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वचनदूतम्
बदना ) मलिन मुख ( कि संवृता प्रसि) क्यों हो रही हो ? (स्वम् तु प्रियपतिहितरता आसी) तुम तो अपने प्यारे पति के कल्याण में अनुरक्त थीं, सो(इदं ते किम् विस्मृतम्) इस बात को क्या तुम भूल गई हो ? (यदा कृच्छात्) जब कष्ट के मारे (सानो बदति) वह उत्तर नहीं देती है तब (तर: वयस्याः ) वे सखियां उससे ( वदन्ति ) कहने लगती हैं ( तस्य प्रिया इति ( मत्वा)) में उनकी प्रिया हूं. सो ऐसा मानकर (रसिके) हे रसिके ! ( कच्चित् त्वम् ) क्या तुम (भर्तुः स्मरसि) अपने भर्तार को याद कर रही हो ?
भाषार्थ - राजूल को मलिन उदासीन मुखवाली देखकर सखियाँ उससे मजाक के रूप में यहां पूछ रही हैं कि राजुल ! तेरा मुख मलिन क्यों हो रहा है ? क्या पतिदेव मुनि हो गये हैं इसलिये तो तुम्हीं तो पहिले कहा करती थी कि मुझे तो अपने पतिदेवता है फिर हो गया ? इस प्रकार पूछे जाने पर जब वह दुःख की अधिकता के मारे उन्हें जवाब नहीं देती हैं तो वे सखियां उससे हंसी मजाक के रूप में कहने लगती है कि तुम्ह तो अपने को नेमि की प्रेयसी मानती हो न ? तो इसलिये हे रसिके ? तुम अपने भर्तार की याद कर रही हो क्या ?
मुग्धे ! क्यों तुम मलिनवदना इस समय हो रही हो,
तुम तो पहिले पतिहितप्रिया थीं इसे भूल गई क्या ? ऐसी बातें सुनकर दुखित चित्त हो वो न देती
प्रत्युत्तर, तो बस फिर उसे वै वयस्या चित्राती । यों कह करके "सखि | तुम" प्रिया नेमि की हूं "अतः क्या' बैठी बैठी स्वयं उनकी याद में रत बनी हो ||३८||
श्यं काचित्तस्या मनोवेदनां वक्ति---
अन्तस्तापं प्रशमितुमसौ नाथ ! सार्धं सखीभी, रम्याशमं व्रजति च यदा हन्त । तत्रापि तस्याः । सानिध्यात् सुखित शिखिनो वीक्ष्य दुःखातिरेकात्, मुक्तास्थूलास्तर किसलयेच्यश्रुलेशाः
पतन्ति १३६॥