Book Title: Tirthankar Charitra
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Ramchandra Prakashan Samiti

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Page 23
________________ ६. प्रकाम्य शक्ति - इससे जमीन की तरह पानी पर चल सकता है और जल की तरह जमीन में स्नानादि कर सकता है। ७. ईशत्व शक्ति - इससे चक्रवर्ती और इंद्र के जैसा वैभव किया जा सकता . ८. वशित्व शक्ति - इससे क्रूर प्राणी भी वश में आ जाते हैं। ९. अप्रतिघाती शक्ति - इससे एक द्वार की तरह पर्वतों और चट्टानों में से मनुष्य निकल सकता है। १०. अप्रतिहत अंतर्ध्यान शक्ति - इससे मनुष्य पवन की तरह अदृश्य हो सकता है। ११. कामरूपत्व शक्ति - इससे एक ही समय में अनेक तरह के रूप धारण कर सारा लोक पूर्ण किया जा सकता है। ६. बीज बुद्धि लब्धि - इससे एक अर्थ से अनेक अर्थ जाने. जा सकते हैं। जैसे-एक बीज बोने से अनेक बीज प्राप्त होते हैं। ७. कोष्ट बुद्धि लब्धि - जैसे कोठे में अनाज रहता है वैसे ही इससे पहले सुनी हुई बात पुनरावर्तन न करने पर भी हमेशा याद रहती है। ८. पदानुसारिणी लब्धि - इससे आरंभ का बीच का या अंत का, चाहे किसी स्थल का एक पद सुनने से सारा ग्रंथ याद आ जाता है। ९. मनोबली लब्धि - इससे मनुष्य एक वस्तु को जानकर सारे श्रुतशास्त्रों को जान सकता है। १०. वचनबली लब्धि - इससे मूलाक्षर याद करने से सारे शास्त्र अंतर्मुहर्त में याद कर सकता है। ११. कायबली लब्धि - इससे मनुष्य बहुत कालतक मूर्ति की तरह कार्योत्सर्ग करने पर भी थकता नहीं है। १२. अमृतक्षीर-मध्वाज्याश्रवि लब्धि - इस लब्धिवाले के पात्र में अगर खराब चीज होती है तो भी वह अमृतं, क्षीर (दूध) मधु (शहीद) और घी के समान स्वाद देनेवाली हो जाती है और उसका वचन अमृत, क्षीर, मधु और घी के समान तृप्ति देनेवाला होता है। १३. अक्षीण महानसी लब्धि - इससे पात्र में पड़ा हुआ पदार्थ अक्षय (कभी समाप्त नहीं होनेवाला) हो जाता है। इसी लब्धि के कारण एक बार गौतम स्वामी एक पात्र में क्षीर लाये थे और उससे पंद्रह सौ तपस्वियों को मारणा करवाया था । १४ अक्षीणमहालयलब्धि- इस लब्धि से तीर्थंकरों की पर्षदा की तरह थोडी जगह में अनेक प्राणियों के रहने की व्यवस्था की जा सकती है। १५. संभिन्न श्रोत लब्धि - इसके कारण एक इंद्री से सभी इंद्रियों के विषय का ज्ञान हो जाता है। १६-१७. जंघाचारण और विद्याचारण लब्धियाँ - इन दोनों लब्धियों से जहां .. . : श्री आदिनाथ चरित्र : 10 :

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