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कर ली। ये स्वयं बुद्ध तीर्थंकर भगवान थे।
__ वज्रनाभ चक्रवर्ती थे। जब इनके पिता को केवल ज्ञान हुआ तभी इनकी आयुधशाला में भी चक्ररत्न ने प्रवेश किया। अन्यान्य तेरह रत्न भी उनको उसी समय प्राप्त हुए। जब उन्होंने पुष्कलावती विजय के छ खंडों को अपने अधिकार में कर लिया तब समस्त राजाओं ने मिलकर उन पर चक्रवर्तित्व का अभिषेक किया। ये चक्रवर्ती की सारी संपदाओं का भोग करते थे तो भी इनकी बुद्धि हर समय धर्मसाधन की ओर ही रहती थी।
एक बार वज्रसेन भगवान विहार करते हुए पुंडरीकिणी नगरी के निकट समोसरे। वज्रनाभ भी धर्मदेशना सुनने के लिए गये। देशना सुनकर उनकी वैराग्य-भावना बहुत ही प्रबल हो गयी। उन्होंने अपने पुत्र को राज्य सौंपकर दीक्षा ले ली। घोर तपस्या करने लगे। तपश्चरण के प्रभाव से उनको
खेलादि लब्धियाँ प्राप्त हुई; परंतु उन्होंने लब्धियों का कभी उपयेग नहीं किया। कारण मुमुक्षु पुरुष प्राप्त वस्तु में भी आकांक्षा रहित होते हैं। 1. १. खेलौषधि लब्धि-इस लब्धिवाले का थूक लगाने से कोढ़ियों के कोढ मिट
जाते है। २. जलौषधि लब्धि - इस लब्धिवाले के कान, नाक और शरीर का मैल सारे रोगों को मिटाता है और कस्तूरी के समान सुगंधवाला होता है। ३. आमौषधि लब्धि- इस लब्धिवाले के स्पर्श से सारे रोग मिट जाते हैं। ४. सर्वौषधि लंब्धि- इस लब्धिवाले के शरीर से छूआ हुआ बारिश का जल और नदी का जल सारे रोग मिटाता है। इसके शरीर से स्पर्श करके आया हुआ वायु जहर के असर को दूर करता है। उसके वचन का स्मरण महाविष की पीड़ा को मिटाता है और उसके नख, केश, दांत और शरीर का स्पर्श भी दवा बन जाता है। ५. वैक्रिय लब्धि-इससे नीचे लिखी शक्तियाँ प्राप्त होती हैं - १. अणुत्व शक्ति - छोटी से छोटी वस्तु में भी प्रवेश करने की शक्ति। सूई - के नाके में से इस शक्तिवाला निकल सकता है। २. महत्व शक्ति - इस शक्ति से शरीर इतना बड़ा किया जा सकता है कि
मेरु पर्वत के शिखर भूमि पर रहकर स्पर्श कर सके। ३. लघुत्व शक्ति - इस शक्ति से शरीर पवन से भी हलका बनाया जा सकता है। ४. गुरुत्व शक्ति - इससे शरीर इतना भारी बनाया जा सकता है कि इंद्रादि
देव भी उसके भार को सहन नहीं कर सकते। ५. प्राप्ति शक्ति - इससे पृथ्वी पर बैठे हुए आकाशस्थ तारों को भी छू सकता
: श्री तीर्थंकर चरित्र : 9 :