Book Title: Vipaksutram
Author(s): Abhaydevsuri,
Publisher: Agamoday Samiti
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सेणं सागरोवमद्वितीएम नेरइएसु नेरइयत्ताए उववन्ने, से णं ततो अणंतरं उध्वहित्ता इहेव मियग्गामे नगरे विजयस्स खत्तियस्स मियाए देवीए कुच्छिसि पुत्तत्ताए उववन्ने, तते णं तीसे मियाए देवीए सरीरे क्यणा पाउन्भूया उज्जला जाव जलंता, जप्पभिई च णं मियापुत्ते दारए मियाए देवीए कुच्छिसि गम्भत्ताए उववन्ने तप्पमिदं च णं मियादेवी विजयस्स अणिट्ठा अकंता अप्पिया अमणुन्ना अमणामा जाया यावि होत्था, तते णं तीसे मियाए देवीए अन्नया कयाई पुव्वरत्तावरत्सकालसमयंसि कुडुंबजागरियाए जागरमाणीए इमे एयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था-एवं खलु अहं विजयस्स खत्तियस्स पुटिव इहा ६ धेजा वेसासिया अणुमया आसी, जप्पभिहं च णं मम इमे गन्भे कुच्छिसि गन्भत्ताए उववन्ने तप्पभिई च णं अहं विजयस्सा खत्तियस्स अणिट्ठा जाव अमणामा जाया यावि होत्था, निच्छति णं विजए खत्तिए मम नामं वा गोयं
१'पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि'त्ति पूर्वरात्रो-रात्रेः पूर्वभागः अपररात्रो-रात्रेः पश्चिमो भागस्तल्लक्षणो य: कालसमयः -कालरूपः समयः स तथा तत्र 'कुटुंबजागरियाए'त्ति कुटुम्बचिन्तयेत्यर्थः, 'अज्झस्थिए'त्ति आध्यात्मिकः आत्मविषयः, इह चान्याम्यपि पदानि दृश्यानि, तद्यथा-चिंतिए'त्ति स्मृतिरूपः 'कप्पिए'त्ति बुद्ध्या व्यवस्थापितः 'पथिए'त्ति प्रार्थितः प्रार्थनारूपः 'मणोगए'त्ति मनस्येव वृत्तो बहिरप्रकाशितः संकल्पः-पर्यालोचः, 'इढे त्यादीनि पञ्चैकार्थिकानि प्राग्वत् , 'धिजे'त्ति ध्येया 'वेसासिय'त्ति विश्वसनीया 'अणुमय'त्ति विप्रियदर्शनस्य पश्चादपि मता अनुमतेति, 'नाम'ति पारिभाषिकी सञ्ज्ञा 'गोय'ति गोत्रं-आन्वर्थिकी सञ्झैवेति
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