Book Title: Vachandutam Uttarardha
Author(s): Mulchand Shastri
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur

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Page 106
________________ वचनदूतम् अन्वय- अर्थ - ( माता धन्या) राजुल की माता धन्य है (असौ उग्रसेनः प्रबनिपत्तिः अपि धन्यः) उग्रसेन भूषाल भी धन्य है. जो (जगति प्राचीदिग्वत् महिला) संसार में पूर्व दिशा की तरह पूज्य हुई ऐसी (सा शिवा धन्यधन्या) बहु नेमिनाथ की माता शिया देवी अत्यन्त धन्य है (सः नरपतिमरिणः समुद्राभिधानः तातः धन्यः) वे नरपतिमूर्धन्य समुद्रविजय पिता भी धन्य हैं (तथा प्रभाविनी धर्मपत्नी ) तथा जिसे अब धर्मपत्नी का पद प्राप्त ही नहीं होना है ऐसी ( राजीमतिः ग्रगि) राजुल भी ( धन्या) धन्य है । १६ भावार्थ - स्पष्ट है । माता धन्या, अवनिपति ने धन्य हैं उग्रसेन प्राचीदिद् जगतभर में जो हुई पूज्यपूज्या ऐसी माता वह सति शिवा धन्य है, धन्य तातवे नेमी के समुदविजय श्रीमती राजपुत्री भन्या है वो राजमति सती, जो न होगी किसी की— आगे पत्नी- इन सबन को है नमस्कार मेरा || २३ || राजीमत्या विरहसमये तस्सली - तातपाइँ नेम्यम्य वचनमलिलं प्रोक्तमानाय दृष्धम् एतस्काध्यं कविकुलम रणेः का लिवासस्य काव्यात् पादं चान्त्यं समुचिश्पदान्मेघवृताद्गृहीत्वा ॥ ६४ ॥ अन्वय- अर्थ - ( राजीमत्वा च तत्सखी - तातपादैः विरहसमये) राजुल ने और उसकी सखियों ने एवं उसके पिता ने विरह के समय (नैम्यम्य रखें) नमि के निकट (प्रोक्त' प्रति वचनं श्रादाय ) जो वचन कहे उन सबको लेकर के मैंने ( एतत् काव्यं हब्धम् ) इस काव्य की रचना की है. इसमें (कविकुलमणेः कालिदासस्य समुचितपदात् ) कविकुलमणि कालिदास के समुचित पदवाले (मेघदूतात् काव्यान् ) मेघदूत काव्य से ( अन्त्यं पाद) अन्तिम पाद को (गृहीत्वा ) ग्रहण करके इस काव्य का निर्माण किया है। भावार्थ — नेमिनाथ अब राजुल का भर विवाह में परित्याग कर गिरनार पर्वत पर दिगम्बर मुद्रा में विराजमान हो गये उस समय राजसुता राजमति की सब

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