________________
२३
बजनदूतम् कहीं नियमों को मैं भूल न जाऊं एतदर्थ वह उन्हें अपनी डायरी में अंकित कर लेती है । रात दिन वह अपनी मंदभाग्यता की निंदा करती हुई सपने मापको खोटे-खोटे शब्दों द्वारा कोसती रहती है । शारीरिक व्यवस्था के प्रति लापरवाही होने के कारण उसके जूड़ा के केश इधर-उधर मुख पर पड़े रहते हैं, रातदिन रोने के कारण उसकी निद्रा भंग हो गई है । अतः पाप चलकर कम से कम एकसार उसे देख तो लीजिये, देखने पर आपका चित्त स्वयं दया से दूषित हो जावेगा और फिर माप स्वयं ही ऐमी भावना बाले हो जावेंगे कि यह कैसे स्वस्थ हो ।
है वो मग्ना विविध नियमों के सखी पालने में,
ऐसी श्रद्धा धर कर मुझे प्राप्ति होगी पिया की । सो वो उन्हें गिन कर लिखे है स्वदैनन्दिनी में,
ऐसी प्यारी निधि नहिं मिली हूँ महामन्दभाग्या । ऐसी निदा प्रति समय में बो स्वयं को करे है,
देसी बांधे पर वह नहीं ठीक उस्से बंधे है। सो वे सारे खिसक पड़ते केश छ टे रहे जो,
सो गालों पं पड़कर उसे वे सखेदा करे हैं । सो बो ज्यों ही पकड़ करके हा ! उन्हें खोंसती हैं
वेणी में, त्यों खिसक पड़ते और भी शेष केश । जैसे-तैसे पुनरपि पुनः है उन्हें वो दबाती,
तैसे-तैसे कुपित बन वे गाल से घौट जाते । होती दुःखी तब वह बड़ी, स्वीय दुर्भाग्य की सो,
खोटी-खोटो वचनरचना से विनिन्दा करे है । शक्ति-क्षीरमा प्रतिदिन विभो ! को हुई जा रही है,
देखोगे तो लवकर उसे अापका सद्विचार । होगा ऐसा, नृपतिसनया स्वस्थ कैसे बने ये,
निद्रा-हीना वह विरह में, हो चुकी बन्दनों से 1 स्वामिन् ! ऐसी सुनकर दशा आप राजीमतो की