Book Title: Vipaksutram
Author(s): Abhaydevsuri, 
Publisher: Agamoday Samiti

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Page 52
________________ C विपाके श्रुत०१ अभग्नसेनाध्य. पूर्वभवः सू०१७ ॥५८॥ आपत्थियापिडए गेण्हंति, पुरिमतालस्सणगरस्स परिपेरंतेसुबहवे काइअंडए य घूघूअंडए य पारेवइटिहिभि३ डए य खग्गिअ०मयूरि०कुक्कुडिअंडए य अण्णसिंच बहूणं जलयरथलयरखयरमाईणं अंडाइं गेण्हंति गेण्हेत्ता पत्थियपिडगाइं भरेंति जेणेव निन्नयए अंडवाणियए तेणामेव उवागच्छह २ निन्नयगस्स अंडवाणियस्स उवणेति, तते णं से तस्स निन्नयस्स अंडवाणियस्स बहवे पुरिसा दिण्णभति. बहवे काइअंडए य जाव कुकुडिअंडए य अन्नेसिं च बहूणं जलयरथलयरखहयरमाईणं अंडयए तेवएसु य कवल्लीसु य कंडुएसु य भज्जणएसु य इंगालेसु य तलिंति भब्जेति सोल्लिंति तलेता भजंता सोल्ता रायमग्गे अंतरावणंसि अंडयएहि य पणिगएणं वितिं कप्पेमाणा विहरंति, अप्पणावि य णं से निन्नयए अंडवाणियए तेहिं बहहिं काइयअंडएहि य जाब कुक्कुडिअंडएहि य सोल्लेहि य तलिएहि य भज्जेहि य सुरंच आसाएमाणे विसाएमाणे ORSICA COSTESSA Cles ___ १ 'पत्थिकापिटकानि च वंशमयभाजनविशेषाः, काकी घूकी टिटिभी बकी मयूरी कुर्कुटी च प्रसिद्धा, अण्डकानि च प्रतीतान्येवेति। २ 'तवएसु यत्ति तवकानि-सुकुमारिकादितलनभाजनानि 'कवल्लीम यत्ति कवल्यो-गुडादिपाकभाजनानि 'कंडुसु'त्ति कन्दवो-मण्डकादिपचनभाजनानि, 'भजणएसु यत्ति भर्जनकानि कर्पराणि धानापाकभाजनानि, अङ्गाराश्च प्रतीताः, 'तलिंति' अग्नौ | स्नेहेन, भजन्ति-धानावत्पचन्ति 'सोल्लिंति यत्ति ओदनमिव राध्यन्ति खण्डशो वा कुर्वन्ति 'अन्तरावर्णसि'त्ति राजमार्गमध्य-18॥५८॥ भागवर्तिहट्टे 'अंडयपणिएणं'ति अण्डकपण्येन । ३ ५ 'सुरं चे'त्यादि प्राग्वत् । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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