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१५.
. थानके जावें ५. ५ पांच समकितरा चूषण, धर्मने विषे चतुराश् राखें १, जिनशासननें दीपावें १, नला 'साधुरी सेवा करें ३, धर्मथकी मिगतांने थिर करें ४, साधु साधर्मारी वेयावच्च करें.३० ५ पांचना अवगुणवाद बोलतांथकां जीव उर्खनबोधपणो पामे कदे निर्मल समकित
मे नही च्यार गतिमांश रुट पिण पांचमी गति पामें नही. पहिले अरिहंतनाथवगुणवाद बोलें १, बीजे अरिहंत प्ररूपित धर्मना अवगुणवाद बोलें १, तीजे श्राचा- र्य उपाध्यायरा अवगुणवाद बोलें ३, चोथे चतुर्विध संघरा श्रवर्णवाद बोलें ४, पां. चमे मोटा देवतारा अवगुणवाद करें अने परपूठे सर्वनी निंदा चावत करें ए पांच 'बोल सेवतां जीव धर्म नही पामें ए. ५ णा पांचानाहीज गुण ग्राम करें तो सुलानबोधि हुवें. ५. पांच शरीरने विष नीव नीकलवाना दरवाजा जाणवा पगांथी जीव नीकलें तो नर
के जाय १, पांमीथकी नीकलें तो तिर्यंचगतिमां जाय २, नानिकानीमुं जीव नीकलें तो मनुष्यमांही जाय ३, मस्तक मुखमांही नीकलें तो देवतामें जाय ४, सर्वांग