Book Title: Vipaksutram
Author(s): Abhaydevsuri,
Publisher: Agamoday Samiti
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सू०२७
विपाके
तते णं से चित्ते अलंकारिए नंदिसेणस्स कुमारस्स वयणं एयमद्वं पडिसुणेति, तए णं तस्स चित्तस्स अलं- ६ नन्दिषेश्रुत०१
४ कारियस्स इमेयारूवे जाव समुप्पजित्था-जइ णं मम सिरीदामे राया एयमई आगमेति सतेणे मममण-18 णा. पुरतो है। जति केणति असुभेणं कुमरणर्ण मारिस्सतित्तिकह भीए जेणेव सिरीदामे राया तेणेव उवागच्छति सिरी- भवाः
दामं रायं रहस्सियगं करयल० एवं वयासी-एवं खतु सामी! दिसणे कुमारे रजेय जाव मुच्छिते इच्छति 8 तुम्भे जीवियातो ववरोवित्ता सयमेव रजसिरिं कारेमाणे पालेमाणे विहरित्तए, तते से सिरिदामे राया चित्तस्स अलं० अंतिए एयमढे सोचा निसम्म आसुरुत्ते जाव साहव णंदिसेणं कुमारं पुरिसेहिं सद्धिं गिण्हा-दा वेति, एएणं विहाणेणं बज्झं आणवेति, तं एवं खलु गोयमा! दिसणे पुत्ते जाव विहरति, मन्दिसेणे कुमारे | PI इभी चुए कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिइ कहिं उववजिहिइ, गोयमा ! णंदिसेणे कुमारे सहि वा-६॥
साई परमाउयं पालइत्ता कालमासे कालं किचा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए संसारो तहेव लतो हस्थिणाका उरे गरे मच्छत्ताए उववजिहिति, से णं तत्थ मच्छीएहि वधिए समाणे तत्व सैट्टिकुले बोहिं सोहम्मे
कप्पे महाविदेहे वासे सिज्झिहिति बुझिहिति मुचिहिति परिनिव्यिहिति सव्वदुक्खाणमंत करेहिति, एवं खलु जंबू। निक्खेवो छट्ठस्स अज्झयणस्स अयमढे पन्नत्तेसिबेमि (सू०२७) छहमन्झयणे सम्मत ॥६॥
१'एवं खलु जंबू!' इत्यादि 'निक्षेपो' निगमनम् षष्टाध्ययनस्य यावत् 'अयमः'त्यादि 'बेमित्ति ब्रवीभ्यह भगवतः समीपे ॥७३॥ अM व्यतिकर विदित्वेत्यर्थः ॥ षष्ठाध्ययनविवरणं, नन्दिवर्द्धनस्याधिकारो हि समाप्तः॥३॥ । . .
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