Book Title: Vipaksutram
Author(s): Abhaydevsuri, 
Publisher: Agamoday Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 68
________________ % विपाके श्रुत०१ % ४ शकटा. वेश्यातो नाशा सू० १९ 10 ॥६६॥ %%%%% %%%% च्छूढे तते णं से सगडे दारए सयातो गिहाओ निच्ढ़े समाणे संघाडगतहेव जाव सुदरिसणाए गणि- याए सहिं संपलग्गे यावि होत्या, तते णं से सुसेणे अमचे तं सगडं दारगं अन्नया कयाई सुदरिसणाए ग|णियाए गिहाओ निच्छुभावेति सुदंसणियं गणियं अभितरियं ठावेति २ सुदरिसणाए गणियाए सद्धिं उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरति, तते णं से सगडे दारए सुदरिसणाओ गिहाओ निच्ढे समाणे अन्नस्थ कत्थवि सुर्ति वा अलभ० अन्नया कयाई रहसियं सुदरिसणागेहं अणुप्पविसइ २ सुदरिसिणाए सद्धिं उरालाई भोगभोगाई मुंजमाणे विहरइ, इमं च णं सुसेणे अमचे पहाते जाव विभूसाए मणुस्सबरगुराए जेणेव सुदरिसणागणियाए गेहे तेणेव उवागच्छति तेणेव उवागच्छइत्ता सगडं दारयं सुदंसणाए गणियाए सद्धिं उरालाई भोगभोगाइं भुंजमाणं पासह २ आसुरुत्ते जाव मिसमिसेमाणे तिवलियं मिउर्दि निडाले साइह सगडं दारयं पुरिसेहिं गिण्डाविति अहि जाच महियं करेति अपउडगपंधणगं करेति २ जेणेव महचंदे राया तेणेव उवागच्छद उवागच्छित्ता करयलजाव एवं बयासी-एवं खलु सामी! सगडे दारए मम अंतेपुरंसि अवरद्धे, तते णं से महचंदे राया सुसेर्ण अमचं एवं बयासी-तुम.चेष णं देवाणुप्पिया! सगडस्स दारगस्स दंड बसेहि, तए णं से सुसेणे अमचे महचंदेणं रना अम्मणुनाए समाणे सगडं दारयं सुदरिसणं च गणियं एएणं बिहाणेणं वज्झं आणति, तं एवं खलु गोयमा! सगडे दारगे पोरापुराणाणं पचणुभबमाणे विहरति (सू० २२) सगडेणं भंते! दारए कालगए कहिंगच्छिहिति? कहिं उव %%%% ६६॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128