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________________ बहुत दूर तक जाना पड़ता है तो पश्चिमका १५ योजन जाऊंगा र पूर्वकुंजो -|| ज़न चला जाजंगा एसे करे नही ५पांचवें एसे ज्रम पम गया होकि मैने न जाने पश्चिमको ५० योजन रखाथा र पूर्वको १०० योजन रखाथा; न जाने पश्चिमको १०० रखाथा; तो पूर्व र पश्चिमको ५० योजन ऊपरांत जाय नही॥ इति. प्रथम गुणवतम् ॥६॥ ॥अथ हितीय गुणवत प्रारंजः ठितीय गुणवतमें ग परिनोग पदार्थका यथाशक्ति प्रमाण करे अर्थात जपनोग्य पदार्थ जसको कहते है कि जो पदार्थ वार १ नोगा जाय जैसेकी फूल कपमा स्त्री मकान यादि सोएसे पदार्थोकी मर्यादा कर लेवे क्योंकि संसारमें अनेक पदार्थमें जर सर्व पदार्थ पांच प्रकारके यारं नसे सनीके वास्ते बनते है सो मर्यादा करे. विना पदार्थोकी पैदायशका थारंजरूप पाप हिस्से बमृजिम याता है क्योंकि डाके प्रमाण करे विना न जाने कोनसा शुन्नाशुज पदार्थ नागने में या जाय.जिसे एसे मर्यादा कर लेवे कि जैसे २४ चोवीस जातिका धान्य दे अर्थात् अन्न हे, तिस्कीमर्यादा करे की इतने जातिके अन्न नहि
SR No.010805
Book TitleChattrish Bol Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Bherudan Sethia
PublisherAgarchand Bherudan Sethia
Publication Year1916
Total Pages369
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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