Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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समुद्रपालीय - मुनिधर्म शिक्षा
अहिंस सच्चं च अतेणगं च, तत्तो य बंभं अपरिग्गहं च । पडिवज्जिया पंच महव्वयाणि, चरिज्ज धम्मं जिणदेसियं विदू ॥ १२ ॥
बंभ
कठिन शब्दार्थ - अहिंस अहिंसा, सच्च सत्य, अतेणगं अस्तेय, तत्तो तत्पश्चात्, ब्रह्मचर्य, अपरिग्गहं अपरिग्रह को, पडिवज्जिया अंगीकार कर के, पंचमहव्वयाणि - पांच महाव्रतों को, चरिज्ज आचरण करे, जिणदेसियं धम्मं - जिनोपदिष्ट धर्म का, विदू - विद्वान् ।
भावार्थ - अहिंसा, सत्य, अस्तेय ( अदत्त का त्याग ), ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह रूप पाँच महाव्रतों को अंगीकार कर के वे विद्वान् मुनि जिनेन्द्र देव द्वारा उपदिष्ट धर्म का पालन (सेवन) करने लगे।
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सव्वेहिं भूएहिं दयाणुकंपी, खंतिक्खमे संजय - बंभयारी ।
सावज्ज जोगं परिवज्जयंतो, चरिज्ज भिक्खू सुसमाहि इंदिए ॥ १३ ॥ कठिन शब्दार्थ - सव्वेहिं भूएहिं सभी प्राणियों के प्रति, दयाणुकंपी - दयालुअनुकम्पाशील, खंतिक्खमे क्षमा से दुर्वचनादि को सहन करने वाला, सावज जोगं सावद्य. योगों को, परिवज्जयंतो परित्याग करता हुआ, सुसमाहि इंदिए - इन्द्रियों को
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सुसमाहित: - नियंत्रित रखने वाला ।
भावार्थ सभी जीवों पर दयापूर्वक अनुकम्पा करने वाला, कठोर वचनों को क्षमा एवं शांतिपूर्वक सहन करने वाला, संयत एवं ब्रह्मचारी, सुसमाधि युक्त तथा इन्द्रियों को वश में रखने वाला साधु सभी प्रकार के सावद्य व्यापारों को छोड़ कर विचरे । समुद्रपाल मुनि इसी प्रकार विचरने लगे।
काले कालं विहरेज्ज रट्ठे, बलाबलं जाणिय अप्पणो य ।
सीहो व सद्देण ण संतसेज्जा, वयजोग सुच्चा ण असब्भमाहु ॥ १४ ॥
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समय के अनुसार, विहरेज्ज - विचरे, रट्ठे - राष्ट्रों
कठिन शब्दार्थ - कालेण कालं में, बलाबलं - बलाबल को, जाणिय जानकर, अप्पणो- अपने, सीहो व सिंह की तरह, सद्देण - शब्दों से, ण संतसेज्जा - संत्रस्त न हो, वयजोग अमनोज्ञ वचन व्यापार,
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सुच्चा - सुनकर, असब्धं - असभ्य वचन, ण आहु - न कहे।
भावार्थ - मुनि कालोकाल (यथा समय प्रतिलेखनादि क्रियाएं करता हुआ) अपनी आत्मा
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