Book Title: Vipaksutram
Author(s): Abhaydevsuri,
Publisher: Agamoday Samiti
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ताहे संता तंता परितंता जामेव दिसिं पाउन्भूया तामेव दिसिं पडिगया, तते णं सा अंजदेवी ताए वेयणाए अभिभूता समाणा सुक्का भुक्खा निम्मंसा कट्ठाई कलुणाई विसराई विलवति, एवं खलु गोयमा! अंजूदेवी पुरापोराणाणं जाव विहरति । अंजू णं भंते! देवी इओ कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छि. हिति? कहिं उववजिहिति?, गोयमा! अंजू णं देवी नउई वासाइं परमाउयं पालित्ता कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयत्ताए उववजिहिइ, एवं संसारो जहा पढमे तहा नेयव्वं जाव वणस्सति०, साणं ततो अणंतरं उव्वहित्ता सव्वतोभद्दे नगरे मयूरत्ताए पञ्चायाहिति, सेणं तत्थ साउणिएहिं वधिए समाणे तत्थेव सव्वतोभद्दे नगरे सेट्टिकुलंसि पुत्तत्ताए पचायाहिति, से णं तत्थ उम्मुक्कबालभावे तहारूवाणं थेराणं केवलं बोहिं बुज्झिहिति पव्वज्जा सोहम्मे, सेणं ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं कहिं गच्छिहिति? कहिं उववजिहिति?, गोयमा! महाविदेहे जहा पढमे जाव सिज्झिहिह जाव अंतं काहिति । एवं खलु जंबू! |समणेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं दसमस्स अज्झयणस्स अयमढे पन्नत्ते, सेवं भंते २।(सू०३२) दुहविवागो दससु अज्झयणेसु ॥ पढमो सुयक्खंधो सम्मत्तो ॥१॥
॥ अजूसार्थवाहसुतायाः दशमाध्ययनस्य विवरणम् ॥ १० ॥ तत्समाप्तौ च समाप्तं प्रथमश्रुतस्कन्धविवरणमिति ॥ १॥
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अनु.१७
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