Book Title: Vipaksutram
Author(s): Abhaydevsuri, 
Publisher: Agamoday Samiti

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Page 121
________________ कयलक्खणे सुलद्धे णं मणुस्सजम्मे सुकयत्थ] जाव तं धन्ने णं देवाणुप्पिया! सुमुहे गाहावई । तते णं से & सुमुहे गाहावई बहई वाससताई आउयं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इहेव हथिसीसे णगरे अदीणसत्तुस्स रन्नो धारणीए देवीए कुच्छिसि पुत्तत्ताए उववन्ने, तते णं सा धारणी देवी सयणिजंसि सुत्तजागरा २ ओहीरमाणी २ तहेव सीहं पासति सेसं तं चेव जाव उप्पिं पासाए विहरति, तं एयं खलु गोयमा! सुबाहुणा इमा एयारूवा माणुस्सरिद्धी लद्धा पत्ता अभिसमन्नागया, पभू णं भंते! सुबाहुकुमारे देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए?, हंता पभू, तते णं से भगवं गोयमे समणं भगवं. वंदति नमंसति २ संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरति, तते णं से समणे भगवं महावीरे अन्नया कयाइ हत्थिसीसाओणगराओ पुष्फगउजाणाओ कयवणमालजक्खाययणाओ पडिणिक्खमति २त्ता बहिया जणवयविहारं विहरति, तते णं से सुबाहुकुमारे समणोवासए जाते अभिगयजीवाजीवे जाव पडिलाभेमाणे विहरति । तते णं से सुबाहुकुमारे अन्नया कयाई चाउद्दसमुद्दिपुण्णमासिणीसु जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छति २त्ता पोसहसालं पमजति २त्ता उच्चारपासवणभूमि पडिलेहति २त्ता दन्भसंथारगं संथरति २दब्भसंथारं दुरूहइ दुरूहित्ता अट्ठमभत्तं पगिण्हइ पगिण्हेत्ता पोसहसालाए पोसहिते अट्ठमभत्तिए पोसहं| १ अभिगयजीवाजीवे' इह यावत्करणात् 'उवलद्धपुन्नपावे' इत्यादिकम् 'अहापडिग्गहिएहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणे | विहरई' एतदन्तं दृश्यम् । २ 'चाउद्दसहमुद्दिपुण्णमासिणीसुत्ति अत्रोद्दिष्टा-अमावास्या । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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