Book Title: Vipaksutram
Author(s): Abhaydevsuri, 
Publisher: Agamoday Samiti

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Page 22
________________ सू०७ विपाके ति २त्ता मियादेवीं एवं वयासी-देवाणुप्पिया! तुम्भं पढमं गन्भे तं जहणं तुम्भे एयं एगते उकरुडियाए| १ मृगापुश्रुत०१ | उज्झासि ततो णं तुन्भे पया नो थिरा भविस्सति, तो णं तुमं एवं दारगं रहस्सियगंसि भूमिघरंसि रह त्रीयाध्य. स्सिएणं भत्तपाणेणं पडिजागरमाणी २ विहराहि तो गं तुम्भं पया थिरा भविस्सति, तते णं सा मियादेवी मृगापुत्र॥४३॥ | विजयस्स खत्तियस्स तहत्ति एयमढे विणएणं पडिसुणेति पडि २त्ता तं दारगं रहस्सियंसि भूमिघरंसि रहा गत्यादि भत्तपाणेणं पडिजागरमाणी विहरति, एवं खलु गोयमा! मियापुत्ते दारए पुरापुराणाणं जाव पचणुब्भव-|| Pमाणे विहरति । (सू०६) मियापुत्ते णं भंते! दारए इओ कालमासे कालं किच्चा कहिं गमहिति? कहिं उव वजिहिति?, गोयमा! मियापुत्ते दारए छव्वीसं वासाइं परमाउयं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इहेव |2|| ताजंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे वेयड्डगिरिपायमूले सीहकुलंसि सीहत्ताए पञ्चायाहिति, सेणं तत्थ सीहे भवि स्ससि अहम्मिए जाव साहसिए सुबहूं पावं जाव समजिणति जाव समजिणित्ता कालमासे कालं किच्चा | इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उक्कोससागरोवमठितीएसु जाव उववजिहिति, सेणं ततो अणंतरं उव्व१ 'पुरा पोराणाणं'ति पुरा-पूर्वकाले कृतानामिति गम्यम् अत एव 'पुराणानां' चिरन्तनानाम् , इह च यावत्करणात् ॥४३॥ 'दुच्चिन्नाणं दुप्पडिकंताणं' इत्यादि 'पावगं फलवित्तिविसेंसमित्यन्तं द्रष्टव्यम्। २ 'अहम्मिए' इत्यत्र यावत्करणाविदं दृश्यं'बहुनगरनिग्गयजसे सूरे दढप्पहारी'ति, व्यक्तं च। ३ 'कालमासे'त्ति मरणावसरे । ४ 'सागरोवम जाव'त्ति 'सागरोपमहिईएसु नेरइयत्ताए' द्रष्टव्यम् । t urk Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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