Book Title: Vachandutam Uttarardha
Author(s): Mulchand Shastri
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur

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Page 96
________________ वचनद्तम् बुद्धम्) मेरी क्या जाति है ? मेरा कुल क्या है ? अवमैं क्या कर रहा हूं और मुझे क्या करना चाहिले था । ऐसा जिसने स्याल नहीं किया. हे बेटी ! (परिणयविधि मुक्त्वा गच्छते तस्म का स्पहा) वैवाहिक विधि को छोड़कर जाने वाले उम नेमि की त क्या चाहना करती है ! माषार्थ हे बेटी ! मै कौन हं, यह कौन है, मेरी जाति क्या है, क्या मेरा कुल है, मुझे क्या करना चाहिने धा और अब मैं क्या कर रहा हूं, ऐसा जिसने मोडा सा भी विचार नहीं किया और बीच में ही बवाहिक विधि का परित्माग करके जो चला गया है ऐसे उस नेमि के पीछे तू क्यों दुःखित हो रही है । मैं हूँ कौन कौन यह नारी कुल क्या, क्या मेरी जानि नही समझ में पायी जिसकी समझाने पर हर भांति क्या करने के योग्य मुझे था और कर रहा ाब में क्या ऐसा भी तो ख्याल किया नहिं जिसने अब बतलाऊं क्या जो विवाह को छोड गया हो उसकी क्या इच्छा करना अस्थिर चित्त हा प्राणी का नहिं विश्वारा कभी बरना ।।७२।। अप्रायोग्यं यदपि च सुते ! कार्यमेतद्वभव प्रागंसाह नहि सम्भवढे द्मि सभ्य क तथापि । वक्तन्याही जगति न च ते सन्ति ये-शक्तिमन्तः कुर्वन्तस्तेऽकुशलमपि नो सन्त्युपालभनीयाः ।।७३।। अन्वय-अर्थ-(सूते) हे बेटी (सम्यक वेथि) मै अच्छी तरह जानता हूं कि (एनन् कार्य अनायोग्यं बभूव) यह तेरा परिहार रूप कार्य अपने खान्दान के योग्य नहीं हुआ है। इसीलिये (प्राशंसाई न हि समभवद) बह प्रांग़नीय नहीं है (तथापि) तब भी (जगति ये शक्तिमन्तः सन्ति) संसार में जो शक्तिशाली होते हैं (ते बक्तब्धाहाः न) उनसे कोई कुछ नहीं कह सकता (ते अकुशलमपि कुर्वन्तः उपालम्भनीया न सन्ति) चाहे वे अकुशल भी कार्य करें तब भी उन्हें कोई उलाहना तक भी नहीं दे सकता । भावार्थ-बेटी ! "समरथ को नहि दोष गुसाई" इस नीति के अनुसार जो शक्तिशाली होते हैं वे अनुचित कार्य भी करें तो भी उनसे कोई कुछ नहीं कह

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