________________
थधर्मपद मिथ्यात्वी श्रधर्मी श्रावकपणो गमे तो अधर्मपद , मिश्रपद चारित्र श्राश्री विरती अविरतीनो मार्ग श्रादरे ते मिश्रपद ए, व्यवहारपद जे बाह्य देखता
लोक सहुने सुमता ते व्यवहारपद १०, निश्चेवाद केवलीगम्य ते निश्चयवाद ११. ४ ११ षट ऽव्यना ११ ठार. गाथा-परिणामजीवजीवमुत्ती सपएसएगेदते किरिया । नि
चं कारणे कत्ता थईए एवं एकारसम् ॥१॥ जीवऽव्य पुद्गलऽव्य ए वे प्रणामि में धर्मास्ति अधर्मास्ति श्राकाश काल ए चार अपणामी में १, जीवजव्य तो जीव बाकी पांच द्रव्य अजीव १, पुद्गलद्रव्य तो मूर्ति बाकी पांच द्रव्य श्रमूर्नि ३, कालद्रव्य थप्रदेशी बाकी द्रव्य सप्रदेशी ४; धर्मास्ति अधर्मास्ति श्राकाशास्ति एत्रण एकेक में सेष त्रण द्रव्य अनेक ५, आकाश क्षेत्री शेष पांच श्रोत्री ६, जीवद्रव्य पुद्गलद्रव्य एबे सक्रिया शेष चार अक्रिय ७, कालद्रव्य नो अनित्य शेष पांच नित्य , जीवद्रव्य तो थकारणी काम नही था शेष पांच कारणी काम थावें ए, जीवद्रव्य पु.
दल कर्त्ता शेष ४ अकर्ता १०, थाकाशद्रव्य तो सर्व गति शेष ५ ऽव्य श्वसर्वगति. ११ ग्यारे बोल चौरेंडीरा. विन १, दंकण २, जमरा ३, ब्रमरी ४, टीम ५, माखी ६,