SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 242
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११, उपनीत वचन ए पुरुष रूपवंत १२, अपनित वचन जिम ए पुरुष कुरुपवंत १३, उपनित थपनित वचन जिम ए रूपवंत परं कुसीलियो १४, अपनित उपनीत वचन जिम ए पुरुष कुशीलियो परं रुपवंत ३ १५, अध्यात्म वचन नग्न बोले रुई वाणीयानि परे १६. . सोल सुख. पहिलो सुख काया निरोग १, बीजो सुख घरमे नही सोग २, तीजो सुख गुणवंता साथ ३, चोथो सुख जे स्त्री हाथ ४, पांचमो सुख जे रिण नही देणो ५, बढो सुख जो धरमी तणो ६, सातमो सुख जो निर्ने गम , थाउमो सुख चलणो नही गाम , नवमो सुख जे मीठगे नीर ए, दशमो सुख जे पंमित सीर १०, झ्यारमो सुख जो पौषधसाल ११, बारमो मुख जो चित विशाल ११, तेरमो सुख जो पुत सपुत १३, चवदमो मुख जो घरे विचूत १४, पनरमो सुख जे केवलज्ञान १५, || सोलमो सुख पोहचे निर्वाण १६. *. १६ चंचगुप्त राजाना १६ सुपना. कल्पवृक्षानी तुटी माल संयम लेसे नही जूपाल १, सूर्य थकाल आथमेरो जाण जाया पंचमकालना तिणने न होसी केवलज्ञान , तीजे
SR No.010805
Book TitleChattrish Bol Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Bherudan Sethia
PublisherAgarchand Bherudan Sethia
Publication Year1916
Total Pages369
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy