Book Title: Vipaksutram
Author(s): Abhaydevsuri,
Publisher: Agamoday Samiti
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विहरति, तते णं से निन्नए अंडवाणियए एयकम्मे ४.सुबह पावकम्मं समन्जिणित्ता एगं वाससहस्सं परमाउयं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा तच्चाए पुढवीए उक्कोससत्तसागरोवमठितीएसु रइएसु णेरइयत्ताए उववन्ने (सू०१७) से णं तओ अणंतरं उव्वहित्ता इहेव सालाडवीए चोरपल्लीए विजयस्स चोरसेणावइस्स खंदसिरीए भारियाए कुच्छिसि पुत्तत्ताए उववन्ने, तते णं तीसे खंदसिरीए भारियाए अन्नया कयाई तिण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं इमे एयारूवे दोहले पाउब्भूए-धण्णाओणं ताओ अम्मयाओ जाओ णं बहूहिं मित्तणाइणियगसयणसंबंधिपरियणमहिलाहिं अण्णाहि य चोरमहिलाहिं सद्धिं संपरिबुडा पहाया कयबलिकम्मा जाव पायच्छित्ता सव्वालंकारविभूसिया विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं सुरं च आसाएमाणी विसाएमाणी विहरंति जिमियभुत्तुत्तरागयाओ पुरिसनेवत्थिया सन्नद्धबद्ध जाव पहरणावरणा भरिएहि य फलि-18 एहिं णिकिट्ठाहिं असीहिं अंसागतेहिं तोणेहिं सजीवहिं धणूहिं समुक्खित्तेहिं सरेहिं समुल्लालियाहि य
१ 'जिमियभुत्तुत्तरागयाओ'त्ति जेमिताः-कृतभोजनाः भुक्तोत्तरं-भोजनानन्तरमागता उचितस्थाने यास्तास्तथा । २ 'पुरिसनेवत्थिज्ज'त्ति कृतपुरुषनेपथ्याः। ३ 'सन्नद्ध' इत्यत्र यावत्करणादिदं दृश्यं सन्नद्धबद्धवम्मियकवइया उप्पीलियसरासणपट्टिया पिणद्धगे विज्जा विमलवरचिंधपट्टा गहियाउहपहरणावरणत्ति व्याख्या तु प्रागिवेति, 'भरिएहिंति हस्तपाशितैः ‘फलिएहिंति स्फटिकेः 'निक्कहाहिंति कोशकादाकृष्टैः 'असीहिंति खङ्गैः 'अंसागएहिंति स्कन्धमागतैः पृष्ठदेशे बन्धनात् 'तोणेहिंति शरधीभिः 'सजीवहिति स. | जीवैः-कोट्यारोपितप्रत्यञ्चैः 'धणूहिं'ति कोदण्डकैः समुक्खित्तेहिं सरेहिति निसर्गार्थमुत्क्षिप्तैर्बाणैः 'समुल्लासियाहिं'ति समुल्लासिताभिः
अनु.१२
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