Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन लगता है कि ऋग्वेद के व्याख्याकारों ने उसका अर्थ-परिवर्तन किया है। अरिष्टनेमि विशेषण ही नहीं है। प्राचीन काल में यह नाम होता था। महाभारत में मरीचि के पुत्र के दो नाम बतलाए गए हैं-अरिष्टनेमि और कश्यप। कुछ लोग उसे अरिष्टनेमि कहते और कुछ लोग कश्यप / ' ऋग्वेद में भी तार्थ्य अरिष्टनेमि की स्तुति की गई है / 2 अरिष्टनेमि का नाम महावीर और बुद्ध-काल में महापुरुषों की सूची में प्रचलित था। लंकावतार के तृतीय परिवर्तन में बुद्ध के अनेक नामों में अरिष्टनेमि का भी नाम है। वहाँ लिखा है--"जिस प्रकार एक ही वस्तु के अनेक नाम प्रयुक्त होते हैं, उसी प्रकार बुद्ध के असंख्य नाम है। कोई उन्हें तथागत कहते हैं तो कोई उन्हें स्वयंभू, नायक, विनायक, परिणायक, बुद्ध, ऋषि, वृषभ, ब्राह्मण, विष्णु, ईश्वर, प्रधान, कपिल, भूतान्त, भाष्कर, अरिष्टनेमि, राम, व्यास, शुक, इन्द्र, बलि, वरुण आदि नामों से पुकारते हैं।' प्रभासपुराण में अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण का सम्बन्धित उल्लेख है। अरिष्टनेमि का रेवत ( गिरनार ) पर्वत से भी सम्बन्ध बताया गया है / और वहाँ बताया गया है कि वामन ने नेमिनाथ को शिव के नाम से पुकारा था। वामन ने गिरनार पर बलि को बाँधने का सामर्थ्य पाने के लिए भगवान् नेमिनाथ के आगे तप तपा था। __ इन उद्धारणों से श्रीकृष्ण और अरिष्टनेमि के परिवारिक तथा धार्मिक सम्बन्ध की पुष्टि होती है / उत्तराध्ययन के बाईसवें अध्ययन से भी यही प्रमाणित होता है / प्रोफेसर प्राणनाथ ने प्रभास पाटण से प्राप्त ताम्रपत्र को इस प्रकार पढ़ा है-रेवा १-महाभारत, शान्तिपर्व, 208 / 8 : मरीचेः कश्यपः पुत्रस्तस्य द्वे नामनी स्मृते / अरिष्टनेमिरित्येके कश्यपेत्यपरे विदुः // २-ऋग्वेद, 10 // 12 // 178 / 1 / / त्यमू षु वाजिनं देवजूतं सहावानं तख्तारं रथानाम् / अरिष्टनेमि पृतनाजमाशुं स्वस्तये तार्यमिहा हुवेम // ३-बौद्ध धर्म दर्शन, पृ० 162 / / ४-विशेष जानकारी के लिए देखें "कहत् अरिष्टनेमि और बासुदेव कृष्ण / "