Book Title: Vipaksutram
Author(s): Abhaydevsuri, 
Publisher: Agamoday Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 56
________________ विपाके श्रुत०१ तते णं से अभग्गसेणे कुमारे पंचधातीए जाव परिवड्डइ (सू० १८) तते णं से अभग्गसेणे कुमारे उम्मुक्कबा-18 ३ अभग्नलभावे यावि होत्था अट्ट दारियाओ जाव अट्ठओ दाओ उप्पि पासाए भुंजमाणे विहरइ, तते णं से वि-16 सेनाध्य. जए चोरसेणावई अन्नया कयाई कालधम्मुणा संजुत्ते, तते णं से अभग्गसेणे कुमारे पंचहिं चोरसतेहिं सद्धिं अभग्नसेसंपरिवुडे रोयमाणे कंदमाणे विलवमाणे विजयस्स चोरसेणावइस्स महया इड्डिसकारसमुदएणं णीहरणं नस्य पल्लीकरेति २त्ता बहई लोइयाइं मयकिच्चाई करेतिर केवइकालेणं अप्पसोए जाए यावि होत्था, तते गं ते पंच चो- पतिता रसयाई अन्नया कयाई अभग्गसेणं कुमारं सालाडवीए चोरपल्लीए महया २ चोरसेणावइत्ताए अभिसिं सू० १९ FACRETRACTORS पा १ 'अट्ठदारियाओ'त्ति, अस्यायमर्थः-'तए णं तस्स अभग्गसेणस्स कुमारस्स अम्मापियरो अभग्गसेणं कुमारं सोहणंसि | तिहिकरणणक्खत्तमुहुत्तंसि अट्रहिं दारियाहिं सद्धिं एगदिवसेणं पाणिं गिण्हाविंसुत्ति, यावत्करणादिदं दृश्यं-'तए णं तस्स अभग्गसे. प्राणस्स कुमारस्स अम्मापियरो इमं एयारूवं पीईदाणं दलयंति'त्ति 'अट्रओ दाओ'त्ति अष्ट परिमाणमस्येति अष्टको दायो-दानं वाच्य । इति शेषः, स चैवम्-'अट्ठ हिरण्णकोडीओ अट्ठ सुवण्णकोडीओं' इत्यादि यावत् 'अट्ठ पेसणकारियाओ अन्नं च विपुलधणकणगरयण मणिमोत्तियसंखसिलप्पवालरत्तरयणमाइयं संतसारसावएज'मिति, 'उप्पिं भुंजइ'त्ति अस्थायमर्थः-'तए णं से अभग्गसेणे कुमारे| द उप्पि पासायवरगते फुट्टमाणेहिं मुयंगमत्थएहिं वरतरुणिसंपउत्तेहिं बत्तीसइबद्धेहिं नाडएहिं उवगिज्जमाणे विउले माणुस्सए कामभोगे पञ्च गुब्भवमाणे विहरईत्ति । ॥६ ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128