Book Title: Vachandutam Uttarardha
Author(s): Mulchand Shastri
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur

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Page 114
________________ वचनदूतम् "वृसाधना में गतिजा हो जाता है ऐसा जो जनवाद-लोकोक्ति है-उसे मैं मिथ्या इसलिये मानता हूं कि इस अवस्था में मेरी बुद्धि में विकास हुआ है ।।२५।। विद्वज्जन तो संकटापन्न जीवन वाले ही होते चले माये हैं। हमने देखा है कि गुलाब का फूल कांटों में ही विकसित होता है ।।२।। ऐसी बात सोचकर ही मेरा जीवन संतोष से निकल रहा है। बात तो यह सच है कि समुद्र के पास बैठा हुमा व्यक्ति मपने पात्र के अनुसार ही उसमें में जल प्राप्त कर सकता है ॥२७॥ अमाप्तमिदं स्मनदूतमुत्तरायम्

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