प्ररूपसी श्रापरो||*