Book Title: Vipaksutram
Author(s): Abhaydevsuri, 
Publisher: Agamoday Samiti

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Page 37
________________ 4%%% % राया गोत्तासं दारयं अन्नया कयाइ सयमेव कूडग्गाहित्ताए ठावेति, तते णं से गोत्तासे दारए कूडग्गाहे जाए यावि होत्था अहम्मिए जाव दुप्पडियाणंदे, तते णं से गोत्तासे दारए कूडग्गाहित्ताए कल्लाकल्लिं अद्धरत्तियकालसमयंसि एगे अबीए सन्नद्धबद्धकवए जाव गहिआउहपहरणे सयातो गिहाओ निग्गच्छति जे व गोमंडवे तेणेव उवागच्छति तेणेव उवागच्छित्ता बहुणं णगरगोरुवाणं सणाहाण य जाव वियंगेति २ जेणेव सए गेहे तेणेव उवागते, तते णं से गोत्तासे कूड० तेहिं बहहिं गोमंसेहि य सूलेहि य सुरं च मजं च आसाएमाणे विसाएमाणेजाव विहरति, ततेणं से गोत्तासे कूड० एयकम्मे एयविजेएयप० एयसमायारे] सुबहुं पावकम्मं समजिणित्ता पंचवाससयाई परमाउयं पालइत्ता अदुहहोवगए कालमासे कालं किच्चा दोच्चाए पुढवीए उक्कोसं तिसागरोवमठिइएसु नेरइएसु णेरइयत्ताए उववन्ने (सू०११) तते णं सा विजयमित्तस्स सत्यवाहस्स सुभद्दा नामं भारिया जायनिंदुया यावि होत्था जाया जाया दारगा विणिहायमावजंति, तते णं से गोत्तासे कूड० दोचाओ पुढवीओ अणंतरं उव्वहित्ता इहेव वाणियगामे नगरे विजयमित्तस्स सत्थ % SARANAGAR A १ 'एयकम्मे' इत्यत्रेदं दृश्यम्-'एयप्पहाणे एयविजे एयसमायारेत्ति । २ 'अदृदुहट्टोवगए'त्ति आर्त्त-आर्तध्यानं दुर्घट-| दुःखस्थगनीयं दुर्वार्यमित्यर्थः उपगतः-प्राप्तो यः स तथा। ३ 'जायणिंदुया यावित्ति जातानि-उत्पन्नान्यपत्यानि निर्वृतानि-निर्यातानि मृतानीत्यर्थो यस्याः सा जातनिर्द्वता वाऽपीति समर्थनार्थः, एतदेवाह-जाता जाता दारका विनिघावमापद्यन्ते तस्या इति गम्यम् । 1 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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