Book Title: Vipaksutram
Author(s): Abhaydevsuri,
Publisher: Agamoday Samiti
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वजिहिह, सगडे णं दारए गोयमा! सत्तावपणं वासाइं परमाउयं पालइत्ता अजेव तिभागावसेसे दिवसे एग महं अओमयं तत्तसमजोहभूयं इत्थिपडिमं अवयासाविते समाणे कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयण-3 प्पभाए पुढवीए रइयत्ताए उववजिहिति, से णं ततो अणंतरं उच्चहित्ता रायगिहे णगरे मातंगकुलंसि द जुगलत्ताए पचायाहिति, तते णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो णिवत्तबारसगस्स इमं एयारूवं गोण्णं ना
मधेनं करिस्संति, तं होऊणं दारगं सगडे नामेणं होऊ णं दारिया सुदरिसणानामेणं, तते णं से सगडे दारए उम्मुक्कबालभावे जोव्वण [गमणुपत्ते.] भविस्सइ, तए णं सा सुदरिसणावि दारिया उम्मुक्कबालभावा (विण्णय) जोव्वणगमणुप्पत्ता स्वेण य जोव्वणेण य लावणेण य उकिट्ठा उकिट्ठसरीरा यावि भविस्सइ, तए णं से सगडे दारए सुदरिसणाए स्वेण य जोवणेण य लावणेण य मुछिए सुदरिसणाए सद्धिं उरा. लाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरिस्सति, तते णं से सगडे दारए अन्नया कयाई सयमेव कूडगाहित्तं उवसंपजिसाणं विहरिस्सति, तते णं से सगडे दारए कूडगाहे भविस्सइ अहम्मिए जाव दुप्पडियाणंदे एय
SHESHWASNA
१ 'अओमयं' ति अयोमयीं 'तत्वं' वप्तां, कथम् ? इत्याह 'समजोइभूयंति समा-तुल्या ज्योतिषा-वहिना भूता या सा तथा वाम् । 'अवयासाविए'त्ति अवयासितः-आलिङ्गितः। २ 'जोवण भविस्सइ'त्ति 'जोव्वणगमणुपत्ते अलं भोगसमत्थे यावि भविस्सति' इत्येवं द्रष्टव्यम् । ३ 'त सति 'तए णं सा' इत्येवं दृश्यम् । 'विन्नय'त्ति एतदेवं दृश्य-विण्णयपरिणयमेत्ता'।
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