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बचनदुतम्
जाता है ( एतत्
अन्वय अर्थ – (बाले) हे बेटी ! (वाग्दानात् कः श्रपि कस्याः रमरणः न भवति) केवल सगाई हो जाने मात्र से कोई किसी का वर-पति नहीं बन ज्ञात्वा तदीया सोकवार्ता मनसि कदा न श्रानेवच्या ) यह समझ कर नेमि संबंधी शोक की बातें अब तुझें अपने मन में कभी नहीं लानी चाहिये। (यदि स गतवान् ) यदि वह चला गया है तो (यथेच्छम् गच्छतु) भले वह चला जावे ( उसे रोकता भी कौन है ) (परिणय विधि मध्ये मुम्बा) अरे भला जो व्यक्ति तुझे भर विवाह में बीच में ही छोड़कर चला गया है ( गच्छते तस्मै । उस जाने वाले को तुझे क्वा चाहना करनी ?
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भावार्थ-बेटी ! सगाई हो जाने मात्र से पति-पत्नी भाव नहीं होता है ऐसा जानकर तुझे नेमि के छोड़ जाने का जरा सा भी शोक नहीं करना चाहिए | यदि वह चला गया है तो भले चला जाये उसे रोकता भी अब कौन है । अरे भला, जो परिणयविधि को बीच में ही छोड़कर चला गया है उस जाने वाले की मव तुझे क्या चाहना करनी चाहिये ?
न हि सगाई हो जाने से ही कोई भर्ता बन जाता
सप्तपदी हो जाने पर पति-पत्नी भाव उभर प्राता ऐसा सोच समझ कर बेटी उसका शोक न अब कर तू चला गया वह तुझे छोड़कर तो जाने दे रोक न तू
जो विवाह को छोड़ गया हो उसकी क्या इच्छा करना अस्थिर चित्त मनुज का बेटी ! नहि विश्वास कभी करना ||७१
कोsहं के हृदि न गणितं येन किञ्चित् कथंचित्
का मे जातिः कुलमपि च किं मे सांप्रतं किं करोमि किं कर्तव्यं भवति च मया वाऽधुना नैव बुद्ध
तस्मै मुक्त्वा परिणयविधि गच्छते का स्पृहा ते ||७२ ||
अन्वय अर्थ - ( अहं कः इयं का येन किञ्चित् कथंचित् नगरितम् ) मैं कौन हूं यह कौन है, ऐसा जिसने कुछ भी किसी भी तरह से विचार नहीं किया और (मे का जातिः कि मे कुलं साम्प्रतं किं करोभि, मया अबुनाकर्तव्यं किं भवति देव