Book Title: Vachandutam Uttarardha
Author(s): Mulchand Shastri
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur

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Page 112
________________ वचनदूतम् भाग्यशाली मानते हैं ॥५॥ दिगम्बराचार्य श्री कुदकुद की मान्यता के अनुसार ही इस दिगम्बर क्षेत्र पर समय-समय पर धार्मिक कार्य होते रहते हैं ||६|| भक्ति के केन्द्ररूप इस क्षेत्र की पूर्ण व्यवस्था निर्यापनपद्धति से चुने गये जयपुर के दिगम्बर जनजन करते रहते हैं ||७|| क्षेत्र की प्रबन्धकारिणी कमेटी में चुने गये सदस्य कर्मठ, कुशल और चतुर होते हैं—में क्षेत्र की सेवा निस्पृह भाव से करते रहते हैं |८|| इस समय क्षेत्रीय मंत्री-पद पर श्री 'कपूरचन्द पाटनी' महोदम हैं पौर सभापति पद पर सिन्दूका श्री 'ज्ञानचन्द्रजी' हैं ।।६।। जिसने प्रष्टसहस्री के भाव को लेकर 'प्राप्तमीमांसा' का एवं 'युक्त्यनुशासन' नथ का हिन्दी में अनुवाद किया है उसी ने इस नवीन काव्य की रचना की है। यह विद्वज्जन मनोमोहक बने यही मेरी मांगलिक कामना है ॥१०-११॥ सल्लो-माता के सुपुत्र मैंने "न्यायरल" नामक सूत्रग्रन्थ रचा और संस्कृत में उस पर तीन टीकाएं भी रची, जो बिजनों को मान्य हुई हैं तथा स्थान्त सुखाय और भी दूसरे काव्य एवं “लोंकाणाह" नामक एक १४ सगीत्मक महाकाव्य भी निर्मित किया । इस वचन दूत की जो रचना की है वह विद्वन्मनोमोदक स्वकल्पनारचित पदों से की है। पूर्व मेघदूत के अन्तिम पाद को लेकर पूर्ववचनदूत की रचना हुई है. उममें जो प्रसंगति प्रतीत हो उसके लिये मैं क्षम्य हूं। उत्तरववनदूत में उत्तरमेघदूत के अन्तिम पादों की समस्या पूर्ति हुई है, पर जिनकी संगति हो सकी है उनकी ही संगति इस उसर वचनदूत की कथावस्तु के साथ बैठायी गई है, सब अन्तिमपादों की नहीं ।। १२-१४॥ मुझ मूलचंद्र नामक साधारण व्यक्ति ने मुनिवर विद्यानन्द महाराज केगुभाशीर्वाद के प्रभाव से इस नवीन काव्य की रचना की है, मेरा अधिकांश समय सरस्वती माता की आराधना में ही व्यतीत होता है । गुणों में अनुराग रखने वाले विवजनों को मेरा यह काम संतोषप्रद होगा ऐसा प्रात्म विश्वास है ॥१५॥ धार्मिक कार्यों के संपादन में निरन्तर निरत होने पर भी मुझे देव की प्रतिकूलता से प्रोस्टेडग्रन्थि की बाधा हो गई है ।।१६।। अतः मैंने उसकी अनुकूलता

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