Book Title: Vachandutam Uttarardha
Author(s): Mulchand Shastri
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur

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Page 91
________________ वसात प्राय माता-पिता से कहा 1 सुनकर वे दोनों दुःखित हुए और उन्होंने उससे ऐमा करना अभी उचित नहीं है ऐसा कहा मुनी नेमि की जब निस्पृहता राजीमति तब पहुंची पास मात-पिता के–यों वह बोली पिता ! म अब तुम होउ उदास मैं भी प्रात्मसाधना के पथ पर विच मी तग गृहवास दुःस्विस होकर बोले वे "नहि अभी करो तुम व्रत की आश" ।।६।। यातो नेमिस्त्वदभिलषितो यात्वसौ नैव शोच्यः अन्यं श्रेष्ठं सुभगसुभगं त्वत्कृतेऽहं सतोऽपि अद्य श्वो वा नपतितनयं मायिष्यामि नूनं का तस्य त्वं, भवति स च कस्ते स्वयं चिन्तयैतत् ।।६७।। अन्वय-प्रयं. -हे बेटी ! (त्वदभिलषितः नेमिः यातः) तेरा मन पाहा नमि चला गया है (असो यातु, नव शोच्यः) तो इसे जाने दे, इसका क्या शोक, (त्वत्कृते अहं ततः अपि सुभगसुभगं श्रेष्ठ) तुम्हारे लिये मैं नेमि से भी अत्यन्त सुन्दर श्रेष्ठ (नपतितनयं प्रद्य प्रवः या नूनं मार्गमिष्यामि) राजपुश्त्र आज कल में तलाश करने वाला है। (एतत् स्वयं चिन्तय) ग्रह तुम स्वयं विचार करो कि (तस्य त्वं क:) उसकी तुम अब कौन होती हो पोर (ते स च कः) तेरा वह कौन (भवति) होता है भावार्थ - बेटी तुमने जिसे अपना जीवन साथी चुना था यदि वह तुम्हें छोड़कर चला गया है तो जाने दे. इसको क्या चिन्ता. मैं तो आज कल में मेरे योग्य दूसरे राजपुत्र की जो कि नेमि से भी अधिक श्रेष्ठ हो खोज करने वाला हूं। तू उसकी कमा फिकर कर रही है । सोच तो सही-अब वह तेरा कौन है और नू' उसकी क्या है । पूर्व के नाते अब सब झूठ हो चुके हैं। मन चाहा यदि तेरा स्वामी तुझे छोड़कर चला गया तो बेटी ! जाने दे उसको वर ठूलूगा और नया प्राज काल में जो हो उसम नेमी से भी प्रति गुग्णवान् राजपुत्र सुन्दर में सुन्दर हो तेरे जो योग्य महान् क्यों चिन्ता करती है उसकी जिसने तेरी नहीं करीथोड़ी सी भी चिन्ता, बेटी ! दुःखित मप्त हो घरी घरी

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