________________
प्रथमः] भाषाटीकासहितः। ततः सूर्योदये जाते प्रकाशे मूत्रभाजनम् । धृत्वा मूत्रं समालोक्य कुर्यात्तस्य परीक्षणम् ॥३॥ वाते तोयसमं मूत्रं रूक्षं बहुत भवेत् । रक्तवर्ण भवेत्पित्ते पीतं वा स्वल्पमेव च ॥ ४ ॥ कफे श्वेतं घनं स्निग्धं मूत्रं संजायते ध्रुवम् । द्विदोष द्वन्दचिह्न स्यात्सर्वलिंगं त्रिदोषजे ॥५॥ रात्रिके चतुर्थ प्रहरकी जब चार घड़ी बाकी रहें उस समय रोगीको उठाकर वैद्य मूत्रवी परीक्षा करे । रोगीके मूत्रकी प्रथम धाग्को त्यागकर बाकीको कांचक शीशी वा कांके पत्र में लेकर वस्त्रमे ढकदेवे, जब सूर्योदय हो तब उस पात्रसे वस्त्रको हटाकर उजेल में रखकर अच्छी तरह मूत्रकी परीक्षा करे. वातके योपो मूत्र स्वच्छ जल के समान होता है और रूखा तथा बहुत होय, पित्तके कोपसे लाल वा पीला
और थोड़ा होता है, कफके कोपसे गेगीका मूत्र सफेद गाढा चिकना ऐसा होता है और द्विदोषके कोपसे दो दो दोषोंके लक्षण और त्रिदोषके कोपसे सर्व लक्षण युक्त होता है ॥ १ ॥५॥
प्रातःकाले गृहीतं यन्मूत्रं धर्मे निधापयेत्। तैलबिन्दुं निपेक्तत्र निश्चलं वैद्यसत्तमः यदा प्रकाशमाप्नोति तैलं क्षेमं तदादिशे॥ ६॥ विन्दुरूपं स्थितं तैलमसाध्यमपि रोगिणः निमज्जति यदामूत्रे भ्रमन्या नैव शाम्यति। तदारि विजा. नीयाद्रोगिणां नात्र संशयः ॥ ७ प्रभाते रोगिणां मूत्रं गृहीत्वा शुद्धभाजने । तृणेनादाय तैलस्य बिन्दु क्षिप्त्वा विचारयेत् ॥ ८॥ यदा विकाश
ANDI Shrutgyanam