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________________ दिक , एक फल मांही कवलो कोमल थने बाहिर पिण कवलो कोमल जायफल||| बादादिक ३, एक फल मांही पिण करमो बाहिर पिण करमो पूगफलादिक११४ ४ से दृष्टांते व्यार जातिरा पुरुष जाणवा. एकेक पुरुप जपरसु वचन कगर वोले परं मनमाही प्रणाम घणा नरम जाणवा १, एकेक नपरे मीग वोला याचारवंत गुण-|| वंत दीसें परं मनमांही प्रणाम घणा कठिन , एकेक पुरुष नपर पिण मीग बोला | श्राचारवंत अने मनमांदी पिण घणा गुणवंत ३, एकेक पुरुष नपरही कठोर मन मांही पिण कगेर कठिण जाणवा ४. ११५ ४ च्यार जातिरा विप. विबरो विप थाधे नरत प्रमाणे ने १, देमकेंरो विष श्राखे नरत प्रमाणे बे२, सापरो विष जंबुदीप प्रमाणे ३मनुपरो विप पढाहीप प्रमाणे.११६ ४ च्यार बोलें नारकीजीव मनुष्यलोकमां प्राय शके नही. परमाधर्मीयारी मार करीने याय शके नही १, दश जातीरी खेत्र वेदना करीने श्राय शके नही१, आशातावे दनी घणी तहसुं घाय०३, आज़खो घणोसुनोगवणो तेहसुं याय०४. ११७ ४ च्यार प्रकारे नारकीमाही अंधारो बे. नारकीरो अंधारो १, नारकीरे जीवारो अंधारो
SR No.010805
Book TitleChattrish Bol Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Bherudan Sethia
PublisherAgarchand Bherudan Sethia
Publication Year1916
Total Pages369
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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