Book Title: Vachandutam Uttarardha
Author(s): Mulchand Shastri
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur

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Page 88
________________ ७८ वचनदूतम् दूल्हा बन कर सज धज यहां बन्धुनों के समेत आये, श्री क्यों श्रब कर चले रंग में भंग पूरा ।। ६२ ।। अत्रत्यां किं सकलजनता एवं सदुःखां विधातु श्रागाः, कि या बहुपरिचयात् पूर्वकालेऽनयमा भुक्त भोगे त्रुटि परिभवाज्जायमान दौर्मनस्यात् क्रुद्धो भूत्वा सुबरमिषाई रनिर्यातनार्थम् ॥६३ ।। अन्वय- अर्थ - हे नाथ ! (त्वम् ) आप (किम् ) क्या ( प्रवत्यां सकलजनता सदुःखाम् विधातुम् ) यहां की जूनागढ की समस्त जनता को दुःखित करने के लिये (वा) यथा ( पूर्वकाले बहुपरिचयात्) कई भवों से अधिक परिचय होने के कारण (नया श्रमा) इसके साथ (भुक्त भोगे) भोगे गये भोगों में (त्रुटि परिभवाज्जायमानदीनस्यात्) हुई त्रुटि या तिरस्कार के कारण उत्पन्न हुए दौर्मनस्य को लेकर के (क्रुद्धो भूत्वा क्रोध में श्राकर ( सुवरमिषात् ) पति के छल से (किम् वैर निर्यातनार्थम्) क्या उस वैर भाव को भेजाने के लिये (यागाः ) आये थे ? भावार्थ - नाथ ! अवधि ज्ञान के द्वारा पहिले से ही इस प्रकार की घटना थापको ज्ञात तो थी ही, फिर भी आप बारात लेकर यहां जी आये और बिना विवाह किये ही आप यहां से चले गये। तो हमतो इसका कारण वही नमकते हैं कि आप इस प्रकार के व्यवहार से यहां की जनता को दुःखित करने के लिये या कई भवों के अति निकट के परिचय से भोगों के भोगने में राजुल द्वारा हुई त्रुटि से अन्य कोष को उससे चुकाने के लिये उसका बदला लेने के लिये ही पति के वेष में श्राये थे क्या ? जूनागढ़ की सकल जनता को दुखी नाथ ! करने आये थे क्या यदुकुलपते ! आप कुछ तो बताओ ? दोनों की जो परस्पर में प्रीति थी कई मन्त्रों को उसमें अन्तर क्यों पड़ गया, कौनसी भूल हुई है ऐसी जो है नहि वह क्षमायोग्य कुछ तो कहो, क्या उसी का यह इस समय में आप बदला चुकाने दूल्हा के मित्र इस नगर में साथ लेकर बरात, आये थे ? सोनहि उचित था खेलना खेल ऐसा ।। ६३ ।।

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