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________________ याने उससे बात धमनी और लोन संझामें प्रवर्तना जैसे कोई अकसका अंधा और गांउका पूरा प्राय 'जाय इत्यादि और ए पांचवे बालस्यप्रमाद सो गुरु दर्शन करनेका और व्याख्यान पुणनेका बालस्य जैसेंकी धूप पम्ती है अब कौन जाय. और सामायिक करनेका शालस्य कि अबतो गर्मी पमती है तथा शीत पमती है कौन सामायिक करें. और साधूको थाहार अर्थात् निदा देनेका बालस्य करेंकी अरे अमुक तुही देदे, मैं तो लेटाहुं. इत्यादि तथा घी तेल तथा याचारका बर्तन गुरु तथा सहतका बर्तन इत्यादिक जघामा बालस्य करके रखें तो नाहक कर्म बंध जाते है. क्योंकि प्रदेश जतु स्थूल सूक्ष्म पूर्वोक्त नाजनोमें गिर गिरके सूब सूबके | मरजात है ति दितीय अनर्थदंम २. अथ ३ रा अनर्थदंम. पापकर्मोपदेश सोब-14 पने मतलब विना हरएक पास पमोसी थादिकको ऐसें कहनाकि अरे तेरे बदमे बमे होय गये है श्नकु बधिया कराले तथा तेरी गाय घोमी सुनी होय गई है । नकु गर्जन करावें तथा तेरी बेटी सुनी हो गई है इसको व्याह दे तथा श्राम थामले थादिक बहुत विकने आये हैं सो तुम बेवे क्या करते हो,जानें ले थार्ज,
SR No.010805
Book TitleChattrish Bol Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Bherudan Sethia
PublisherAgarchand Bherudan Sethia
Publication Year1916
Total Pages369
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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