Book Title: Vachandutam Uttarardha
Author(s): Mulchand Shastri
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur

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Page 113
________________ वचनदूतम् १०३ संपादनार्थ जो स्तुति की उससे मुझे इस बृद्धावस्था में बल मिला । स्तुति में मैंने देव में यही याचना की कि मैं तुम से न धन चाहता हूं, न कीति की कामना करता हूं और न अतुल सुख चाहता हूं | मैं तो केवल यही चाहता हूं कि तुम्हारे द्वारा दिये गये इस कष्ट को मेरा यह शरीर सह सके इतना दल मुझे प्रदान करो ॥१७॥ इस प्रकार की प्रार्थना से प्रसन्न हुए देव ने मुझे इस ग्रन्थ के निर्माण करने लायक बल दिया, जिससे मैं इस नवीन ग्रन्थ को निर्माण कर विन्न पाठकों के सम्मुख उपस्थित करने में समर्थ हो सका हूं। यह पाठकों के मन को रंजित करेगा भौर एक बार भी पन लेने पर पुनः उन्हें यह बार बार पढने को उत्कंठित बनावेगा। ॥१८॥ जो दूसरों के दोषों को देखने के शौकीन हैं वे मेरे इसके निर्माण करने के परिश्रम की कीमत नहीं कर सकते हैं। क्योंकि रवि का प्रकाश कैसा होता है इस बात को उल्ल का बच्चा नहीं जानता है ।।१४ ___मेरी जन्मभूमि मालीन नामक कस्बा है । यह सागर जिले में वर्तमान है । मेरी माता का नाम सल्लो और पिता का नाम श्रीसटोलेलाल है। जाति का मैं परवार हूं । यह काव्य मैंने वि० संवत् २०२६ में रचा है । वह समय कार्तिक मास का शुल्क पक्ष का था ।।२०-२२।। ___ जब तक जिनेन्द्र का शासन भूमण्डल में चमकता रहे, गंगा का जल बहता रहे और प्राकाश मण्डल को चन्द्र और सूर्य प्रकाशित करते रहे, तब तक इस काव्य को जनता अच्छी तरह से पढ़ती रहे । इससे मिलने वाला श्रेय मेरे गुरुजनों को प्राप्त हो ऐसी मेरी मांगलिक भावना है ॥२३॥ मेरा अध्ययन बनारसस्थ स्याद्वाद महाविद्यालय में हुमा है, यह भदैनी घाट पर स्थित है, जनता इसे श्रद्धा की दृष्टि से देखती है, उसके प्रति जनता का बहुत पादर भाव है । इसकी स्थापना श्रीपूज्य गणेशप्रसाद जी बर्णी ने की है। वहां मेरे प्रधान विद्यागुरु श्रीमान् अम्बादास जी शास्त्री थे ।।२४।।

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